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विश्वसनीयता एवं वैधता की जाँच
यह मानदण्ड परीक्षण की रचना का अन्तिम सोपान है-
1. विश्वसनीयता – मानदण्ड परीक्षण की विश्वसनीयता का तात्पर्य है कि दो परीक्षकों द्वारा लगभग एक ही प्रकार का मूल्यांकन ।
स्टेनली के कथनानुसार, “विश्वसनीयता से तात्पर्य प्रश्नों के उस अनुपात से है जिसके अनुसार दो परीक्षण अंकों के आधार पर एक ही निर्णय प्राप्त हो। यदि दोनों परीक्षणों में विद्यार्थियों के अंकों के सम्बन्ध में एक ही निर्णय हो तो उसमें अधिकतम विश्वसनीयता होती है।”
मानदण्ड परीक्षण की विश्वसनीयता प्रायः परीक्षण-पुनः परीक्षण विधि की सहायता से प्राप्त की जाती है। यदि दोनों परीक्षणों के अंकों में अनुकूलता हो तो परीक्षा विश्वसनीय होगी।
2. वैधता – मानदण्ड परीक्षण की वैधता का तात्पर्य है कि परीक्षण उसी का सच्चा मापन करता है जिसके लिये यह परीक्षण बनाया गया है। वैधता की जाँच तीन रूपों में होती है-
(i) विवरणात्मक वैधता – विवरणात्मक वैधता परीक्षण की विवरणात्मक योग्यताओं पर निर्भर करती है। विद्यार्थियों की निष्पत्ति की व्याख्या बिल्कुल सही होनी चाहिए।
(ii) क्रियात्मक वैधता – क्रियात्मक वैधता का अभिप्राय है कि परीक्षण उस प्रयोजन को सही रूप में पूरा करता है जिसके लिये उसका निर्माण किया गया है।
(iii) क्षेत्रीय विभाग – से सम्बन्धित वैधता क्षेत्रीय विभाग से सम्बन्धित वैधता का तात्पर्य है कि परीक्षण उस क्षेत्र के अनुरूप है जिसका चयन इस परीक्षण के लिये किया गया है।
वैधता के यह तीनों रूप विषय विशेषज्ञों के विश्लेषणों से प्राप्त निर्णयों पर आधारित होते हैं। ये कठोर संख्यात्मक सूत्रों पर आधारित नहीं किये जाते।
मानदण्ड सम्बन्धित मूल्यांकन की उपयोगितायें
1. प्रभावशाली मापन – मानदण्ड सम्बन्धित मूल्यांकन का मुख्य उद्देश्य अभिक्रम/ अनुदेशन की प्रभावशीलता का मापन करना है।
2. अनुदेशनात्मक सामग्री के स्वामित्व का निर्णय – मानदण्ड सम्बन्धित मूल्यांकन का प्रयोजन विद्यार्थियों का वर्गीकरण करना नहीं है। इसकी उपयोगिता अनुदेशनात्मक सामग्री के स्वामित्व का निर्णय लेने में है।
3. विशिष्ट सूचना – मानदण्ड सम्बन्धित मूल्यांकन व्यक्ति के निष्पादन स्तरों की विशिष्ट सूचना प्रदान करता है। इसका प्रयोग इस बात का निश्चय करने के लिये किया जाता है कि किस विद्यार्थी ने किस विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति की है।
4. बुनियादी रिपोर्ट – मानदण्ड सम्बन्धित परीक्षा के परिणाम की बुनियादी रिपोर्ट वस्तुतः प्राप्त तथा अप्राप्त उद्देश्यों की व्याख्या करती है।
5. अनुदेशन का मूल्यांकन – मानदण्ड सम्बन्धित परीक्षण का प्रयोग अनुदेशन की प्रभावशीलता के मूल्यांकन के लिए किया जाता है। विशिष्ट अनुदेशनात्मक उद्देश्यों के मापन के लिये परीक्षण का निर्माण किया जा सकता है।
6. विशिष्ट उद्देश्यों तक सीमित – मानदण्ड परीक्षण विशिष्ट उद्देश्यों से सम्बन्धित प्रश्नों तक सीमित रहता है।
7. अंकों की व्याख्या – व्यक्ति के अंकों की व्याख्या स्वतन्त्रतापूर्वक की जाती है।
8. प्रत्येक विशिष्ट उद्देश्य के परीक्षण पर बल – मानदण्ड मूल्यांकन विषय क्षेत्र के प्रत्येक विशिष्ट उद्देश्य के परीक्षण पर बल देता है।
मानदण्ड सम्बन्धित परीक्षण की सीमायें या दोष
1. ज्ञान की गुणवत्ता के सम्बन्ध में कोई सूचना नहीं – मानदण्ड परीक्षण इस बात की सूचना को प्रदान करता है कि विद्यार्थी ने किसी विशिष्ट विषय-सामग्री का कितना ज्ञान प्राप्त किया परन्तु यह नहीं बताता कि उसका ज्ञान उच्च कोटि का था या निम्न कोटि का।
2. सीमित क्षेत्रों का परीक्षण यह परीक्षण – विद्यार्थी की किसी विषय-वस्तु के – केवल बोध एवं कौशल की योग्यता का मूल्यांकन करता है। परन्तु उसी विषय के अन्य कई पक्षों में विद्यार्थी की उपलब्धि का मूल्यांकन नहीं करता।
3. रचना एवं वैधीकरण में कठिनाई – मानदण्ड सम्बन्धित परीक्षण की रचना – करना और उसे वैध बनाना बहुत कठिन है। इसकी रचना एवं वैधीकरण में समय भी बहुत लगता है।
4. शैक्षिक उपलब्धियों का ज्ञान नहीं – मानदण्ड परीक्षण कुछ अनुदेशनात्मक उद्देश्यों के आधार पर विद्यार्थी की निष्पत्ति का परीक्षण करता है। यह विद्यार्थी की शैक्षिक उपलब्धि के बारे में कुछ नहीं बताता।
