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समावेशी शिक्षा का अर्थ, परिभाषाएँ, प्रक्रिया, विशेषताएँ, आवश्यकताएँ, महत्त्व एवं क्षेत्र

समावेशी शिक्षा का अर्थ, परिभाषाएँ,  प्रक्रिया, विशेषताएँ, आवश्यकताएँ, महत्त्व एवं क्षेत्र
समावेशी शिक्षा का अर्थ, परिभाषाएँ, प्रक्रिया, विशेषताएँ, आवश्यकताएँ, महत्त्व एवं क्षेत्र

समावेशी शिक्षा का अर्थ, अवधारणा एवं क्षेत्र की विवेचना कीजिए। 

समावेशी शिक्षा का अर्थ (Meaning of Inclusive Education)

समावेशी शिक्षा उस शिक्षा को कहते हैं जिसमें सामान्य विद्यालय में बाधित एवं सामान्य बालकों को एक ही साथ रख कर शिक्षा प्रदान करने का कार्य किया जाता है। समावेशी शिक्षा अपंग बालकों की शिक्षा सामान्य स्कूल तथा सामान्य बालकों के साथ कुछ अधिक सहायता प्रदान ” करने की ओर इंगित करती है। यह शारीरिक तथा मानसिक रूप से बाधित बालकों को सामान्य बालकों के साथ सामान्य कक्षा में शिक्षा प्राप्त करना विशिष्ट सेवाएँ देकर विशिष्ट आवश्यकताओं के प्राप्त करने के लिए सहायता करती है।

समावेशी अथवा समावेशी शिक्षा में प्रतिभाशाली बालक तथा सामान्य बालक एक साथ कक्षाओं में पूर्ण समय या अर्द्धकालिक समय में शिक्षा ग्रहण करते हैं। इस प्रकार मिलना, समायोजन, सामाजिक या शैक्षिक अथवा दोनों को समन्वित करता है। कुछ शिक्षाविद् जैसे सोचते हैं कि समावेशी शिक्षा अपने बालकों हेतु सामान्य स्कूल में स्थापित करनी है। जहाँ उन्हें विशिष्ट शिक्षण में सहायता तथा सुविधाएँ दी जाती हैं।

स्टीफन तथा ब्लैकहर्ट के अनुसार- “शिक्षा की मुख्य धारा का अर्थ बाधित (पूर्ण रूप से अपंग नहीं) बालकों की सामान्य कक्षाओं में शिक्षण व्यवस्था करना है। यह समान अवसर मनोवैज्ञानिक सोच पर आधारित है जो व्यक्तिगत योजना के द्वारा उपयुक्त सामाजिक मानकीयकरण और अधिगम को बढ़ावा देती है।”

समावेशी शिक्षा की परिभाषाएँ (Definitions of Inclusive Education)

समावेशी शिक्षा की प्रमुख परिभाषाएँ निम्न हैं-

(1) स्टेनबैक एवं स्टेनबैक का विचार है कि “समावेशी विद्यालय अथवा पर्यावरण से अभिप्राय ऐसे स्थान से है जिसका प्रत्येक व्यक्ति अपने को सदस्य मानता है, जिसको अपना समझा जाता है, जो अपने साथियों और विद्यालय कुटुम्ब के प्रत्येक सदस्य की सहायता करता है और अपनी शिक्षा प्राप्ति सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उनसे सहायता प्राप्त करता है।”

(2) माइकेल एफ. जिआन ग्रेको के अनुसार, “समावेशी शिक्षा से अभिप्राय उन मूल्यों, सिद्धान्तों और प्रथाओं के समूह से है जो सभी विद्यार्थियों को, चाहे वे विशिष्ट हैं अथवा नहीं, प्रभावकारी और सार्थक शिक्षा देने पर बल देते हैं।”

(3) उप्पल एवं डे के अनुसार, “सामान्य बच्चों और विशिष्ट बालकों की शैक्षिक आवश्यकताओं के समक्रमण और मेल को समावेशी शिक्षा के नाम से अभिहित किया गया है ताकि सभी बच्चों के लिये सामान्य विद्यालयों में शिक्षा देने हेतु एक ही पाठ्यक्रम हो। यह एक लचीली तथा व्यक्तिगत रूप से विशिष्ट बच्चों और नवयुवकों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सहायक प्रणाली है। यह समग्र शिक्षा प्रणाली का एक अभिन्न घटक है जो सामान्य स्कूलों में सबके लिए उपयुक्त शिक्षा के रूप में प्रदान किया जाता है।

