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केन्द्रीय सचिवालय का उद्भव एवं विकास | Origin and development of the Central Secretariat in Hindi

केन्द्रीय सचिवालय का उद्भव एवं विकास | Origin and development of the Central Secretariat in Hindi
केन्द्रीय सचिवालय का उद्भव एवं विकास | Origin and development of the Central Secretariat in Hindi

केन्द्रीय सचिवालय के उद्भव, विकास एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।

केन्द्रीय सचिवालय का उद्भव एवं विकास

भारत में केन्द्रीय सचिवालय का बीजारोपण ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासनकाल में हुआ। परन्तु सन् 1857 के पूर्व तक यह संगठन शैशवाकाल में ही रहा। 1862 से 1919 तक अनेक नए विभागों को सचिवालय में जोड़ा गया। विदेशा, गृह, वित्त तथा सैन्य विभाग तो सचिवालय में पहले से ही थे। इस अवधि में कृषि एवं राजस्व, उद्योग तथा वाणिज्य तथा निर्माण कार्य, आदि अतिरिक्त विभागों को केन्द्रीय सचिवालय में यथा समय स्थापित किया गया। स्वतन्त्रता के बाद केन्द्रीय सचिवालय के संगठन एवं कार्यों में पण्डित नेहरू के नेतृत्व में व्यापक परिवर्तन किए गए। 1950 से योजना-प्रकिया के लिए एक वित्तीय शाखा खोलने का प्रस्ताव रखा गया। 1957 में एक रक्षा शाखा स्थापित की गयी। 1961 में सांख्यिकी विभाग, 1964 में. ओ. एण्ड एम. विभाग, 1965 में सूचना विभाग तथा 1966 मं लोक अद्यम के ब्यूरो को वित्त विभाग में गठित कर सचिवालय में स्थान दिया गया।

केन्द्रीय सचिवालय में सचिव, अतिरिक्त सचिव, संयुक्त सचिव, उप-सचिव और अवर सचिव, आदि अधिकारी होतें हैं। केन्द्रीय सचिवालय के पदों को अखिल भारतीय सेवाओं, केन्द्रीय सेवा ग्रुप ‘क’ अधिकारी तथा केन्द्रीय सचिवालय सेवा (C.S.S) के अधिकारियों से भरा जाता है।

केन्द्रीय सचिवालय के किसी मन्त्रालय में एक से अधिक सचिव होते हैं, सभी सचिव यद्यपि समान वेतन पाते है, किन्तु वे समान दर्जे के नहीं होते। एक मन्त्रालय का सचिव होता है। तथा अन्य सचिव, मन्त्रालय में विभिन्न विभागों के सचिव होते हैं। विभागों के सचिव मन्त्रालय ‘के सचिव के अधीन रहकर कार्य करते हैं। मन्त्रालय का सचित अपने कार्यों के सम्पादन के अतिरिक्त अपने मन्त्रालय के विभिन्न विभागों के सचिवों में समन्वय स्थापित करने का कार्य करता है। केन्द्रीय सचिवालय के सचिव प्रायः निम्न पदमान में आते हैं:

1. बहुविभागीय मन्त्रालय सचिव- इन सचिवों को आवश्यकता से अधिक महत्व प्राप्त होता है, क्योंकि विभागों के सचिव इनकी अधीनता में कार्य करते हैं, जैसे, कृषि मन्त्रालय का सचिव, वाणिज्य मन्त्रालय का सचिव, गृह मन्त्रालय का सचिव ।

2. एकविभागीय मन्त्रालय सचिव- जैसे, रेल मन्त्रालय का सचिव, जल संसाधन मन्त्रालय का सचिव ।

3. बहुविभागीय मन्त्रालय में एक विभाग सचिव ।

4. किसी विशेष कार्य का निर्वाह करने वाला सचिव, जैसे- गृह मन्त्रालय में कश्मीर के मामले का सचिव ।

