रूचि का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषित कीजिए। सविस्तार लिखिए कि किसी विशेष पाठ के शिक्षण में आप छात्रों की रुचि को किस प्रकार जाग्रत करेंगे और यथावत् बनाए रखेंगे ?
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रुचि का अर्थ तथा परिभाषा (Meaning & Definition of Interest )
“Interest” की उत्पत्ति, लैटिन भाषा के शब्द, “Interesse” से हुई है। स्टाउट (Stout) के अनुसार “इसके कारण अन्तर होता है।” (“It makes a difference.”) रॉस (Ross) के अनुसार, इस शब्द का अर्थ है “यह महत्वपूर्ण होती है।” (“lt matters”) या “इसमें लगाव होता है” (“It concerns”) । इस प्रकार, जिस वस्तु में हमें रुचि होती है, वह हमारे लिए दूसरी वस्तुओं से भिन्न और महत्वपूर्ण होती है एवं हमें उससे लगाव होता है।
‘रुचि’ के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए हम कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं, यथा-
1. क्रो एवं क्रो– “रुचि वह प्रेरक शक्ति है, जो हमें किसी व्यक्ति, वस्तु या क्रिया के प्रति ध्यान देने के लिए प्रेरित करती है।”
“Interest may refer to the motivating force that impels us to attend to a person, a thing or an activity.” – Crow & Crow
2. भाटिया- “रुचि का अर्थ है-अन्तर करना। हमें वस्तुओं में इसलिए रुचि होती है, क्योंकि हमारे लिए उनमें और दूसरी वस्तुओं में अन्तर होता है, क्योंकि उनका हमसे सम्बन्ध होता है।”
“Interest means making a difference. We are interested in objects because they make a difference to us, because they concern us.” – Bhatia
रुचि के पहलू (Aspects of Interest)
‘ध्यान’ के समान ‘रुचि’ के भी तीन पहलू हैं—जानना, अनुभव करना और इच्छा करना (Knowing, Feeling & Willing)। जब हमें किसी वस्तु में रुचि होती है, तब हम उसका निरीक्षण और अवलोकन करते हैं। ऐसा करने से हमें • सुख या सन्तोष मिलता है और हम उसे परिवर्तित करने या न करने के लिए कार्य कर सकते हैं। इस प्रकार, जैसा कि भाटिया ने लिखा है- “रुचि-ज्ञानात्मक, क्रियात्मक और भावनात्मक होती है।”
“Interest is cognative, conative and affective.” – Bhatia
बालकों में रुचि उत्पन्न करने की विधियाँ (Methods of Arousing Interest in Children)
1. निरन्तर मौखिक शिक्षण और अत्यधिक पुनरावृत्ति पाठ को नीरस बना देती है। अतः शिक्षक को चाहिए कि वह बालकों को प्रयोग, निरीक्षण आदि के अवसर देकर कार्य में उनकी रुचि उत्पन्न करे।
2. बालकों को उसी विषय में रुचि होती है, जिसका उनको पूर्व ज्ञान होता है। अतः शिक्षक को ज्ञात से अज्ञात (Known to Unknown) का सम्बन्ध जोड़कर उनकी रुचि को बनाए रखना चाहिए।
3. झा (Jha) के अनुसार —”बालकों की अपनी मूलप्रवृत्तियों, अभिवृत्तियों (Attitudes) आदि से सम्बन्धित वस्तुओं में रुचि होती है। अतः शिक्षक को उनकी रुचि के अनुकूल चित्रों, स्थूल पदार्थों आदि का प्रयोग करना चाहिए।”
4. क़ो एवं को (Crow & Crow) के अनुसार-“निरन्तर एक ही विषय को पढ़ने से बालक थकान का अनुभव करने लगता है और उसमें रुचि लेना बन्द कर देता है। अतः शिक्षक को उनकी रुचि के अनुसार विषय में परिवर्तन करना चाहिए।”
5. भाटिया (Bhatia) के अनुसार चालकों को जो कुछ पढ़ाया जाता है, उसमें वे तभी रुचि लेते हैं, जब उनको उसके उद्देश्य और उपयोगिता की जानकारी होती है। अतः शिक्षक को पाठ आरम्भ करने से पहले इन दोनों बातों को अवश्य बता देना चाहिए।
6. कोलेसनिक (Kolesnik) के अनुसार- “बालकों को किसी विषय के शिक्षण में तभी रुचि आती है, जब उनको इस बात का ज्ञान हो जाता है कि उस विषय का उनसे क्या सम्बन्ध है, उसका उन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है, वह उनके लक्ष्यों की प्राप्ति में कितनी सहायता दे सकता है और वह उनकी आवश्यकताओं को किस प्रकार पूर्ण कर सकता है। अतः शिक्षक को बालकों और शिक्षण विषय दोनों का ज्ञान होना चाहिए।” कोलेसनिक के शब्दों में-“किसी विषय में छात्र की रूचि उत्पन्न करने के लिए शिक्षक को छात्र के बारे में कुछ बातें और विषय के बारे में बहुत-सी बातें जाननी चाहिएँ।”
7. बालकों को खेल और रचनात्मक कार्यों में विशेष रुचि होती है। अतः शिक्षक को खेल-विधि का प्रयोग करना चाहिए और बालकों से विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बनवानी चाहिएँ
8. भाटिया (Bhatia) के अनुसार “आयु के साथ-साथ बालकों की रुचियों में परिवर्तन होता जाता है। अतः शिक्षक को इन रुचियों के अनुकूल पाठ्य-विषय का आयोजन करना चाहिए।”
9. भाटिया (Bhatia) के अनुसार- “बालकों की रुचि का मुख्य आधार उनकी जिज्ञासा की प्रवृत्ति होती है। अतः शिक्षक को इस प्रवृत्ति को जाग्रत रखने और तृप्त करने का प्रयास करना चाहिए।”
10. भाटिया (Bhatia) के अनुसार- “विभिन्नता, रोचकता को सुरक्षा प्रदान करती है (“Variety is a safeguard of Interest.”)। अतः शिक्षण के समय अध्यापक को निरन्तर पाठ्य-विषय की बातों को ही न बताकर उससे सम्बन्धित विभिन्न रोचक बातें भी बतानी चाहिए।”
11. स्किनर एवं हैरीमैन (Skinner & Harriman) के अनुसार- “शिक्षण के समय बालकों में विभिन्न वस्तुओं, पशुओं, पक्षियों, मशीनों आदि में रुचि उत्पन्न हो जाती है। अतः शिक्षक को उन्हें भ्रमण के लिए ले जाकर उनकी रुचियों को तृप्त और विकसित करना चाहिए।”
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