व्यक्तित्व परीक्षण से क्या अभिप्राय है ? इसके द्वारा वैयक्तिक भिन्नता किस सीमा तक नापी जा सकती है ?
व्यक्तित्व मापने के लिये इन विधियों का प्रयोग किया जाता है—(i) प्रश्नावली, (ii) जीवन इतिहास, (iii) साक्षात्कार, (iv) निष्पत्ति, (v) परिस्थिति परीक्षण, (vi) क्रम निर्धारण, (vii) व्यक्तित्व परिसूची (viii) प्रक्षेपण, (ix) एवं मनोविश्लेषणात्मक । व्यक्तित्व परीक्षण से सम्बन्धित अनेक उपलब्ध परीक्षणों में कुछ सर्वाधिक प्रसिद्ध परीक्षणों का विवेचन हम कर रहे हैं।
Contents
1. बालकों का प्रसंगबोध परीक्षण (Children’s Apperception Test)
इस परीक्षण को बैलक (Bellack) ने बनाया था। इसका प्रयोग बारह वर्ष तक के बच्चों के व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिये जाता है। छोटे बच्चे, पशुओं की कहानी सुनने तथा उनके साथ खेलने में अधिक रुचि लेते हैं। इसलिये बैलक ने इस परीक्षण में जानवरों के चित्र रखे हैं। इनमें बच्चों के जीवन से सम्बन्धित विभिन्न परिस्थितियों को दिखाया गया है।
परीक्षण का सम्पादन- परीक्षण देने से पहले पूर्व विषयी (Subject) से एकात्मक स्थापित किया जाता है, जिससे विषयी परीक्षण में सहयोग दे। इसके बाद विषयी को आराम से एक कमरे में कुर्सी पर बैठा दिया जाता है। उससे कहा जाता है कि तुमको चित्रों को देखकर कहानी बनानी है। यदि यह कहानी नहीं बनाता है तो उसे कहानी बनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। उसके द्वारा बनाई हुई कहानी को लिखकर संवेगात्मक व्यवहार आदि का अध्ययन तथा विश्लेषण किया जाता है। कहानी के अन्त में प्रश्न पूछे जाते हैं। इनमें इन पदों का ध्यान रखा जाता है—(1) कहानियों का विश्लेषण किया जाता है। (2) कहानी का आधार क्या माना है ? (3) कहानी में मुख्य पात्र कौन है ? (4) कहानी में बालक ने किस पशु के साथ स्वयं को सम्बन्धित किया है ? (5) कहानी में कौन-कौन सी नवीन वस्तुयें जोड़ी गई हैं।
इस परीक्षण से बच्चों की दमित इच्छाओं का प्रकाशन हो जाता है। इसकी कुछ सीमायें भी हैं–(1) भारतीय परिस्थितियों के प्रति अनुकूलता नहीं पाई जाती है। (2) कहानियाँ इतनी छोटी होती हैं कि उनका विश्लेषण कठिनतापूर्वक होता है। धोखा देना सम्भव है। इनकी वैधता बहुत अधिक है, किन्तु इनकी विश्वसनीयता कम है।
2. प्रसंगात्मक बोध (Thematic Apperception Test)
इस परीक्षण का निर्माण 1953 में मुर्रे (Murray) एवं मॉर्गन (Morgan) ने किया था। यह परीक्षण प्रौढ़ों के लिये उपयोगी है। इसमें दैनिक जीवन सम्बन्धी चित्र होते हैं। इसमें 30 चित्र होते हैं। 10 चित्र लड़कों के लिये, 10 लड़कियों के लिये तथा 10 दोनों के लिये होते हैं।
परीक्षा सम्पादन – विषयी (Subject) से एकात्म भाव स्थापित करके निर्देश दिये जाते हैं—’मैं तुम्हें जो चित्र दिखाऊँगा, उसके आधार पर तुम्हें कहानी बनानी है। परीक्षण दो बैठकों में दिया जाता है। इसमें प्रयुक्त चित्रों के आधार पर कहानी बनवाई जाती है और कहानियाँ तुरन्त लिख ली जाती हैं। इसमें समय का बन्धन नहीं होता। परीक्षण के समय विषयी के संवेगात्मक तथा असामान्य व्यवहार की जानकारी प्राप्त कर ली जाती है। तीन-चार दिन बाद कहानियों के आधार पर कुछ सूचनायें प्राप्त की जाती हैं। इसके पश्चात् कहानियों का विश्लेषण इन बातों का ध्यान रखते हुए किया जाता है- (1) कहानी का आधार किस चीज को माना गया है। (2) कहानी में मुख्य पात्र किसे माना है तथा उनकी क्या विशेषता है ? (3) विषयों ने किस वस्तु के साथ सात्मीकरण किया है। (4) कहानी में अपनी ओर से कौन-कौन सी नवीन घटनायें जोड़ी गई हैं।
