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केन्द्रीयकरण से क्या आशय है? What is the meaning by Centralisation?
केन्द्रीयकरण का अर्थ (Meaning of Centralisation)
सामान्य भाषा में केन्द्रीयकरण का आशय मूल (केन्द्र) बिन्दु के पास सीमित होने से है अर्थात् जब किसी संस्था में अधिकारों का आरक्षण केन्द्रीय बिन्दु पर रखा जाता है तो इसे केन्द्रीयकरण कहते हैं। इस स्थिति में कार्य सम्बन्धी अधिकांश निर्णय उन लोगों द्वारा नहीं लिए जाते जो कि कार्य कर रहे हैं बल्कि उन उच्चाधिकारियों द्वारा लिये जाते हैं, जो उन कार्यों से अलग हैं। केन्द्रीयकरण की विभिन्न विद्वानों द्वारा भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी हैं जिनमें से मुख्य निम्न हैं-
लुईस ए० ऐलन के अनुसार, “किसी संगठन के केन्द्रीय बिन्दुओं पर व्यवस्थित एवं स्थायी ढंग से अधिकार के आरक्षण को ही केन्द्रीयकरण कहते हैं। “
हेनरी फेयोल के अनुसार, “वह प्रत्येक कार्य, जिससे अधीनस्थों की भूमिकाओं के महत्व में कमी आती है, केन्द्रीयकरण कहलाता है।”
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि केन्द्रीयकरण वह प्रवृत्ति है, जिसमें संस्था के कार्य संचालन सम्बन्धी सभी अधिकार केवल उत्तराधिकारी के पास होते हैं। यह प्रवृत्ति केवल ऐसे संस्थानों में अपनाई जाती है जहाँ अधिक गोपनीयता की आवश्यकता होती है।
केन्द्रीयकरण की विशेषताएँ (Characteristics of Centralisation)
केन्द्रीयकरण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- इसमें निर्णय लेने का अधिकार उच्च अधिकारियों के पास होता है।
- अधिकारों का प्रत्योजन नहीं किया जाता है।
- संगठन में निर्णयन में अधीनस्थों की भूमिका लगभग समाप्त हो जाती है।
- अधीनस्थ केवल उच्च प्रबन्धों द्वारा लिए गए निर्णयों को ही क्रियान्वित करते रहते हैं।
- कार्यस्थल तथा निर्णयस्थल में पर्याप्त दूरी होती है।
केन्द्रीयकरण के लाभ (Advantages of Centralisation)
केन्द्रीयकरण के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) व्यक्तिगत नेतृत्व का विकास – केन्द्रीयकरण का सबसे बड़ा लाभ यह है, कि यह व्यक्तिगत नेतृत्व को सुविधाजनक बनाता है। व्यवहार में यदि उपक्रम का आकार छोटा हो, तो केन्द्रीयकरण व्यक्तिगत नेतृत्व का विकास करता है, जिससे उपक्रम को नेतृत्व की कुशलता, अनुभव और प्रतिभा का पूरा लाभ मिलता है।
(2) क्रियाओं में एकरूपता – केन्द्रीयकरण में सभी व्यावसायिक क्रियाएँ एक ही व्यक्ति द्वारा सम्पन्न किये. जाने के कारण क्रियाओं में पूर्ण एकरूपता रहती है तथा निर्णयों में विभिन्नता के स्थान पर एकरूपता पायी जाती है।
(3) निर्णयों में शीघ्रता- केन्द्रीयकरण में निर्णय लेने का अधिकार केवल एक ही व्यक्ति होता है। अतः यह व्यवसाय की आवश्यकता के अनुसार तुरन्त निर्णय ले सकता है।
(4) एकीकरण को बढ़ावा- कार्य संचालन की सफलता के लिए व्यावसायिक क्रियाओं का एकीकरण होना परम आवश्यक है और केन्द्रीयकरण में यह कार्य सरलता से हो जाता है।
