सुझाव का अर्थ तथा परिभाषा देते हुए सुझावों के मुख्य प्रकारों का संक्षिप्त विवरण दीजिये। सुझाव का शिक्षा में क्या महत्व है ?
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सुझाव का अर्थ व परिभाषा (Meaning & Definition of Suggestion)
“सुझाव’ एक प्रकार की मानसिक प्रक्रिया है। सुझाव को संकेत या निर्देश भी कहते हैं। दैनिक जीवन में हम बहुत से कार्य दूसरों के कहने से करते हैं। हमारा अचेतन मन दूसरों का कहना मान लेता है और उनके अनुसार कार्य करता है। इस प्रक्रिया के कारण हम दूसरे व्यक्ति के विचार को बिना तय किये हुए मान सकते हैं और उसके अनुसार कार्य या व्यवहार करने लगते हैं; उदाहरणार्थ, यदि माँ अपने बच्चे से कहती है, “अन्दर चलो, आँधी आ रही है”, तो बच्चा उसके सुझाव को मानकर अन्दर चला जाता है।
“सुझाव’ के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिये कुछ परिभाषायें निम्नलिखित हैं-
1. स्टर्ट व ओकडन- “सुझाव वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा हम दूसरों के विचारों को स्वीकार कर लेते हैं यद्यपि उन्हें स्वीकार करने के लिये हमारे पास पर्याप्त कारण नहीं होते हैं। “
“Suggestion is the process by which we accept ideas from others without ourselves having adequate grounds for their acceptance.” -Sturt and Oakden
2. मैक्डूगल- “सुझाव, सन्देशवाहन की वह प्रक्रिया है, जिसके फलस्वरूप दिया गया सन्देश उचित तार्किक आधार के बिना भी विश्वास के साथ स्वीकार कर लिया जाता है।”
“Suggestion is process of communication resulting in the acceptance with conviction of communicated proposition the absence of logically adequate grounds for its acceptance. -McDougall
3. किम्बल यंग- “सुझाव सन्देशवाहन का ऐसा संकेत है, जो शब्दों, चित्रों या ऐसे ही किसी माध्यम द्वारा प्रस्तुत किया जाता है और अनाधारित या अतार्किक होते हुए भी स्वीकार कर लिया जाता है।”
“Suggestion is a form of symbol-communication by words, pictures of some similar medium, inducing acceptance of the symbol without any self-evident or logical ground for its acceptance.” -Kimball Young
सुझाव में व्यक्ति दूसरों के विचारों से प्रभावित होता है। सुझाव का स्पष्ट रूप सम्मोहन में देखा जा सकता है। दैनिक जीवन में विज्ञापन हमें अनेक प्रकार के सुझाव देते हैं। बार-बार दोहराये जाना, आत्मविश्वास तथा सुझाव देने वाले का प्रतिष्ठित होना, सुझाव की सफलता के लिये आवश्यक है।
सुझाव के प्रकार (Types of Suggestion)
1. प्रतिष्ठा सुझाव (Prestige Suggestion)- इस सुझाव का आधार व्यक्ति की प्रतिष्ठा होती है; उदाहरणार्थ जवाहरलाल नेहरू के सुझावों का देश के कोने-कोने में स्वागत किया जाता था।
2. सामूहिक सुझाव (Mass Suggestion)- इस प्रकार का सुझाव, व्यक्तियों के एक समूह द्वारा किया जाता है; उदाहरणार्थ— हड़ताल के समय छात्र सामूहिक सुझाव के कारण ही अनुशासनहीनता के कार्य करने लगते हैं।
