प्रमुख ग्रामीण विकास कार्यक्रमों का संक्षिप्त विवरण
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद नियोजन काल में ग्रामीण विकास तथा ग्रामीण जनता के कल्याण हेतु प्रारम्भ किए गए प्रमुख कार्यक्रम निम्नांकित है-
(1) सूखा प्रभावित क्षेत्र कार्यक्रम (DPAP)- सूखे की सम्भावना वाले चुने हुए क्षेत्रों में सूखा प्रभावित क्षेत्र कार्यक्रम (Drought Prone Area Programme) सन् 1973 से केन्द्र सरकार के ग्रामीण विकास मन्त्रालय द्वारा चलाया जा रहा है। इस राष्ट्रीय कार्यक्रम का उद्देश्य सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भूमि, जल एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों का अनुकूलतम विकास करके पर्यावरण सन्तुलन को बहाल करना है। वर्तमान में यह कार्यक्रम 16 राज्यों के 195 जिलों के 972 ब्लॉकों में चलाया जा रहा है। सन् 1995-96 से 2007-08 तक इस कार्यक्रम के अधीन स्वीकृत 27,439 परियोजनाओं के अन्तर्गत 137.20 लाख हेक्टेयर भूमि को सम्मिलित किया जा चुका है।
(2) मरुस्थल विकास कार्यक्रम (DDP) केन्द्र सरकार के ग्राम विकास मन्त्रालय द्वारा सन् 1977-78 से चुने हुए क्षेत्रों में ‘मरुस्थल विकास कार्यक्रम’ (Desert Development Programme) चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य मरुभूमि को बढ़ने से रोकना, मरुभूमि में सूखे के प्रभावों को समाप्त करना, प्रभावित क्षेत्रों में पारिस्थितिकीय सन्तुलन बहाल करना तथा इन क्षेत्रों में भूमि की उत्पादकता और जल संसाधनों को बढ़ाना है। कार्यक्रम में गर्म शुष्क क्षेत्रों के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश के ठण्डे मरुस्थलीय क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है। वर्तमान में यह कार्यक्रम 7 राज्यों के 4.58 लाख वर्ग किमी० क्षेत्रफल वाले 40 जिलों के 235 ब्लॉकों में चलाया जा रहा है। वर्ष 2007-08 तक इस कार्यक्रम के अन्तर्गत 78.73 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को शामिल किया जा चुका है।
एकीकृत कंजर भूमि विकास कार्यक्रम (IWDP)- यह कार्यक्रम केन्द्रीय ग्रामीण विकास मन्त्रालय द्वारा वर्ष 1989-90 में प्रारम्भ किया गया। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत सामान्यतः उन क्षेत्रों के लिए परियोजनाएँ स्वीकृत की जाती है जो मरुस्थल विकास कार्यक्रम तथा सूखा प्रभावित क्षेत्र कार्यक्रम के अन्तर्गत नहीं आते। 2009-10 तक इस कार्यक्रम के अन्तर्गत 1,877 परियोजनाओं के अधीन 107 लाख हेक्टेयर क्षेत्र सम्मिलित किया जा चुका था। वर्ष 2011-12 के बजट में इस कार्यक्रम के लिए 2,549 करोड़ ₹ की राशि आवंटित की गई।
जलसंभर विकास कार्यक्रम (WDP)–1 अप्रैल, 1995 से उपर्युक्त तीन कार्यक्रम (DPAP DDP व IWDP) जलसंभर विकास कार्यक्रम (Watershed Development Programme) के लिए तय किए गए साझा दिशा-निर्देशों के अन्तर्गत चलाए जा रहे हैं। भूमि संसाधन विभाग ने जलसंभर विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन हेतु पंचायती राज संस्थाओं को वित्तीय और प्रशासनिक दृष्टि से अधिकार सम्पन्न बनाने के उद्देश्य से 1 अप्रैल, 2003 से हरियाली नामक कार्यक्रम प्रारम्भ किया है।
