कल्पना क्या है ? उसके प्रकार बताइए तथा शिक्षा में उनकी उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
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कल्पना का अर्थ तथा परिभाषा (Meaning & Definition of Imagination)
मानव सभ्यता के विकास में कल्पना का विशेष महत्व रहा है। कल्पना के द्वारा ही मनुष्य ने निर्माण किया है, विकास किया है। नवीन आविष्कार, साहित्य सृजन, नव-निर्माण आदि सभी कल्पना की देन है।
जिस वस्तु को हम जिस प्रकार छूते, देखते अथवा सुनते हैं, उसी प्रकार वह हमारे मन के पर्दे पर चिन्हित हो जाती है। यदि हम किसी सुन्दर मकान को देख चुके हैं, तो उसकी छाप हमारे मस्तिष्क में मौजूद रहती है। कुछ समय के बाद हमें उस मकान की याद आती है। तत्काल ही हम उसका चित्र अपने मस्तिष्क में देखते हैं। इसी चित्र को प्रतिमा ( Image ) M कहते हैं। यह प्रतिमा हमें उस मकान की सब बातों का उसी प्रकार स्मरण कराती है, जिस प्रकार हम उसको देख चुके हैं।
कभी-कभी हम उस मकान के आधार पर एक नए मकान का निर्माण करने लगते हैं। यह मकान उससे कहीं सुन्दर, तथा आलीशान है। ऐसा मकान कहीं है ही नहीं। यह तो केवल हमारे विचारों की उपज है। अप्रत्यक्ष बातों के सम्बन्ध में इस प्रकार विचार करने को ही ‘कल्पना’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, कल्पना एक चेतन और आश्चर्यजनक मानसिक प्रक्रिया है, जिसमें हम अपने पिछले अनुभव के आधार पर किसी नई वस्तु का निर्माण करते हैं।
‘कल्पना’ का अर्थ और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं-
1. डमविल-“मनोविज्ञान में ‘कल्पना’ शब्द का प्रयोग सब प्रकार की प्रतिमाओं के निर्माण को व्यक्त करने के लिए किया जा सकता है।”
“The word ‘imagination may be used in psychology to designate all production of images.” – Dumville
2. मैक्डूगल – “हम कल्पना या कल्पना करने की उचित परिभाषा अप्रत्यक्ष बातों के सम्बन्ध में विचार करने के रूप में कर सकते हैं।”
“We may properly define imagination or imagining as thinking of remote objects.” – MeDougall: An Outline of Psychology.
3. रायबर्न- “कल्पना वह शक्ति है, जिसके द्वारा हम अपनी प्रतिमाओं का नए प्रकार से प्रयोग करते हैं। यह हमको अपने पिछले अनुभव को किसी ऐसी वस्तु का निर्माण करने में सहायता देती है, जो पहले कभी नहीं थी।”
“Imagination is the power to use our images in a new way, it is using our past experience to create something new which has not existed before.” – Ryburn
इसीलिए वुडवर्थ ने कल्पना को मानसिक प्रहस्तन माना है।
कल्पना का वर्गीकरण (Classification of Imagination)
‘कल्पना’ का वर्गीकरण विभिन्न लेखकों द्वारा विभिन्न प्रकार से किया गया है। इनमें मैक्डूगल (McDougall) और ड्रेवर (Drever) के वर्गीकरण को सबसे अधिक मान्यता प्रदान की जाती है।
1. मैक्डूगल का वर्गीकरण
1. पुनरुत्पादक कल्पना (Reproductive) – इस कल्पना में हमारे पूर्व- अनुभव, प्रतिमाओं (Images) के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित होते हैं। इस कल्पना का दूसरा नाम स्मृति ( Memory) है।
2. रचनात्मक कल्पना (Constructive) – इस कल्पना का प्रयोग किसी भौतिक वस्तु की रचना के लिए किया जाता है; जैसे—पुल, बाँध, मकान आदि बनाने की कल्पना करना ।
3. उत्पादक कल्पना (Productive) – इस कल्पना में हम पूर्व- अनुभव को आधार बनाकर उसमें कुछ नवीनता उत्पन्न कर देते हैं।
4. सृजनात्मक कल्पना (Creative) – इस कल्पना का प्रयोग किसी अभौतिक वस्तु की रचना के लिए किया जाता है, जैसे- कविता, नाटक, आदि की रचना।
2. ड्रेवर का वर्गीकरण
1. पुनरुत्पादक व उत्पादक कल्पना- उपर्युक्त के अनुसार ।
2. सृजनात्मक कल्पना (Creative) – मैक्डूगल की इस कल्पना को ड्रेवर ने दो भागों में विभाजित किया है-
