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लागत मूल्य पद्धति क्या है? पहले आना पहले जाना पद्धति गुण-दोष

लागत मूल्य पद्धति क्या है? पहले आना पहले जाना पद्धति गुण-दोष
लागत मूल्य पद्धति क्या है? पहले आना पहले जाना पद्धति गुण-दोष

लागत मूल्य पद्धति क्या है? पहले आना पहले जाना पद्धति गुण-दोष सहित वर्णन कीजिए। यह पद्धति कब उपयुक्त होती है?

लागत मूल पद्धतियाँ (Cost Price Methods)— रहतिये के मूल्यांकन की सबसे अधिक प्रचलित पद्धति लागत पर मूल्यांकन करने की है। लागत का आशय माल के क्रय से लकर उसे प्रयोग करने योग्य तथा बिक्री योग्य बनाने तक के समस्त खचों के जोड़ से है। लागत मूल्य के आधार पर भी कई पद्धतियाँ प्रचलन में है, जो निम्नलिखित हैं-

पहले आना, पहले जाना पद्धति (FIFO i.e. First In, First Out Method)

इस पद्धति में जो माल पहले क्रय किया जाता है, उसे उत्पादन या विक्रय के लिए पहले निर्गमित किया जाता है। माल का निर्गमित उसके क्रय के क्रम के अनुसार लागत पर किया जाता है अर्थात् पहले लॉट का माल पहले लॉट की लागत पर निर्गमित किया जाता है, दूसरे लॉट का माल दूसर लॉट की लागत पर निर्गमित किया जाता है और यही क्रम आगे चलता रहता है। इस प्रकार वर्ष के अन्त में जो माल स्टॉक में बच जाता है उसे नवीनतम क्रम में से माना जाता है और उसका मूल्यांकन नवीनतम क्रम की लागत पर किया जाता है। जब व्यवसाय से माल वर्ष के दौरान बार-बार क्रय किया जाता है और उस माल को एक ढेर में मिलाकर रखा जाता है, जैसे : आटा मिल में गहूँ का स्टॉक, कारखानों में कोयले का स्टॉक आदि, तो यह ज्ञात करना बहुत कठिन होता है कि शेष स्टॉक वास्तव में किस मूल्य पर क्रय किया गया था। ऐसी दशा में यह मान लिया जाता है कि सबसे अन्त में खरीदा गया माल, स्टॉक में शेष है और उसी लागत पर स्टॉक का मूल्यांकन किया जाता है।

गुण (Merits)–

इस पद्धति में निम्नलिखित गुण हैं-

(i) सरलता- मूल्यांकन की यह पद्धति सरल है। आसानी में माल जा सकता है तथा कार्यान्वित की जा सकती है। इसलिए इस पद्धति का अधिक प्रचलन है।

(ii) यथार्थवादी- यह पद्धति अधिक यथार्थवादी (realistic) है, क्योंकि माल का निर्गमन उसके क्रय क्रम में किया जाता है। इस प्रकार माल को नष्ट होने से रोका जा सकता है।

(iii) लागत मूल्य- वास्तविक लागत पर स्टॉक का मूल्यांकन होने के कारण बहियों पर अप्राप्त लाभ (unrealized profit) का प्रभाव नहीं पड़ता है।

(iv) उचित मूल्यांकन- इस पद्धति में स्टाक का मूल्यांकन अन्तिम नवीनतम लागत पर किया जाता है, अतः वह बाजार मूल्य के लगभग निकट रहता है जो कि उचित है।

दोष (Demerits)–

इस पद्धति में निम्नलिखित कमियाँ हैं-

(i) कम उत्पादन लागत- सामग्री के निर्गमन में समय सम्भव है कि उसका बाजार मूल्य अधिक हो जबकि उस की लागत कम है। इस प्रकार, उत्पादन की लागत आवश्यक रूप स कम दिखाई जाएगी।

(ii) मूल्यों में अत्यधिक परिवर्तन- यदि सामग्री के मूल्य में अत्यधिक उतार चढ़ाव होते रहते हैं तो इस पद्धति से सामग्री के निर्गमन पर तथा रहतिये के मूल्यांकन पर लिपिकीय अशुद्धियों की सम्भावना बढ़ जाती है।

(iii) उत्पादन लागत में भिन्नता- यदि एक से अधिक कार्यों के लिए एक ही प्रकार की सामग्री विभिन्न दरों पर निर्गमित की जाती है तो दोनों की लागत में भिन्नता हो जाती है जिससे उनकी लागतों का तुलनात्मक अध्ययन कठिन हो जाता है।

उपयुक्तता – यह पद्धति उस समय अपनाई जाती है जब :

  1. कच्चा या निर्मित माल शीघ्र नष्ट होने वाली प्रकृति का हो।
  2. क्रय के लेन-देन कम हो।
  3. सामग्री या निर्मित माल के मूल्य प्रायः स्थायी रहते हों।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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