शिक्षा मनोविज्ञान / EDUCATIONAL PSYCHOLOGY

अधिगम अथवा सीखना क्या है ? उसके नियम तथा प्रभावकारी अधिगम के उपाय

अधिगम अथवा सीखना क्या है ? उसके नियम तथा प्रभावकारी अधिगम के उपाय
अधिगम अथवा सीखना क्या है ? उसके नियम तथा प्रभावकारी अधिगम के उपाय
अधिगम अथवा सीखना क्या है ? उसके नियमों का उल्लेख कीजिए तथा प्रभावकारी अधिगम के उपायों का वर्णन कीजिए।

एक छोटी लड़की । नाम नीहारिका। नर्सरी की छात्रा। उसके पिता कमरे में बैठे शेव कर रहे हैं। रेवर जमीन पर खड़ा रखा है। अचानक ही लड़की का पैर रेजर पर आ जाता है। खून का फुव्वारा छूटने लगता है। घबराहट होती है। घाव को साफ करके पट्टी बाँध दी जाती है। इसके बाद उसे हॉस्पीटल में ले जाया जाता है। डाक्टर उसकी ड्रेसिंग करता है और उसके एक इन्जेक्शन लगाता है। इन्जेक्शन की सुई से उत्पन्न पीड़ा को वह सहन नहीं कर पाती। अगले दिन उसे फिर डॉक्टर के पास जाना पड़ता है। यद्यपि डॉक्टर ने उसको इन्जेक्शन नहीं लगाना है। केवल ड्रेसिंग ही करनी है। फिर भी नीहारिका डॉक्टर की शक्ल को देखकर रो पड़ती है और उससे बचने का उपक्रम करती है।

यह एक घटना है। इस प्रकार की अनेक घटनायें माता-पिता तथा अध्यापकों के अनुभव में आती हैं। किसी व्यवहार से अन्य व्यवहार की उत्पत्ति होती है। इस घटना से एक बात स्पष्ट हो गई। व्यवहार का आधार उद्दीपन (Stimuli) तथा अनुक्रिया (Response) है। इस क्रिया प्रतिक्रिया को हम इस प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं-एक छोटा बालक जलते हुये दीपक को देखकर उत्सुकतावश उसकी ओर बढ़ता है। वह दीपक की लौ को पकड़ने का प्रयास करता है। इस प्रयास में उसका हाथ जलने लगता है। परिणाम यह होता है कि वह अपना हाथ लौ से तुरन्त हटाता है और भविष्य में जलती हुई वस्तु पर हाथ नहीं डालता।

इस घटना में कुछ क्रियायें सम्पन्न हुई, जो इस प्रकार हैं-

  1. जलते दीपक को देखकर उत्सुकता तथा जिज्ञासा उत्पन्न होना।
  2. दीपक की लौ को पकड़ना।
  3. दीपक की लौ से हाथ के जलने का अनुभव होते ही हाथ हटाना।
  4. भविष्य में जलती हुई वस्तु से स्वयं को बचाना।

इन चारों क्रियाओं को यदि हम एक ही स्वर में कहें तो यह कहेंगे कि बालक ने यह सीख लिया है कि जलती हुई वस्तु को हाथ लगाने से हाथ जल जाता है। अत: वह कभी भी जलती हुई वस्तु को नहीं पकड़ेगा।

अधिगम का अर्थ है सीखना अथवा व्यवहार परिवर्तन। बालक व्यवहार तो पहले भी करता था, परन्तु अब उसके व्यवहार में परिवर्तन यह हो गया कि उसे किस कार्य को करना है, कब और क्यों करना है ? यह सारा अनुभव उसने घटनाओं एवं अनुभव द्वारा प्राप्त किया है। परिभाषाएँ-

1. जे० पी० गिलफोर्ड – “व्यवहार के कारण, व्यवहार में परिवर्तन ही अधिगम है।”

2. उदय पारीक- “अधिगम वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा प्राणी, किसी परिस्थिति में प्रतिक्रिया के कारण, नये प्रकार के व्यवहार को ग्रहण करता है, जो किसी सीमा तक प्राणी के सामान्य व्यवहार को वाध्य एवं प्रभावित करता है।”

3. चार्ल्स ई० स्किंनर- “व्यवहार के अर्जन में उन्नति की प्रक्रिया को अधिगम कहते हैं।”

4. मेकगोयक- “अधिगम, व्यवहार में सापेक्षिक स्थायी परिवर्तन है, जो अभ्यास के परिणामस्वरूप होता है। यह परिवर्तन दिशा विशेष में होता है, जिससे व्यक्ति की विद्यमान प्रेरक अवस्थाओं की संतुष्टि होती है। “

5. गेट्स तथा अन्य- “प्रशिक्षण एवं अनुभव के द्वारा व्यवहार में होने वाले परिवर्तन को अधिगम कहते हैं।”

6. कॉलविन-“पहले से निर्मित व्यवहार में अनुभवों द्वारा हुए परिवर्तन को अधिगम कहते हैं।”

7. जी० डी० बॉज- “अधिगम एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति विभिन्न आदतें, ज्ञान एवं दृष्टिकोण, सामान्य जीवन की माँगों की पूर्ति के लिए अर्जित करता है।”

इन सभी परिभाषाओं को ध्यान से देखें सभी परिभाषाओं में कुछ तथ्यों की ओर संकेत दिया गया है। ये संकेत इस प्रकार हैं-

  1. अधिगम का अर्थ व्यवहार परिवर्तन है।
  2. अधिगम व्यवहार का संगठन है।
  3. अधिगम नवीन प्रक्रिया की पुष्टि है।

परन्तु वास्तविकता यह है कि व्यवहार परिवर्तन, व्यवहार संगठन तथा पुष्टिकरण में कोई भी एक कारण अधिगम के लिए पूरी तरह उत्तरदायी नहीं है। अधिगम का स्वरूप तभी निश्चित होता है, जबकि सभी क्रियायें पूर्णता को प्राप्त करती हैं। अतः हमारी राय में अधिगम की परिभाषा इस प्रकार होनी चाहिए।

“अधिगम मानव के मूलप्रवृत्यात्मक व्यवहार में संशोधन है, जिसका संचालन निश्चित आधार पर होता है और उसकी पुष्टि नवीन क्रियाओं के द्वारा होती है।”

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Anjali Yadav

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