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भारतीय राष्ट्रपति की शक्तियाँ या अधिकार | Powers or authority of the President of India in Hindi

भारतीय राष्ट्रपति की शक्तियाँ या अधिकार | Powers or authority of the President of India in Hindi
भारतीय राष्ट्रपति की शक्तियाँ या अधिकार | Powers or authority of the President of India in Hindi

भारतीय राष्ट्रपति की शक्तियों का वर्णन कीजिए।

भारतीय राष्ट्रपति की शक्तियाँ या अधिकार

भारतीय संविधान द्वारा राष्ट्रपति को अनेक शक्तियाँ या अधिकार प्राप्त है। उन्हें निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत अध्ययन किया जा सकता है-

(अ) सामान्य कालीन शक्तियाँ (Powers in Normal Times) – संविधान द्वारा सामान्य काल में राष्ट्रपति को जो शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं, वे निम्नलिखित हैं-

1. कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियाँ (Executive Powers) – संघ की सर्वोच्च कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है। इन शक्तियों का प्रयोग वह स्वयं या अपने अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा कर सकता है। उसकी शक्तियों में निम्नलिखित तत्व सम्मिलित हैं-

(i) शासन का समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से – संघीय सरकार के सभी कार्यपालिका कार्य राष्ट्रपति के नाम से किये जाते हैं। उसे संघीय शासन से सम्बन्धित सभी मामलों में सूचना पाने का अधिकार हैं। संविधान के 42 वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 74 में जोड़ा गया कि संघीय मंत्रिमंडल, जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं, राष्ट्रपति को उसकी कार्यपालिका शक्तियों के उपयोग में लाने के लिये परामर्श एवं सहायता देता है।

(ii) महत्वपूर्ण अधिकारियों की नियुक्ति व पदच्युति- राष्ट्रपति अनेक महत्त्वपूर्ण नियुक्तियाँ, जैसे- प्रधानमंत्री उसकी सलाह से अन्य मंत्री, संघीय एटॉनी जनरल, नियंत्रक एवं महालेखा- परीक्षक, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों तथा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति करता है।

राष्ट्रपति को मंत्रियों, राज्यपालों, महान्यायवादी, सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों एवम् लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों को पदच्युत करने का अधिकार है। लेकिन इनमें से कुछ अधिकारियों को पदच्युति के सम्बन्ध में विशेष प्रक्रिया का पालन करना होता है।

(iii) संघ की इकाइयों पर नियन्त्रण की शक्ति- राष्ट्रपति को यह भी अधिकार प्राप्त है कि वह राज्य सरकारों को निर्देशित, नियान्त्रण तथा समन्वित करे। राज्य के पारस्परिक विवाद को निपटाने के सम्बन्ध में परामर्श देने के लिये वह अन्तर्राष्ट्रीय परिषद् का गठन करता है। वह किन्हीं संघीय विषयों का प्रशासन राज्य सरकारों को सौंप सकता है।

(iv) अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व – भारतीय संघ का प्रमुख होने के नाते राष्ट्रपति अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में देश का प्रतिनिधित्व करता है। वह विदेशों में स्थित भारतीय राजदूत तथा कूटनीतिक प्रतिनिधि नियुक्त करता है। विदेशों के राजदूतों और कूटनीतिकों के प्रमाण-पत्रों को स्वीकार करता है। सभी अन्तर्राष्ट्रीय संधियाँ तथा समझौतें राष्ट्रपति के नाम से ही किये जाते हैं, किन्तु इन समझौतों और सन्धियों को संसद द्वारा स्वीकृति आवश्यक है।

(v) सर्वोच्च सेनापति के रूप में – राष्ट्रपति तीनों सेनाओं-जल, थल और नम का सर्वोच्च सेनापति है । परन्तु वह सैनिक शक्तियों का प्रयोग विधि के अनुसार ही कर सकता है। युद्ध और शांति से सम्बन्धित सभी कानून बनाने का अधिकार संसद को है। संसद की स्वीकृति के बिना राष्ट्रपति युद्ध की घोषणा नहीं कर सकता है और न ही सेनाओं को युद्ध लड़ने के लिये भेज सकता है।

2. विधायनी शक्तियाँ (Legislative Powers) – राष्ट्रपति की विधि-निर्माण शक्तियाँ निम्नलिखित हैं-

(i) विधायी क्षेत्र का प्रशासन- राष्ट्रपति संसद को आमंत्रित एवं स्थगित करता है। और लोक सभा को भंग कर सकता है। राष्ट्रपति दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन में अभिभाषण देता है। यदि किसी साधारण विधेयक पर दोनों सदनों में मतभेद हो, तो राष्ट्रपति दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन आमंत्रित करता है। राष्ट्रपति संसद को संदेश भेजता है।”

(ii) सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार- राष्ट्रपति राज्य सभा में 12 सदस्यों को मनोनीत करता है, जिनके द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला या अन्य किसी क्षेत्र में विशेष सेवा की गयी हो। वह लोक सभा में दो आंग्ल भारतीयों को भी मनोनीत करता है।

(iii) विधेयकों पर निषेधाधिकार का प्रयोग- राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित धन विधेयक के अतिरिक्त किसी विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे सकता है या पुनर्विचार के लिये संसद को वापिस भेज सकता है। संसद द्वारा दुबारा संशोधन सहित या रहित पास कर देने पर राष्ट्रपति को उस पर हस्ताक्षर करने पड़ते हैं। राष्ट्रपति की स्वीकृति के बिना कोई भी विधेयक कानून नहीं बन सकता है।

