संगठन का महत्व या उद्देश्य (Importance or Objectives of Organization)
संगठन व्यावसायिक सफलता का आधार तथा समस्याओं का समाधान है। लुईस ए० ऐलन के अनुसार, “एक स्वस्थ संगठन प्रतिष्ठान की सफलता एवं निरन्तरता में महान् योगदान दे सकता है।” संगठन से मिलने वाले अनेकानेक लाभों के कारण ही वर्तमान युग में इसका महत्व बढ़ता जा रहा है। इसके महत्वपूर्ण लाभ को प्राप्त करने के उद्देश्य से व्यावसायिक संस्थाओं में इसे व्यापक पैमाने पर अपनाया जा रहा है। सभी प्रकार के व्यावसायिक उपक्रमों में संगठन के सामान्यतः निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं-
(1) समय तथा प्रयत्नों में मितव्ययिता- उत्पादन में मितव्ययिता के साथ-साथ संगठनकर्त्ता समय तथा प्रयत्नों में भी मितव्ययिता करने का प्रयास करता है: यह तभी सम्भव है, जबकि श्रेष्ठतम संगठन प्रणाली हो एवं आधुनिक यन्त्रों का प्रयोग हो ।
(2) मितव्ययिताओं की प्राप्ति- न्यूनतम व्यय पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त करना ही संगठन का प्राथमिक उद्देश्य है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रभावशाली संगठन प्रणाली की संरचना की जाती है।
(3) श्रम तथा पूँजी में मधुर सम्बन्ध- श्रमिकों तथा प्रबन्ध वर्गों के मध्य मधुर सम्बन्ध बनाये रखना संगठन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है। इस हेतु विभिन्न प्रकार की प्रेरणाएँ दी जाती हैं, ताकि श्रमिकों में संतोष तथा सहयोग की भावना बनी रहे।
(4) लक्ष्यों की प्राप्ति में सहयोग करना- संगठन प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण कार्य है। जिसका उद्देश्य संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति में सहयोग करना है। इसलिए यह कहा भी जाता है कि “संगठन उपक्रम के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को प्राप्त करने का एक उपकरण है।”
(5) सेवा की भावना जागृत करना- प्रत्येक व्यावसायिक संस्था का उद्देश्य लाभ कमाना तो होता है, किन्तु लाभ के साथ-साथ सेवा की भावना भी जागृत करना संगठन का उद्देश्य है।
(6) मानवीय साधनों की प्राप्ति, अनुरक्षण एवं विकास करना- संगठन कार्य का एक प्रमुख उद्देश्य योग्य एवं अनुभवी कर्मचारियों की भर्ती एवं चयन करना, प्रशिक्षित करना, कार्य पर लगाना एवं उन्हें संस्था में बनाए रखना है।
(7) समन्वय की स्थापना- संगठन केवल कार्य का उचित वितरण ही नहीं करता, बल्कि, विभिन्न क्रियाओं, विभागों, व्यक्तियों तथा वर्गों के मध्य प्रभावपूर्ण समन्वय तथा सहयोग की स्थापना के उद्देश्य से भी कार्य करता है।
(8) उत्पादकता में वृद्धि- श्रेष्ठ संगठन से उत्पादकता में वृद्धि होती है। इससे ही प्रत्येक साधन का कुशलतम उपयोग तथा अपव्ययों का नियन्त्रण सम्भव है।
(9) विशिष्टीकरण को प्रोत्साहन- संगठन के अन्तर्गत प्रत्येक कर्मचारी को उसकी रुचि एवं योग्यता के अनुसार कार्य सौंपा जाता है। अतः एक श्रमिक बार-बार उसी कार्य को करता है, अतः विशिष्टीकरण को प्रोत्साहन मिलता है।
(10) प्रबन्धकीय क्षमता में वृद्धि- संगठन कर्मचारियों के अधिकार एवं दायित्वों का निर्धारण भी करता ताकि सभी के कार्यों में उचित समन्वय बना रहे और कार्य के संचालन में रुकावट न आये। इसके परिणामस्वरूप प्रबन्धकीय क्षमता में वृद्धि होती है।
(11) स्थिरता का विकास- अच्छी संगठन व्यवस्था से उपक्रम में ऐसे तत्वों का विकास होता है, जो उसके जीवन को स्थिर एवं दीर्घ बनाते हैं तथा उसकी वृद्धि में योगदान देते हैं।
(12) प्रशिक्षण में सहायक – एक आदर्श संगठन अपने कर्मचारियों की योग्यता में वृद्धि करने के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करता है। प्रशिक्षित कर्मचारियों को उनकी योग्यता के अनुसार प्रबन्धकीय पदों पर नियुक्त किया जाता है।
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