(3) ग्रामीण विद्युतीकरण (Rural Electrification)-ग्रामीण विद्युतीकरण के अन्तर्गत बिजली आपूर्ति के लिए दो प्रकार के कार्यक्रम चलाए जाते हैं-(1) लघु सिंचाई व ग्रामीण उद्योग जैसी उत्पादन उन्मुख गतिविधियों के लिए बिजली आपूर्ति तथा (ii) ग्रामों का विद्युतीकरण ग्रामीण विद्युतीकरण के कार्यक्रम बिजली बोडों/राज्य के बिजली विभागों द्वारा तैयार तथा लागू किए जाते हैं। ग्रामीण विद्युतीकरण की परियोजनाओं के वित्तीयन हेतु जुलाई 1969 में ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (Rural Electrification Corporation) की स्थापना की गई है।
त्वरित ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत परियोजनाओं की निगरानी के लिए ग्रामीण विद्युत आपूर्ति टेक्नोलॉजी मिशन’ (Rural Electricity Supply Technology Mission) का गठन किया गया है। सन् 1999 में निगम ने व्यापक सुधार प्रणाली कार्यक्रम’ नामक परियोजना प्रारम्भ की।
सन् 1969 में निगम की स्थापना के समय देश के केवल 136 गाँव विद्युतीकृत थे। मार्च 2005 तक देश के कुल 5,87,258 गाँवों में से 4,98,877 का विद्युतीकरण किया जा चुका था।
राजीव गाँधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना- इस योजना का शुभारम्भ प्रधानमन्त्री ने 4 अप्रैल, 2005 को किया। इसके दो प्रमुख उद्देश्य हैं—(1) अगले पाँच वर्षों में देश के सभी गाँवों और वासस्थलों (habitations) का विद्युतीकरण करना तथा (ii) निर्धनता रेखा से नीचे (BPL) के परिवारों को निःशुल्क विद्युत कनैक्शन उपलब्ध कराना।
(4) त्वरित ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम- ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति की गति में तेजी लाने के लिए राज्यों तथा संघशासित प्रदेशों को सहायता पहुँचाने हेतु सरकार ने वर्ष 1972-73 में त्वरित ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम’ (Accelerated Rural Water Supply Programme) प्रारम्भ किया। इसका प्रमुख उद्देश्य ‘न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के अधीन राज्य सरकारों के प्रयासों में सहायता देकर ग्रामीण जनता को स्वच्छ तथा पर्याप्त पेयजल की सुविधाएँ प्रदान करना है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत अधिकाधिक वैज्ञानिक तथा तकनीकी जानकारी पहुँचाने के उद्देश्य समस्त कार्यक्रम को एक मिशन का रूप दिया गया। तदनुसार वर्ष 1986 में भारत सरकार ने ‘राष्ट्रीय पेयजल मिशन’ (National Drinking Water Mission) की स्थापना की।
राजीवगाँधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन- वर्ष 1991 में राष्ट्रीय पेयजल मिशन का नाम बदलकर ‘राजीव गाँधी पेयजल मिशन (Rajiv Gandhi National Drinking Water Mission) कर दिया गया। पाँच वर्षों में देश के सभी ग्राम निवासियों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अक्टूबर 1999 में ग्रामीण विकास मन्त्रालय के अन्तर्गत पेयजल जापूर्ति विभाग बनाया गया। भारत सरकार ने वर्ष 2000-01 से प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना के पाँच घटकों (शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, पेयजल व पोषाहार) में से ग्रामीण पेयजल घटक को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। वर्ष 2011-12 के बजट में इस कार्यक्रम (मिशन) के लिए 9,350 करोड़ ₹ का प्रावधान किया गया था।