(4) एम. मैनीवन्नान के शब्दों में “समावेशी शिक्षा उस नीति तथा प्रक्रिया का परिपालन है जो सब बच्चों को सभी कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए अनुमति देती है। नीति से तात्पर्य है कि अपंग बालकों को बिना किसी अवरोध के सामान्य बालकों के सभी शैक्षिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए स्वीकृति प्रदान करे। समावेशी प्रक्रिया से अभिप्राय पद्धति के उन साधनों से है जो इस प्रक्रिया को सबके लिए सुखद बनाये। समावेशी शिक्षा क्षतियुक्त बालकों के लिए सामान्य शिक्षा के अभिन्न अंग के अतिरिक्त कुछ नहीं है। यह सामान्य शिक्षा के भीतर अलग से कोई प्रणाली नहीं है।”

(5) अडवानी और चड्ढा का विचार है कि “समावेशी शिक्षा का उद्देश्य एक सहायक तथा अनुकूल पर्यावरण की रचना करना है ताकि सभी को पूर्ण प्रतिभागिता के लिये समान अवसर प्राप्त हो सकें और इस तरह से विशेष आवश्यकता वाले बालक शिक्षा की मुख्य ध रा के क्षेत्र में सम्मिलित हो सकें। यह विद्यार्थियों की विभिन्न आवश्यकताओं के महत्त्व को समझती है। यह उपयुक्त पाठ्यक्रम, शिक्षण युक्तियों, सहायक सेवाओं, तथा समाज व माता-पिताओं के सहयोग के द्वारा सभी को समान शिक्षा प्रदान करने का विश्वास दिलाती है।”

समावेशी शिक्षा की प्रक्रियाएँ (Process of Inclusive Education)

समावेशी अथवा समावेशी शिक्षा में चार मुख्य प्रक्रियाएँ महत्त्वपूर्ण हैं-

(1) मानकीयकरण की प्रक्रिया- सामान्यीकरण वह प्रक्रिया है जो प्रतिभाशाली बालकों तथा युवकों को जहाँ तक सम्भव हो कार्य सीखने के लिए सामान्य सामाजिक वातावरण पैदा करे।

(2) संस्थारहित शिक्षा व्यवस्था- संस्थारहित शिक्षा ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अधिक-से-अधिक प्रतिभाशाली बालकों तथा युवक छात्रों की सीमाओं को समाप्त करती है, जो आवासीय विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हैं एवं उन्हें जनसाधारण के मध्य शिक्षा ग्रहण करने के अवसर प्रदान करते हैं।

(3) शिक्षा की मुख्य धारा शिक्षा की मुख्य धारा वह प्रक्रिया है जिसमें प्रतिभाशाली बालकों को सामान्य बालकों के साथ दिन-प्रतिदिन शिक्षा के माध्यम से आपस में सम्बन्ध रखते हैं।

(4) समावेश की व्यवस्था- समावेश वह प्रक्रिया है जो प्रतिभाशाली बालकों को प्रत्येक दशा में सामान्य शिक्षा-कक्ष में उनकी शिक्षा के लिए लाती है समन्वित-पृथक्करण के विपरीत है। पृथक्कीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें समाज का विशिष्ट समूह अलग से पहचाना जाता है तथा धीरे-धीरे सामाजिक तथा व्यक्तिगत दूरी उस समूह की तथा समाज की बढ़ती जाती है। अलगाववाद के विचार ऐसी परिस्थिति में पैदा होते हैं और वे अपने आपको समाज से अलग पाते हैं। समन्वीकरण ऐसी प्रक्रिया है जिसमें समाज का ‘कुछ भाग’ (जो शारीरिक रूप से बाधित अथवा अपंग है) सभी विशेषताएँ समाज से मिलती हैं। समन्वीकरण के द्योतक हैं-

  1. अपंग बालकों के वही अधिकार हैं जो अन्य सामान्य बालकों के,
  2. समाज में प्रगति एवं उत्थान हेतु अपंग बालकों को समान अवसर हैं जो अन्य सामान्य बालकों को,
  3. जीवन के कार्यक्षेत्र में पहुँचने के समान अवसर हैं जो अन्य नागरिकों तथा
  4. समाज में बराबर (समानता) के भागीदार हैं।