3. प्रत्यक्ष सुझाव (Direct. Suggestion)- इस सुझाव में लक्ष्य को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया जाता है; उदाहरणार्थ-धार्मिक उपदेशों और व्यापारिक विज्ञापनों में इसी प्रकार का सुझाव पाया जाता है।
4. सकारात्मक सुझाव (Positive Suggestion) – यह सुझाव किसी कार्य को करने की प्रेरणा देता है; उदाहरणार्थ-सीधे खड़े हो। “
5. भाव-चालक सुझाव (Ideo-Motor Suggestion) – यह सुझाव हमारे अचेतन मस्तिष्क में जन्म लेता है और हमें प्रभावित करता है; उदाहरणार्थ-नृत्य देखते समय हमारे पैर अपने आप थिरकने लगते हैं।
6. आत्म-सुझाव (Auto Suggestion) – इस सुझाव में व्यक्ति स्वयं अपने को सुझाव देता है; उदाहरणार्थ यदि रोगी अपने को यह सुझाव देता रहता है कि वह अच्छा हो रहा है, तो वह शीघ्र अच्छा हो जाता है।
7. प्रतिषेध सुझाव (Contra Suggestion) – इस सुझाव का प्रभाव विपरीत होता है। जिस व्यक्ति को सुझाव दिया जाता है, वह उसके अनुसार कार्य न करके विपरीत कार्य करता है; उदाहरणार्थ- यदि किसी छोटे बच्चे से किसी वस्तु को न छूने को कहा जाये, तो वह उसे छूने का प्रयास अवश्य करता है या छू लेता है।
8. अप्रत्यक्ष सुझाव (Indirect Suggestion) – इस सुझाव में लक्ष्य को स्पष्ट नहीं किया जाता है। इसके विपरीत, ऐसी भूमिका बाँधी जाती है कि लक्ष्य तक पहुँचा जा सके; उदाहरणार्थ- होशियार बच्चे यदि कोई फिल्म देखना चाहते हैं तो वे उसे देखने की स्पष्ट माँग न करके कहते हैं कि लोग “बॉबी” की बड़ी तारीफ कर रहे हैं।
9. नकारात्मक सुझाव (Negative Suggestion) – यह सुझाव किसी कार्य को न करने का आदेश देता है; उदाहरण के लिये-“फूल तोड़ना मना है।”
सुझाव का शिक्षा में महत्व (Importance of Suggestion in Education)
रेबर्न के अनुसार- “सुझाव का व्यावहारिक महत्व बहुत अधिक है। बालक का व्यवहार मुख्यतः इसी के द्वारा परिवर्तित किया जाता है।”
“The practical importance of suggestion is very great. The behaviour of the child is largely moulded by it.” – Reyburn
बालक उसी प्रकार सीखता, कार्य करता और विश्वास करता है, जैसा कि उसे सुझाव दिया जाता है। अतः सुझाव का बालक और शिक्षक दोनों के लिए विशेष महत्व है। यह दोनों की नाना प्रकार से सहायता करता है, यथा-
1. साहित्य शिक्षण में सहायता- रेबर्न (Reyburn) के अनुसार-साहित्य के शिक्षण में सुझाव का बहुत महत्व है; उदाहरणार्थ, शिक्षक कविता-पाठ की अपनी विधि से बालकों को वांछित भावनाओं का सुझाव देकर उनको जाग्रत कर सकता है।
2. वातावरण निर्माण में सहायता- रेबर्न (Reyburn) के अनुसार-सुझाव द्वारा विभिन्न विषयों के शिक्षण के लिए। उपयुक्त वातावरण का निर्माण किया जा सकता है, उदाहरणार्थ, ऐसे कमरे में इतिहास की शिक्षा देना सरल है, जिसमें टंगे हुए चित्र, चार्ट और नक्शे इतिहास का संकेत देते हैं, न कि विज्ञान-कक्ष में, जिसमें इतिहास का कोई वातावरण नहीं है।
3. मानसिक विकास में सहायता -रेबर्न (Reyburn) के अनुसार शिक्षक, सुझाव द्वारा बालकों में शिक्षा, कला, कार्य, सौन्दर्य, संस्कृति, विद्यालय, साहित्य आदि के प्रति उत्तम मानसिक दृष्टिकोणों का निर्माण कर सकता है। इस प्रकार, वह सुझाव की सहायता से उनका मानसिक विकास कर सकता है।
