अधिगम के सक्रिय अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त को उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए। संस्थापित अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त तथा सक्रिय अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त का शिक्षा में क्या उपयोग है ?
बी० एफ० स्किन्नर (B. F. Skinner) ने अधिगम के क्षेत्र में अनेक प्रयोग किए और यह अनुभव किया कि अभिप्रेरणा के कारण ही अधिगम में क्रियाशीलता आती है। अभिप्रेरण का आधार उद्दीपन है। उद्दीपन भावी क्रिया को नियंत्रित करता है। शिक्षक कक्षागत परिस्थितियों में कुछ संकेत शब्दों से सम्पूर्ण क्रिया का संचालन करता है। बैठो, पुस्तक निकालो, पढ़ो, बताओ, अभ्यास करो, जैसे शब्द शिक्षक की दैनिक क्रिया के अंग हैं और छात्र इन शब्दों से अनुबंधित हैं।
स्किन्नर ने चूहों, कबूतरों आदि पर अनेक प्रयोग किए और यह धारणा विकसित की कि दो प्रकार के व्यवहार प्राणियों में पाए जाते हैं— (i) अनुक्रिया (Respondent) तथा (ii) सक्रिय (Operant) 1 अनुक्रिया का सम्बन्ध उद्दीपन से होता है और सक्रियता किसी ज्ञात उद्दीपन से नहीं जुड़ी होती। यह स्वतन्त्र होती है। सक्रिय व्यवहार किसी ज्ञात उद्दीपन से नहीं जुड़ा होता, इसलिए इसकी शक्ति को परावर्ती (Reflex) नियमों के द्वारा नहीं मापा जा सकता। अनुक्रिया की दर (Rate) ही सक्रिय शक्ति का माप है।
1930 में सफेद चूहों पर स्किन्नर ने प्रयोग किए। उसने एक बक्सा बनाया जिसमें एक लीवर था। इस लीवर पर चूहे का पैर पड़ता था, खट् की आवाज होती थी। इस आवाज को सुनकर चूहा आगे बढ़ता और उसे प्याले में खाना मिलता। यह खाना चूहे के लिए पुनर्बलन (Reinforcement) का कार्य करता है। चूहा इसीलिए लीवर दबाता था। चूहा भूखा होने के कारण प्रणोदित (Drived) होता था और सक्रिय रहता था
स्किन्नर ने लीवर की क्रिया के चयन के कारण इस प्रकार बताए-
- चूहे के लिए लीवर दबाना सरल क्रिया है।
- चूहा घण्टे में अनेक बार लीवर दबाने की क्रिया करता है, अतः उसके इस व्यवहार का निरीक्षण सरलतापूर्वक किया जा सकता है।
- लीवर दबाने की क्रिया में अन्य व्यवहार निहित नहीं है।
- लीवर दबाने की क्रिया का आभास हो जाता है।
इस प्रयोग से यह स्पष्ट है कि ‘यदि किसी क्रिया के बाद कोई बल प्रदान करने वाला उद्दीपन मिलता है तो उस क्रिया की शक्ति में वृद्धि हो जाती है।”
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सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त क्या है ?
स्किन्नर ने अनेक प्रयोगों द्वारा प्राणी में किसी कार्य को करने या सीखने के प्रति सक्रियता की पुष्टि की है, जिसका आधार अभिप्रेरणा प्रणोदन (Drive), पुनर्बलन (Reinforcement) एवं सक्रिय (Operant) अनुबन्धन है। स्किन्नर के सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त की व्याख्या एम० एल० बिग्गी ने इस प्रकार की है—“सक्रिय अनुबन्धन एक अधिगम प्रक्रिया है, जिसमें अनुक्रिया सतत् या सम्भावित होती है, उस समय सक्रियता की शक्ति बढ़ जाती है।” स्किन्नर ने मनोविज्ञान में प्रचलित शब्दावली संवेदना (Sensation), प्रतिमा (Image), प्रणोदन (Drive), मूलप्रवृत्ति (Instinct) जैसे शब्दों के प्रयोग का बहिष्कार किया, क्योंकि ये शब्द अभौतिक घटकों की ओर संकेत करते हैं। स्किन्नर के अनुसार-व्यवहार प्राणी या उसके अंश की किसी संदर्भ में गति है, यह गति या तो प्राणी में स्वयं होती है, अथवा किसी बाहरी उद्देश्य या शक्ति के क्षेत्र से आती है।”
स्किन्नर की सक्रिय अनुबन्धन धारणा इन्जीनियरिंग पर आधारित है। उसका विश्वास है कि मनोविज्ञान बाह्य (Overt) व्यवहार का विज्ञान है। अधिगम, अनुक्रिया की सम्भाव्यता में परिवर्तन है। अनेक स्थितियों में यह परिवर्तन सक्रिय अनुबन्धन के कारण होता है। समस्त व्यवहार सक्रिय पुनर्बलन के द्वारा होता है। शिक्षा सहित, जीवन के हर क्षेत्र में पुनर्बलन की पुर्नव्यवस्था में परिवर्तन से अनुक्रिया की सम्भाव्यता (Probability) से ही व्यक्ति में परिवर्तन आते हैं। सक्रिय पुनर्बलन से व्यवहार की कुशलता में वृद्धि होती है। इसके द्वारा चलने में, खेल में, उपकरणों के प्रयोग में सन्तुलन बनाए रखना सीखा जाता है।
