भारत के केन्द्रीय प्रशासन पर संसदीय नियन्त्रण का विवरण दीजिए।
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भारत में केन्द्रीय प्रशासन पर संसदीय नियन्त्रण
विधायी, न्यायिक, कार्यकारी तथा लोकमत के नियन्त्रण द्वारा प्रशासन को सुचारू रूप से संचालित किया जाता है। ये उस पर नियन्त्रण के उपकरण हैं। संसदीय नियन्त्रण के अभाव में प्रशासनिक क्रियाओं में उचित समन्वयन नहीं रह पाता। प्रशासन पर नियन्त्रण रखने के लिए संसद मुख्य रूप से जो साधन अपनाती है, उनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-
(i) राष्ट्रपति का अभिभाषण – संसद के नए अधिवेशन के आरम्भ में राष्ट्रपति अपना अभिभाषण देते हैं जिसमें लोक सेवाओं के कार्यों एवं उपलब्धियों को भी उल्लेख रहता है। दिया जाता है। राष्ट्रपति के भाषण पर विवाद करते समय प्रशासनिक अधिकारियों के क्रियाकलापों पर अनेक वक्तव्य प्रदान किए जाते हैं। इस प्रकार वाद-विवाद का यह अवसर लोक सेवकों की क्रियाओं पर नियन्त्रण रखने का सफल साधन प्रतीत होता है।
(ii) प्रश्न-काल (Question Hour) – प्रश्न पूछना संसदीय नियन्त्रण का एक प्रभावशाली साधन है। संसद के सदस्य उचित समय की सूचना देकर मंत्रियों से प्रश्न पूछ सकते हैं। जब संसद का सत्र चल रहा हो तो प्रतिदिन पहला घण्टा प्रश्नों के लिए निश्चित रहता है। प्रश्न तीन प्रकार के होते हैं- तारांकित प्रश्न, अतारांकित प्रश्न और अल्प सूचना प्रश्न । तारांकित श्नों का सदन में मौखिक उत्तर दिया जाता है। सदस्यों द्वारा ऐसे प्रश्नों के अनुपूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं। अतारांकित प्रश्नों पर तारांक नहीं लगा होता। ऐसे प्रश्न का उत्तर लिखित रूप में दिया जाता है न कि तारांकित प्रश्न उत्तर की तरह मौखिक रूप से। इसी कारण इस पर अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते। अल्प सूचना प्रश्न वह प्रश्न है जो किसी अविलम्बनीय लोक हत्व के मामले से सम्बन्धित हो और यह साधारण प्रश्न के लिए निर्धारित दस दिन की अवधि से कम अवधि की सूचना देकर पूछा जा सकता है।
प्रश्न प्रशासकों को सावधान या सतर्क रखते हैं। अनेक प्रश्न नौकरशाही को जवाबदेये बनाने के लिए पूछे जाते हैं। प्रश्न-काल एक ऐसा अवसर प्रदान करता है जिसके द्वारा प्रशासनिक नीति अथवा क्रिया के किसी भी भाग की और जन-सामान्य का ध्यान आकर्षित करवाया जा सकता है। प्रश्नों के माध्यम से मंत्री अपनी नीति एवं प्रशासन के प्रति लोकप्रिय प्रतिक्रिया को जान सकते हैं। संसद में प्रश्न-काल लोक कर्मचारियों को चौकन्ना रखता है। यह उसे सजग रहने के लिए बाध्य करता है और उसके कार्यों में सावधानी रखने को प्रेरित करता है तथा सामान्य नौकरशाही से सम्बन्धित कुछ अन्यायपूर्ण कार्यों पर रोक लगाने का कार्य करता है।
(iii) वाद-विवाद तथा बहस (Debate and Discussion) – प्रशासन पर संसदीय नियन्त्रण की एक अन्य प्रभावपूर्ण युक्ति है वाद-विवाद तथा बहस इस साधन के द्वारा संसद के सदस्य सरकार के द्वारा किए गए कार्यों का सूक्ष्य परीक्षण करते हैं। सरकारी नीति एवं मंत्रियों के विभाग की उपलब्धियों को वाद-विवाद का विषय बनाया जा सकता है। प्रशासन की आलोचना, समालोचना एवं प्रशंसा की जा सकती है। इससे भारतीय संसद को लोक प्रशासन की पूरी जांच करने का अवसर भी प्राप्त होता है। ऐसा प्रावधान है कि यदि प्रश्न काल में कोई सदस्य सरकार के उत्तर से सन्तुष्ट नहीं हो पाया है तो वह प्रश्नकाल के तुरन्त बाद ही अध्यक्ष से आधा घण्टे के विचार-विमर्श की अनुमति मांग सकता है। अल्पकालीन विचार-विमर्श में किसी अत्यावश्यक विषय पर विचार करते हुए संसद सदस्यों द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों के कार्यों को भी वाद- विवाद का विषय बनाया जा सकता है। इस प्रकार का विचार-विमर्श स्पीकर की अनुमति से होता है ।