मानक सम्बन्धित मूल्यांकन अथवा परीक्षण की उपयोगितायें
1. व्यक्तिगत भेदों का मूल्यांकन- मानक सम्बन्धित मूल्यांकन का मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत भेदों का मूल्यांकन करना है।
2. चयन के लिये उपयोगी – मानक सम्बन्धित मूल्यांकन प्रायः चयन हेतु प्रयुक्त – किया जाता है। चयन का कोटा निर्धारित करने के लिये यह बहुत उपयोगी है।
3. वर्गीकरण तथा ग्रेडिंग के लिये उपयोगी – मानक मूल्यांकन विद्यार्थियों का ग्रेड निर्धारित करने तथा उनका वर्गीकरण करने में बहुत उपयोगी सिद्ध होता है। इससे इस बात का पता चलता है कि एक विद्यार्थी ने कुछ विषयों का समूचा ज्ञान प्राप्त किया।
4. सही उत्तरों का ज्ञान – मानक परीक्षण इस तथ्य की रिपोर्ट देता है कि विद्यार्थी ने कितने प्रश्नों के सही उत्तर दिये।
5. आसान एवं कठिन प्रश्न – मानक परीक्षण में आसान एवं कठिन दोनों प्रकार के प्रश्न होते हैं।
6. प्रश्नों का व्यापक वितरण – मानक परीक्षण में अधिगम-क्षेत्र से सम्बन्धित प्रश्नों का व्यापक वितरण किया जाता है। प्रश्नों की बड़ी संख्या (लगभग सौ प्रश्न) उपलब्धि के विभिन्न तत्त्वों के साथ सम्बन्धित होती है।
7. तुलना द्वारा व्याख्या – किसी विद्यार्थी के अंकों के स्तर की व्याख्या अन्य विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त अंकों से तुलना करके की जाती है।
8. प्रश्नों के संख्यात्मक गुण – मानक परीक्षणों के प्रश्नों का चयन वांछित – संख्यात्मक मूल्यों के आधार पर किया जाता है, न कि इस आधार पर कि वे विषय-वस्तु के किस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
9. तुलनात्मक निर्णय – मानक मूल्यांकन का प्रयोग विद्यार्थियों में तुलना करने के लिये किया जाता है।
10. अधिकतम विभिन्नता – मानक परीक्षण की रचना विशेष रूप से परीक्षण अंकों की अधिकतम विभिन्नता लाने के लिये की जाती है।
मानक सम्बन्धित परीक्षण की सीमायें अथवा दोष
1. व्यक्तिगत परिभाषायें – विद्यार्थियों की निष्पत्ति का परीक्षण करते समय कई बार अध्यापक उपलब्धि अथवा निष्पत्ति की व्यक्तिगत परिभाषाओं का प्रयोग करते हैं। इसका विद्यार्थियों के परीक्षण पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
2. अधिक विश्वसनीय नहीं – मानक सम्बन्धित परीक्षण द्वारा मूल्यांकन बहुत अधिक विश्वसनीय नहीं होता। उदाहरणस्वरूप अध्यापक एक विद्यार्थी को 60% अंक (प्रथम श्रेणी) प्रदान करता है परन्तु दूसरे विद्यार्थी को 59% अंक (द्वितीय श्रेणी) प्रदान करता है। ऐसी स्थिति विश्वसनीय नहीं समझी जाती। किसी भी अध्यापक का दो विद्यार्थियों में इतना सूक्ष्म भेद करना बहुत कठिन है।
3. अनुदेशन की गुणवत्ता के अन्तिम स्तर के सम्बन्ध में सूक्ष्म नहीं- मानक सम्बन्धित परीक्षण किसी विशिष्ट कोर्स के अनुदेशन की गुणवत्ता के अन्तिम स्तर की कोई सूचना प्रदान नहीं करता।
मानदण्ड सम्बन्धित तथा मानक सम्बन्धित मूल्यांकन में समानताएँ
दोनों प्रकार के मूल्यांकन में भिन्नता होते हुए भी अत्यधिक समानताएँ हैं। ये समानताएँ निम्नलिखित हैं-
- एक ही कार्य – दोनों प्रकार के मूल्यांकन का एक ही कार्य है। इन दोनों में साफल्यता का बोध होता है।
- तत्त्वों की समान विशेषताएँ- इन दोनों प्रकार के मूल्यांकन के तत्त्वों की विशेषताएँ समान होती है।
- पदों के समान रूप- इन दोनों प्रकार के परीक्षणों के पदों के रूप भी समान होते हैं।
- एक ही आधार- इन दोनों प्रकार के परीक्षणों की रचना में पाठ्य-वस्तु को ही आधार माना जाता है।
- पदों का अंकन- दोनों प्रकार के मूल्यांकन में पदों का अंकन समान रूप में होता है। सही पद को एक अंक तथा गलत अंक को शून्य दिया जाता है और सही अंकों का जोड़ कर लिया जाता है।
- मापन – मानदण्ड मूल्यांकन (परीक्षणों) में पास-फेल के आधार पर विद्यार्थियों की विशिष्ट क्षमताओं का मापन किया जाता है। मानक मूल्यांकन (परीक्षणों) में पास फेल के आधार पर विद्यार्थियों के सामान्य ज्ञान स्तर अथवा विषय बोध का मापन किया जाता है।
- शैक्षिक मापन में उपयोग- दोनों प्रकार के मूल्यांकन का उपयोग शैक्षिक मापन में किया जाता है।
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