मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करो।
मानसिक स्वास्थ्य पर किसी एक कारण का प्रभाव नहीं पड़ता। उस पर अनेक कारणों का प्रभाव पड़ता है। है ये कारण इस प्रकार हैं-
1. घरेलू प्रभाव- बालक के स्वास्थ्य पर घर का प्रभाव पड़ता है। घर पर ही उसका विकास होता है। बदलती सामाजिक मान्यताएँ घर को प्रभावित करती हैं और बालकों के पोषण पर उनका प्रभाव समस्या के रूप में होता है। घर पर प्रभाव डालने वाले तत्व ये हैं-
(क) परिवार का विघटन – औद्योगिक प्रगति ने परिवार के संगठन को छिन्न-भिन्न कर दिया है। जिन घरों में माता-पिता, दोनों ही सर्विस करते हैं, वहाँ पर बच्चों की स्थिति और भी खराब हो जाती है। इसलिए अलगाव तथा तलाक बढ़ते जा रहे हैं। इस स्थिति का प्रभाव बालकों के मस्तिष्क पर पड़ना स्वाभाविक है।
(ख) माता-पिता का व्यवहार- जिन घरों में माता-पिता का व्यवहार बालक के प्रति अच्छा नहीं होता, वहाँ भी बालक असमायोजित हो जाता है। ऐसे परिवारों में बालकों की अवहेलना होती है।
(ग) निर्धनता- निर्धनता पापों तथा विकारों का मूल कहा गया है। भारत में तो 80 प्रतिशत अस्वस्थता निर्धनता के कारण है। विद्यालयों में ऐसे बालकों का अभाव नहीं है, जो वस्त्र तक ठीक नहीं पहन कर आते ।
(घ) उच्च आदर्श – प्रायः माता-पिता, बालकों की वैयक्तिक भिन्नता का विचार किए बिना ही बच्चों के लिए ऊंचे आदर्शों का निर्माण कर लेते हैं। बच्चे जब उन आदर्शों की पूर्ति नहीं कर पाते तब मानसिक असमायोजन में वृद्धि होती है।
(ङ) घर का अनुशासन – घर के अनुशासन का बच्चे के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है, लेकिन दुर्भाग्यवश हमारे देश में निरक्षरता के कारण अनुशासन का कोई स्तर नहीं है। कहीं पर बच्चों को पूर्ण स्वतन्त्रता है तो कहीं पर उनको जरा-सी गलती पर सख्त सजा दी जाती है। ऐसे घरों में बच्चों में मानसिक डर तथा चिन्ता बनी रहती है।
(च) परिवार में तनाव- भारतीय परिवार में केवल माता-पिता और उनके बच्चे ही नहीं होते, बल्कि दादा, दादी, चाचा, चाची, ताऊ, ताई अनेक सदस्य होते हैं, जिनका बच्चे के साथ विभिन्न बर्ताव होता है। परिवार के तनाव का बच्चे के मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
2. विद्यालय का प्रभाव- मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाले तत्वों में विद्यालय तथा उनसे सम्बन्धित ये कारण भी उत्तरदायी हैं-
(क) विद्यालय का वातावरण- विद्यालय के वातावरण का बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भारी प्रभाव पड़ता 1 यदि विद्यालय में छात्र सुरक्षा अनुभव नहीं करते हैं तो उनके मस्तिष्क में निरन्तर चिन्ता व भय बना रहता है। जिस विद्यालय में जाति-पाँति का प्रभाव पाया जाता है, वहाँ पर विभिन्न प्रकार के झगड़े पाए जाते हैं, जो बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं।
(ख) अध्यापक का व्यवहार- अध्यापक का स्थान विद्यालय में बहुत महत्वपूर्ण है। उसका व्यक्तित्व बच्चों के व्यक्तित्व को निरन्तर प्रभावित करता रहता है। यदि अध्यापक का व्यवहार पक्षपातपूर्ण है या वह सामान्य रूप से बच्चों के प्रति सहानुभूति नहीं रखता है या बच्चों को अत्यधिक शारीरिक दण्ड देता है तथा छोटी-छोटी गलतियों पर बुरा-भला कहता है, ऐसे अध्यापक से बच्चे भयभीत रहते हैं। यह निरन्तर भय मानसिक स्वास्थ्य को खराब करता है।
