केन्द्र-राज्य प्रशासनिक संबंधों की विवेचना कीजिए।
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केन्द्र-राज्य प्रशासनिक सम्बन्ध
भारतीय संघ की सबसे कठिन समस्या संघ तथा राज्यों के प्रशासनिक सम्बन्धों का समायोजन करना है। इसलिए भारतीय संविधान निर्माताओं ने इस सम्बन्ध में विस्तृत उपबन्धों की आवश्यकता अनुभव की ताकि प्रशासनिक क्षेत्र में संघ तथा राज्यों के मध्य किसी प्रकार के विवाद उत्पन्न न हो।
भारतीय संविधान के भाग-II तथा अध्याय-2 में केन्द्र तथा राज्यों के बीच प्रशासनिक सम्बन्धों की चर्चा की गई है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 73 के अनुसार, केन्द्र की प्रशासनिक शक्ति उन विषयों तक सीमित है जिन पर संसद को विधि निर्माण का अधिकार प्राप्त है। इसी प्रकार संविधान के अनुच्छेद 162 के अनुसार, राज्यों की प्रशासनिक शक्तियों उन विषयों तक सीमित हैं जिन9 पर राज्य विधानसभाओं को कानून बनाने का अधिकार है। समवर्ती सूची के विषयों के सम्बन्ध में प्रशासनिक अधिकार साधारणतया राज्यों में निहित हैं किन्तु इन विषयों पर राज्य की प्रशासनिक शक्तियों को संघ की ऐसी प्रशासनिक शक्तियों द्वारा सीमित रखा गया है जो या तो संविधान द्वारा या संसदीय विधि द्वारा प्रदत्त हैं।
प्रशासनिक सम्बन्धों में केन्द्र को राज्यों के ऊपर नियन्त्रण रखने का अधिकार प्रदान किया गया है किन्तु इसके बाजजूद राज्यों को स्वायत्तता एवं जिम्मेदारी का बड़ा क्षेत्र मिला हुआ है। फिर भी कुछ विद्वानों को महसूस होता है कि इन सम्बन्धों ने राज्यों की स्वायत्तता को कम किया है क्योंकि एक ही दल का बोलबाला है और “राज्यों के मुकाबले एक अत्यन्त शक्तिशाली संस्था के रूप में केन्द्रीय कार्यपालिका का उदय हुआ है तथा केन्द्र को अधिक अधिकार मिल गए हैं।”
राज्यों के ऊपर संघीय नियन्त्रण की ये विधियाँ निम्न हैं-
1. राज्यों का दायित्व- संविधान के अनुसार राज्यों की अपनी कार्यपालिका शक्ति का उपयोग इस प्रकार करना चाहिए जिससे संसद द्वारा निर्मित कानूनों का पालन होता रहे। हर राज्य का यह कर्तव्य है कि वह संसद के कानूनों को अमल में ने के लिए हर सम्भव उपाय काम में लाए। राज्यों का यह भी दायित्व है कि वे केन्द्रीय प्रशासन में कोई बाधा उत्पन्न न होने दें।
2. केन्द्र सरकार राज्यों को निदेश दे सकती है- केन्द्र को यह अधिकार दिया गया है कि वह राज्यों को यह निदेश दे सके कि उन्हें अपनी कार्यकारी शक्ति का उपयोग किस प्रकार करना चाहिए। राष्ट्रीय व सैनिक महत्व के मार्गों व पुलों आदि का निर्माण साधारणतया केन्द्रीय सरकार ही करती है, किन्तु केन्द्र को यह अधिकार प्राप्त है कि इस प्रकार के मार्गों के निर्माण व उनके उचित रख-रखाव के लिए वह राज्यों को आवश्यक निदेश दे सके। इसी प्रकार रेलमार्गों तथा रेलगाड़ियों की सुरक्षा के लिए भी निदेश जारी किए जा सकते हैं।
3. केन्द्र राज्यों की सरकारों का उपयोग अपने एजेण्ट के रूप में कर सकता है- राष्ट्रपति राज्यों की सरकारों अथवा उसके पदाधिकारियों को अपने एजेण्ट के रूप में कोई भी कार्य करने की जिम्मेदारी सौंप सकता है। इसका अभिप्राय यह है कि संघ सूची में दिए गए किसी भी विषय में सम्बन्धित कोई भी कार्य राज्यों के पदाधिकारियों को सौंपा जा सकता है।
