विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले शारीरिक विकास के विषय में एक निबन्ध लिखो।
बालक, एक शरीर के रूप में जन्म लेता है। उसका शरीर माता के गर्भ में विकसित होता है और पूर्ण विकसित होने पर वह जन्म लेता है। अतः बालक के शारीरिक विकास को विभिन्न अवस्थाओं में इस प्रकार देखा जा सकता है-
1. जन्म पूर्व शारीरिक विकास- गर्भ की स्थिति किस प्रकार होती है, यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसे बालक और किशोर जानना चाहते हैं, माता-पिता बच्चों को बताना नहीं चाहते हैं और अध्यापक घुमा-फिरा कर कहते हैं तो उनकी जिज्ञासा और भी बढ़ने लगती है। गर्भस्थ शिशु के जन्म के विषय में मातायें अन्य बच्चों को अनेक प्रकार की भ्रान्तिपूर्ण जानकारियाँ देती हैं। अतः शिशु जन्म की प्रक्रिया का ज्ञान बालक के स्वस्थ विकास के लिये अनिवार्य है।
स्त्री तथा पुरुष, दोनों में ही यौन ‘कोश (Sex cells) हैं। ये कोश प्रजनन (Reproduction) अंगों द्वारा उत्पन्न होते हैं। पुरुष में गोनाड (Gonad) प्रन्थियों में पुरुष प्रजनन कोष उत्पन्न होते हैं। इसे शुक्राणु (Sperm) कहते हैं। इनकी संख्या असंख्य होती है। स्त्री के प्रजनन अंग डिम्बाशय (Ovary) में डिम्ब (Ova) उत्पन्न होता है। स्त्री के आयु विस्तार (Age span) में कुल 500 डिम्ब उत्पन्न होते हैं। प्रतिमास एक डिम्ब परिपक्व (Mature) होकर गर्भनलिका में आता है और वहाँ पर शुक्राणु की प्रतीक्षा करता है। इसका आकार 0.1 मिलीमीटर होता है। इस पर झिल्ली (Yolk) होती है।
यह स्वयं में गतिवान नहीं होता है। गर्भ की स्थिति माता तथा पिता के डिम्बाणु तथा शुक्राणु के संयोग से होती है। पिता के असंख्य शुक्राणु माता के गर्भ में प्रतीक्षित डिम्बाणु से मिलने के लिए दौड़ते हैं। उनमें से जिसका भी संयोग डिम्ब से हो जाता है, उसी के द्वारा गर्भ की स्थिति हो जाती है।
शिशु के जन्म की अवस्था को सुविधा के लिये इन भागों में बाँटा जा सकता है-(1) डिम्बावस्था (The period of ovum), (2) भ्रूणावस्था (The period of embryo), (3) भ्रूणीयवस्था (The period of fetus)। यद्यपि शिशु का जन्म ही एक सम्पूर्ण एवं सतत् प्रक्रिया का परिणाम है। यह समय 9 कैलेण्डर मास अथवा 10 चन्द्रमास अथवा 280 दिन का होता है। असामान्य अवस्था में यह समय सात कैलेण्डर मास न्यूनतम एवं 334 दिन अधिकतम होता है। इस अवस्था में ये विशेषतायें दिखाई देती हैं-
1. सामान्य शारीरिक विकास- शारीरिक विकास सामान्य एक-सा होना चाहिये। मानसिक विकास से इसका निकट 1 का सम्बन्ध है। कुल्हन एवं थाम्पसन ने चार क्षेत्रों की ओर संकेत किया है, जहाँ पर सामान्य विकास पाया जाता है- (1) स्नायु प्रणाली, (2) माँसपेशियाँ (3) इन्ड्रोसीन ग्रन्थियाँ, (4) शरीर का आकार।
2. भिन्न शारीरिक विकास- शारीरिक विकास प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न-भिन्न रूप से होता है। यह भिन्नता शरीर के कद के रूप में पाई जाती है। सामान्य बालक का शरीर तथा उसका रूप छोटे कद के बालक के अनुपात में सुन्दर लगता है। भूख, इन्ड्रोसीन ग्रन्थियों के ठीक से कार्य न करने का सीधा प्रभाव शरीर की रचना, कद आदि पर पड़ता है।