स्वजलधारा कार्यक्रम- भारत सरकार ने ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम को संशोधित करके इसमें कुछ आधारभूत सिद्धान्तों का समावेश किया ताकि ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम में जनता की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। अब यह कार्यक्रम 25 दिसम्बर, 2002 से देश भर में ‘स्वजलधारा कार्यक्रम के नाम से चलाया जा रहा है। इसके लिए देश के 67 जिलों को चुना गया था। ग्राम पंचायतों के माध्यम से लागू किए जाने वाले इस कार्यक्रम के अन्तर्गत ग्रामवासियों को कुएँ व बावड़ी बनाने तथा हैण्डपम्प लगाने की सुविधा प्रदान की गई है। योजना लागत के केवल 10 प्रतिशत भाग को ही ग्रामवासियों को वहन करना होगा, शेष 90 प्रतिशत राशि की भरपाई केन्द्र सरकार द्वारा की जाएगी।
(5) रोजगार आश्वासन योजना- इय योजना को 2 अक्टूबर, 1993 से ग्रामीण क्षेत्रों के 1,778 विकास खण्डों में प्रारम्भ किया गया। बाद में इसे देश के सभी विकास खण्डों में लागू कर दिया गया। अब यह विकास खण्ड स्तर पर देश भर चलाये जाने वाला ‘मजदूरी रोजगार कार्यक्रम है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे रह रहे जरूरतमन्द प्रत्येक परिवार से अधिकतम दो युवकों को 100 दिनों तक का लाभप्रद रोजगार उपलब्ध कराना है। योजना का दूसरा उद्देश्य पर्याप्त रोजगार तथा विकास के लिए आर्थिक अघोरचना तथा सामुदायिक परिसम्पत्तियों का सृजन करना है। योजना का व्यय 75:25 के अनुपात में केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा वहन किया जाता है।
(6) प्रधानमंत्री रोजगार योजना- इस योजना को 2 अक्टूबर, 1993 से लागू किया गया। 1 अप्रैल, 1994 से इस योजना को ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में भी लागू कर दिया गया। इस योजना के अन्तर्गत आठवीं योजनावधि में उद्योग, व्यापार तथा सेवा क्षेत्र में 70 लाख लघुत्तर उथम (tiny units) स्थापित करके 18-35 आयु वर्ग के 10 लाख से अधिक शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार सहायता प्रदान करने का प्रावधान था उद्योग व सेवा क्षेत्र के लिए ऋण-सीमा 2 लाख रू० तथा व्यवयास के लिए यह सीमा 1 लाख ₹ निर्धारित की गई है। उद्यमियों को 1596 (अधिकतम 7,500 ₹) अनुदान भी देय है। 1 अप्रैल, 1994 से शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए स्वरोजगार योजना का इसमें विलय कर दिया गया 24 दिसम्बर, 1998 को केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने योजना के क्षेत्र का विस्तार करके इसमें बागवानी, मछली पालन, कुक्कुट व्यवसाय (poultry) आदि को शामिल कर लिया।
इस योजना के अन्तर्गत लगभग 20 लाख औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित की जा चुकी हैं जिससे 30.4 लाख अतिरिक्त रोजगार अवसर सृजित हुए हैं। दसवीं योजना में इस कार्यक्रम के अन्तर्गत 16.50 लाख अतिरिक्त रोजगार अवसर सृजित करने का लक्ष्य रखा गया था।
(7) स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY) यह योजना ग्रामीण गरीबों को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से एक समन्वित कार्यक्रम के रूप में 1 अप्रैल, 1999 से प्रारम्भ की गई। इस योजना में पहले से चल रहीं इन छः योजनाओं का विलय किया गया है—(1) समन्वित ग्राम विकास कार्यक्रम (IRDP), (ii) ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण (TRYSEM) (iii) ग्रामीण महिला एवं बालोत्थान योजना (DWCRA), (iv) उन्नत टूल किट योजना (SITRA), (v) दस लाख कूप योजना (MWS) तथा (vi) गंगा कल्याण योजना (GKY) ।