जब भी किसी व्यवहार को पुनर्बलित किया जाता है, तब उस व्यवहार की पुनरावृत्ति के संयोग अधिक होते हैं। स्किन्नर के अनुसार- “मूल्यों (Values) की सूची ही पुनर्बलन (Reinforcers) की सूची होती है, जो अनुबंधित करती है। हमारी संरचना इस प्रकार की हो जाती है कि हम भोजन, जल, यौन सम्बन्ध आदि के व्यवहारों की पुनरावृत्ति करते हैं। प्राणी को किसी भी दशा में सक्रियता के कारण व्यवहार की पुनरावृत्ति करनी पड़ती है। “
पुनर्बलन (Reinforcement)- स्किन्नर की सक्रिय अनुबन्धन क्रिया में दो प्रकार के पुनर्बलन पाए जाते हैं–(i) सकारात्मक (Positive), (ii) नकारात्मक (Negative), सकारात्मक पुनर्बलन में व्यक्ति क्रिया में योग देता है और क्रियात्मक में वह स्वयं को परिस्थिति से बचाता है। बिजली का धक्का नकारात्मक है, इसलिए प्राणी उससे बचता है। स्किन्नर ने चार प्रकार के उपपुनर्बलन का प्रयोग किया है-
- निश्चित अनुपात पुनर्बलन (Fixed Ratio Reinforcement),
- निश्चित अन्तराल पुनर्बलन (Fixed Interval Reinforcement),
- शतप्रतिशत पुनर्बलन (Hundred Percent Reinforcement),
- आंशिक पुनर्बलन (Partial Reinforcement) |
ये पुनर्बलन पूर्व निर्धारित व्यवहार की अभिव्यक्ति हेतु किए जाते हैं।
सक्रिय अनुबन्धन एवं शिक्षा
स्किन्नर की धारणा कि सक्रिय अनुबन्धन द्वारा शिक्ष की क्रिया को प्रभावशाली ढंग से सम्पन्न किया जाता है। पशुओं को प्रशिक्षण दिया जा सकता है। बालकों को भी इस प्रणाली द्वारा प्रभावशाली अधिगम कराया जा सकता है। शिक्षक सक्रिय अनुबन्धन का प्रयोग इस प्रकार कर सकता है-
1. अधिगम को स्वरूप प्रदान करना (Shaping the Behaviour)- अधिगम के सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त का प्रयोग शिक्षक सीखे जाने वाले व्यवहार को वांछित स्वरूप प्रदान करने में करता है। वह उद्दीपन नियन्त्रण के द्वारा वांछित व्यवहार का सृजन करता है।
2. शब्द भण्डार एवं अभिक्रमित अधिगम (Vocabulary and Programmed Learning)- शब्द भण्डार की वृद्धि तथा अर्थ ग्रहण के लिए स्किनर ने अभिक्रमित अधिगम का प्रयोग करने पर बल दिया है। इसमें शब्दों को तार्किक क्रम से प्रस्तुत किया जाता है।
3. निदानात्मक शिक्षण (Training the Psychotic Patients)- जटिल व्यवहार के सीखने की सभी सम्भावनाओं पर स्किन्नर ने विचार किया तथा जटिल एवं मानसिक रोगियों के सीखने पर भी सक्रिय अनुबन्धन को उपयोगी बताया।
4. परिणाम की जानकारी (Knowledge of Results) – व्यावहारिक जीवन में ऐसे अनेक कार्य हैं, जिनसे व्यक्ति को संतोष नहीं मिलता। यदि सीखने वाले को अपनी प्रगति तथा परिणाम की जानकारी हो तो वह प्रगति कर सकता है। गृह कार्य में संशोधन से छात्र भावी व्यवहार में सुधार करता है।
5. पुनर्बलन का महत्व (Reinforcement) – सक्रिय अनुबन्धन में पुनर्बलन का महत्व है। पुरस्कार दण्ड, परिणाम का ज्ञान आदि पुनर्बलन का कार्य करते हैं।
6. संतोष (Satisfaction) – स्किन्नर ने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि यदि कोई क्रिया संतोष प्रदान करती है तो उससे सक्रियता आती है और सीखने की क्रिया को बल मिलता है।
7. पद विभाजन (Small Steps)- पाठ्य सामग्री को अनेक छोटे-छोटे पदों में विभाजन करने से सीखने की क्रिया को बल मिलता है।
कुल मिला कर शिक्षक को सक्रिय अनुबन्धन द्वारा यह ज्ञात हो जाता है कि (i) कौन-सा व्यवहार अपेक्षित है? (ii) कौन-से पुनर्बलन उपलब्ध हैं ? (iii) कौन-सी अनुक्रियाएँ उपलब्ध है ? (iv) पुनर्बलन को प्रभावशाली ढंग से किस प्रकार व्यवस्थित किया जा सकता है ?