3. अभिवृद्धि चक्र— अभिवृद्धि का चक्र सदा किसी एक नियम से नहीं चलता। यह चक्र बालक की शारीरिक प्रकृति के अनुसार चलता है। किसी वर्ष विकास की गति तेज होती है और किसी वर्ष कम मेरिडिय (Meridith H. V.) ने 1243 बच्चों के विकास क्रम का अध्ययन कर चार विकास चक्रों को पाया—(1) पहले दो वर्ष में विकास तेजी से होता है, (2) 11वें वर्ष तक विकास की गति धीमी होती है, (3) 11-15 वर्ष में विकास में गति आती है, (4) 16-18 वर्ष में विकास की गति धीमी होती है। अब हम शारीरिक विकास के अनेक पक्षों पर चर्चा करते हैं।
शरीर का आकार (Body Size)
शरीर के आकार से हमारा अभिप्राय ऊंचाई तथा भार से है। ये दोनों मिलकर विकास को निश्चित स्वरूप प्रदान करते हैं।
1. कद (Height) – जन्म के समय बालक की लम्बाई लगभग 20 इंच होती है। एक वर्ष में शिशु की लम्बाई 27 से 28 इंच, दो वर्ष में 31 इंच, 7 वर्ष में 40-42 इंच तक बढ़ती है। परिपक्वता आने तक बालक की ऊँचाई की गति में धीमापन आ जाता है। 12 वर्ष की अवस्था में सामान्य बालक 55 इंच लम्बा हो जाता है। 10-14 वर्ष की आयु में लड़कियों का शारीरिक विकास तेजी से होता है। कद की वृद्धि में लड़के-लड़कियों में वैयक्तिक भिन्नता पाई जाती है। 12वें वर्ष में लड़कियाँ, लड़कों से लम्बी लगती हैं। 21वें वर्ष में लड़कों की ऊँचाई अधिकतम सीमा तक बढ़ जाती है।
2. भार (Weight)- जन्म के समय बालक का भार 5 से 10 पौंड तक होता है। भार में वृद्धि का समय लगभग सभी बालकों में समान रहता है। पहले वर्ष के अन्त में बालक का भार उसके जन्म के भार से दुगना हो जाता है। पाँच वर्ष की अवस्था में बालक का भार जन्म के भार से पाँच गुना अधिक होता है। परिपक्वता आने पर बालक का भार सामान्यतः 70 से 90 पौंड तक होता है। बालक का भार उसके शरीर की प्रकृति पर निर्भर करता है। तीन प्रकार के आकार होते हैं—(1) मोटे (Endomorph), (2) सामान्य (Mesomorph), (3) लम्बे (Ectomorph) । शरीर का भार इन तीनों की प्रकृति पर निर्भर करता है। किसी भी बालक के भार को ज्ञात करने के लिये उसकी शरीर रचना को ध्यान में रखना आवश्यक है।
3. शरीर के आकार में भिन्नता (Variation in body-size)- बालक जन्म से ही शरीर के आकार में भिन्नता लिये होता है। वह जैसे-जैसे बड़ा होता है, उसमें यह भिन्नता अधिक प्रकट होने लगती है। जन्म का भार विकास वर्षों में आनुपातिक रूप धारण करता है। उदाहरणार्थ-जिन लड़कियों का जन्म का भार 9 पौड़ था, उनमें सात वर्ष की आयु में 11-2 भिन्नता पाई गई। परिवार का प्रभाव इस भिन्नता पर पड़ता है। इसी प्रकार बुद्धि, जन्म क्रम, जलवायु भी शरीर के आकार की भिन्नता को प्रभावित करती है।
(i) सिर (Head)- जन्म के बाद सिर आनुपातिक रूप से बढ़ता है। के समय सिर पूरे शरीर का 22 प्रतिशत होता है। यदि यह अनुपात बना तो प्रौढ़ व्यक्ति का सिर लगभग 16 इंच का होगा और इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा। जन्म से परिपक्वता तक बालक के सिर की लम्बाई दुगुनी हो जाती है। सिर का धरातल क्षेत्र पाँच वर्ष की अवस्था में 21 प्रतिशत से कम हो जाता है। 10 वर्ष में सिर, प्रौढ़ सिर का 95 प्रतिशत हो जाता है। सिर की लम्बाई तथा चौड़ाई का अनुपात लड़के-लड़कियों में समान पाया जाता है।
