क्या ब्याज की दर शून्य हो सकती है ? (Can the Rate of Interest be Zero)
सैद्धान्तिक दृष्टि से यह सम्भव है कि कुछ दशाओं में ब्याज की दर शून्य या ऋणात्मक हो किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से सम्भव नहीं है; किन्तु निम्न स्थितियों में ब्याज की दर शून्य या ऋणात्मक होने की मात्र कल्पना की जा सकती है-
(1) यदि किसी समाज की कुल आय उपभोग पर व्यय कर दी जाती है और बचत तथा विनियोग कुछ भी नहीं किया जाता तो ब्याज की दर शून्य हो सकती है। किन्तु यह आज के बदले हुए परिवेश में सम्भव नहीं है।
(2) यदि किसी समाज या अर्थव्यवस्था में पूँजी की मात्रा इतनी अधिक हो कि पूँजी की सीमान्त उत्पादकता शून्य हो अर्थात् पूँजी के और अधिक विनियोग का क्षेत्र न हो तो उस समाज या अर्थव्यवस्था में ब्याज की दर शून्य हो सकती है। यद्यपि आर्थिक दृष्टि से उक्त देशों में पूँजी का अधिक मात्रा में संचय होने के कारण पूँजी की सीमान्त उत्पादकता काफी कम होती है परन्तु फिर भी वह शून्य नहीं हो पाती, अतः ब्याज की दर कभी शून्य नहीं हो सकती।
(3) ब्याज की दर ऋणात्मक उस समाज या अर्थव्यवस्था में होती है जहाँ अराजकता हो अर्थात् कानून तथा व्यवस्था की अनुपस्थिति होती है। ऐसे समाज में बचत को सुरक्षित रखने के लिए बचत करने वाला बचत को सुरक्षित रखने वाले को कुछ भुगतान करता है। इस भुगतान को ब्याज की ऋणात्मक दर कहा जाता है; परन्तु व्यवहार में ऐसी स्थिति नहीं आ सकती, अतः ब्याज की दर ऋणात्मक नहीं हो सकती ।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि ब्याज की दर शून्य हो सकती है, केवल एक कोरी कल्पना है। व्यावहारिक जगत में यह न तो सम्भव है और न ही इतिहास इस तथ्य की पुष्टि करता है। प्रत्येक अर्थव्यवस्था में कुछ प्रावैगिक तत्व जनसंख्या में वृद्धि, तकनीकी प्रगति तथा नये आविष्कार, प्राकृतिक प्रकोप आदि कार्य करते हैं। जिनके कारण पूँजी की सीमान्त उपयोगिता शून्य नहीं हो सकती और इसीलिए ब्याज की दर शून्य होने की कोई भी सम्भावना नहीं होती। प्रो० सेम्युलसन ने इसी बात की पुष्टि करते हुए लिखा है कि, “ब्याज की दर का विचार कुछ हद तक भौतिक विज्ञान के ‘निरपेक्ष शून्य तापभान’ की भाँति हैं, हम इसके निकट पहुँचने की कल्पना तो कर सकते हैं परन्तु हम वास्तविक रूप से शून्य ब्याज की अधिकतम सीमा तक कभी भी पहुँच नहीं पाते ।” इस प्रकार ब्याज एक ऐसा आधारभूत तत्व है जो आदर्श विश्व में भी समाप्त नहीं होगा।
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