4. व्यक्तित्व निर्माण में सहायता- रेबर्न (Reyburn) के अनुसार “सुझाव सामाजिक, नैतिक और संवेगात्मक क्षेत्रों में शक्तिशाली होता है।” अतः शिक्षक, सुझाव द्वारा बालकों के व्यक्तित्व का विकास कर सकता है।
5. गुरु-शिष्य सम्बन्ध में सहायता- डम्विल (Dumville) के अनुसार- “सुझाव साधारणतः आदेश से उत्तम होता है। ” (“A suggestion is usually better than a command.”) आमतौर पर बड़े छात्र आदेश को पसन्द नहीं करते हैं। फलतः आदेश- शिक्षक और छात्रों में मधुर सम्बन्ध स्थापित कर पाता है। अतः वेल्टन (Welton) के अनुसार- “जैसे-जैसे बालक की बुद्धि दूरदर्शिता और आत्म-नियन्त्रण में वृद्धि होती जाए, वैसे-वैसे शिक्षक द्वारा सुझाव देना ही नियम बनाया जाए।”
6. नए विचार प्रदान करने में सहायता- कीटिंग (Keating) के अनुसार- शिक्षक, बालकों को नए विचार प्रदान करने के लिए सुझाव का प्रयोग कर सकता है, पर उसे सुझाव अप्रत्यक्ष रूप से देने चाहिएँ। इसके लिए उसे शिक्षण के समय चित्रों, चार्टी आदि का प्रयोग करना चाहिए।
7. विभिन्न विषयों में शिक्षण में सहायता- डम्विल (Dumville) के अनुसार- विज्ञान, इतिहास, भूगोल, अंकगणित और कुछ सीमा तक साहित्य में शिक्षक, बालकों को सब कुछ स्वयं न बताकर, सुझाव द्वारा उनके उत्तर निकलवा सकता है। ऐसा करके वह बालकों की विचार शक्ति का विकास और उनमें स्वयं खोज और स्वयं-क्रिया की आदतों का निर्माण कर सकता है।
8. रुचियों के विकास में सहायता – रेबर्न (Reyburn) के अनुसार-“सुझाव बालकों की रुचियों का विकास और विस्तार करने में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।” उदाहरणार्थ, शिक्षक, इतिहास पढ़ाते समय साहित्य, नागरिकशास्त्र, विज्ञान आदि की पुस्तकों का सुझाव देकर इन विषयों में बालकों की रुचि उत्पन्न कर सकता है।
9. चरित्र-निर्माण में सहायता- रेबर्न (Reyburn) के अनुसार- “चरित्र के सामान्य विकास और सफलता में सुझाव अति महान् कार्य करता है।” रेबर्न का कथन है कि शिक्षक अपने ज्ञान और सम्मान के कारण प्रतिष्ठा सुझाव देने की स्थिति में होता है। अतः वह सुझाव द्वारा बालकों की अच्छे कार्यों, अच्छी आदतों और अच्छे विचारों में रुचि उत्पन्न कर सकता है। इस प्रकार, वह उनका नैतिक और चारित्रिक विकास करता है।
10. अनुशासन में सहायता – रेबर्न (Reyburn) के अनुसार- “विद्यालय कक्ष में अनुशासन सुझाव का साधारण उदाहरण है।” अपने कथन की व्याख्या करते हुए रेबर्न ने लिखा है कि शिक्षक के आदेश में अनुशासन या अनुशासनहीनता का सुझाव निहित रहता है। घबड़ाये हुए शिक्षक के आदेश में अनुशासनहीनता का और आत्मविश्वासी शिक्षक के आदेश में अनुशासन का स्पष्ट सुझाव होता हैं।
सुझाव के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण चेतावनी देते हुए रेबर्न (Reyburn) का मत है- “हमें सदैव इस सम्बन्ध में सावधान रहना चाहिए कि हमारे सुझाव सकारात्मक हो, नकारात्मक नहीं।” इसका कारण यह है कि नकारात्मक सुझाव देने से बालकों की इच्छा शक्ति निर्बल हो जाती है और साथ ही वे विपरीत कार्य करने लगते हैं।
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