यह प्रक्रिया व्यक्तियों के पास-पास आने व एक-दूसरे से दूरी कम करने से प्रारम्भ होती है। यह प्रक्रिया सामाजिक दूरी कम करने तथा आपसी सहयोग को बढ़ावा देती है। इस प्रकार सामाजिक समावेश को बल मिलता है तथा विभिन्न बालकों के समूह समाज में बराबर के भागीदार बन जाते हैं।

समावेशी शिक्षा की विशेषताएँ (Characteristics of Inclusive Education)

समावेशी शिक्षा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) समावेशी शिक्षा एक ऐसी शिक्षा है जिसके अन्तर्गत शारीरिक रूप से बाधित बालक तथा सामान्य बालक साथ-साथ सामान्य कक्षा में शिक्षा ग्रहण करते हैं। अपंग बालकों को कुछ अधिक सहायता प्रदान की जाती है। इस प्रकार समावेशी शिक्षा अपंग बालकों के पृथक्कीकरण के विरोधी व्यावहारिक समाधान है।

(2) इस शिक्षा का ऐसा प्रारूप दिया गया है जिससे अपंग बालक को समान शिक्षा के अवसर प्राप्त हों तथा वे समाज में अन्य लोगों की भाँति आत्मनिर्भर होकर अपना जीवनयापन कर सकें।

(3) समावेशी शिक्षा विशिष्ट शिक्षा का विकल्प नहीं है। समावेशी शिक्षा तो विशिष्ट शिक्षा का पूरक है। कभी-कभी बहुत कम शारीरिक रूप से बाधित बालकों को समावेशी शिक्षा संस्था में प्रवेश कराया जा सकता है। गम्भीर रूप से अपंग बालक को जो विशिष्ट शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा ग्रहण करते हैं, सम्प्रेषण व अन्य प्रतिभा ग्रहण करने के पश्चात् वे समन्वित विद्यालयों में भी प्रवेश पा सकते हैं।

(4) यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत शारीरिक रूप से बाधित बालक भी सामान्य बालकों के समान महत्त्वपूर्ण समझे जाते हैं।

(5) अपंग बालकों के जीवनयापन के स्तर को ऊँचा उठाने तथा उनके नागरिक अधिकार को यह शिक्षा सुनिश्चित करती है।

(6) समावेशी शिक्षा अपंग बालकों को उनके व्यक्तिगत अधिकारों के रूप में स्वीकार करती है।

(7) शारीरिक अपंग बालकों को समावेशी शिक्षा व्यवस्था- विशिष्ट शिक्षण के मध्य, अपंग बालकों के द्वारा मानसिक समस्याओं का सामना करने से छुटकारा दिलाती है।

(8) समावेशी शिक्षा अध्यापकों, शिक्षाविदों तथा माता-पिताओं के सामूहिक प्रयास पर आधारित है।

(9) समावेशी शिक्षा-शिक्षण की समानता तथा अवसर जो अपंगों को अब तक नहीं दिये गये उनकी मूल रूप से शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक आयाम है।

समावेशी शिक्षा की आवश्यकताएँ (Needs of Inclusive Education)

समावेशी शिक्षा की प्रमुख आवश्यकताएँ निम्न हैं-

(1) समावेशी शिक्षा के माध्यम से एकीकरण सम्भव है- विशिष्ट शिक्षण व्यवस्था की अपेक्षा समावेशी शिक्षण व्यवस्था में सामाजिक विचार-विमर्श अधिक किये जाते हैं, अर्थात् उच्चारण अधिक है। अपंग तथा सामान्य बालक में सामान्य शिक्षा के अन्तर्गत एक प्राकृतिक वातावरण बनाया जाता है।

(2) समावेशी शिक्षा कम खर्चीली है- निःसन्देह विशिष्ट शिक्षा अधिक महँगी तथा खर्चीली है। इसके अलावा विशिष्ट अध्यापक एवं शिक्षाविदों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी अधिक समय लेते हैं। दूसरे दृष्टिकोण से समावेशी शिक्षा कम खर्चीली तथा लाभदायक है। विशिष्ट शिक्षा संस्था को बनाने तथा शिक्षण कार्य प्रारम्भ करने के लिए अन्य कई स्रोतों से भी सहायता लेनी पड़ती है; जैसे- प्रशिक्षित अध्यापक, विशेषज्ञ चिकित्सक (Physiotherapist) आदि। अपंग बालक की सामान्य कक्षा में शिक्षा पर कम खर्च आता है।