(ii) चेहरा (Face) – चेहरे के ऊपर का भाग शीघ्र ही पूर्णता प्राप्त कर लेता है। सिर, चेहरे से अधिक लम्बा होता है। सिर का निचला भाग बाल्यकाल के मध्य सिर के अनुपात में छोटा होता है। साठ वर्ष की आयु तक चेहरे का ढाँचा जन्म की तुलना में बहुत बड़ा हो जाता है। इस आयु में बालक के चेहरे से बाल्यपन की झलक हटनी आरम्भ हो जाती है। स्थायी दाँत परिपक्वता तक निकलते रहते हैं और इसी प्रक्रिया में ठोढ़ी, जबाड़ा, मुँह तथा इसके आन्तरिक अंग तुलनात्मक रूप में विकसित होते हैं। आयु के विकास के साथ-साथ माथा चौड़ा होता जाता है, होंठ भर जाते हैं, नेत्र गोलक (Eye balls) पूर्णता प्राप्त कर लेते हैं। नाक अवश्य अनुपात के विपरीत लगती है। आरम्भिक वर्षों में यह छोटी होती है, बाद में यह लम्बी तथा चौड़ी हो जाती है। जन्मेतर बाल (Vellus) आते हैं, जो पहले मुलायम होते हैं, धीरे-धीरे वे सख्त होते जाते हैं।
(iii) धड़ (Trunk) – ऊपर का भारी भाग (Top Heavy) संतुलित रूप से बैठता है, खड़ा होता है, चलता है। हाथों तथा अंगों के विकास से ही उसके धड़ का अनुपात व्यक्त होता है। आरम्भिक वर्षों में तो धड़ तीव्र गति से विकसित होता है। बाद में इसकी गति धीमी हो जाती है। भार तथा कद पर इस परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है। धड़ के विकसित होते समय छाती तथा गुर्दों की हड्डियों का भी विकास होता है। गुर्दों की हड्डियों के साथ ही कूल्हों की हड्डियों का विकास भी होता है।
(iv) भुजायें तथा टाँगें (Arms and Legs) – शरीर में हो रहे परिवर्तन से ही बालक प्रौढ़ावस्था की ओर अग्रसर होता है। नवजातक के हाथ, पैर, उँगलियाँ छोटी होती हैं, 14-15 वर्षों तक इनका विकास पूर्ण हो जाता है। 4 वर्ष की आयु में भुजाओं का विकास दो वर्ष की अवस्था के अनुपात में 50% बढ़ता है। 14-16 वर्ष की आयु तक भुजाओं का विकास होता रहता है। इसी प्रकार जन्म से 2 वर्ष के मध्य पैर 40% बढ़ते हैं, 4 वर्ष में यह विकास 50% हो जाता है। बालक की लम्बाई तथा पैरों के आकार में अनुपात होता रहता है।
(v) हड्डियाँ (Bones) – बालक की हड्डियाँ प्रौढ़ से छोटी एवं कोमल होती हैं। धीरे-धीरे उसके आकार में परिवर्तन होता है और अनेक हड्डियों का विकास होता है। जन्म की आरम्भिक अवस्था में हड्डियों के विकास में तीव्रता रहती है। जन्म के समय शिशु में 270 हड्डियाँ होती हैं। पूर्णता आने पर उसमें 350 हड्डियाँ हो जाती हैं। फिर कुछ हड्डियाँ समाप्त हो जाती हैं और पूर्ण परिपक्व अवस्था में इनकी संख्या 206 रह जाती है। शिशु की हड्डियों में लोच होती है, इसलिये वह पैर का अंगूठा तक चूसता है। हड्डियों में सख्तपन धीरे-धीरे आता है। शरीर से हड्डियों को अनेक खनिज पदार्थ प्राप्त होते हैं, जिससे 60% तक हड्डियों में सख्ती आ जाती है। हड्डियों में सख्ती थायरॉयड (Thyroid) ग्रन्थियों से निकलने वाले हारमोन (Harmone) द्वारा होती है।
(vi) माँसपेशियाँ तथा वसा (Muscles and fats) – बालक के भार की वृद्धि माँसपेशियों तथा प्रसार ( Adipose) के कारण होती है। आरम्भ में वसा तन्तुओं की वृद्धि मांसपेशियों के तन्तुओं से अधिक तीव्र होती है।
