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विभिन्न प्रकार के शिक्षण कौशल | Different Types of Teaching Skill in Hindi

विभिन्न प्रकार के शिक्षण कौशल | Different Types of Teaching Skill in Hindi
विभिन्न प्रकार के शिक्षण कौशल | Different Types of Teaching Skill in Hindi
विभिन्न प्रकार के शिक्षण कौशलों का संक्षित वर्णन कीजिए।

विभिन्न प्रकार के शिक्षण कौशल (Different Types of Teaching Skill)

शिक्षण कौशलों के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित है-

(1) प्रस्तावना कौशल

शिक्षण-अधिगम प्रणाली को प्रभावी बनाने के लिए शिक्षक को पाठ को प्रभावी तरीके से शुरू करना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए शिक्षाशास्त्री दो प्रमुख विधियों का वर्णन करते हैं-

  1. प्रकरण को स्वच्छ एवं आकर्षक तरीके से श्यामपटूट पर लिखना।
  2. प्रश्न पूछना।

इनमें से द्वितीय स्थान पर अंकित “प्रश्न पूछना” अधिक रुचिकर एवं उपयोगी विधि है। इस समय प्रस्तावना कौशल का अर्थ छात्रों से पूर्वज्ञान पर आधारित प्रश्न पूछना ही है। इन प्रारम्भिक प्रश्नों के निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं-

  1. छात्रों के पूर्व ज्ञान का पता लगाना ।
  2. पूर्व ज्ञान का नए ज्ञान से सम्बन्ध जोड़ना।
  3. पाठ्य-विषय में छात्रों की रुचि और जिज्ञासा को जाग्रत करना ।

(2) प्रश्न रचना कौशल

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में प्रश्नों का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। कक्षा-कक्ष प्रक्रिया के दौरान शिक्षक एवं छात्र दोनों के लिए प्रश्न महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं। कक्षा में प्रश्नों की भूमिका निम्न बिन्दुओं द्वारा समझी जा सकती है-

  1. कक्षा में अधिगम हेतु उचित वातावरण का निर्माण करने के लिए।
  2. छात्रों के पूर्वज्ञान का निर्धारण करने के लिए।
  3. छात्रों की रुचि कक्षा-कक्ष कार्यों में बनाए रखने के लिए।
  4. पढ़ाया गया बिन्दु समझ में आया या नहीं इसकी जाँच के लिए।
  5. छात्रों के मानसिक स्तर की जाँच करने के लिए।

(3) प्रश्न पूछने का कौशल

कक्षा में प्रश्नों को उचित प्रकार से पूछना एक कौशल है। इसमें निम्न सावधानी रखनी चाहिए-

  1. प्रश्न सर्वप्रथम पूरी कक्षा से पूछना चाहिए। इच्छुक छात्रों के मध्य किसी एक का चयन नाम से करके पुनः उससे प्रश्न पूछा जाना चाहिए।
  2. पहले ही नाम लेकर प्रश्न नहीं पूछें; जैसे- माधव तुम बताओ कि उत्तर प्रदेश की राजधानी क्या है ?
  3. प्रश्नों का वितरण उचित प्रकार से करना चाहिए जिससे सम्पूर्ण कक्षा के छात्रों को प्रश्न का उत्तर देने का अवसर मिले।
  4. अनिच्छुक छात्रों से भी प्रश्न पूछें।
  5. प्रश्न पूछने के बाद उत्तर पर विचार करने के लिए छात्रों को कुछ समय देना चाहिए।

(4) उद्दीपन परिवर्तन कौशल

उद्दीपन शब्द मूलतः मनोविज्ञान से प्राप्त हुआ है। उद्दीपन का अभिप्राय प्रायः उस वस्तु या क्रिया से होता है जिस पर कोई प्रतिक्रिया प्राप्त होती है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में उद्दीपन का अर्थ शिक्षक द्वारा की गई उन क्रियाओं से होता है जिन पर छात्रों से प्रतिक्रिया करने की अपेक्षा की जाती है।

उद्दीपन परिवर्तन से तात्पर्य शिक्षक क्रियाओं में इस प्रकार का परिवर्तन करना है जिससे अधिगम प्रक्रिया प्रभावी बन सके। उद्दीपन द्वारा शिक्षक इसे निम्न प्रकार से कर सकता है-

  1. बोलने की गति परिवर्तित करके।
  2. शारीरिक मुख-मुद्राओं में परिवर्तन करके।
  3. व्याख्यान के मध्य चार्ट / मॉडल आदि का प्रदर्शन करके।
  4. अन्तः क्रिया का स्वरूप परिवर्तित करके।
  5. कक्षा में निरीक्षण कार्य आरम्भ करके; जैसे- कक्षा के चक्कर लगाना।
  6. अन्तराल (Pause) का प्रयोग करके।
  7. छात्रों को श्यामपट्ट पर कार्य करने को आमन्त्रित करके।
  8. छात्रों का ध्यान विशेष जगह पर केन्द्रित करके; जैसे- इस नक्शे को ध्यान से देखें।

(5) पुनर्बलन कौशल

पुनर्बलन छात्रों को प्रेरणा प्रदान करने की वह कला है जिसके माध्यम से शिक्षक अपनी शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बना सकता है। छात्रों द्वारा उत्तर प्राप्त होने पर उन्हें प्रदान किए जाने वाला पृष्ठ-पोषण ही पुनर्बलन का कार्य करता है। यद्यपि-पृष्ठ पोषण एवं पुनर्बलन में व्यापक अन्तर है तथापि इसका कार्यक्षेत्र लगभग समान ही होता है। अन्य शिक्षण कौशलों की भाँति पुनर्बलन भी शिक्षक के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है जिसकी जानकारी होना पाठ को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है। यह दो प्रकार का होता है।

