मानव अधिकार क्या है? इसके प्रकार पर प्रकाश डालिये।
मानवाधिकार का अर्थ मानव बुद्धिमान व विवेकपूर्ण प्राणी है और इसी कारण इसको कुछ ऐसे मूल तथा अहरणीय अधिकार प्राप्त रहते हैं जिसे सामान्यतया मानव अधिकार कहा जाता है। चूंकि ये अधिकार उनके अस्तित्व के कारण उनसे सम्बन्धित रहते हैं। अतः वे उनके जन्म से ही विहित रहते हैं। इस प्रकार, मानव अधिकार सभी व्यक्तियों के लिए होते हैं चाहे उनका मूल वंश, धर्म, लिंग तथा राष्ट्रीयता कुछ भी हो। ये अधिकार सभी व्यक्तियों के लिए आवश्यक हैं क्योंकि ये उनकी गरिमा एवं स्वतंत्रता के अनुरूप हैं तथा शारीरिक, नैतिक, सामाजिक और भौतिक कल्याण के लिए सहायक होते हैं। ये इसलिए भी आवश्यक हैं क्योंकि ये मानव के भौतिक तथा नैतिक विकास के लिए उपयुक्त स्थिति प्रदान करते हैं। इन अधिकारों के बिना सामान्यतः कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता। मानवजाति के लिए मानव अधिकार का अत्यन्त महत्व होने के कारण मानव अधिकार को कभी-कभी मूल अधिकार, आधारभूत अधिकार, अन्तर्निहित अधिकार, प्राकृतिक अधिकार और जन्म अधिकार भी कहा जाता है।
यद्यपि मानव अधिकार निर्विवाद रूप से आज के समय में एक महत्वपूर्ण विषय माना जाता है फिर विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, विधिक प्रणाली, उनके विचार तथा उनकी आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक स्थितियों में भिन्नता के कारण इस शब्द को परिभाषित करना कठिन है। वास्तव में मानव अधिकार सामान्य शब्द है और इसके अन्तर्गत सिविल और राजनैतिक अधिकार तथा आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार सम्मिलित हैं। लेकिन यह कहा जा सकता है कि मानव अधिकार का विचार मानवीय गरिमा के विचार से सम्बन्धित है। अतः उन सभी अधिकारों को मानव अधिकार कहा जा सकता है। जो मानवीय गरिमा को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। वियना में 1993 में आयोजित विश्व मानव अधिकार सम्मेलन (World Conference on Human Rights ) की घोषणा में यह कहा गया था कि सभी मानव अधिकार व्यक्ति में गरिमा और अन्तर्निहित योग्यता से प्रोद्भूत होते हैं और व्यक्ति मानव अधिकार तथा मूल स्वतंत्रताओं का केन्द्रीय विषय है। .डी.डी. बसु मानव अधिकार को उन न्यूनतम अधिकारों के रूप में परिभाषित करते हैं, जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी अन्य विचारण के, मानव परिवार का सदस्य होने के फलस्वरूप राज्य या अन्य लोक प्राधिकारी (Public Authority) के विरुद्ध धारण करना चाहिए।
इसलिए मानव अधिकार आवश्यक रूप में प्रारम्भिक मानवीय आवश्यकताओं पर आधारित हैं। इन मानवीय आवश्यकताओं में से कुछ शारीरिक जीवन तथा स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। इस प्रकार मानव अधिकार का अनुभव किया जा सकता है तथा इनकी परिगणना की जा सकती है।
मानव अधिकारों के प्रकार
मानव अधिकार अविभाज्य एवं अन्योन्याश्रित होते हैं इसीलिए संक्षिप्त रूप में भिन्न भिन्न प्रकार के मानव अधिकार नहीं हो सकते हैं। सभी प्रकार के मानव अधिकार समान महत्व के होते हैं और वे सभी मानव प्राणियों में अन्तर्निहित होते हैं। अतः मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा में मानव अधिकारों को विभिन्न काटियों में नहीं बाँटा गया है।
सामान्यतया, भिन्न-भिन्न अनुच्छेद में इनकी गणना की गई है। फिर भी, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के अन्तर्गत मानव अधिकार के क्षेत्र में किए गए विकास से यह स्पष्ट हो जाता है कि मानव अधिकारों को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है, अर्थात् (1) सिविल एवं राजनैतिक अधिकार और (2) आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार।
