आदर्शवाद के मूल सिद्धान्त ( Fundamental Principles of Idealism )
आदर्शवाद के मूल सिद्धान्त- आदर्शवाद की तत्त्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा और आचार मीमांसा को यदि हम सिद्धान्तों के रूप में क्रमबद्ध करना चाहें तो निम्नलिखित रूप में कर सकते हैं-
1. यह ब्रह्माण्ड ईश्वर द्वारा निर्मित है- आदर्शवादियों का विश्वास है कि इस ब्रह्माण्ड की कोई नियामक सत्ता अवश्य है और यह सत्ता अनादि तथा अनन्त है और इसका स्वरूप आध्यात्मिक है। प्लेटो की दृष्टि से यह सत्ता ईश्वर हैं जो विचारों की सहायता से सृष्टि की रचना करता है। हीगल के अनुसार ब्रह्माण्ड के मूल में दो मूल तत्व हैं- एक आत्मा (मनस, Mind) और दूसरा प्रकृति (पुद्गल, Matter)। उनके अनुसार परमात्मा (परम मन, Super Mind) पदार्थ (Matter) से इस ब्रह्माण्ड की रचना है।
2. भौतिक जगत की अपेक्षा आध्यात्मिक जगत श्रेष्ठ है- प्लेटो ने इस ब्रह्माण्ड को दो जगतों में बाँटा है-विचार जगत और वस्तु जगत। उनका स्पष्टीकरण है कि विचार नित्य और अपरिवर्तनशील हैं इसलिए वे सत्य हैं और उनसे बना विचारों का जगत भी सत्य है। इसके विपरीत पदार्थ अनित्य और परिवर्तनशील हैं इसलिए असत्य हैं और उनसे बना जगत भी असत्य है। उनके अनुसार यह भौतिक संसार विचारजन्य संसार की अभिव्यक्ति मात्र है। हीगल भी दो जगत मानते हैं— आत्मिक जगत और पदार्थ जगत। अन्तर इतना है कि वे आत्मा के साथ-साथ पदार्थ की सत्ता भी स्वीकार करते थे। उनकी दृष्टि से दोनों जगत ही सत्य हैं। परन्तु इतना वे भी मानते थे कि आत्मिक जगत इस पदार्थ जगत से श्रेष्ठतर है।
3. आत्मा एक आध्यात्मिक तत्त्व है और परमात्मा सर्वश्रेष्ठ आत्मा है— यद्यपि आत्मा के सम्बन्ध में सभी आदर्शवादी एक मत नहीं हैं, कुछ उसे परमात्मा का अंश मानते हैं और कुछ उसको स्वतन्त्र सत्ता स्वीकार करते हैं, परन्तु यह सभी मानते हैं कि आत्मा अनादि और अनन्त हैं। उनका कहना है कि आत्मा को इन्द्रियों द्वारा नहीं जाना जा सकता, इसे बुद्धि द्वारा समझा जा सकता है। परमात्मा के विषय भी आदर्शवादी एकमत नहीं हैं। अधिकतर आदर्शवादी उसे सर्वश्रेष्ठ आत्मा के रूप में देखते हैं।
4. मनुष्य संसार की सर्वश्रेष्ठ रचना है- आदर्शवादी मनुष्य को सृष्टि की सर्वोत्कृष्ट रचना मानते हैं। उनका कहना है कि मनुष्य के पास अन्य प्राणियों की भांति भौतिक शक्तियाँ तो होती ही है, उनके साथ-साथ उसमें आध्यात्मिक शक्तियाँ और होती हैं। ये आध्यात्मिक शक्तियाँ ही उसे सभ्यता, संस्कृति, कला, नीति और धर्म को जन्म देने और उनका विकास करने में सहायक होती हैं जिनसे उसका भौतिक जीवन सुखमय होता है और आध्यात्मिक अनुभूति के लिए आध्यात्मिक पर्यावरण तैयार होता है।
5. मनुष्य का विकास उसकी भौतिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों पर निर्भर करता है— आदर्शवादियों के अनुसार ज्ञान का स्वरूप भौतिक एवं आध्यात्मिक दो प्रकार का होता हैं। उनका स्पष्टीकरण है कि भौतिक ज्ञान की प्राप्ति भौतिक शक्ति (इन्द्रियों) द्वारा होती है और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति आध्यात्मिक शक्ति (आत्मा) द्वारा होती है और इस प्रकार मनुष्य का भौतिक विकास उसकी भौतिक शक्तियों के आधार पर होता है और आध्यात्मिक विकास आध्यात्मिक शक्तियों के द्वारा होता है। उनका स्पष्टीकरण है कि आध्यात्मिक शक्तियों के द्वारा यह सभ्यता, संस्कृति, कला, नीति और धर्म का निर्माण करता है और उनकी सहायता से अपने भौतिक पर्यावरण पर नियन्त्रण करने और आत्मानुभूति करने में सफल होता है।