(3) सामाजिक एकीकरण को सुनिश्चित करती है- अपंग बालकों में कुछ सामाजिक गुण बहुत संगत होते हैं। जब वे सामान्य बालकों के साथ शिक्षा पाते हैं। अपंग बालक अधिक संख्या में सामान्य बालकों का संग पाते हैं तथा एकीकरणता के कारण वे सामाजिक गुणों को अन्य बालकों के साथ ग्रहण करते हैं। उनमें सामाजिक, नैतिक गुण, प्रेम, सहानुभूति, आपसी सहयोग आदि गुणों का विकास होता है। विशिष्ट शिक्षा व्यवस्था में छात्र केवल विशिष्ट ध्यान ही नहीं परन्तु विस्तार में शिक्षण तथा सामाजिक स्पर्धा की भावना विकसित होती है।

(4) सामान्य मानसिक विकास सम्भव है- विशिष्ट शिक्षा में मानसिक जटिलता मुख्य है। अपंग बालक अपने आपको दूसरे बालकों की अपेक्षा तुच्छ तथा हीन समझते हैं जिसके कारण उनके साथ पृथक्कता से व्यवहार किया जा रहा है। समावेशी शिक्षा व्यवस्था में अपंगों को सामान्य बालकों के साथ मानसिक रूप से प्रगति करने का अवसर प्रदान किया जाता है। प्रत्येक बालक सोचता है कि वह किसी भी प्रकार से किसी अन्य बच्चे से तुच्छ रहा है। इस प्रकार समावेशी शिक्षा पद्धति बालकों की सामान्य मानसिक प्रगति को अग्रसर करती है।

समावेशी शिक्षा का महत्त्व (Importance of Inclusive Education)

समावेशी शिक्षा के महत्त्व को निम्न बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है-

(1) विशिष्ट कक्षाएँ (Special Classes) बाधित बालकों के लिए आवश्यक हैं क्योंकि उनकी शिक्षा के लिए विशिष्ट विधियाँ तथा प्रविधियों की आवश्यकता होती है।

(2) विशिष्ट कक्षाओं में बुद्धिमान छात्रों को अग्रसर होने का अवसर मिलता है लेकिन शिक्षक को ऐसे बालकों को सामान्य कक्षा में कार्य के प्रति प्रेरित करने में समस्या तथा बाधाओं का सामना करना पड़ता है। सामान्यतः विलक्षण बालक अन्य सामान्य बालकों की अपेक्षा संवेदनशील होते हैं। उनकी सोचने की क्षमता अधिक तथा तीव्र होती है। वे कार्य के प्रति सावधान हैं, इसलिए उनके शिक्षण में विशेष विधियों व प्रविधियों की आवश्यकता होती है। ये प्रविधियाँ समावेशी शिक्षा से ही सम्भव हैं। इसलिए इसका महत्त्व है।

(3) प्रतिभाशाली बालकों का बुद्धि स्तर सामान्य बालकों की अपेक्षा ऊँचा होता है। इसलिए प्रतिभाशाली बालकों को सामान्य बालकों के साथ समायोजित करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता 1 सामान्यतः ऐसा पाया जाता है कि शिक्षक अपनी गति से शिक्षा देता है जो सामान्य बालकों के लिए उपयुक्त है, लेकिन प्रतिभाशाली बालक सामान्य बालकों की अपेक्षा शीघ्र ही अपना कार्य समाप्त कर लेते हैं। ऐसी परिस्थिति में यह समस्या आती है कि प्रतिभाशाली बालक अपना समय कैसे व्यतीत करें जबकि शिक्षक सामान्य बालकों के साथ उसी कार्य को पूरा कराने में व्यस्त रहता है। सामान्यतः प्रतिभाशाली बालक ऐसी परिस्थिति में अनुशासनहीनता तथा उद्दण्डता करने लगते हैं। सामान्य बालकों का पाठ्यक्रम इतना साधारण ही ताप है कि प्रतिभाशाली बालक नीरस हो जाता है तथा कार्य में रुचि खो देता है। प्रतिभाशाली बालक कार्य के प्रति प्रेरित नहीं हो पाते। अतः समावेशी शिक्षा महत्त्वपूर्ण है।