1. सिविल एवं राजनैतिक अधिकार- सिविल अधिकारों अथवा स्वतंत्रताओं से तात्पर्य उन अधिकारों से है जो प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता (Personal Liberty) के संरक्षण से सम्बन्धित होते हैं। ये सभी व्यक्तियों के लिए आवश्यक होते हैं जिससे कि वे अपना गरिमामय जीवन बिता सकें। इस प्रकार के अधिकारों में प्राण, स्वतंत्रता एवं व्यक्तियों की सुरक्षा, एकान्तता (Privacy) का अधिकार, गृह एवं पत्राचार सम्पत्ति रखने का अधिकार, यातना से स्वतंत्रता, अमानवीय एवं अपमानजनक व्यवहार से स्वतंत्रता का अधिकार, विचार, अंतरात्मक एवं धर्म तथा आवागमन की स्वतंत्रता आदि के अधिकार शामिल होते हैं।
राजनैतिक अधिकारों से तात्पर्य उन अधिकारों से हैं जो किसी व्यक्ति को राज्य की सरकार में भागीदारी करने की स्वीकृति देते हैं। इस प्रकार से मत देने का अधिकार, सामयिक निर्वाचनों में निर्वाचित होने का अधिकार, लोक कार्यों में प्रत्यक्षतः अथवा चयनित प्रतिनिधियों के माध्यम से भाग लेने के अधिकार राजनैतिक अधिकारों के अन्तर्गत आते हैं।
यह उल्लेखनीय है कि सिविल एवं राजनैतिक अधिकारों की प्रकृति भिन्न-भिन्न हो सकती है किन्तु वे एक दूसरे से सम्बन्धित होते हैं और इसीलिए उनमें भेद करना तर्कसंगत नहीं प्रतीत होता। इसीलिए इन दोनों अधिकारों अर्थात् सिविल एवं राजनैतिक अधिकारों को एक ही प्रसंविदा में अंतर्विष्ट करते हुए एक प्रसंविदा का गठन किया गया था जिसे सिविल एवं राजनैतिक अधिकारों का अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा (International covenant on Civil and Political Rights ) कहा जाता है। इन अधिकारों को पहली पीढ़ी के अधिकर (rights of the first generation) भी कहा जाता है। इन अधिकारों को नकारात्मक अधिकार (negative rights) भी कहा जाता है क्योंकि इन अधिकारों के सम्बन्ध में सरकार से यह अपेक्षा की जाती है वह उन क्रियाकलापों को नहीं करेगी जिससे इनका उल्लंघन होता है।
2. आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार– आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों का सम्बन्ध मानव के लिए जीवन की न्यूनतम आवश्यकताएँ उपलब्ध करवाने से है। इन अधिकारों के अभाव में मानव प्राणियों के अस्तित्व के खतरे में पड़ने की संभावना रहती है। पर्याप्त भोजन, वस्त्र, आवास एवं जीवन के समुचित स्तर तथा भूख से स्वतंत्रता, काम के अधिकार, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार इस कोटि में सम्मिलित होते हैं। इन अधिकारों में कई अन्य आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार भी शामिल हैं और इन आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों के अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा (International Covenant on Economic, Social and Cultural Rights) में उल्लेखित किया गया है। इन अधिकारों को दूसरी पीढ़ी के अधिकार (rights of the second generation) भी कहा जाता है। इन अधिकारों में राज्यों की ओर से सक्रिय हस्तक्षेप की अपेक्षा की जाती है। इन अधिकारों को उपलब्ध कराने में काफी संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है और इसीलिए इन अधिकारों की उपलब्धता इतनी तात्कालिक नहीं हो सकती जितनी कि सिविल और राजनैतिक अधिकारों की होती है।
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