(i) कार्यसाधक कल्पना (Pragmatic)- इस कल्पना का प्रयोग किसी उपयोगी कार्य के लिए किया जाता है; जैसे—इंजीनियर द्वारा किसी पुल का निर्माण करने के लिए उसका नक्शा बनाना, श्रेष्ठ सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना आदि। (ii) सौन्दर्यात्मक कल्पना (Aesthetic) – इस कल्पना का प्रयोग सुन्दर वस्तुओं का निर्माण और मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है; जैसे-चित्रकारी, उपन्यास-लेखन, मन तरंग आदि ।
3. कार्यसाधक कल्पना (Pragmatic) – ड्रेवर ने इस कल्पना को दो भागों में विभाजित किया है-
(i) विचारात्मक कल्पना (Theoretical) – इसका प्रयोग श्रेष्ठ विचारों, आदर्शों, सिद्धान्तों आदि का निर्माण करने के लिए किया जाता है।
(ii) क्रियात्मक कल्पना (Practical) – इसका प्रयोग भौतिक वस्तुओं का निर्माण करने के लिए किया जाता है; जैसे-पुल, नहर, सड़क आदि बनाना।
4. आदानात्मक कल्पना (Receptive) – इस कल्पना का प्रयोग दैनिक कार्यों में किया जाता है। शिक्षक बालकों को ताजमहल की कल्पना करने में सहायता देने के लिए किसी आलीशान इमारत का वर्णन करता है, संगमरमर दिखाता है, और ताजमहल का चित्र प्रस्तुत करता है।
5. सौन्दर्यात्मक कल्पना (Aesthetic)- ड्रेवर ने इस कल्पना को दो भागों में विभक्त किया है- (i) कलात्मक कल्पना (Artistic)- कलात्मक कल्पना का प्रयोग श्रेष्ठ कलाओं की वस्तुओं की रचना के लिए किया जाता है; जैसे-चित्रकला, पद्य-रचना आदि।
(ii) मनतरंग (Phantastic) – इसका प्रयोग शेखचिल्ली के हवाई किलों का निर्माण करने के लिए किया जाता है।
कल्पना की शिक्षा में उपयोगिता (Utility of Imagination in Education)
बी० एन० झा के अनुसार- “विद्यालय कार्य का उद्देश्य न केवल बालकों की कल्पना का विकास करना, वरन् उसे उचित दिशा प्रदान करना भी होना चाहिए।”
“It should be the aim of school work not only to develop imagination, but also to give it the right direction.” -Jha
उपर्युक्त कथन से बालकों की शिक्षा में कल्पना की उपयोगिता पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। इस उपयोगिता के पक्ष में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किए जा सकते हैं-
1. कल्पना, बालक को सुदूर देशों के लोगों से सम्पर्क स्थापित करने की योग्यता प्रदान करती है।
2. कल्पना, बालक को अपनी अतृप्त इच्छाओं और अभिलाषाओं को पूर्ण करने का अवसर देती है।
3. भाटिया (Bhatia) के अनुसार- कल्पना, बालक को उसके कार्यों का परिणाम बताकर उसका पथ-प्रदर्शन करती है।
4. कल्पना, बालक को अपने को दूसरे व्यक्तियों की स्थितियों में रखने में सहायता देकर उनके सुखों और दुःखों से परिचित कराती है।
5. रायबर्न (Ryburn) के अनुसार कल्पना बालक के समक्ष श्रेष्ठ व्यक्तियों के कार्यों और आदर्शों के चित्र उपस्थित करके उसका नैतिक और चारित्रिक विकास करती है।
6. वुडवर्थ (Woodworth) के अनुसार कल्पना, बालक की रुचियों, प्रवृत्तियों, इच्छाओं, योग्यताओं आदि को प्रकट करती है। कुशल शिक्षक इनका ज्ञान प्राप्त करके और बालक की कल्पना को उचित दिशा प्रदान करके, उसके संसार को सुखमय बना सकता है। मोर्स व विंगो के अनुसार- “कल्पना, व्यक्ति को अपने संसार को व्यवस्था और आनन्द के नवीन संसार में परिवर्तित करने की क्षमता देती है।”
“Imagination gives to the individual the power to transform his world into a new world of order and delight.” -Morse & Wingo
7. कल्पना, बालक को वर्तमान अनुभवों की सीमा को पार करने की शक्ति देती है।
8. कल्पना, बालक को ज्ञान का अर्जन करने के लिए प्रोत्साहित करके उसका मानसिक विकास करती है।
9. कल्पना, बालक को अपनी रचनात्मक शक्ति का विकास करने में योग देती है।
10. रायबर्न (Ryburn) के अनुसार–कल्पना, बालक में दुःख की घड़ियों में सुख की प्रतिमायें उपस्थित करके उसे प्रसन्नता प्रदान करती है।
11. कल्पना, बालक में उसके भावी जीवन का चित्र प्रस्तुत करके, उसे उस जीवन के लिए तैयारी करने में सहयोग प्रदान करती है।
12. रायबर्न (Ryburn) के अनुसार कल्पना, बालक को विभिन्न प्रकार की सामूहिक और सामाजिक योजनाओं को पूर्ण करने में सहायता देकर उसका सामाजिक विकास करती है।
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