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मानव भूगोल के विषय क्षेत्र को कक्षा में चित्र द्वारा समझाइये ।
मानव भूगोल का विषय क्षेत्र :- भूपटल पर मिलने वाले समस्त प्राणी जगत में मानव सबसे अधिक विकसित क्रियाशील प्राणी है। भौगोलिक शक्तियां सदैव मानवीय क्रियाकलापों को प्रभावित करती रही है तथा अपने लाभ ओर कल्याण के लिए मानव भी प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन करके सांस्कृतिक वातावरण का निर्माण करता रहा है, इस निर्माण से मानव की स्थिति केन्द्रीय हो गई है। जिसके एक ओर प्राकृतिक वातावरण होता है तथा दूसरी ओर सांस्कृतिक वातावरण।
इस प्रकार मानव भूगोल के विषय क्षेत्र के प्रमुख रूप से तीन पहलू होते है-
- प्राकृतिक वातावरण के तत्व,
- सांस्कृतिक वातावरण के तत्व,
- वातावरण समायोजन का अध्ययन।
1. प्राकृतिक वातावरण के तत्व :
प्राकृतिक वातावरण के अन्तर्गत दो तत्वों का समावेश होता है।
- जड़ तत्व:- जड़ तत्वों में स्थलाकृतियां, जलराशियां, जलवायु, मिट्टी तथा खनिज सम्पदा सम्मिलित है।
- चेतन तत्व :- चेतन तत्वों में प्राकृतिक वातावरण की जैविक दशाएं सम्मिलित हैं, जिनमें प्राकृतिक वनस्पति, जीव जन्तु एवं पशु पक्षी सम्मिलित है।
2. सांस्कृतिक वातावरण के तत्व :-
सांस्कृतिक वातावरण का जन्म मानव तथा प्राकृतिक वातावरण की क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप होता है। इसके निर्माण में जहां एक ओर प्राकृतिक तत्वों का हाथ रहता है, वहीं दूसरी ओर मानव की सामूहिक शक्ति का भी योगदान है। प्रो. पी.डब्ल्यू. ब्रायन के अनुसार, “सांस्कृतिक वातावरण मानवीय क्रियाओं तथा भौतिक वातावरण के पारस्परिक संबंधों की अभिव्यक्ति होती है।” प्रो. ब्रायन ने सांस्कृतिक वातावरण के तत्वों को तीन पक्षों में विभक्त किया है:
- विन्यास रूप :- इसमें मानव द्वारा निर्मित खेत, खान, मकान तथा व्यावसायिक स्थल आदि सम्मिलित है।
- चल रूप :- इसमें मानव द्वारा निर्मित यातायात के विभन्न साधन सम्मिलित किये गये है।
- क्रिया रूप :- इसमें विभिन्न मानवीय व्यवसाय, यथा- कृषि, आखेट, पशुचारण, शिक्षा, सरकार, स्वास्थ्य, उद्योग, व्यापार, धर्म तथा विज्ञान आदि सांस्कृतिक तत्वों को सम्मिलित किया गया है।
मानव द्वारा अपने प्राकृतिक वातावरण के सहयोग से जीविकोपार्जन करने के क्रियाकलापों से लेकर उसकी उच्चतम आवयकताओं की पूर्ति के लिये किये गये प्रयत्नों तक का अध्ययन मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र में आता है। अतः पृथ्वी पर जो भी दृश्य मनुष्य की क्रियाओं द्वारा बने हुए दिखाई पड़ते हैं, वे सभी मानव भूगोल के अध्ययन में सम्मिलित है।
3. वातावरण समायोजन का अध्ययन :-
मानव भूगोल के अध्ययन में उन विभिन्नताओं को सम्मिलित किया जाता है जो संसार के विभिन्न प्रदेशों में रहने वाली जनसंख्याओं की शारीरिक आकृतियों में, वेशभूषा में, भोज्य पदार्थों में, मकानों के बनाने की सामग्री और शैली में, आर्थिक व्यवसायों में तथा जीवन के तरीकों और आदर्शों में पाई जाती हैं। विश्व के विभिन्न प्रदेशों में मिलने वाली भाषा, शिक्षा, धार्मिक विश्वास तथा शासन प्रणालियों में भी भिन्नताएं मिलती है। इनमें से कुछ विभिन्नताएं मानव को जन्म से ही प्राप्त होती है, जबकि अन्य विभिन्नताएं प्राकृतिक वातावरण की विभिन्नता के कारण होती है। मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र में यह देखना भी सम्मिलित है कि मानवीय क्रियाकलापों में विभिन्नताएं किस प्रकार संसार में वितरित हैं तथा प्राकृतिक वातावरण इन विभिन्नताओं के वितरण को कहां तक प्रभावित करता है। साथ ही मानव ने स्वयं को प्राकृतिक वातावरण की इन भिन्नताओं से किस प्रकार समायोजित किया है।
प्रकार मानव भूगोल का विषय क्षेत्र अत्यंत ही व्यापक है एवं इसकी व्याख्या करना अत्यंत ही कठिन है। अनेक भूगोलवेत्ताओं ने मानव भूगोल के विषय क्षेत्र की व्याख्या अपने-अपने ढंग से की है।
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