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योग शिक्षा का महत्त्व एवं आवश्यकता | NEED AND IMPORTANCE OF YOGA EDUCATION
योग का दूसरा नाम है अनुशासन आज के युग में अनुशासन का महत्त्व बढ़ गया है। युवी पीढ़ी में बढ़ती अनुशासनहीनता को दूर करने के लिए योगाभ्यास आवश्यक है। हम पाश्चात्य अन्धानुकरण में अपनी सांस्कृतिक विरासत को नष्ट कर रहे हैं। इस दौड़ के कारण हम न तो शरीर को बलवान बना पा रहे हैं और न ही मानसिक रूप से सन्तुलित हो पा रहे हैं। अतः इसके महत्त्व को हम निम्नलिखित रूप से स्पष्ट कर सकते हैं-
(1) योग शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों का शारीरिक और मानसिक सन्तुलन बना रह सकता है।
(2) प्रतियोगिता के दौर में मानसिक तनाव को दूर करने के लिए योग सर्वोत्तम साधन है।
(3) ब्रह्मचर्य जीवन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण जीवन है। योग शिक्षा और उसके अभ्यास से इसे प्राप्त करना आवश्यक है।
(4) भौतिक दुनिया की चकाचौंध में बालक मानसिक कुण्ठाओं का शिकार हो जाता है। उसे योगाभ्यास द्वारा बचाया जा सकता है।
(5) बालक में आसन और प्राणायाम के माध्यम से शारीरिक दृढ़ता आती है, मन संयमित रहता है और चित्त की चंचलता दूर होती है।
(6) ध्यान से बालक में एकाग्रता आती है और एकाग्रता से पढ़ाई-लिखाई में मन लगता है तथा बुरे विचार भी समाप्त हो जाते हैं।
(7) बालक को अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सरलता होती है तथा उसकी उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है तथा स्वयं को अनेक बीमारियों से दूर रखने में समर्थ हो जाता है।
(8) योगाभ्यास/यौगिक आसन बालक की ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों को पुष्टता प्रदान करते हैं तथा विविध शारीरिक संस्थाओं को शक्ति प्रदान करते हैं।
(9) इसके माध्यम से माँसपेशियों में लचीलापन आता है तथा मनोशारीरिक सन्तुलन स्थापित होता है।
योगासनों से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण बातें- इन बातों को हम निम्नलिखित रूप से स्पष्ट कर सकते हैं-
(1) योगासन स्वास्थ्यप्रद वातावरण, स्वच्छ और शान्त स्थान पर किये जाने चाहिए।
(2) योगासन की सहज स्थिति में करना चाहिए। झटके के साथ नहीं करना चाहिए।
(3) रोग की स्थिति में योगासन नहीं करने चाहिए।
(4) योगासन के समय कम ताकत व्यय करनी चाहिए और इसका अभ्यास सरल करना चाहिए।
(5) योगासन में आराम की स्थिति और स्थिरता का होना आवश्यक है।
(6) योगासन अपनी शारीरिक क्षमता के अनुरूप ही करना चाहिए।
(7) योगासन के माध्यम से माँसपेशियों में तान होनी चाहिए न कि बार-बार संकुचन और प्रसरण से जटिल की ओर
योगासनों का शारीरिक संस्थान पर प्रभाव (EFFECT OF YOGIC EXERCISE ON SYSTEM OF BODY)
योगासनों के माध्यम से शारीरिक और मानसिक क्रियाओं में सन्तुलन स्थापित हो जाता है, ये सुचारू रूप से कार्य करने लगती हैं। इन योगासनों का शरीर के विभिन्न भागों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव को हम निम्नलिखित रूप से समझ सकते हैं-
(1) स्नायुतन्त्र पर प्रभाव (Nervous System)- योगासनों के माध्यम से सम्पूर्ण मेरुदण्ड और स्नायु केन्द्रों में रक्त संचार की क्रिया उत्तेजित हो जाती है। शारीरिक दृष्टि से तन्तुओं और नाड़ियों को स्वस्थ बनाये रखना आवश्यक है। शारीरिक श्रम की कमी आने से नाड़ी में शिथिलता आ जाती है और सम्बन्धित क्रियाओं में कमी आ जाती है। अतः योगासनों द्वारा स्नायुतन्त्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