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण गरीबों को संगठित करके, स्वयं सहायता समूहों (self-help groups) के निर्माण के माध्यम से उनकी क्षमता निर्माण, क्रियाशील समूहों का निर्माण, अवस्थापन निर्माण, तकनीकी ज्ञान, ऋण व्यवस्था तथा बाजार व्यवस्था को विकसित करना है। योजना का प्रमुख ध्येय सहायता प्राप्त गरीब परिवारों को बैंक ऋण एवं सरकारी सब्सिडी के माध्यम से स्व-सहायता समूहों में संगठित करके प्रत्येक परिवार को 3 वर्ष की अविध में गरीबी रेखा से ऊपर उठाना है। यह एक ॠण एवं सब्सिडी कार्यक्रम है जिसमें ऋण प्रमुख तत्त्व होगा जबकि सब्सिडी केवल समर्थनकारी तत्त्व होगा कम से कम 50% अनुसूचित जाति/जनजाति, 40% महिलाओं तथा 30% विकलांगों को योजना का लक्ष्य बनाया गया है।
इस कार्यक्रम के तहत् प्रारम्भ से मार्च 2010 तक 36.78 लाख स्वरोजगार समूह (SHG) गठित किए जा चुके थे और 120.89 लाख स्वरोजगारियों को 27,183 करोड़ ₹ के कुल परिव्यय से सहायता प्रदान की गई थी।
(8) समग्र आवास योजना- यह योजना 1 अप्रैल, 1999 से शुरू की गई। यह एक व्यापक आवास योजना है जिसका उद्देश्य आवास, स्वच्छता एवं पेयजल की समग्र व्यवस्था करना है। इसका ध्येय ग्रामीण क्षेत्रों के सम्पूर्ण पर्यावरण के साथ-साथ लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना है। इसके अन्तर्गत ग्रामीण गरीबों, विशेषकर जो गरीबी रेखा से नीचे हैं, को लाभान्वित करने का प्रावधान किया गया है। प्रथम चरण में इस योजना को 24 राज्यों के 25 जिलों के प्रत्येक विकास खण्ड तथा एक केन्द्रशासित प्रदेश में लागू किया गया है।
(9) अन्नपूर्णा योजना– यह योजना 100 प्रतिशत केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप में ग्रामीण विकास मन्त्रालय द्वारा 1 अप्रैल, 2000 से प्रारम्भ की गई। इसका उद्देश्य निर्धन एवं बेसहारा वरिष्ठ नागरिकों को निःशुल्क खाधान्न उपलब्ध कराना है। इसे मूलतः निर्धनता-रेखा से नीचे के ऐसे वरिष्ठ नागरिकों के लिए प्रारम्भ किया गया जो राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन के पात्र थे किन्तु किन्हीं कारणों से पेंशन प्राप्त नहीं कर पा रहे थे। योजना के तहत वरिष्ठ नागरिकों की प्रति माह 10 किलोग्राम खाधान्न निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता है।
14 जनवरी, 2001 को योजना का विस्तार करके राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन पा रहे लोगों को भी इसमें शामिल कर लिया गया। वर्ष 2002-03 में इस योजना को राज्य योजना के अन्तर्गत हस्तान्तरित कर दिया गया।
(10) प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना (PMGY)-ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल, आवास तथा सड़क निर्माण के क्षेत्रों में किए जा रहे प्रयासों में तेजी लाने के उद्देश्य से वर्ष 2000-01 में सभी राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों में प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना प्रारम्भ की गई। इस योजना के अन्तर्गत निम्नलिखित कार्यक्रम प्रारम्भ किए गए हैं-
(i) प्रधानमन्त्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY)-शत-प्रतिशत केन्द्र द्वारा प्रायोजित प्रधानमन्त्री ग्राम सड़क योजना को 25 दिसम्बर, 2000 को प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना’ के घटक के रूप में प्रारम्भ किया गया। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में सड़क-सम्पर्क से चचित गाँवों को बारहमासी सड़कों से इस प्रकार जोड़ना है ताकि 500 या इससे अधिक आबादी वाले गाँव दसवीं योजना के अन्त (2007) तक बारहमासी सड़कों से जुड़ जाएँ। पहाड़ी राज्यों तथा रेगिस्तानी व जनजातीय क्षेत्रों में 250 या इससे अधिक आबादी वाले गांवों को सड़कों से जोड़ने का लक्ष्य है।
वर्ष 2005 में किए गए आंकलन के अनुसार देश में 1.72 लाख बस्तियों ऐसी थीं जिन्हें इस योजना के अन्तर्गत बारहमासी सड़कों से जोड़ा जाना था। इसके लिए कुल 3,68,500 किमी० लम्बी सड़कों का निर्माण किया जाएगा। इस योजना पर कुल 1,30,000 करोड़ र व्यय होने का अनुमान है।
इस योजना के अन्तर्गत मार्च 2009 तक कुल 46,807 करोड+ ₹ के व्यय से लगभग 2,14,281 किलोमीटर लम्बाई का सड़क निर्माण कार्य पूरा हो चुका था। वर्ष 2011-12 के बजट में इस योजना के लिए 20,000 करोड़ ₹ आवंटित किए गए थे।
(ii) प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना (ग्रामीण आवास)- प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना के एक घटक के रूप में ग्रामीण आवास योजना लागू की गई है। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के आवासों की कमी को दूर करना तथा इन क्षेत्रों के पर्यावरण के स्वस्य विकास में सहायता देना है। इसके लिए योजना में राज्यों एवं केन्द्र ज्ञासित प्रदेशों को अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता आवंटित करने का प्रावधान है। यह योजना इन्दिरा आवास योजना के पैटर्न पर चलाई जा रही है।
(iii) पेयजल आपूर्ति परियोजना- इस कार्यक्रम के अंतर्गत कुल आवाटत धनराशि का कम से कम 25% भाग सम्बन्धित राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा मरु विकास कार्यक्रम/सूखा सम्भावित क्षेत्र कार्यक्रम के अन्तर्गत ऐसे क्षेत्रों में जल संरक्षण, जल प्रबन्धन, जल भराई तथा पेयजल संसाधनों को बनाए रखने के सम्बन्ध में प्रयोग में लाया जाता है।
(11) अन्त्योदय अन्न योजना- 25 दिसम्बर, 2000 को तत्कालीन प्रधानमन्त्री द्वारा प्रारम्भ की गई इस योजना का उद्देश्य एक करोड़ निर्धनतम परिवारों को प्रति माह 25 किग्रा (31 मार्च, 2003 से बढ़ाकर 35 किग्रा) अनाज विशेष रिवायती मूल्य पर उपलब्ध कराना है। इस योजना के तहत जारी किए जाने वाले गेहूं व चावल का केन्द्रीय निर्गम मूल्य क्रमशः 2₹ तथा 3₹ प्रति किलोग्राम है। गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले 50 लाख अतिरिक्त परिवारों को इस योजना में शामिल करने के लिए योजना का विस्तार किया गया है।
(12) कृषि श्रमिक सामाजिक सुरक्षा योजना- यह योजना जीवन बीमा निगम द्वारा 1 जुलाई, 2001 से प्रारम्भ की गई। इसमें जीवन बीमा सुरक्षा, सावधिक एकमुश्त जीवन लाभ तथा कृषि श्रमिकों को पेंशन लाभ दिया जाता है। इस योजना में 15 से 18 वर्ष आयु तक के व्यक्ति शामिल हो सकते हैं। यह एक समूह बीमा योजना है तथा प्रारम्भ में समूह की न्यूनतम संख्या 20 होनी चाहिए। प्रत्येक सदस्य की प्रति वर्ष 365 ₹ के प्रीमियम का भुगतान करना होता है।
इस योजना के तहत 60 वर्ष से पहले स्वाभाविक मृत्यु पर 20,000₹ दिए जाते हैं। दुर्घटना के कारण मृत्यु पूर्ण स्थाई विकलांगता पर 50,000₹ दिए जाते हैं जबकि आशिक विकलांगता की स्थिति में 25,000₹ मिलते हैं। इसके अतिरिक्त, योजना में शामिल होने के प्रत्येक 10 वर्ष के बाद सदस्य की एकमुश्त उत्तरजीविता लाभ का भुगतान किया जाता है। 60 वर्ष की उम्र के बाद सदस्य को पेंशन दी जाती है।
(13) महिला स्वयं सिद्ध योजना- महिला सशक्तिकरण वर्ष 2001 में केन्द्र सरकार द्वारा 12 जुलाई, 2001 को ‘महिला स्वयं सिद्ध योजना प्रारम्भ करने की घोषणा की गई। इसे इन्दिरा महिला योजना तथा महिला समृद्धि योजना के स्थान पर शुरू किया गया है। यह महिलाओं के विकास और सशक्तिकरण की समन्वित योजना है। इस योजना का उद्देश्य महिलाओं को स्वरोजगार के माध्यम से आर्थिक स्वावलम्बन प्रदान करके उनका आर्थिक सामाजिक सशक्तिकरण करना है। योजना का दीर्घकालीन उद्देश्य महिलाओं का चहुंमुखी विकास करना है। योजना को महिलाओं के ‘स्वयं सहायता समूह’ के गठन के माध्यम से संचालित किया जाता है तथा इसमें जन्म ऋण उपलब्ध कराने और बहुत छोटे उपक्रमों को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाता है। अनुमान है इस योजना के अन्तर्गत 9.30 लाख महिलाओं को लाभान्वित किया जा सकेगा। प्रथम चरण में इस योजना को देश के 650 विकास खण्डों में 116 करोड़ ₹ के व्यय से संचालित करने का निर्णय लिया गया। ब्लाकों में 59,940 स्वयं सहायता समूह गठित किए गए।
(14) राष्ट्रीय पोषाहार मिशन योजना- भारतीय खाद्य निगम द्वारा संचालित इस योजना को 15 अगस्त, 2001 से प्रारम्भ किया गया। इस योजना का उद्देश्य गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों, गर्भवती महिलाओं, घात्री माताओं व किशोरियों को सस्ती दर पर अनाज उपलब्ध कराना है।
(15) सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (SGRY)- रोजगार आश्वासन योजना (EAS) और जवाहर ग्राग समृद्धि योजना (JGSY) को मिलाकर 25 सितम्बर, 2001 को प्रधानमन्त्री द्वारा फरह (जिला मथुरा) से सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना प्रारम्भ की गई। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर वर्गों को रोजगार के अतिरिक्त एवं सुनिश्चित अवसरों के साथ-साथ खायान्न उपलब्ध कराकर खाद्य सुरक्षा प्रदान करना है। योजना का स्वीकृत वार्षिक परिव्यय 10,000 करोड़ ₹ है जिसमें 50 लाख टन अनाज शामिल है। खर्च की जाने वाली धनराशि केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा 75:25 के अनुपात में वहन की जाती है।
यह कार्यक्रम पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तरों पर कार्यान्वित किया जाता है। जिला पंचायत, मध्यवर्ती पंचायत और ग्राम पंचायतों के मध्य संसाधनों का वितरण 20:30:50 के अनुपात में किया जाता है। योजना में 100 करोड़ मानव दिवस रोजगार के सृजन का लक्ष्य रखा गया है। लाभार्थियों को न्यूनतम 5 किलो अनाज और कम से कम 25% मजदूरी नकद दी जाती है।
(16) प्रधानमन्त्री ग्रामीण जल संबदन योजना- प्रधानमन्त्री द्वारा 15 अगस्त, 2002 को घोषित इस योजना का प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित कराना है। योजना के प्रथम कार्यक्रम के अन्तर्गत अभावग्रस्त ग्रामीण क्षेत्रों में एक लाख हैण्डपम्प स्थापित किए जायेंगे। दूसरे कार्यक्रम के तहत एक लाख ग्रामीण प्राथमिक विद्यालयों में पेयजल की व्यवस्था की जाएगी। तीसरे कार्यक्रम के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में पारम्परिक पेयजल स्रोतों का जीर्णोद्धार किया जाएगा।
(17) हरियाली परियोजना- केन्द्र सरकार की 2,000 करोड़ की लागत वाली बहुआयामी हरियाली परियोजना का शुभारम्भ प्रधानमन्त्री ने 27 जनवरी, 2003 को किया इस परियोजना के प्रमुख उद्देश्य है- (i) जल संग्रहण योजनाओं का क्रियान्वयन, (ii) वर्षा के जल का संचयन, (iii) पेयजल समस्या का निवारण, (iv) सिंचाई हेतु जल व्यवस्था (v) वृक्षारोपण तथा मत्स्यपालन को प्रोत्साहन इस परियोजना को देश की 2.32 लाख पंचायतों के माध्यम से संचालित किया जाएगा जल संरक्षण के अतिरिक्त और भी अनेक कार्यक्रम इस परियोजना के अन्तर्गत सम्पन्न किए जायेंगे 100 वृक्ष लगाने वाले व्यक्ति को बनरक्षक के रूप में नियुक्त किया जाएगा।
एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम, सूखा प्रभावित क्षेत्र कार्यक्रम और मरुभूमि विकास कार्यक्रम नाम से चल रहे विकास कार्यक्रमों को 1 अप्रैल, 2003 से हरियाली परियोजना से सम्बन्धित दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्यान्वित किया जाएगा।
(18) काम के बदले अनाज का राष्ट्रीय कार्यक्रम- इस कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रधानमन्त्री ने 14 नवम्बर, 2004 को आन्ध्र प्रदेश में रंगारेही जिले के गाँव अलूर में किया। कार्यक्रम को प्रारम्भ में देश के 150 चुनिंदा सर्वाधिक पिछड़े जिलों में लागू किया जाना है। कार्यक्रम के तहत जल संरक्षण, सूखे से सुरक्षा सिंचाई साधनों के विकास तथा फालतू भूमि के विकास सम्बन्धी कार्य कराए जायेंगे। मजदूरी के न्यूनतम 25% भाग का भुगतान नकद किया जाएगा जबकि शेष मजदूरी अनाज के रूप में अदा की जाएगी। पुरुष व महिला कर्मियों के लिए मजदूरी की दर समान होगी। इस योजना के अन्तर्गत देश के प्रत्येक परिवार में एक सक्षम व्यक्ति को 100 दिनों के लिए न्यूनतम मजदूरी पर रोजगार देने का प्रावधान है।
यह शत-प्रतिशत केन्द्र प्रायोजित कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम को अब राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना में समन्वित कर दिया गया है।
(19) भारत निर्माण कार्यक्रम- गाँवों में आधारभूत सुविधाओं के विकास हेतु केन्द्र सरकार के महत्वाकांक्षी ‘भारत निर्माण कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रधानमन्त्री ने 16 दिसम्बर, 2005 को नई दिल्ली में किया इस 1,74,000 करोड़ ₹ की परियोजना के तहत देश के ग्रामीण आधारिक संरचना (rural economic infrastructure) के छह प्रमुख क्षेत्रों (सिंचाई, जलापूर्ति, आवास, सड़क, ग्रामीण संचार एवं विद्युतीकरण) में निर्धारित लक्ष्यों को चार वर्षों में पूरा किया जाएगा।
कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं–(I) एक हजार से अधिक जनसंख्या वाले प्रत्येक गाँव को बारहमासी सड़कों से जोड़ना, (ii) प्रत्येक आवासीय बस्ती के लिए जलापूर्ति निश्चित करना, (iii) सितम्बर 2007 तक सभी गांवों में टेलीफोन की सुविधा उपलब्ध कराना, (iv) वर्ष 2009 तक सभी गाँवों के विद्युतीकरण करने का प्रयास करना, (v) ग्रामीण आवास की समस्या के समाधान हेतु 60 लाख आवासीय इकाइयों का निर्माण करना, (vi) एक करोड़ हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि को सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध कराना। कार्यक्रम के कार्यान्वयन में पंचायतों व निजी क्षेत्र की भागीदारी होगी तथा राज्य सरकारों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस कार्यक्रम की सफलता के लिए विशाल बजटीय सहायता आवंटित करने का निश्चय किया गया है।