इन चारों पदों के अनुसार ही शिक्षक अपनी पाठ योजना का नियोजन कर सकता है।
मूल्यांकन (Evaluation) आधुनिक युग में स्किन्नर के विचार ने अधिगम के क्षेत्र में क्रान्ति की है। मनोविज्ञान के साहचर्य तथा क्षेत्र सिद्धान्तों में संज्ञानात्मक (Cognitive) सिद्धान्त ने महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। स्किन्नर ने अधिगम के सक्रिय अनुबन्धन में इन पक्षों पर विशेष बल दिया है-
(i) क्षमता (Capacity) – क्षमता के मानदण्ड बदल, अनुभवाश्रित केर स्किन्नर ने नए ढंग से सोचने को विवश किया है। नियमबद्धता से क्षमता का घनिष्ठ सम्बन्ध है। स्किन्नर ने इसी आधार पर व्यक्तित्व परीक्षणों का विरोध किया है।
(ii) अभ्यास (Practical)- अभ्यास, पुनर्बलन का एक रूप है। उद्दीपन (S) अनुबन्धन सतत् है, परन्तु अनुक्रिया (R) अनुबन्धन में बराबर वलन की आवश्यकता पड़ती है।
(iii) अभिप्रेरणा (Motivation)- स्किन्नर ने अभिप्रेरणा को सक्रिय अनुबन्धन का सशक्त घटक माना है। पुरस्कार या पुनर्बलन सक्रिय शक्ति को बढ़ाने के लिए आवश्यक है।
(iv) अवबोध (Understanding) – स्किन्नर अन्तर्दृष्टि (Insight) जैसे शब्द के प्रयोग से परहेज करता है। वह समस्या को समझने तथा उसके समाधान पर बल देता है। समानता तथा सरलता के आधार पर समस्या का समाधान प्रस्तुत किया जा सकता है।
(v) अन्तरण (Transfer) – स्किनर सामान्यीकरण या अन्तरण के लिए प्रतिष्ठित (Induction) शब्द का प्रयोग करता है। अन्तरण में लिखे हुए ज्ञान का अन्य परिस्थिति में प्रयोग किया जाता है। प्रतिष्ठित में भी वही भाव है।
स्किन्नर के विचारों की आलोचना भी कम नहीं हुई है। आलोचना के मुद्दे इस प्रकार हैं-
(i) सक्रिय अनुबन्धन सीमित नहीं है। यह SR सिद्धान्त का ही विकसित रूप है।
(ii) सक्रिय अनुबन्धन में तैयारी के नियम की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
(iii) स्किन्नर ने पुनर्बलनों को शक्तिदाता माना है, किन्तु अधिगम की पूर्णता उसकी निष्पत्ति में है। इसी पक्ष की उपेक्षा की गई है।
(iv) सक्रिय अनुबन्धन, निरीक्षणात्मक अधिगम है, जिसका लाभ अध्ययनकर्ता उठा सकता है
(v) चौमुस्की ने स्किन्नर के हर पद की आलोचना करते हुए कहा है कि सक्रिय अनुबन्धन पशुओं तथा हीन बुद्धि वाले प्राणियों पर तो सफल हो सकता है, परन्तु विवेकशील प्राणियों पर नहीं।
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