(vii) दाँत (Teeth) – बच्चों में अस्थायी तथा स्थायी दाँत पाये जाते हैं। अस्थायी दाँतों की संख्या 20 तथा स्थायी दाँतों की संख्या 32 होती है। अस्थायी दाँत छोटे एवं कमजोर होते हैं। स्थायी दाँत लम्बे तथा मजबूत होते हैं। दाँतों की वृद्धि सतत् प्रक्रिया है और इनका विकास क्रमिक रूप से होता है। अस्थायी दाँत तीसरे मास से लेकर छठे मास तक अवश्य आ जाते हैं। पाँच-छ: वर्ष तक ये दाँत आ जाते हैं और इन्हीं के ऊपर स्थायी दाँत मसूड़ों से बाहर आने लगते हैं। फलतः अस्थायी दाँत गिर जाते हैं और स्थायी दाँत उनका स्थान ले लेते हैं। लड़कियों के स्थायी दाँत लड़कों की अपेक्षा पहले आते हैं। 25 वर्ष की अवस्था तक स्थायी दाँत निकलते रहते हैं।
(viii) आन्तरिक अवयव ( Internal Organs) – शरीर के आन्तरिक अवयवों का विकास भी अनेकों रूपों में होता है। यह विकास (1) रक्त संचार (2) पालन संस्थान तथा (3) श्वसन प्रणाली में होता है। जन्म के समय फेफड़े छोटे होते हैं, छाती की परिधि भी कम होती है। फेफड़ों का भार तथा आयतन, दोनों ही कम होते हैं। इसी प्रकार हृदय छाती में लम्बात्मक होता है। किशोरावस्था में इसकी तौल बढ़ जाती है। रक्तनालियों का आयतन भी बढ़ता है और नाड़ी की गति बचपन में प्रतिमिनट 120-140 होती है। प्रौढ़ावस्था में नाड़ी की गति प्रति मिनट 72 होती है। इसी प्रकार पाचन संस्थान में भी परिवर्तन होता है। बचपन में पाचन अंग कोमल होते हैं। प्रौढ़ावस्था में वे कठोर हो जाते हैं। स्नायु संस्थान का आकार भी आयु के विकास के साथ-साथ होता है।
(ix) किशोरावस्था में विशेष लक्षण (Special characteristics in adolescence) – 6 से 8 वर्ष की आयु तक बालक की ऊँचाई दो या तीन इन्च तक बढ़ती है। 12 वर्ष तक की आयु में शरीर की लम्बाई तीव्र गति से होती है। बाल्यावस्था में लड़कियों की लम्बाई तथा भार लड़कों की अपेक्षा कम होता है। स्थायी दाँत निकलने लगते हैं। शक्ति का संचय होने लगता हैं। 9 से 10 वर्ष की आयु में लड़कों का शारीरिक विकास मन्द गति से होता है। इसी आयु में हड्डियाँ मजबूत हो जाती हैं। माँसपेशियों पर नियन्त्रण होने लगता है। 8 वर्ष की आयु में माँसपेशियों का भार शरीर का 27% हो जाता है। 10 वर्ष की अवस्था में मस्तिष्क का भार शरीर का 1/8 हो जाता है। तौल की दृष्टि से बाल्यावस्था में मस्तिष्क पूर्णता प्राप्त कर लेता है।
1. दो प्रकार के परिवर्तन- किशोरावस्था में दो प्रकार के शारीरिक परिवर्तन होते हैं। आन्तरिक (Internal) तथा बाह्य (External) | इन आन्तरिक तथा बाह्य परिवर्तनों के कारण किशोर का व्यक्तित्व किसी निश्चित दिशा में विकसित होता है। 1 से 14 वर्ष की आयु में लड़कियों और लड़कों की ऊँचाई बढ़नी आरम्भ हो जाती है। इस आयु में किशोरों के भार में एक वर्ष में 10 से लेकर 15 पौंड तक की वृद्धि होती है।