(iv) अध्यादेश जारी करने की शक्ति- जब संसद का अधिवेशन न हो रहा ह तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है। यह अध्यादेश, संसद् द्वारा पारित कानून की भाँति प्रभावी होता है। यह अध्यादेश अगला संसद अधिवेशन आरम्भ होने के छ सप्ताह बाद समाप्त समझा जाता है।

(v) राज्यों के सम्बन्ध में विधायिका शक्ति – राज्य विधान सभा द्वारा पारित विधेयक जिन्हें राज्यपाल ने राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु प्रेषित किया है, राष्ट्रपति उन पर हस्ताक्षर कर अपनी स्वीकृति प्रदान कर सकता है या उन्हें अस्वीकार कर सकता है। 8 फरवरी, 1995 को राष्ट्रपति द्वारा ‘त्रिपुरा भू-राजस्व और भू-सुधार पर छठा संशोधन-1994 पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया और प्रस्ताव को राज्य सरकार को स्पष्टीकरण देने के लिये वापिस लौटा दिया।

3. वित्तीय शक्तियाँ (Financial Powers) – राष्ट्रपति संसद में बजट, पूरक बजट प्रस्तुत करने की अनुमति प्रदान करता है। नियंत्रक महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन, वित्त आयोग की सिफारिशों, संघीय लोक सेवा आयोग का प्रतिवेदन, अनुसूचित जाति और अनुसूचीत जनजातीय आयोग प्रतिवेदन संसद के समक्ष रखता है। देश की आकस्मिक निधि पर राष्ट्रपति का नियन्त्रण रहता है। वह संसद की स्वीकृति के बिना आकस्मिक खर्ची के लिये सरकार को धन खर्च के लिये दे सकता है। वित्त विधेयक को संसद में प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक होती है।

4. न्यायिक शक्तियाँ (Judicial Powers)- सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करने का अधिकार राष्ट्रपति को है। सर्वोच्च न्यायालय के अधिकारियों एवं अधिनियमों की नियुक्ति सम्बन्धी नियमों का निर्धारण भी राष्ट्रपति ही करते हैं। राष्ट्रपति को क्षमादान, फाँसी की सजा को रोकना, मृत्युदण्ड को आजन्म कारावास में बदलने का अधिकार है। राष्ट्रपति दण्ड को पूर्ण रूप क्षमा कर सकता है, स्थगित कर सकता है अथवा दण्ड में परिवर्तन कर सकता है। राष्ट्रपति इस अधिकार का प्रयोग तीन प्रकार के दण्डों पर कर सकता है-

  1. दण्ड सैनिक न्यायालय द्वारा दिया गया हो।
  2. दण्ड ऐसे मामलों में दिया गया हो, जो केन्द्रीय कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार को अन्तर्गत आते हों।
  3. यदि अपराधी को मृत्युदण्ड दिया गया हो।

(ब) आपातकालीन शक्तियाँ (Emergency Power) – संकट काल में राष्ट्रपति को विस्तृत शक्तियाँ प्राप्त हैं। राष्ट्रपति संकटकालीन शक्तियाँ का उपयोग निम्नलिखित परिस्थितियों में कर सकता है-

  1. संविधान के अनुच्छेद 352 में युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति से उत्पन्न संकट। इस अनुच्छेद के अन्तर्गत अब तक तीन बार आपातकाल की घोषणा की गई है।
  2. अनुच्छेद 356 के अनुसार राज्यों में संवैधानिक तन्त्र के विफल होने पर संकट।
  3. अनुच्छेद 360 के अनुसार वित्तीय संकट।

उपर्युक्त संकट के समय राष्ट्रपति आपातकालीन घोषणा कर सकता है। इस अवस्था में सम्पूर्ण शक्तियाँ राष्ट्रपति के हाथ में आ जाती है। व्यवहार में इसका प्रयोग प्रधानमंत्री और उसकी मंत्रि-परिषद् करती है।

‘राष्ट्रपति के उपर्युक्त अधिकारों के अध्ययन से पता चलता है कि राष्ट्रपति भारतीय संघ का सर्वेसवां है। लेकिन व्यवहार में राष्ट्रपति वैधानिक प्रधान है। राष्ट्रपति द्वारा शासन कार्य मंत्रि-परिषद् के परामर्श से होगा। मंत्रिपरिषद् के विपरीत कार्य करने पर राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाया जा सकता है। राष्ट्रपति को मंत्रियों को परामर्श देने, प्रोत्साहन देने और चेतावनी देने की शक्तियाँ प्राप्त है। वह राष्ट्र का प्रतीक नाममात्र का अध्यक्ष है।

जवाहर लाल नेहरू के अनुसार- “हमने अपने राष्ट्रपति को वास्तविक शक्ति नहीं प्रदान की है। वरन् हमने उनके पद को सत्ता और प्रतिष्ठा से विभूषित किया है।”

C. अस्थायी अधिकार या शक्तियाँ- राष्ट्रपति की अस्थायी शक्तियाँ 1935 के भारत शासन अधिनियम के अन्तर्गत अनुच्छेद 391 तथा 392 से ली गयी हैं। उसके अस्थायी शक्तियों का विवरण निम्नलिखित हैं-

  1. संघ में हिन्दी के राजभाषा बनाने तथा कुछ अल्पसंख्यकों के साथ विशेष व्यवहार सम्बन्धी शक्तियाँ।
  2. भाषा आयोग नियुक्त करने तथा राजभाषा के पद पर हिन्दी को प्रतिष्ठित करने की शक्ति।
  3. आंग्ल-भारतीय समुदाय के दो प्रतिनिधियों को लोकसभा के लिए मनोनीत करने की शक्ति।

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Anjali Yadav

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