राजनीति विज्ञान / Political Science

ब्रिटिश काल में हुए प्रशासनिक सेवा में सुधार एवं परिवर्तन

ब्रिटिश काल में हुए प्रशासनिक सेवा में सुधार एवं परिवर्तन
ब्रिटिश काल में हुए प्रशासनिक सेवा में सुधार एवं परिवर्तन

ब्रिटिश कालीन भारत में प्रशासनिक सेवा में हुए सुधारों एवं परिवर्तनों का मूल्यांकन कीजिए।

ब्रिटिश काल में हुए प्रशासनिक सेवा में सुधार एवं परिवर्तन

भारत में प्रशासनिक सेवाओं का विकास ब्रिटिश शासन की महत्वपूर्ण देन है। इस दिशा में लार्ड क्लाइव, वारेन हेस्टिंग, कार्नवालिस तथा बैटिक के प्रयास सराहनीय रहें इस दिशा में महत्वपूर्ण सुधारों की शुरूआत लॉर्ड क्लाइव ने की थी। परन्तु क्लाइव के सुधारों के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ। इसे ठीक करने के लिए कार्नवालिस (1785-93) ने भारत का प्रशासकीय सेवा में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन किये। आगे चलकर लॉर्ड बैलेजली ने अपने प्रशासकों का बड़ी सावधानी से चयन कर उन्हें फोर्ट विलियम कॉलेज में प्रशिक्षण हेतु भेजा। प्रशिक्षण के लिए 1813 में इंग्लैण्ड में हेलिबरी में एक कॉलेज की स्थापना की गयी। 1833 में संसद द्वारा कम्पनी को स्वीकृत किये गये चार्टर में यह व्यवस्था की गयी कि इसके सभी कर्मचारियों की भर्ती समस्त व्यक्तियों के लिए समान रूप से खुली प्रतियोगिता पद्धति के आधार पर की जायेगी। भारतीय लोक-सेवाओं के इतिहास में 1854 में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है जगक लॉर्ड मेकॉले की अध्यक्षता में एक समिति का गठन हुआ। इस समिति ने आई. सी. एस. के लिए जो सिफारिशें की थी वे न्यूनाधिक रूप में आज भी भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के गठन और कार्यप्रणाली की आधाशिला है। 1858 में कम्पनी के शासन के स्थान पर ब्रिटिश क्राउन की सरकार की स्थापना हुई। 1886 में लॉर्ड डफरिन ने इस विषय पर विचार करने के लिए चार्ल्स एचिसन की अध्यक्षता में एक आयोग स्थापित किया। आयोग ने सुझाव दिया कि कवेनेण्टेड तथा अकवेनेण्टेड सेवाओं के अन्तर को समाप्त कर इनके स्थान पर सामान्य सेवा को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाय भारतीय नागरिक सेवा, प्रान्तीय सेवा और अधीनस्थ सेवा ।

लोक-सेवाओं के प्रश्न पर विचार करने के लिए 1912 में लॉर्ड इस्लिंग्टन की अध्यक्षता में, एक आयोग स्थापित किया गया। 191.7. में प्रकाशित इसके प्रतिवेदन में भारत और इंग्लैण्ड में एक साथ परीक्षाएँ आयोजित करने, एक-चौथाई पद भारतीयों के लिए सुरक्षित रखने तथा नियुक्ति औन पदोन्नति दोनों से पदों को भरने की बात कही गयी थी। 1918 में भारतीय शासन से सुधारों के लिए मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड रिपोर्ट तैयार की गयी। इसमें लोक-सेवा के सम्बन्ध मे तीन महत्त्वपूर्ण सिफारिशे की गयी। (1) लोक-सेवा की परीक्षा इंग्लैण्ड और भारत में एक साथ ली जाये, (2) भारतीय लोक-सेवा में भारतीयों की संख्या बढ़ाने के लिए प्रारम्भ में वरिष्ठ पदों में से एक-तिहाई पदों के लिए भर्ती भारत में की जाये, (3) आई. सी. एस. के अधिकारियों के वेतनमान, निवृत्ति, वेतन और समुद्रपार के भत्तों में वृद्धि की जाये। 1919 के भारत शासन अधिनियम में इन सिफारिशों को लागू किया गया। इस समय तक सेवा में साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त की भी स्वीकार कर लिया गया। अधिनियम के अन्तर्गत प्रदत्त आंशिक उत्तरदायी सरकार के अनुरूप ये सेवाएँ अपने को नहीं बना सकी थीं । प्रान्तीय तथा केन्द्रीय विधानमण्डलों में इन सेवाओं के विभिन्न सदस्यों की व्यक्तिगत रूप से की जाने वाले आलोचना, प्रान्तों में भारतीय मन्त्रियों के अधीन काम करने की कलंकपूर्ण स्थिति तथा अधिकारियों और उनके परिवारों को असुविधा में डालने वाला 1920 का असहयोग आन्दोलन प्रथम विश्व युद्ध के कारण मूल्यों में वृद्धि हो जाने से उनके वेतन की अपर्याप्तता आदि कारणों ने इन सेवाओं में भाग लेने के प्रति यूरोपीय सदस्यों को हतोत्साहित किया इस बीच इन सेवाओं के भारतीयकरण की माँग कभी बढ़ गयी थी और उसे अधिक समय तक टालना सम्भव नहीं था। ऐसी परिस्थितियों में भारत में एक उच्च लोक-सेवा विषयक शाही आयोग की नियुक्ति की गयी। इसके अध्यक्ष लॉर्ड ली थे। आयोग ने सिफारिश की कि लोक-सेवा की स्थापना शीर्घ की जाये। फलस्वरूप लोक सेवा आयोग की स्थापना भारत में 1926 में की गई।

1935 के भारत सरकार अधिनियम द्वारा इन सेवाओं में कुछ परिवर्तन किये गये। लोक सेवा आयोग की नयी शक्ति पर आधारित चिकित्सा सेवाओं के अतिरिक्त अन्य सभी सेवाओं को भारत-मंत्री के अधिकार क्षेत्र से निकाल दिया गया और इन पर गवर्नर-जनरल और गवर्नरों का नियन्त्रण स्थापित किया गया।

स्वतंत्रतता के समय भारत की लोक-सेवाएँ बहुत अच्छी और सुविधापूर्ण स्थिति में थी। आई. सी. एस. के स्थान पर नवीन अखिल भारतीय सेवाएँ, यथा – आई. ए. एस. और आई. पी. एस. की स्थापना की गयी। स्वतन्त्रता के बाद रिक्त पदों की पूर्ति के लिए विशेष भर्ती की व्यवस्था की गर्दी 1951 में भारतीय वन सेवा की स्थापना की गयी। 1950 और 1960 का दशक भारत में लोक सेवाओं के दृष्टिकोण से उल्लेखनीय रहे।

1952 में गोरवाला और 1954 में ऐपल्बी ने भारतीय लोक-सेवा के सन्दर्भ में अपना प्रतिवेदन सरकार को दिया। 1955 में दिल्ली में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की स्थापना की गयी। 1966 में प्रशासनिक सुधार आयोग ने लोक-सेवा से सुधार हेतु सुझाव प्रस्तुत किये। यह आयोग मोरार जी देशाई के अधीन गठित हुआ था।

Important Link

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment