निबन्धात्मक परीक्षा के गुण एवं दोष क्या हैं? इस पद्धति के सुधार हेतु सुझाव दीजिए।
निबन्धात्मक परीक्षा प्रणाली का अर्थ- निबन्धात्मक परीक्षा के अन्तर्गत कुछ प्रश्नों का उत्तर विस्तृत रूप से निर्धारित समय में देना पड़ता है। इस प्रकार की परीक्षा द्वारा मूल्यांकन करने में छात्रों को अभिव्यंजना शक्ति, सुलेख लिखने की शैली और भाषा आदि का पता चलता है। निबन्धात्मक परीक्षाओं में परीक्षार्थी को प्रत्येक प्रश्न का पूरा लेख निबन्ध-सा लिखना होता है। साधारणत: निबंधात्मक परीक्षाओं में चुने हुए प्रश्न सम्पूर्ण प्रश्न पूरे पाठ्यक्रम का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाते हैं। इसे प्रचलित ज्ञान प्रणाली भी कहते हैं। इसमें प्रायः उन्हीं विद्यार्थियों को अच्छे अंक प्राप्त होते हैं जिन्हें भाषा का अच्छा ज्ञान तथा लेख भी अच्छा हो ।
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निबन्धात्मक परीक्षा या प्रश्नों के गुण एवं उपयोगिता
इस परीक्षा प्रणाली (निबन्धात्मक) में अधोलिखित गुण/उपयोगिता या विशेषताएँ पाई जाती हैं-
- छात्रों को भाषा-शैली एवं सुन्दर लेखन कला का ज्ञान होता है।
- इस परीक्षा के द्वारा बालकों में निबन्ध-लेख शक्ति का विकास होता है।
- निबन्धात्मक परीक्षाओं से छात्र की उच्च मानसिक प्रक्रियाओं का मापन सम्भव है।
- इसमें सम्पूर्ण प्रश्न पूरे पाठ्यक्रम पर आधारित नहीं होते हैं।
- एक ही समय में अधिक व्यक्तियों की परीक्षा (सामूहिक परीक्षण) ली जा सकती है।
- मूल्यांकन पर सन्देह होने की दशा में उत्तरों का लिखित लेखा अथवा प्रमाण का दुबारा मूल्यांकन किया जा सकता है।
निबन्धात्मक परीक्षा या प्रश्नों के दोष एवं सीमाएँ
निबन्धात्मक परीक्षा प्रणाली में निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं-
- सम्पूर्ण पाठ्यक्रम से सम्बन्धित प्रश्नों का निर्माण नहीं किया जा सकता है अर्थात् व्यापकता का अभाव रहता है।
- इस प्रकार के प्रश्न में विश्वसनीयता नहीं होती है। केवल व्यक्तिनिष्ठ होती है तथा वैधता नहीं होती है। इसमें परीक्षक अपनी मनोदशा के अनुसार अंक देता है।
- छात्र-छात्राओं को तीन घण्टों में ही सभी प्रश्नों का उत्तर देना होता है। वे सब कुछ जानते हुए भी समयाभाव के कारण सफलता प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
- इसमें भाषा-ज्ञान को आवश्यकता से अधिक महत्त्व दिया जाता है
- परीक्षक सम्पूर्ण पाठ्यक्रम की ओर ध्यान न देकर केवल परीक्षा आने वाले सम्भावित प्रश्नों की ओर ही ध्यान देता है। अतः छात्रों को चयनित अध्ययन की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलता है।
- छात्र-छात्राएँ स्वयं ज्ञानार्जन करने के लिए प्रेरित नहीं होते हैं।
- अनुत्तीर्ण छात्र-छात्राएँ भावना ग्रन्थियों का शिकार हो जाते हैं।
- परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए विद्यार्थी द्वारा परीक्षा भवन में अनैतिक तथा अनुचित साधनों का प्रयोग करने की सम्भावना बनी रहती है।
निबन्धात्मक परीक्षा में सुधार सम्बन्धी सुझाव
निबन्धात्मक परीक्षाओं के दोषों को दूर करने के लिए तथा इनको उपयोगी बनाने की दृष्टि से निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं-
- अंकन करते समय परीक्षक व्यक्तिगत पक्षपात को अधिक अवसर न दें।
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न तथा बुद्धि परीक्षा द्वारा विद्यार्थियों में रटने की प्रवृत्ति को रोका जा सकता है जिससे उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव व मानसिक दोषों पर नियन्त्रण किया जा सकता है।
- चयनित प्रश्नों को ही प्रश्न-पत्र में स्थान न देकर सम्पूर्ण पाठ्यक्रम में से वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का निर्माण किया जाए।
- परीक्षा को शिक्षा साध्य न बनाया जाकर साधन रूप में ही उपयोग किया जाए।
- परीक्षक को कुछ उत्तर पुस्तिकाओं को पढ़कर अपना मापदण्ड निर्धारित करना चाहिए।
- प्रश्न छोटे-छोटे तथा स्पष्ट हों।
- प्रश्न-पत्र में प्रश्न पाठ्यक्रम आधारित अवश्य होना चाहिए।
- उत्तरों की जाँच तथा अंक प्रदान करने हेतु वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करना चाहिए।
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