(iv) बजट पर बहस- बजट पर होने वाले वाद-विवाद प्रशासन पर संसदीय नियन्त्रण की दृष्टि से सबसे अधिक महत्वपूर्ण उपकरण हैं। संसद में जैसे ही बजट प्रस्तुत किया जाता है। उस पर सामान्य चर्चा आरम्भ हो जाती है। बजट पर बहस करने का दूसरा अवसर सदस्यों को तब मिलता हैं, जब विभिन्न विभागों से सम्बन्धित अनुदानों की मांगों पर विचार एवं मतदान होता है। इस अवसर पर पूरा-पूरा लाभ उठाते हुए संसद सदस्य विभागों की प्रशासनिक क्रियाओं की सूक्ष्म जांच और परीक्षण करते हैं। इसके बाद सम्पूर्ण शासन पर चर्चा की जाती है, जो प्रायः हमेशा ही अति तीक्ष्ण होती है।
(v) स्थान प्रस्ताव – सार्वजनिक महत्व के मामलों पर स्थगन प्रस्ताव सदस्यों को एक ऐसा अवसर प्रदान करता है जिसके द्वारा वे किसी भी प्रशासनिक विभाग के कार्य संचालन पर विवाद कर सकते हैं। इस प्रस्ताव के माध्यम से संसद सदस्यों द्वारा संसद के निश्चित कार्यक्रम को रोककर किसी अविलम्बनीय लोक महत्व के विषय पर बहस की जा सकती है। स्थगन प्रस्ताव के आवश्यक तत्व इस प्रकार हैं: (1) मामला निश्चित स्वरूप का हो; (2) उसका आधार तथ्यात्मक हो; (3) मामला अविलम्बनीय हो; (4) वह लोक महत्व का हो। अध्यक्ष की अनुमति प्राप्त करने के बाद प्रस्तावित विषय पर विचार-विमर्श प्रारम्भ हो जाता है और सदन की निर्धारित कार्यवाही कुछ समय के लिए स्थगित कर दी जाती है।
(vi) अविश्वास प्रस्ताव- इसे ‘निन्दा प्रस्ताव’ भी कहते हैं। संसदीय प्रणाली वाले देशों में अविश्वास प्रस्ताव द्वारा सरकार को पदच्युत किया जा सकता है। संसद के गहन असन्तोष एवं विरोध की स्थिति में कार्यपालिका अधिक समय तक अपने पद पर नहीं रह सकती। इसी कारण संसदीय असन्तोष को फलीभूत न होने देने के लिए मंत्रिमण्डल संसद के बहुमत को अपने पक्ष में रखता है तथा प्रशासकों के कार्यों की देख-रेख करके उनको असन्तुष्ट होने का अवसर नहीं देता। संसद में अविश्वास प्रस्तावों पर बहस के समय विरोधी दल के सदस्य तथा सत्ताधारी दल के असन्तुष्ट सदस्य प्रशासन की दुर्बलताओं को उजागर करते हैं। अविश्वास के पक्ष में प्रस्ताव पारित होने पर सरकार पदच्युत हो जाता है।
(vii) संसदीय समितियाँ (Parliamentary committee) – प्रशासन पर नियन्त्रण रखने में संसदीय समितियाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे प्रशासन के कार्य की जांच-पड़ताल करती हैं। वे लोक प्रशासन की गतिविधियों का विस्तृत अध्ययन करने के बाद यह बताती हैं कि .वहां अनियमितता बरती जा रही है, कौन अधिकारी अथवा अधिकरण अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रहा है, किसके द्वारा जन-विरोधी कार्य किए जा रहे हैं तथा कहां धन का अपव्यय किया जा रहा है, इत्यादि ।
भारतीय संसद में प्रशासन पर नियन्त्रण रखने वाली मुख्य तीन समितियाँ हैं- (1) लोक लेखा समिति, (2) प्राक्कलन समिति, और (3) आश्वासन समिति। लोक लेखा समिति विनियोजन लेखों की सूक्ष्म जांच कर सकती है और उनमें पायी जाने वाली अनियमितताओं को प्रकाश में लाती है ताकि भविष्य में उसकी रोकथाम की जा सके। प्राक्कलन समिति विभिन्न विभागों के व्ययों का पुनरावलोकन करने के पश्चात् उसमें मितव्ययिता लाने का सुझाव देती है। आश्वासन समिति उन आश्वासनों, वायदों, आदि की छानबीन करती है जो मंत्रियों द्वारा समय-समय पर सदन में दिए गए हैं।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भारतीय संसद, विशेषतः इसकी लोकसभा, प्रशासन पर नियन्त्रण रखने का कार्य बड़ी सफलता से कर रही है। कुछ अंशों में इसकी सराहना विदेशी विशेषज्ञों ने भी की है।
प्रसिद्ध विकास एपीलबी के अनुसार, “वाद-विवाद और प्रश्नों की विधियों की सहायता से संसद सदस्य प्रशासन पर कड़ी देखरेख रखते हैं, इसकी सदैव जागरूकता और सावाधन बनाए रखते हैं, वे अपनी तीव्र एवं कटु आलोचनाओं से सरकारी विभागों की कार्यपद्धति में निरन्तर संशोधन और सुधार करते रहते हैं। अतः संसदीय नियन्त्रण प्रशासन को प्रासंगिक ही बनाता है।
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