(5) दोहरी मेहनत से बचत – विकेन्द्रीयकरण में एक से ही कार्य हेतु अलग-अलग विभागों में अलग-अलग उपकरण क्रय करने होते हैं। इस प्रकार लिपिकों व मशीनों की दोहरी लागत बैठती है। केन्द्रीयकरण होने पर ऐसा नहीं होता है।
(6) कुशल पर्यवेक्षण- केन्द्रीयकरण में यद्यपि केन्द्रीय अधिकारी एक ही होता है, परन्तु उसकी स्थिति महत्वपूर्ण होती है। उसका पुनर्निरीक्षण प्रभावी होता है तथा उसके आदेशों का पालन तुरन्त होता है। इस प्रकार पर्यवेक्षकों पर अनावश्यक भार नहीं पड़ पाता है।
(7) संगठन पर सम्पूर्ण नियन्त्रण – कार्यालय का प्रायः समस्त कार्य एक ही छत के नीचे होता है तथा क्लकों का प्रत्यक्ष सम्बन्ध सर्वोच्च अधिकारी से होता है। अतः प्रभावी नियन्त्रण होता है तथा सभी कार्य अच्छी हैं प्रकार से जिम्मेदारी के साथ किये जाते हैं।
(8) लचीलापन – केन्द्रीयकरण से कार्यालय में अधिक लोच रहती है। आवश्यकता पड़ने पर तुरन्त जरूरी कार्य पर शीघ्र ध्यान दिया जाता है, जबकि अन्य कम जरूरी कार्यों को कुछ समय के लिए रोका जा सकता है ।
केन्द्रीयकरण की सीमाएँ (Limitations of Centralisation)
केन्द्रीयकरण की निम्नलिखित सीमाएँ हैं-
(1) उच्च प्रबन्धकों के भार में वृद्धि – केन्द्रीयकरण में सभी निर्णय व नीतियाँ उच्च प्रबन्ध के द्वारा लिए जाने के कारण उनके कार्यभार में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है और वह संस्था के विकास के लिए अधिक समय नहीं दे पाते।
(2) अधीनस्थों के उत्साह में कमी – केन्द्रीयकरण में निर्णय की असफलता के लिए अधीनस्थ जिम्मेदार नहीं होते। यही कारण है कि उनमें कार्य के प्रति उत्साह भी कम हो जाता है। वास्तव में अधीनस्थ केवल उच्च प्रबन्धकों के निर्णयों को क्रियान्वित करने का एक साधन रह जाते हैं, उनमें स्वयं निर्णय लेने की योग्यता व क्षमता नहीं होती है।
(3) विशिष्टीकरण का अभाव – केन्द्रीयकरण में निर्णय केवल कुछ उच्च स्तरीय प्रबन्धकों द्वारा लिए जाते हैं। अतः सभी निर्णय सही हों, यह सम्भव नहीं है क्योंकि एक तो वह सभी विषयों के विशेषज्ञ नहीं होते और दूसरे उनके पास समय का अभाव होता है अतः वह समस्या के सभी पहलुओं की बारीकी से जाँच नहीं कर पाते।
(4) कार्यवाही में देरी – केन्द्रीयकृत संगठन में कार्यवाही देर से की जाती है क्योंकि हर समस्या पहले उच्च स्तर के प्रबन्धक को समझायी जाती है। फिर उसके फैसले का इन्तजार करना पड़ता है। कार्यवाही के स्तर तक फैसला पहुँचने में भी काफी समय लग सकता है।
(5) व्यवसाय के विस्तार तथा प्रकार में रुकावट – केन्द्रीयकरण में उच्च प्रबन्धक पर कार्य का अधिक भार और अधीनस्थ कर्मचारियों की कार्य के प्रति उदासीनता, व्यवसाय के विस्तार तथा प्रचार के रास्ते में बड़ी रुकावट बन जाते हैं।
(6) टकराव की स्थिति – केन्द्रीयकरण में शीर्ष प्रबन्ध एवं विभागीय प्रबन्ध के बीच सदैव टकराव की स्थिति बनी रहती है। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि केन्द्रीयकरण तभी उपयुक्त रहता है, जब उपक्रम का आकार छोटा हो क्योंकि इसमें व्यक्तिगत निपुणता व नेतृत्व की अधिक आवश्यकता पड़ती है।
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