6. मनुष्य जीवन का अन्तिम उद्देश्य आत्मानुभूति अथवा ईश्वर प्राप्ति है— आदर्शवादी मनुष्य जीवन को महत्त्वपूर्ण और सप्रयोजन मानते हैं। उनका विश्वास है कि मनुष्य के अन्दर आत्मा का निवास है। यह आत्मा सूक्ष्म, अनादि और अनन्त है। प्रत्येक प्राणी इस दृष्टि से पूर्ण है। परन्तु अज्ञानता के कारण वह इस पूर्णता को समझ नहीं पाता और इसलिए ज्ञान और शक्ति का अनन्त भण्डार होते हुए भी वह अपने को ज्ञानहीन और शक्तिहीन समझता है। मानव शरीर द्वारा पूर्णता की अनुभूति होती है। अतः मनुष्य योनी पाकर हमें उसकी अनुभूति करनी चाहिए, तब हम संसार के कष्टों से बच जाएंगे और हमें परमानन्द की अनुभूति होगी। कुछ आदर्शवादी इसी को आदर्श व्यक्तित्व की प्राप्ति कहते हैं। इस प्रकार आदर्शवादियों के अनुसार मनुष्य के जीवन का चरम उद्देश्य आत्मानुभूति, ईश्वर प्राप्ति अथवा परम सत्य अथवा परम आनन्द की प्राप्ति है।
7. आत्मानुभूति अथवा ईश्वर प्राप्ति के लिए आध्यात्मिक मूल्य सत्यं शिवं और सुन्दरम् की प्राप्ति आवश्यक होती है— प्लेटो तीन सनातन मूल्यों में विश्वास करते थे। ये सत्यं, शिवं और सुन्दरम् हम जानते हैं कि कुछ आदर्शवादी प्रत्यय पर अधिक बल देते हैं और कुछ आत्मन् पर और इन दोनों का परम रूप परमात्मा है। सत्यं शिवं और सुन्दरम् आत्मा तथा मूल्य हैं परमात्मा रूपी रवे की तीन सतह है जिन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। जो सत्य है वही शिव है और जो शिव है वही सुन्दर है। इसी प्रकार जो सुन्दर है वही शिव है और जो शिव है वहीं सत्य है। यदि हम विचार कर देखें तो इन तीनों आध्यात्मिक मूल्यों -सत्यं शिवं और सुन्दरम का आधार मानव मस्तिष्क और उसकी प्रकृति ही है। मनोविज्ञान की दृष्टि से मानव मस्तिष्क की तीन प्रक्रियाएँ हैं- जानना, संवेग अथवा अनुभूति और वांछा अर्थात् कुछ करने की इच्छा। मनुष्य किसी वस्तु अथवा क्रिया के विषय में जानकर सत्य-असत्य में भेद करता है और सत्य को अपनाता है और असत्य को त्यागता चलता है। ज्ञान के आधार पर ही वह सुन्दर और असुन्दर का भेद करता है, सुन्दरता की अनुभूति से आनन्द लाभ करता है और असुन्दर एवं कुरूप वस्तुओं तथा क्रियाओं को त्याग देता है। इस प्रकार मानव मस्तिष्क की प्रवृत्ति सत्यं, शिवं और की प्राप्ति की ओर होती है।
8. आध्यात्मिक मूल्यों की प्राप्ति के लिए नैतिक आचरण आवश्यक है— सत्यं, शिवं और सुन्दरम् आध्यात्मिक मूल्य हैं। इनको इस शरीर से ही प्राप्त किया जाता है, इसलिए इस शरीर को उसके योग्य बनाना आवश्यक है। ज्ञान के अभाव में मनुष्य संसार के अन्य प्राणियों की भांति ही लड़ते-झगड़ते रहते हैं और पशुओं की भाँति जीवन व्यतीत करते हैं। सामाजिक भावना उन्हें एक-दूसरे के निकट लाती है और वे एक-दूसरे के सुख की बात सोचने लगते हैं। आदर्शवादियों ने हमें बताया कि हम सब आत्माधारी हैं इसलिए समान हैं, और इसलिए एक प्राणी के दूसरे प्राणी के प्रति कुछ कर्त्तव्य हैं। कर्त्तव्यों को सामाजिक मूल्य, धर्म, नीति और आदर्श अनेक रूपों में संगठित किया गया है। आदर्शवादियों का कहना है कि मनुष्य, मनुष्य के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने में ही सत्यं शिवं और सुन्दरम् के दर्शन कर सकता है। इस प्रकार आदर्शवाद मनुष्य के इहलोक और परलोक दोनों को सुखमय बनाने के लिए आधार प्रस्तुत करता है।