4. सरकारी कृत्यों, अभिलेखों और न्यायिक कार्यवाही को पूरी मान्यता दी जाएगी – केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकार दोनों का यह कर्तव्य है कि वे सभी सरकारी कृत्यों का आदर करें और देश के सभी न्यायालयों द्वारा दिए गए अन्तिम निर्णयों को लागू करें।
5. दो या अधिक राज्यों में बहने वाले जलाशयों व नदियों के जल का बंटवारा – संसद को यह अधिकार है कि अन्तर्राज्यीय नदियों के बंटवारे के उत्पन्न विचार को निपटाने के लिए उचित कानून बनाए। संसद किसी भी नदी या नदी घाटी परियोजना के पानी के इस्तेमान, वितरण का नियन्त्रण सम्बन्धी विवाद के सिलसिले में मध्यस्थता की व्यवस्था कर सकती हैं संसद, सर्वोच्च न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय को इस प्रकार के विवादों पर विचार करने से रोक सकती है। यह एक महत्वपूर्ण अधिकार है और इसका इस्तेमाल कृषि एवं औद्योगिक विकास के लिए पानी और बिजली जैसी सुविधा की व्यवस्था के लिए किया जा सकता है। साथ ही इसका उपयोग दामोदर घाटी निगम जैसी बहु-उद्देश्यीय परियोजनाओं के लिए किया जा सकता है।
6. अन्तर्राज्यीय परिषद् की स्थापना- संविधान राष्ट्रपति को अधिकार देता है। किस वह एक अन्तर्राज्यीय परिषद् की स्थापना करे जिसके निम्नलिखित तीन विशेष कार्य होंगे:
(i) राज्यों के बीच उठ खड़े होने वालेविवादों की जांच करना तथा उनके सम्बन्ध में सलाह देना।
(ii) उन विषयों पर छानबीन कर विचार करना जिनमें राज्यों की एक समान दिलचस्पी हो।
(iii) इन विषयों, और विशेषकर इनमें सम्बन्धित नीति एवं कार्य के बेहतर समन्वय के सम्बन्ध में सिफारिशें करना। राष्ट्रपति इस परिषद के संगठन और प्रक्रिया को निर्धारित एवं इसके कर्त्तव्यों को परिभाषित कर सकता है।
7. अखिल भारतीय सेवाएं- संघ द्वारा राज्यों को नियन्त्रित करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है अखिल भारतीय सेवाएं। यद्यपि राज्यों और केन्द्र की पृथक् सेवाएं ओर लोक सेवा आयोग है, फिर भी संविधान अखिल भारतीय सेवाओं की स्थापना के लिए संघ को अधिकार देता है। संघ को इन सेवाओं के सदस्यों को राज्यों के महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर रखने का अधिकार होता है।
8. राज्यपाल – राज्यों के राज्यपाल राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं और एक प्रकार से वे राज्यों में केन्द्र के एजेण्ट के नाते कार्य करते हैं। उनके माध्यम से केन्द्रीय सरकार राज्यों के शासन पर अंकुश रख सकती है।
9. संघ द्वारा दिए गए निदेशों के अनुपालन में असफलता का प्रभाव- संविधान के अनुच्छेद 365, के अनुसार यदि राज्य की सरकार केन्द्र के निदेशों का पालन न करे तो राष्ट्रपति यह उदघोषणा कर सकता है कि राज्य का संवैधानिक ढांचा विफल हो गया है। इस घोषण का परिणाम यह होगा कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाएगा।
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