(4) प्रतिभाशाली बालकों की कक्षाओं में प्रत्येक बालक यह जानता है कि केवल कक्षा में वह ही एक बुद्धिमान विद्यार्थी नहीं है परन्तु और कई विद्यार्थी हैं। यह विचार बालकों में आत्मविश्वास की भावना का विकास करता है। विशिष्ट कक्षाएँ बालकों में अधिक सीमा तक शिक्षण विशेष धाराओं में मार्गदर्शक के रूप में अग्रसर होने का अवसर भी प्रदान करती है। उसी समूह में कुछ बालक, कविता, नाटक, खेल-कूद तथा सामान्य ज्ञान जैसे शाखाओं में रुचि लेते हैं। आगे आने वाले समय में बालकों के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण तथा विशिष्ट कक्षा के कार्यक्रमों में सहायक सिद्ध हो सकता है।

(5) प्रतिभाशाली बालकों को सामाजिक तथा वैयक्तिक आवश्यकताओं को ग्रहण करने के लिए अतिरिक्त सुविधाओं तथा साधनों की आवश्यकता होती है। इसलिए ऐसी सुविधाएँ प्रतिभाशाली बालकों को उनकी कार्य करने की क्षमता से अवगत कराती हैं तथा शारीरिक रूप से बाधित बालकों में उनके दोषों को कम करने का प्रयास करती हैं। ऐसी परिस्थिति में उत्कृष्ट बालक अपनी प्रतिभा के अनुरूप कार्य करने का अवसर पाते हैं। सामान्य कक्षा में बुद्धिमान बालक अपने-आपको कार्य करने में बाधित पाता है। वह थोड़ी-सी इच्छाशक्ति से प्रतिभाशाली बालकों की श्रेणी में स्थान बना सकता है एवं अपने स्तर को ऊँचा कर सकता है। यह अपने स्थान पर उचित है कि अधिक तीव्र प्रगति कुछ सीमा तक कमी तथा कमजोरी होती है।

(6) प्रयोगात्मक आँकड़े प्रगट करते हैं कि सामान्य शिक्षण संस्थाओं में प्रतिभाशाली बालकों के साथ सामाजिक कुप्रबन्ध उग्र रूप में पाया जाता है। प्रतिभाशाली बालक कार्य कम होने या कभी-कभी न होने से खाली बैठे रहते हैं, क्योंकि या तो उन पर कार्य का बोझ नहीं होता अथवा वे कार्य को शीघ्र ही समाप्त कर लेते हैं। ऐसी परिस्थितियों में उनका व्यक्तित्व व्यवहार स्वीकार करने योग्य नहीं होता, क्योंकि वे स्वयं को उद्दंडता के कार्यों में शामिल कर लेते हैं।

समावेशी शिक्षा का कार्यक्षेत्र (Scope of Inclusive Education)

समावेशी शिक्षा शारीरिक रूप से बाधित बालकों को निम्न प्रकार की शिक्षण सुविधाएँ उपलब्ध कराती है। इसके क्षेत्र में निम्न वर्गीकरण आते हैं-

  1. अस्थिबाधित बालकों का अध्ययन,
  2. श्रवणबाधित बालकों का अध्ययन,
  3. दृष्टिबाधित अथवा एक आँख वाले बालकों का अध्ययन,
  4. मानसिक मन्दित बालक जो शिक्षा के योग्य हो।
  5. विभिन्न प्रकार से अपंग बालक (श्रवणबाधित, दृष्टिबाधित, अस्थि अपंग आदि) इन्हें बिहुबाधित भी कहते हैं।
  6. इसमें अधिगम असमर्थी बालकों का अध्ययन सम्भव है।
  7. अन्धे छात्र जिन्होंने ‘बेल’ में पढ़ने और लिखने का शिक्षण प्राप्त कर लिया है तथा उन्हें विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
  8. बधिर बालक जिन्होंने सम्प्रेषण में निपुणता तथा पढ़ना सीख लिया है।

समावेशी शिक्षा में क्षेत्र में सामान्य स्कूल जाने से पहले अपंग बालक का प्रशिक्षण, माता-पिता को समझाना, प्रारम्भिक शिक्षा तथा उच्च शिक्षा + 2 स्तर और व्यावसायिक शिक्षा भी सम्मिलित है।

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Anjali Yadav

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