इन परीक्षणों में व्यक्ति की निराशा, आवश्यकता, काम सम्बन्धी समस्या और समायोजन सम्बन्धी समस्याओं का पता लगाया जाता है। यह परीक्षण व्यक्तिगत तथा सामूहिक, दोनों रूपों में प्रयुक्त किया जाता है। यह परीक्षण देश की संस्कृति से प्रभावित होता है। इस परीक्षण का भारतीयकरण कर लिया गया है।
इस परीक्षण का सह-सम्बन्ध गुणाँक 8, छ: माह के पश्चात् 6, 10 मास के पश्चात् .5 और एक वर्ष पश्चात् . 48 रहा है। सेन फोर्ड की अर्द्ध-विच्छेद प्रणाली (Split-half Method) इनकी विश्वसनीयता 48 निकली। इसी प्रकार टॉमकिंस (Tomkins) ने 400 कहानियाँ बनाकर 91 विश्वसनीय घोषित कीं। इस परीक्षण की वैधता (1) इतिहास से तुलना (2) व्यक्ति की विशेषताओं से तुलना (3) प्रयोगों द्वारा हुए परिवर्तनों से तुलना करके वैधता का पता लगाया जाता है। इस परीक्षण की वैधता .78 आई।
3. रोर्शा परीक्षण (Rorschach Ink Blot Test)
इस परीक्षण का निर्माण स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिक हरमन रोर्शा (Herman Rorschach) ने 1921 में किया था। इसका प्रयोग मानसिक रोगियों पर किया गया।
इस परीक्षण में सामग्री में गत्ते पर बने हुए स्याही के 10 धब्बे होते हैं। पहले पाँच धब्बों में काला तथा सफेद रंग, तीन में लाल, काला, सफेद और अन्तिम दो धब्बों में कई रंग इस्तेमाल किये हैं।
इस परीक्षण के सम्पादन में विषयी के साथ एकात्म भाव स्थापित करके किया जाता है। विषयी के समक्ष एक-एक करके कार्ड रखे जाते हैं और उन कार्डों पर उनकी प्रतिक्रिया लिख ली जाती है। कार्ड की प्रतिक्रिया व्यक्त करने में लगने वाला समय लिख लिया जाता है।
इस परीक्षण में (1) यह देखा जाता है कि विषयी ने कार्ड के कितने धब्बों को देखा है। इससे उसके प्रत्यक्षीकरण का पता चलता है। (2) स्याही के धब्बों की विशेषता रंग, आकार का पता लगाया जाता है। (3) उत्तरों को पशुओं, पौधों, मनुष्य, कपड़े आदि भागों में विभक्त कर लिया जाता है। (4) प्रसिद्ध उत्तरों को अलग रखा जाता है।
उत्तरों का विश्लेषण करके उत्तरों के साथ सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। यह परीक्षण अधिक विश्वसनीय तथा वैध है। इसकी विश्वनीयता .6 से .95 तक तथा अर्द्ध-विच्छेद (Split hall) विधि से .95 तक एवं परीक्षण पुर्नपरीक्षण के द्वारा .38 से .86 तक विश्वसनीयता आई।
इसी प्रकार इसकी वैधता अन्य परीक्षणों से अधिक है। इसकी वैधता •85 तक आई। रोर्शा परीक्षण व्यक्तिगत परीक्षण है, किन्तु आजकल इसका सामूहिक रूप में भी प्रयोग किया जाता है। यह परीक्षण व्यक्तित्व की असामान्यता तथा मानसिक रोगों का पता लगाने में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है।
कुछ मनोवैज्ञानिकों का मत है कि रोर्शा परीक्षण पर देश की संस्कृति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इसलिये इसे समान रूप से प्रत्येक देश में प्रयोग किया जा सकता है, किन्तु यह मत गलत है, क्योंकि कुछ देश ऐसे हैं, जहाँ पर बच्चों को प्रत्येक वस्तु का सूक्ष्म रूप में अध्ययन करने की आदत डाली जाती है और कुछ देश ऐसे हैं, जहाँ पूर्ण वस्तु का ज्ञान कराया जाता है। इन दोनों देशों के बच्चों के परिणामों (Results) में बहुत अन्तर पाया जाता है।
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