कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

पूँजी तथा आय में अन्तर

पूँजी तथा आय में अन्तर
पूँजी तथा आय में अन्तर

पूँजी तथा आय में अन्तर

पूंजी तथा आय में प्रमुख अन्तर निम्नवत है-

(1) साधन या साध्य- पूँजी‘ उत्पादन का एक साधन (means) है जबकि ‘आय’ साध्य (end) है, अर्थात् पूंजी के प्रयोग से आय प्राप्त होती है।

(2) पूँजी का आय का केवल एक स्रोत होना-आय केवल पूंजी से ही प्राप्त नहीं होती बल्कि विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है, जैसे वेतनभोगी कर्मचारी पूंजी के बिना ही अपनी सेवाओं के प्रतिफल के रूप में आय प्राप्त करते हैं।

(3) आय व पूंजी का परस्पर सम्बन्ध-आय में से बचत करने से पूँजी प्राप्त होती है; अर्थात् आय का वह भाग पूँजी होता है जिसे बचाकर बाद में उत्पादन करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। इस प्रकार आय पूंजी का साधन है और पूजी आय का साधन है। संक्षेप में, आप तथा पूंजी दोनों एक-दूसरे के साधन है।

(4) स्टॉक व प्रवाह-पूँजी एक स्टॉक (stock) है जबकि आप एक प्रवाह (flow) है फिशर के शब्दों में, “पूंजी एक कोप है तथा आय एक प्रवाह है। पूंजी में धन शामिल है जबकि आय में लाभ 5 पोगू ने पूँजी की तुलना एक ऐसी झील या जलाशय से की है जिसमें निरन्तर अनेक वस्तुएँ (बचत का परिणाम) डाली जाती है। आप की तुलना इस झील या जलाशय से निकलने वाले प्रवाहों से की जा सकती है।

पूँजी तथा घन (Capital and Wealth)-अर्थशास्त्र में पूंजी तथा धन में अन्तर किया जाता है। धन का वह भाग से पूंजी होता है जिसका प्रयोग उत्पादन करने के लिए किया जाता है। इस दृष्टि से समस्त पूंजी धन होती है किन्तु समस्त धन पूंजी नहीं होता। (All capital is wealth but all wealth is not capital.) कोई घन पूंजी तभी होता है जबकि उसमें ये दो गुण पाए जाते हैं-(1) वह (धन) मनुष्यकृत हो तथा (ii) उसका प्रयोग और अधिक धनोत्पादन में किया जाए। इस दृष्टि से समस्त धन पूंजी नहीं है क्योंकि धन में तो प्रकृति के उपहार भी शामिल होते हैं, जबकि पूंजी के अन्तर्गत केवल मनुष्यकृत पदार्थ ही सम्मिलित किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, मनुष्यकृत वस्तुएँ भी तभी पूंजी कहलाती है जबकि उनका प्रयोग उत्पादन कार्य में किया जाता है। उदाहरणार्थ, किसी विद्यार्थी की साइकिल जिस पर बैठकर वह घर से स्कूल जाता है, पूंजी नहीं है। किन्तु किसी कारखाने की साइकिल पूंजी है। इसी प्रकार जब मकान का प्रयोग रहने के लिए किया जाता है तो वह धन या सम्पत्ति होता है। किन्तु जब मकान का प्रयोग कारखाने या कार्यालय के लिए किया जाता है तो वह पूंजी हो जाता है।

विभिन्न अर्थशास्त्रियों के मत-प्रो० फिशर (Fisher) तथा बेनहम (Benham) ने ‘पन’ तथा ‘पूंजी’ में कोई अन्तर नहीं माना है, वरन उन्होंने समस्त धन या सम्पत्ति को पूजी कहा है। इसके उन्होंने तीन कारण बताए है- (1) धन (सम्पत्ति) और पूंजी में अन्तर केवल मनोवैज्ञानिक है। (ii) मनुष्य के पास जितनी भी वस्तुएँ हैं उनका धनोत्पादन पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है। (III) विभिन्न वस्तुएँ मनुष्य को निरन्तर सेवा या तुष्टिगुण प्रदान करती है। इस मत के विपरीत, मार्शल (Marshall) तथा चेपमेन (Chapman) के अनुसार समस्त पूंजी तो धन है किन्तु समस्त धन पूजी नहीं है। पूंजी कहलाने के लिए धन में दो गुणों का होना आवश्यक है- (1) वह मनुष्यकृत हो । (ख) उसका उपयोग अधिक चनोत्पादन के लिए किया जाए। अर्थशास्त्र में मुख्य रूप से मार्शल तथा वैमन के कोही मान्यता प्राप्त है।

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Anjali Yadav

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