(6) उदाहरणों द्वारा स्पष्टीकरण कौशल

प्रकरणों में उदाहरण का प्रमुख स्थान है। किसी भी प्रकरण में नवीन ज्ञान को विद्यार्थी के मस्तिष्क में स्पष्ट करने के लिए उदाहरण की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। उदाहरणों के प्रयोग से छात्र अधिक सहज हो जाता है एवं नवीन ज्ञान के साथ उसका सम्बन्ध प्रगाढ़ हो जाता है। अतः उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण को एक विशिष्ट कौशल का दर्जा दिया जाता है। स्पष्टीकरण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-

1. मौखिक स्पष्टीकरण- कक्षा-शिक्षण में प्रायः ऐसे अवसर आते हैं जब शिक्षक को किसी गूढ़ कथन, विचार या भाव को स्पष्ट करने में कठिनाई का अनुभव होता है। ऐसे अवसर पर मौखिक उदाहरण, उपमा, तुलना आदि का प्रयोग करके उसे स्पष्ट किया जाता है।

2. प्रदर्शनात्मक स्पष्टीकरण- वास्तविक वस्तुओं अथवा मॉडल चित्र को दिखाकर स्पष्ट करना इसके अन्तर्गत आता है। इसका प्रयोग शिक्षक तब करता है जब वह देखता है कि मौखिक स्पष्टीकरण से भाव पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं हो सकता है। चार्ट, मॉडल, चित्र, पोस्टर, खाका आदि इसके उदाहरण हैं।

(7) श्यामपट्ट लेखन कौशल

शिक्षण में सर्वाधिक उपयोगी दृश्य उपकरण श्यामपट्ट (Black board) है। विद्यालय की प्रत्येक कक्षा में इसका प्रयोग होता है। यह जमीन से इतनी ऊँचाई पर होता है कि शिक्षक और विद्यार्थी दोनों आसानी से इस पर लिख सकें।

इस प्रकार श्यामपट्ट का प्रयोग करने से जहाँ छात्रों को तथ्यों, शब्दों, घटनाओं तथा चित्रों आदि को अपनी उत्तर पुस्तिका पर अंकित करने और सीखने में सहायता मिलती है वहीं शिक्षक भी इसकी सहायता से पूरी कक्षा को एक साथ पढ़ाने एवं गृहकार्य देने में सहायता प्राप्त होती है।

श्यामपट्ट की उपयोगिता

  1. श्यामपट्ट एक सस्ता उपकरण है, जो आसानी से उपलब्ध है।
  2. इसके प्रयोग से छात्रों को सुनने के साथ-साथ देखने का भी अवसर प्राप्त होता है।
  3. इसके प्रयोग से छात्रों का ध्यान विषय-वस्तु की ओर केन्द्रित रहता है।
  4. शाब्दिक माध्यमों में कही गई बात को श्यामपट्ट पर लिखने से छात्रों को पुनर्बलन प्राप्त होता है।
  5. कक्षा में छात्र सहभाग एवं संक्रिया में वृद्धि होती है।

(8) स्पष्टीकरण कौशल

शिक्षण में अनेक प्रकार के सिद्धान्त प्रत्यय तथा नियमों आदि को समझाना पड़ता है। इसके लिए शिक्षक इनकी व्याख्या करता है। इस व्याख्या या स्पष्टीकरण के कौशल के अन्तर्गत “विषय-वस्तु पर आधारित परस्पर पूरी तरह से सम्बन्धित क्रमबद्ध तथा सार्थक कथन शिक्षक द्वारा दिये जाते हैं।”

स्पष्टीकरण कौशल के घटक

  1. प्रारम्भिक कथनों का स्पष्टता से प्रयोग।
  2. निष्कर्षात्मक कथन स्पष्ट होना।
  3. भाषा में प्रवाह होना।
  4. उपयुक्त शब्दों का प्रयोग।
  5. कथनों में तारतम्यता होना।
  6. असम्बद्ध कथनों की अनुपस्थिति।
  7. विचारों में परस्पर जोड़ने वाले शब्दों का प्रयोग।
  8. छात्रों के बोध परीक्षण हेतु बीच-बीच में पूछे गये प्रश्न ।

स्पष्टीकरण के कौशल को व्याख्या कौशल भी कहा जाता है। “यह कौशल शिक्षक व्यवहारों का वह समूह है, जिसके द्वारा किसी सम्प्रत्यय, सिद्धान्त, नियम, पद, परिभाषा, विधि-प्रविधि तथा संरचना आदि को भलीभाँति समझाने के लिए अन्तःसम्बन्धित एवं अन्तः आश्रित कथनों का प्रयोग किया जाता है।”

अच्छा स्पष्टीकरण वह है, जिसे छात्र सरलता से समझ सकें, सुगमता से ग्रहण कर सकें और सहज ही उसे बता सकें। शिक्षक के कुछ व्यवहार प्रभावशाली व्याख्या में सहायक होते हैं और कुछ व्यवधान डालते हैं। स्पष्टीकरण या व्याख्या कौशल का प्रमुख उद्देश्य स्पष्टीकरण के प्रभावशाली व्यवहारों में वृद्धि करना तथा व्यवधान अथवा बाधा डालने वाले व्यवहारों को कम करना होता है।

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Anjali Yadav

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