सचिव के पास कार्यभार अधिक होता है, अतः उसको सहायता देने के लिए अतिरिक्त या संयुक्त सचिव होते हैं। संयुक्त सचिव सौंपे गए क्षेत्र में सचिव की शक्ति का प्रयोग करते हैं। इनका मन्त्री से सीधा सम्पर्क होता है, किन्तु इस सम्पर्क के सम्बन्ध में सचिव को सूचित रखा जाता है। उप सचिव के लिए कार्य करता है। अपने स्तर पर वह जितने मामले निपटा सकता है, निपटाता है ! महत्वपूर्ण मामलों में वह सचिव से लिखित अथवा मौखिक आदेश प्राप्त करता है। अपर सचिव छोटे-छोटे मामले निपटाता है। जो भी पत्र आते हैं उन पर कार्यवाही कर प्रारम्भ उप-सचिव द्वारा होता है। महत्वपूर्ण मामलों को उप-सचिव के पास भेजा जाता है। किसी-किसी मन्त्रालय में विशेष के लिए ‘विशेष अधिकारी’ (Officer of Special Duty) भी हैं।

सचिव केवल मन्त्रालय का ही सचिव नहीं होता अपितु वह भारत सरकार का भी सचिव होता है। यही बात निम्न स्तर के अधिकारियों के सम्बन्ध में भी है; सभी अधिकारी सम्पूर्ण भारत सरकार के हित को ध्यान में रखकर कार्य करते हैं। दुर्भाग्यवश आजकल केन्द्रीय सचिवालय में मन्त्रालय या विभागीय प्रवृत्ति जोर पकड़ती जा रही और सचिव अपने मन्त्रालय या विभाग के संकुचित दृष्टिकोण से सोचते हैं। यह प्रकृत्ति केवल सचिवों तक ही सीमित न होकर नीचे के स्तर तक प्राप्त है।

केन्द्रीय सचिवालय के कार्य 

केन्द्रीय सचिवालय के कार्य निम्नवत् है-

1. नीति-निर्धारण तथा समय-समय पर आवश्यकतानुसार नीति के संशोधन में मंत्री की सहायता करना ।

2. विधान, नियम तथा विनियम तैयार करना।

3. क्षेत्रीय योजना और कार्यक्रम तैयार करना।

4. मन्त्रालय, या विभाग के कार्यों के सम्बन्ध में बजट तैयार करना और व्यय पर नियन्त्रण करना।

5. चालू होने वाले कार्यक्रमों और योजनाओं को वित्तीय तथा प्रशासनिक अनुमति देना और उनमें आवश्यक संशोधन करना ।

6. कार्यपलिका विभागों एवं अर्थ-स्वायत क्षेत्रीय अभिकरणों द्वारा निर्मित तथा कार्यक्रमों के क्रियान्वयन का पर्यवेक्षण करना तथा उस पर नियन्त्रण करना और उनके परिणामों का मूल्यांकन करना।

7. नीतियों की व्याख्या करना तथा नीतियों में समन्वय लाना।

8. मन्त्रालय-विभाग तथा उनकी इकाईयों के अधिकारी वर्ग की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए कदम उठाना।

9. मन्त्री को संसद के प्रति अपने उत्तरदायित्व वहन करने में सहायता करना। डॉ. एम. पी. शर्मा के शब्दों में, “सचिवालय का कार्य वह है कि वह नीतियों के निर्धारण के बारे में आवश्यक सामग्री तथा अपने विशिष्ट ज्ञान के आधार पर मन्त्री को परामर्श दे। उसका कार्य यह भी है कि वह नीतियों को क्रियान्वित करें सचिवालय को प्रशासनिक निकाय का मस्तिष्क केन्द्र कहा जा सकता है। वह समस्त प्रशासनिक क्रियाव का निदेशन और नियन्त्रण करता है।

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Anjali Yadav

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