अनुकरण का अर्थ तथा परिभाषा देते हुए अनुकरण के मुख्य प्रकारों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। अनुकरण का शिक्षा में क्या महत्व है ?
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अनुकरण का अर्थ तथा परिभाषा (Meaning and Definition of Imitation)
‘अनुकरण’ का सामान्य अर्थ है किसी कार्य या वस्तु की नकल करना। दैनिक जीवन में ‘अनुकरण’ एक सामान्य बात है; जैसे—दूसरों को दौड़ते देखकर दौड़ना, जिधर दूसरे देख रहे हैं, उसी ओर देखना। अभिप्राय यह है कि वे सभी कार्य, जो हम चेतन या अचेतन अवस्था में दूसरों के कार्यों के अनुरूप करते हैं, अनुकरण कहलाते हैं।
‘अनुकरण’ का अर्थ और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं –
1. मीड- “दूसरे व्यक्ति के कार्यों या व्यवहार को जान-बूझकर अपनाना अनुकरण है।”
“Imitation is self-conscious assumption of another’s acts or roles.” – George H. Mead. Quoted by K. Young.
2. मैक्डूगल–“एक व्यक्ति द्वारा दूसरों की क्रियाओं या शारीरिक गतिविधियों की नकल करने की प्रक्रिया को अनुकरण कहते हैं।”
“Imitation is applicable only to copying by an individual of the actions, the bodily movements of others.” – McDougall
3. रेबर्न— “अनुकरण दूसरे व्यक्ति के बाह्य व्यवहार की नकल है। “
“Imitation is the copying of the external behaviour of another individual.” – Reyburn
4. कैज एवं शैंक– “अनुकरण, प्रेरणा तथा प्रतिक्रिया के बीच वह सम्बन्ध है, जिसमें प्रतिक्रिया प्रेरणा उत्पन्न करती है या उससे मिलती-जुलती होती है। ”
5. हेज— “अनुकरण, सामाजिक सुझाव की उपजाति है। यह बाह्य क्रिया के लिए दिया गया एक विचार है जो प्राप्त करने के बाद क्रियान्वित किया जाता है। “
“Imitation is a subspecies of social suggestion. It is the case of a suggested idea of an overt action, which after being received is expressed in action.” – Hayes : Sociology.
इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि-
- अनुकरण स्वाभाविक प्रवृत्ति है।
- यह सभी प्राणियों में पाई जाती है।
- इसके द्वारा प्राणी अन्य कार्यों को सीखता है।
- दूसरे के व्यवहार, विचार, भाव, गति, कार्य एवं क्रियाओं को देखकर स्वयं ठीक उसी प्रकार नकल करने लगता है।
अनुकरण के प्रकार (Types of Imitation)
मैक्डूगल के अनुसार अनुकरण के निम्नलिखित 5 प्रकार हैं-
1. भाव-चालक अनुकरण (Ideo-Motor Imitation)- यह अनुकरण अपने स्वयं के भावों के कारण किया जाता है; जैसे—बालकों द्वारा शिक्षक के हास्यप्रद कार्य या व्यवहार का दोहराया जाना ।
2. प्रतिरूप अनुकरण (Image Imitation) – इस अनुकरण में ध्यान, क्रिया पर केन्द्रित न रहकर, उससे उत्पन्न होने वाले प्रभाव पर केन्द्रित रहता है; जैसे-बालक किसी व्यक्ति को आग में कागज जलाते हुए देखकर, स्वयं कागज जला कर उसका प्रभाव देखता है।
3. सहज अनुकरण (Sympathetic Imitation)- यह अनुकरण दूसरे व्यक्ति के भाव के कारण किया जाता है। और इसमें सहानुभूति का स्थान होता है, जैसे-एक बच्चे को मुस्कराता हुआ देखकर बच्चे का मुस्कराना, भीड़ में एक या अधिक व्यक्तियों को अनुचित कार्य करते हुए देखकर दूसरे व्यक्तियों द्वारा भी वैसा ही कार्य किया जाना।
4. शिशुओं का अनुकरण (Imitation of Infants) – यह बहुत छोटे बच्चों का अनुकरण है और किसी प्रकार की भावना व्यक्त नहीं करता है, जैसे किसी व्यक्ति को जीभ निकालते देखकर, बच्चे का अपनी जीभ निकालना। यह बिल्कुल शुद्ध प्रकार का अनुकरण है।
5. विचारपूर्ण अनुकरण (Deliberate Imitation) – यह अनुकरण जान-बूझकर किया जाता है; जैसे-किसी व्यक्ति को अपना आदर्श मानकर उसकी क्रियाओं का अनुकरण करना ।
जेम्स ड्रेवर ने दो प्रकार के अनुकरण बताये हैं-
1. सप्रयास अनुकरण (Deliberate Imitation) – इस प्रकार का अनुकरण जान-बूझ कर सप्रयास किया जाता है। व्यक्ति की इच्छा तथा रुचि इस प्रकार के अनुकरण का आवश्यक तत्व है।
