आधुनिक युग में अनुशासनहीनता के क्या कारण हैं ?
विद्यालयों में अनुशासनहीनता के कारण (Causes of Indiscipline in the Schools)
विद्यालयों में अनुशासनहीनता के निम्नलिखित कारण हैं-
1. धन की कमी (Lack of Finance) – हमारे देश में काफी लोगों की आर्थिक दशा खराब है। बहुत कम लोग हैं, जो अपनी आवश्यकताओं को ठीक प्रकार से पूरी कर सकते हैं। साधारण छात्रों के माता-पिता की आर्थिक हालत अच्छी न होने के कारण बच्चे निराश और तंग रहते हैं। इसलिए ऐसी स्थिति में छात्रों के अन्दर समाज के विरुद्ध विद्रोह की भावना उत्पन्न होती है और वह झगड़े और अनुशासनहीनता के कार्य करते हैं।
2. अध्यापक में नेतृत्व की कमी (Lack of Leadership in Teachers)- कई कारणों से छात्र और समाज के नेता आगे होकर कार्य नहीं कर सकते। यह कारण है जैसे शिक्षा पद्धति की अधिक आलोचना, कम वेतन और निराशा, इच्छा के विपरीत बलपूर्वक धन्धे को अपनाने के लिए विवश होना। इसके अतिरिक्त अध्यापकों द्वारा ट्यूशनों का कार्य करना और राजनीतिक नेताओं का शिक्षा संस्थाओं पर नियन्त्रण होना भी अध्यापकों की शान और मान को घटाते हैं।
3. दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति (Defective Educational System) – शिक्षा पद्धति के कई दोष भी अनुशासनहीनता के लिए उत्तरदायी हैं, जैसे-
(i) छात्रों के अन्दर सदाचारिक मूल्य पैदा करने के लिए शिक्षा नहीं दी जाती और न ही उनके पूर्ण विकास के लिए यल किया जाता है।
(ii) श्री मौलाना आजाद ने कहा है कि “बच्चों के अन्दर झगड़े और बेचैनी की प्रवृत्ति जन्मजात नहीं होती, बल्कि उनके अन्दर बेचैनी होती है, क्योंकि उनके विचारों को प्रकट करने का अवसर नहीं दिया जाता।” (Maulana Azad also said, “I am convinced that if the young are at times turbulent and restless, it is not due to any intrinsic defect in them. Their restlessness is largely due to the fact that they do not have enough channels for the expression of their youthful urges.”)
(iii) एफ० डब्ल्यू० पार्कर (F. W. Parker) ने भी कहा था कि बच्चे ठीक प्रकार कार्य नहीं करते, क्योंकि उन्हें इस प्रकार करने की स्थितियाँ नहीं मिलतीं। (According to E W. Parker, “The fundamental reasons why children do not act is because they do not have the conditions for right action.”)
(iv) शिक्षा का आधार छात्रों के मनोवैज्ञानिक आधार पर नहीं होता इसलिए बच्चे इसमें रुचि नहीं लेते।
(v) शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए छात्रों को पूर्ण सुविधाएँ नहीं दी जातीं ।
(vi) परीक्षा पद्धति बड़ी दोषपूर्ण है। यह अधिक सट्टेबाजी को उत्साहित करती है और बच्चों का ज्ञान बढ़ाने के लिए प्रेरणा नहीं देती, इसलिए बहुत संख्या फेल होने वालों की होती है और इससे निराशा बढ़ती है।
(vii) स्कूलों में सहगामी क्रियाओं का प्रबन्ध न होने के कारण बच्चों की शक्तियों को कार्यान्वित नहीं किया जा सकता।
(viii) अध्यापकों और छात्रों से निकट का सम्बन्ध नहीं होता। ऐसी स्थिति में हम छात्रों को कार्य से प्रेरित होने की आशा नहीं रख सकते।
4. तानाशाही आचरण (Authoritative Character) – अनुचित तानाशाही आचरण भी विद्यार्थियों और शिक्षा अधिकारियों के बीच झगड़े का कारण बनता है। विद्यार्थियों के दुःखों को सहानुभूतिपूर्वक न सुलझाने पर वे विद्रोह का रूप धारण कर लेते हैं। तानाशाही व्यवहार के कई कारण हो सकते हैं, जैसे-अधिकारियों का सत्कार न करना, झगड़ा करना, समय पर स्कूल न आना, घर का कार्य न करके लाना, जनता की सम्पत्ति नष्ट करना, बुरे शब्द बोलना, लड़कियों को छेड़ना, बच्चों को तंग करना आदि ।