(2) श्वसन तन्त्र पर प्रभाव (Respiratory System)– योगासन, श्वसन तन्त्र की क्रियाशीलता को बढ़ावा देते हैं। इसके द्वारा अशुद्ध वायु (कार्बन डाइऑक्साइड) सहजता से बाहर निकलती है और ऑक्सीजन (प्राणवायु) का फेफड़ों में प्रवेश शीघ्रता से होता है। इसके परिणामस्वरूप श्वसन तन्त्र के सभी अंग क्रियाशील हो जाते हैं और सही प्रकार से कार्य करने लगते हैं। अतः विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलती है।
(3) पाचन तन्त्र पर प्रभाव (Digestive System)- योगासन पाचन तन्त्र को मजबूत बनाते हैं, पाचन क्रिया स्वस्थ और सुदड़ हो जाती है। भूख बढ़ती है तथा कई प्रकार के रोग-मन्दाग्नि, अपच, आदि से मुक्ति मिल जाती है, अतः योगासन पाचन तन्त्र को सक्रिय करते हैं।
(4) रक्त परिवहन तन्त्र पर प्रभाव (Blood Circulatory System)– योगासन द्वारा हृदय गति और रक्त प्रवाह नियन्त्रित किया जाता है। इसके फलस्वरूप हृदय स्वस्थ रहता है और किसी भी प्रकार की हृदय सम्बन्धी बीमारियों से रक्षा की जा सकती है।
(5) उत्सर्जन तन्त्र पर प्रभाव (Excretory System)- योगाभ्यास द्वारा त्वचा और वृक्क दोनों अंगों के द्वारा शरीर से विषैले पदार्थ, पसीने और मल-मूत्र के रूप में बाहर आ जाते हैं। योगासनों द्वारा रोड़ की हड्डी सहित सभी उत्सर्जन अंग-अतिं, त्वचा, आदि का पर्याप्त व्यायाम हो जाता है, इसलिए व्यक्ति की त्वचा कान्तियुक्त हो जाती है और चेहरे पर लालिमा छा जाती है।
(6) अस्थियाँ और माँसपेशियों पर प्रभाव (Muscular and Skeletal System)- मनुष्य की प्रत्येक शारीरिक गतिविधि का सम्बन्ध अस्थि संस्थान और माँसपेशियों से होता है। योगासन इनको गतिशील बनाते हैं और लचीला बनाते हैं। अतः योगासन अस्थियों और मांसपेशियों को प्रभावित करते हैं और इसका सकारात्मक प्रभाव होता है।
(7) प्रजनन तन्त्र एवं अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियाँ (Reproductory System and Endocrine Glands)- योगाभ्यास प्रजनन तन्त्र को सक्रिय बनाता है। स्त्री-पुरुष के प्रजनन तन्त्र को सक्रिय बनाने के साथ-साथ सम्बन्धित सावों की उत्पत्ति में भी सहायता मिलती है। लड़कियों के मासिक धर्म की अनियमितता को इनके द्वारा दूर किया जा सकता है। अतः व्यक्तित्व के विकास में अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं, इन्हें योगासनों द्वारा सक्रिय बनाया जा सकता है।
शारीरिक व्यायाम की आवश्यकता (NEED OF PHYSICAL EXERCISES)
शारीरिक व्यायाम की आवश्यक निम्न बातों के लिए पड़ती है-
(1) स्मृति शक्ति बढ़ती है।
(2) निर्णयों पर दृढतापूर्वक अमल करने की शक्ति आ जाती है।
(3) इससे आत्मविश्वास बढ़ता है और सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता आ जाती है।
(4) इससे चिड़चिड़ाहट तथा गुस्सा दूर हो जाता है।
(5) भूख खुलकर लगती है। इससे शारीरिक शक्ति बढ़ती है, शरीर स्वस्थ व नीरोग होता है। इन सबका प्रभाव बालक व बालिका दोनों पर पड़ता है। उनके व्यवहार में परिवर्तन होते हैं। वे बोलने पर नियन्त्रण रखने में समर्थ होते हैं। बच्चे मन की चंचलता को कम करने में समर्थ हो सकते हैं।
(6) दिन-प्रतिदिन के कार्यों में मन लगता है।
(7) ईर्ष्या, द्वेष, पश्चात्ताप, ग्लानि, अपराधबोध जैसी भावनाओं से मुक्ति मिलती है।
(8) चिन्ता तथा व्यर्थ का डर जैसी मानसिक बीमारियाँ भी दूर हो जाती हैं।
(9) व्यायाम करने से कामचोरी या आलस्य दूर हो जाता है। साथ ही थकावट भी दूर हो जाती है।
(10) चेहरे की चमक बढ़ती है।
(11) इससे आशावादी दृष्टिकोण बढ़ता है।
(12) स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना आती है।
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