(20) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना- केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी ‘राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना’ का प्रारम्भ प्रधानमन्त्री ने 2 फरवरी, 2006 को प्रदेश के अनन्तपुर जिले से किया। पहले चरण में देश के 27 राज्यों के 200 चुनिंदा जिलों में इस योजना का कार्यान्वयन किया गया। इसमें सर्वाधिक 23 जिले बिहार के थे जबकि उत्तर प्रदेश के 22, झारखण्ड के 20, मध्य प्रदेश के 18 तथा छत्तीसगढ़ के 11 जिलों को चयनित किया गया है। चयनित 200 जिलों में वह 150 जिले शामिल थे जहाँ काम के बदले अनाज कार्यक्रम पहले से चल रहा था। काम के बदले अनाज कार्यक्रम तथा सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना का इस योजना में विलय कर दिया गया है। इस योजना की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित है-
(1) इस योजना के तहत् चयनित जिलों में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार के एक वयस्क सदस्य को वर्ष में कम से कम 100 दिन अकुशल श्रम वाले रोजगार की गारन्टी दी गई है।
(II) राज्यों में कृषि-श्रमिकों के लिए लागू वैधानिक न्यूनतम मजदूरी का भुगतान किया जाएगा।
(III) योजना के अन्तर्गत 33% लाम भोगी महिलाएँ होंगी।
(iv) रोजगार के इच्छुक एवं पात्र व्यक्ति द्वारा पंजीकरण कराने के 15 दिन के अन्दर रोजगार न दिए जाने पर निर्धारित दर से बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा।
(v) यह एक योजना मात्र नहीं है वरन एक कानून है जो रोजगार की वैधानिक गारन्टी प्रदान करता है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी अधिनियम, 2005′ (National Rural Employment Guarantee Act NREGA) नाम का कानून संसद ने वर्ष 2005 में पारित किया था।
(vi) 1 अप्रैल, 2008 से इस योजना को समस्त देश में लागू कर दिया गया है।
वर्ष 2007-08 में यह योजना देश के 330 जिलों में चल रही थी। इसके लिए 2009-10 के बजट में 39,100 करोड़ ₹ का प्रावधान किया गया था, जबकि वर्ष 2010-11 के बजट में इसके लिए 40,100 करोड़ ₹ की राशि आवंटित की गई है।
(21) प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम- यह कार्यक्रम केन्द्र सरकार ने 15 अगस्त, 2008 से प्रारंभ किया है। इसका उद्देश्य स्वरोजगार के अधिकारिक अवसर सृजित करना है। पूर्व में संचालित दो रोजगार कार्यक्रमों- प्रधानमंत्री की रोजगार योजना तथा ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम- का इस नए कार्यक्रम में वित्तय कर दिया गया है।
सब्सिडी युक्त साख वाले इस कार्यक्रम के अन्तर्गत ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में माइक्रो एन्टरप्राइजेज की स्थापना द्वारा रोजगार के नए अवसर सृजित किए जायेंगे। माइक्रो एन्टरप्राइजेज स्थापित करने के लिए लाभार्थी को ऋण उपलब्ध कराए जायेंगे जिनमें कुछ अंश सब्सिडी का होगा। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत 2008-09 से 2011-12 तक रोजगार के 37 लाख अतिरिक्त अवसर उपलब्ध कराए जायेंगे 2010-11 के बजट में इस कार्यक्रम के लिए 906 करोड़ ₹ आवंटित किए गए।
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