5. राजनैतिक कारण (Political Factors) – विद्यालयों में यह कारण भी अनुशासनहीनता के लिए उत्तरदायी है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने तो स्वतन्त्रता संघर्ष के समय विद्यालयों की सहायता ली थी। उस समय ही उन्होंने नागरिक आज्ञा का उल्लंघन, हड़तालें, आन्दोलन तथा सरकार को धोखा देने के ढंग अपनाए थे, पर अब तो विद्यार्थी अपनी सरकार के होते हुए भी विद्यालयों और कॉलेजों में अपनी माँगें मनवाने के लिए यह ढंग प्रयोग में लाते हैं। इसके अतिरिक्त कई राजनैतिक पार्टियों के नेता भी राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु विद्यार्थियों को उकसाते हैं।
6. समाज में आदर्शवाद की कमी (Lack of Idealism in Society ) – बालकों का स्वभाव सदा आस-पास पर आधारित होता है। वे देखते हैं कि समाज में भी सामाजिक और सदाचार के नियमों का उल्लंघन होता है। उनके माता-पिता और अध्यापक उनके लिए बनाए गए नियमों का पालन नहीं करते। इसलिए उनके अन्दर भी सामाजिक और सदाचार के नियमों के लिए सत्कार समाप्त हो जाता है और अनुशासनहीनता उत्पन्न होती है।
7. विद्यार्थियों का अपना आचरण (Personal Character of the Pupils)- कई बार विद्यार्थियों के अपने आचरण में कुछ दोष होने के कारण वे अपने आप को आस-पास के अनुसार नहीं ढाल सकते। वह दोष कई प्रकार के हो सकते हैं। बालक में शारीरिक या मानसिक कमियाँ हो सकती हैं, अपने आप को दूसरों से ऊँचा या नीचा भी लग सकता है। किशोरावस्था (Adolescent age) में उसमें कई परिवर्तन आ सकते हैं। इसके अलावा विद्यार्थी में बहुत सी ऐसी बुरी आदतें आ जाती हैं, जिन्हें वह दूर नहीं कर सकता ।
8. मनोवैज्ञानिक आधार (Psychological Factors) – बालकों के साथ मनोवैज्ञानिक आधार के अनुसार व्यवहार नहीं किया जाता। उनके विचारों और भावनाओं को देखने का प्रयास नहीं किया जाता। उनकी शक्तियों को उचित कार्यों के लिए प्रयोग नहीं किया जाता। अनेक बार अध्यापक और माता-पिता इन पर अनुचित प्रभाव डालते हैं कि बालक विवश होकर अनुचित कार्य करने पर विवश हो जाते हैं और अनुशासन की भी परवाह नहीं करते।
- विद्यार्थियों के छोटे-छोटे दोषों के लिए कड़ी सजाएँ देना ।
- अनुशासन की पुरानी विचारधारा को मानकर विद्यार्थियों की रचनात्मक प्रेरणा एवं कौतूहल की भावना को भारतीय शिक्षा आयोग 1964-66 द्वारा अनुमानित अनुशासनहीनता के कारणों का विश्लेषण दबाना ।
भारतीय शिक्षा आयोग के विचार में इस असभ्य व्यवहार के निम्नलिखित कारण हैं-
- विद्यार्थियों का अनिश्चित भविष्य एवं परिणामस्वरूप नैराश्य भाव का जन्म।
- अधिकांश संस्थाओं में पढ़ने- सीखने और पढ़ाने की सुविधाओं का सर्वथा अभाव ।
- अनेक अध्यापकों की विद्यार्थियों की समस्याओं में रुचि लेने की असमर्थता का होना।
- अध्यापक विद्यार्थी का नगण्य सम्पर्क का होना ।
- राजनीतिक दलों का संस्थाओं के कार्य में हस्तक्षेप करना ।
- देश के सार्वजनिक जीवन का प्रभाव, वयस्कों में अनुशासन के गिरते स्तर, नागरिक चेतना तथा ईमानदारी का हास होना ।
प्रो० हुमायूँ कबीर ने एक पैम्फलेट में अनुशासनहीनता के निम्नलिखित कारण बताये हैं-
- अध्यापकों का नेतृत्व न रहना।
- आर्थिक कठिनाइयों की उत्पत्ति ।
- आदर्शों का न रहना।
- वर्तमान शिक्षा पद्धति में दोष ।
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