2. अचेतन अनुकरण (Unconscious Imitation)- इस प्रकार के अनुकरण में विचार या तर्क निहित नहीं होता। अनुकरण करने वाला अचेतन या अनजाने ढंग से दूसरे के व्यवहार की नकल करने लगता है-आजकल युवक-युवतियों में मीडिया के नायक-नायिकाओं की वेशभूषा, बालों का स्टाइल, चाल-ढाल का अनुसरण अचेतन रूप से किया जाता है।
अनुकरण का शिक्षा में महत्व (Importance of Imitation in Education)
शिक्षा में अनुकरण का अत्यधिक महत्व है। यदि यह कहा जाये कि अनुकरण ही शिक्षा का आरम्भ है तो अत्युक्ति नहीं होगी। बालक विद्यालय (भाषा, खेल, बोलचाल, जीवन शैली, पढ़ना-लिखना आदि अनुकरण के माध्यम से ही सीखता है।
जेम्स के अनुसार- “अनुकरण और आविष्कार ही दो साधन हैं, जिनकी सहायता से मानव-जाति ने अपना ऐतिहासिक विकास किया है।”
“Imitation and invention are the two legs on which the human race has historically walked.” – James : Talks to Teachers
जेम्स के कथन से न केवल मानव जाति के लिए वरन् उसके अंग-चालक के लिए भी अनुकरण की उपयोगिता का परिचय मिलता है। वस्तुतः बालक की शिक्षा और विकास में अनुकरण के महत्व को सभी स्वीकार करते हैं। हम इस महत्व का दिग्दर्शन निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत करा रहे हैं-
1. नैतिकता की शिक्षा- रेबर्न (Reyburn) के अनुसार-“अनुकरण का नैतिक क्षेत्र में वही कार्य है, जो मानसिक क्षेत्र में है।” बालक अपने माता-पिता, शिक्षक आदि की नैतिक बातों को अनुकरण द्वारा सीखता है। अतः घर और विद्यालय का वातावरण ऐसा होना चाहिए, जिससे बालक को उत्तम नैतिक शिक्षा प्राप्त हो ।
2. सामाजिक व्यवहार की शिक्षा- फ्लीमिंग (Fleming) के अनुसार- बालक सामाजिक व्यवहार को अनुकरण द्वारा बहुत सरलता से सीख सकता है। अतः शिक्षक को विभिन्न सामाजिक क्रियाओं, पर्यटनों आदि की व्यवस्था करके बालक को इनमें भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिये, ताकि उसे अनुकरण द्वारा सामाजिक व्यवहार की शिक्षा मिल सके।
3. स्पर्द्धा उत्पन्न करने का साधन- बालक में अनुकरण करते समय दूसरे से आगे बढ़ने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है, जिसे ‘स्पर्द्धा’ कहते हैं। यदि बालक आगे नहीं बढ़ पाता है, तो उसमें ईर्ष्या उत्पन्न की जाती है। शिक्षक का कर्त्तव्य है-बालक में स्पर्द्धा को प्रोत्साहन देना और कार्य का दमन करना।
4. व्यक्तित्व निर्माण का साधन – अनुकरण व्यक्तित्व के निर्माण का महत्वपूर्ण साधन है। इस सम्बन्ध में नन (Nunn) के अनुसार “अनुकरण व्यक्तित्व के निर्माण का प्रथम चरण है। अनुकरण का क्षेत्र जितना ही अधिक उत्तम होगा उतना ही अधिक व्यक्तित्व का विकास होगा।”
5. कुशलता की प्राप्ति- डम्विल (Dumville) के अनुसार- “अनुकरण ही वह विधि है, जिसके द्वारा हम अनेक क्रियाओं में कुशलता प्राप्त करते हैं।” इस प्रकार की कुछ क्रियायें हैं-बोलना, खेलना, चित्र बनाना आदि। बालक इन क्रियाओं में दूसरे बालकों और शिक्षक का अनुकरण करके कुशलता प्राप्त करता है।
6. अच्छे आदर्शों की शिक्षा – डम्विल (Dumville) के अनुसार- “बालक, शिक्षकों के कार्यों, शारीरिक गतियों, वेश-भूषा, व्यवहार आदि का अनुकरण करके, अच्छी या बुरी बातें सीखता है। अतः शिक्षक को सब बातों के अच्छे आदर्श उपस्थित करके, बालक को अनुकरण द्वारा उनमें शिक्षा प्राप्त करने का अवसर देना चाहिए।”
7. मानसिक विकास का साधन – स्टाउट (Stout) के अनुसार- “मानसिक विकास के लिए अनुकरण की प्रक्रिया का बहुत ही अधिक महत्व है। “
बालक अनुकरण द्वारा ही अपने माता-पिता, शिक्षक, साथियों और समाज से अनेक बातें सीखकर, अपना मानसिक विकास करता है। अतः शिक्षक को विद्यालय में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करनी चाहिएँ, जिनसे बालक अनुकरण द्वारा अधिक से अधिक बातें सीखकर अपना मानसिक विकास कर सके।
8. आत्म-अभिव्यक्ति का साधन – रॉस (Ross) के अनुसार-“अनुकरण मौलिक आत्म-अभिव्यक्ति (Self-Expression) का साधन है।” रॉस का कथन है कि शिक्षक को विभिन्न पाठ्यक्रम-सहगामी क्रियाओं का आयोजन करके, बालक को आत्म अभिव्यक्ति का अवसर देना चाहिए। ऐसा करके वह बालक में निहित योग्यताओं का विकास कर सकता है।
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