9. राज्य एक सर्वोच्च सत्ता है- प्रायः सभी आदर्शवादी राज्य को व्यक्ति से उच्च स्थान देते हैं। यूनानी दार्शनिक प्लेटो जब सत्य एवं पूर्ण विचार करने वाले व्यक्तियों की कल्पना न कर सके तो उन्होंने सत्य विचार (नियम, Law) को ही राज्य स्वीकार किया। हीगल और फिश्टे ने भी राज्य को आदर्श और सर्वोच्च सत्ता के रूप में स्वीकार किया है ।
IMPORTANT LINK
- संस्कृति का अर्थ | संस्कृति की विशेषताएँ | शिक्षा और संस्कृति में सम्बन्ध | सभ्यता और संस्कृति में अन्तर
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा शिक्षा का किस प्रकार प्रभावित किया?
- मानव अधिकार की अवधारणा के विकास | Development of the concept of human rights in Hindi
- पाठ्यक्रम का अर्थ एंव परिभाषा | Meaning and definitions of curriculum in Hindi
- वर्तमान पाठ्यक्रम के दोष | current course defects in Hindi
- मानव अधिकार क्या है? इसके प्रकार | what are human rights? its types
- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिए शिक्षा के उद्देश्य | Objectives of Education for International Goodwill in Hindi
- योग और शिक्षा के सम्बन्ध | Relationship between yoga and education in Hindi
- राज्य का शिक्षा से क्या सम्बन्ध है? राज्य का नियन्त्रण शिक्षा पर होना चाहिए या नहीं
- राज्य का क्या अर्थ है? शिक्षा के क्षेत्र में राज्य के कार्य बताइये।
- विद्यालय का अर्थ, आवश्यकता एवं विद्यालय को प्रभावशाली बनाने का सुझाव
- बालक के विकास में परिवार की शिक्षा का प्रभाव
- शिक्षा के साधन के रूप में परिवार का महत्व | Importance of family as a means of education
- शिक्षा के अभिकरण की परिभाषा एवं आवश्यकता | Definition and need of agency of education in Hindi
- शिक्षा का चरित्र निर्माण का उद्देश्य | Character Formation Aim of Education in Hindi
- शिक्षा के ज्ञानात्मक उद्देश्य | पक्ष और विपक्ष में तर्क | ज्ञानात्मक उद्देश्य के विपक्ष में तर्क
- शिक्षा के जीविकोपार्जन के उद्देश्य | objectives of education in Hindi
- मध्यांक या मध्यिका (Median) की परिभाषा | अवर्गीकृत एवं वर्गीकृत आंकड़ों से मध्यांक ज्ञात करने की विधि
- बहुलांक (Mode) का अर्थ | अवर्गीकृत एवं वर्गीकृत आंकड़ों से बहुलांक ज्ञात करने की विधि
- मध्यमान, मध्यांक एवं बहुलक के गुण-दोष एवं उपयोगिता | Merits and demerits of mean, median and mode
- सहसम्बन्ध का अर्थ एवं प्रकार | सहसम्बन्ध का गुणांक एवं महत्व | सहसम्बन्ध को प्रभावित करने वाले तत्व एवं विधियाँ
- शिक्षा का अर्थ, परिभाषा एंव विशेषताएँ | Meaning, Definition and Characteristics of Education in Hindi
- शिक्षा के समाजशास्त्रीय उपागम का अर्थ एंव विशेषताएँ
- दार्शनिक उपागम का क्या तात्पर्य है? शिक्षा में इस उपागम की भूमिका
- औपचारिकेत्तर (निरौपचारिक) शिक्षा का अर्थ | निरौपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ | निरौपचारिक शिक्षा के उद्देश्य
- औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा क्या है? दोनों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- शिक्षा का महत्व, आवश्यकता एवं उपयोगिता | Importance, need and utility of education
- शिक्षा के संकुचित एवं व्यापक अर्थ | narrow and broad meaning of education in Hindi
Disclaimer