2. लचीलेपन की समाप्ति- इस अवस्था में हड्डियों का लचीलापन समाप्त होने लगता है और दृढ़ता एवं परिपक्वता आ जाती है, वे गोल हो जाती हैं। लड़कियों की कूल्हे की हड्डियों के पास चर्बी (Fats) एकत्र होने लगती है और उनमें भारीपन आने लगता है। चेहरे की रचना में भी स्थिरता आने लगती है। लड़कियों के चेहरे से लगता है कि वे बालिकायें (Girls) नहीं औरतें (Women) होने जा रही हैं अर्थात् उनमें प्रौढ़ता के दर्शन होने लगते हैं। चेहरे पर मुँहासे निकलने लगते हैं। किशोरावस्था में दाँत भी स्थायी हो जाते हैं। दाँतों का स्थायित्व प्राप्त करने में भी लड़कियाँ बाजी मार जाती हैं।
3. बाल एवं ग्रंथियों में परिवर्तन- किशोरावस्था में सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन शरीर के विभिन्न अंगों पर वालों का उगना है। (1) भ्रूण के बाल (Laungso) अन्तिम तीन मास में उगते हैं। ये महीन तथा मुलायम होते हैं। (2) जन्म के बाद के बाल (Vellus) भी मुलायम होते हैं। (3) तीसरी प्रकार के बाल सामयिक (Terminal) हैं, जिनका विकास किशोरावस्था में आरम्भ होता है। ये बाल शरीर के विभिन्न अंगों जैसे बगल, गुप्ताँग, छाती, दाढ़ी आदि पर उगते हैं। लड़कियों की छाती तथा दाढ़ी में बाल नहीं उगते । परन्तु कभी-कभी कुछ लड़कियाँ ऐसी भी देखने को मिलती हैं, जिनके मूँछ तथा दाढ़ी निकल आती हैं। इसका कारण डक्टलैस ग्लैन्ड्स (Ductless glands) का ढंग से कार्य न करना है। किशोरों के पसीने में एक विशेष प्रकार की गन्ध विकसित होने लगती है।
4. प्रजनन अंगों का विकास- किशोरावस्था की महत्वपूर्ण देन है लड़के तथा लड़कियों के प्रजनन अंगों (Reproductive organs) का पूर्ण विकसित होना । गोनाड्स (Gonads) ग्रन्थियाँ अपना कार्य आरम्भ कर देती हैं और प्रजनन क्षमता उत्पन्न हो जाती है। लड़कियों में इस काल में तेजी से परिवर्तन होते हैं। किशोरावस्था में छातियों का विकास होने लगता हैं। यह परिवर्तन उनके द्वारा कैशोर्य प्राप्ति की सूचना देता है। कभी-कभी स्तनों का विकास, आयु से पहले भी हो जाता है। इसका कारण ग्रन्थियों का ठीक प्रकार से कार्य न करना है। किशोर लड़कों के स्तनों की घुण्डियों का भी कुछ विकास हो जाता है।
5. कैशोर्य की पहचान- लड़कियों में पूर्ण (Complete adolescences) कैशोर्य की पहचान है—उनमें मासिक धर्म का होना । मासिक धर्म के शीघ्र तथा देर से आरम्भ होने पर देश की जलवायु परिवार के आर्थिक, सामाजिक स्थिति तथा संवेगात्मक स्थिति का प्रभाव पड़ता है। लड़कों में पहला वीर्यपात (First night fall) उनकी किशोरावस्था को पहचान है।
6. आन्तरिक अंगों का विकास- किशोरावस्था में शरीर के आन्तरिक अंगों का भी विकास होता है। इस आयु में मस्तिष्क (Brain), हृदय (Heart), श्वाँस, पाचनक्रिया तथा स्नायु संस्थान (Nervous System) का पूर्ण विकास हो जाता है। लड़कियों के रक्तपात में वृद्धि नहीं होती, जबकि लड़कों का रक्तपात 26 वर्ष की आयु से बढ़ना आरम्भ हो जाता है। शरीर की विभिन्न माँसपेशियों के विकास के कारण उनमें शक्ति का प्रादुर्भाव हो जाता है। बीमारियों से लड़ने के लिये शरीर में क्षमता उत्पन्न हो जाती है। प्रस्तुत चर्चा से स्पष्ट हो जाता है कि भ्रूणावस्था से लेकर 85 वर्ष तक शरीर का विकास किस प्रकार होता है।
शारीरिक विकास, महत्वपूर्ण अवस्था हैं, इस अवस्था में यदि संतुलित विकास नहीं हो पाता तो, बालक के व्यक्तित्व में दोष उत्पन्न हो जायेंगे।
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