भारत के उप-राष्ट्रपति के कार्यकाल एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
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भारत के उप-राष्ट्रपति के कार्यकाल एवं कार्य
उप-राष्ट्रपति का कार्यकाल- संविधान के 63 वें अनुच्छेद में उप-राष्ट्रपति के पद की व्यवस्था की गयी है। उप-राष्ट्रीय का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में होता है और यह निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व की पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत से तथा गुप्त मतदान द्वारा होता है। उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन में दोनों सदनों के निर्वाचित और मनोनीत सदस्य भाग लेते हैं। इस पद के उम्मीदवार में निम्नलिखित योग्यताएं होनी आवश्यक हैं : (1) वह भारत का नागरिक हो, (2) उसकी आयु कम-से-कम 35 वर्ष हो, (3) उसमें वे सब योग्यताएं पायी जाये, जो संविधान द्वारा राज्यसभा के सदस्यों के लिए निश्चित की गयी हों। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि संसदीय व्यवस्था वाले किसी भी देश में उप-राष्ट्रपति पद (राज्य के उप-प्रमुख) की व्यवस्था नहीं है। उप राष्ट्रपति पद की व्यवस्था अध्यक्षात्मक व्यवस्था वाले देशों में ही की जाती है।
उप-राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष होता है किन्तु वह स्वेच्छा से त्यागपत्र द्वारा इस अवधि के पूर्व भी अपना पद छोड़ सकता है अथवा उसे राज्यसभा के कुल बहुमत द्वारा पास किये गये प्रस्ताव से जिसे लोकसभा भी स्वीकार कर ले, पदच्युत भी किया जा सकता है। ऐसे प्रस्ताव की सूचना 14 दिन पूर्व दी जानी आवश्यक है। उप-राष्ट्रपति अपने पद पर तब तक – आसीन रहेगा, जब तक कि उसका उत्तराधिकारी उसके पद को न सम्हाल ले। भारत में उप- राष्ट्रपति केवल अस्थायी रूप से ही राष्ट्रपति पद को धारण करता है। स्थायी राष्ट्रपति का चुनाव यथासम्भव शीघ्र ही होना आवश्यक है।
उप-राष्ट्रपति को संसद द्वारा निर्धारित वेतन प्राप्त होता है। जनवरी 2006 से उनका वेतन एक लाख पच्चीस हजार रुपए प्रतिमाह निर्धारित किया गया है। इसके अतिरिक्त उन्हें केन्द्रीय मंत्रियों को मिलने वाली अन्य सुविधाएं प्राप्त होती हैं। 1997 में संसद ने अधिनियम पारित कर उप-राष्ट्रपति के लिए भी पेन्शन तथा अन्य सुविधाओं का प्रावधान किया है।
उप-राष्ट्रपति के कार्य
उप-राष्ट्रपति के कार्य दो हैं : संयुक्त राज्य अमेरिका के – संविधान की भांति हमारे संविधान में भी व्यवस्था है कि उप-राष्ट्रपति केन्द्रीय व्यवस्थापिका के द्वितीय सदन (राज्यसभा) का पदेन सभापति होता है। उनके राज्यसभा के कार्य लोकसभा के अध्यक्ष से काफी मिलते-जुलते हैं। उप-राष्ट्रपति राज्यसभा में अनुशासन कायम रखता है और आज्ञा भंग करने वालों को सदन से बाहर निकलवा सकता है। उनकी आज्ञा के बिना कोई सदस्य सदन के सम्मुख भाषण नहीं दे सकता। वह सदन के विधेयकों पर बोलने के लिए सदस्यों को बुलाता है और बहस समाप्त होने पर मतदान कराता है, इसके बाद वह मतदान के परिणाम की घोषणा करता है कि विधेयक पारित हो गया या नहीं। जब कभी किसी विधेयक पर मत बराबर हो जाते हैं तब वह अपना निर्णायक मत देता है। वह यह भी निर्णय करता है कि कौन-से प्रश्न सदन में पूछने योग्य हैं और कौन से नहीं। वह किसी व्यक्ति को सदन में असंसदीय भाषा प्रयोग करने की मनाही कर सकता हैं जब विधेयक राज्यसभा द्वारा पारित कर दिए जाते हैं तो विधेयकों पर उसके हस्ताक्षर आवश्यक हैं। वह सदन के सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा करता है।
2. यदि कभी राष्ट्रपति रोग अथवा अनुपस्थिति के कारण अस्थायी रूप में अपने कर्त्तव्यों को पूरा करने में असमर्थ हो, तो उप-राष्ट्रपति ही उसके स्थान पर कार्य करेगा जिस काल में उप-राष्ट्रपति राष्ट्रपति पद पर कार्य करेगा, उसे वे ही उपलब्धियां और भते प्राप्त होंगे, जिनका राष्ट्रपति अधिकारी है।
भारत के उप-राष्ट्रपति एवं उनका कार्यकाल-
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1952 से 1962 ई. तक
- डॉ. जाकिर हुसैन 1962 से 1967 ई. तक
- वी. वी. गिरि 1967 से 1969 ई. तक
- गोपालस्वरूप पाठक 1969 से 1974 ई. तक
- बी. डी. जत्ती 1974 से 1979 ई. तक
- एम. हिदायतुल्लाह 1979 से 1984 ई. तक
- आर. वेंकटरमण 1984 से 1987 ई. तक
- डॉ. शंकरदयाल शर्मा 1987 से 1992 ई. तक
- के. आर. नारायणन 1992 से 1997 ई. तक
- कृष्णकान्त 1997 से 2002 ई. तक
- भैरोंसिंह शेखावत 2002 से 2007 ई. तक
- मोहम्मद हामिद अंसारी 12 अगस्त, 2007 ई. से 11 अगस्त, 2012 ई.
- मोहम्मद हामिद अंसारी 12 अगस्त, 2012 ई. से अगस्त, 2017 तक
- श्री एम. वेंकय्या नायडु अगस्त, 2017 से वर्तमान समय तक।” तक
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