(ग) अभिव्यक्ति (Expression) के अवसर न देना- जिन विद्यालयों में छात्रों को विचार व्यक्त करने की स्वतन्त्रता नहीं दी जाती है, वहाँ छात्र भय के कारण अपने विचार व्यक्त करने की इच्छा का दमन करते हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव डालता है।
(घ) परीक्षा प्रणाली- परीक्षा प्रणाली पर भी बालकों का मानसिक स्वास्थ्य निर्भर करता है। यदि परीक्षा प्रणाली ऐसी है, जिससे बालक का मूल्यांकन ठीक प्रकार से नहीं हो सकता तो बालक की योग्यता का सही पता नहीं लगेगा और इस प्रकार बालक वातावरण में अपने आपको समायोजित नहीं कर पाएगा। कभी-कभी तो परीक्षा पद्धति ठीक न होने के कारण कमजोर बालक को कक्षोन्नति दे दी जाती है और वह सदैव अपनी कक्षा में पिछड़ा रहता है।
(ङ) अनुचित पाठ्यक्रम- विद्यालयों में शिक्षा के उद्देश्य कुछ हैं; पाठ्यक्रम कुछ हैं। इसलिए अनुचित पाठ्यक्रम से अपेक्षा पूर्ण नहीं होती और जीवन में मानसिक तनाव आता है।
3. सामाजिक प्रभाव- मानव का जन्म समाज में होता है। समाज के रीति-रिवाज तथा मान्यताओं के अनुकूल उसे आचरण करना पड़ता है। यदि बालक पर समाज का प्रभाव विपरीत पड़ता है तो वह मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाएगा। समाज में बालकों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाले तत्व इस प्रकार हैं-
(क) आन्तरिक तनाव- भारत में अनेक जातियाँ तथा सम्प्रदाय । ये समुदाय तथा जातियाँ आपस में संकीर्ण स्वार्थों की पूर्ति के लिए लड़ती-झगड़ती रहती हैं। अस्पृश्यता तथा वर्ग भेद अभी भी मानसिक तनाव उत्पन्न कर रहा है। राजनैतिक दाव-पेंच व्यक्ति के अस्तित्व को खतरे में रखे हुए हैं। ये सभी तत्व बालकों के मानसिक तनाव को बढ़ावा देते हैं।
(ख) असुरक्षा – आज के संघर्षमय जीवन में चारों ओर अस्तित्व के लिए संघर्ष व्याप्त है। पद-पद पर व्यक्ति अपने को असुरक्षित अनुभव करता है। देश में न तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति है और न ही कोई राष्ट्रीय विकास का व्यापक कार्यक्रम । जो हैं भी उनकी रफ्तार इतनी धीमी है कि व्यक्ति को अपना वर्तमान व्यतीत करना कठिन है। यों मानसिक तनाव बढ़ता जाता है।
(ग) स्वतन्त्रता का अभाव- बालक पर जितना अधिक नियन्त्रण रखा जाएगा, उतना ही उसका मानसिक तनाव बढ़ेगा। अभिव्यक्ति का अवसर न मिलने के कारण उसको अपने विचारों का दमन करना पड़ता है। यही मानसिक रोग का लक्षण होता है।
4. कक्षा में असमायोजन- मानसिक अस्वस्थता के लिए कक्षा भी उत्तरदायी है। मानसिक दृष्टि से अस्वस्थ बालक अध्यापक को तो परेशान करता ही है, अन्य बालकों पर भी उसका प्रभाव पड़ता है। कक्षा में मानसिक अस्वस्थता के मानसिक लक्षण ये हैं- 1. कक्षा में अचेतन हो जाना। 2. तुतलाना। 3. लड़ना-झगड़ना। 4. नींद आना। 5. गन्दी भाषा का लिखना तथा गन्दे चित्र बनाना। 6. चिन्ता 7. नाखून काटना। 8. अधिक थकान। 9 अधिकांश बीमार होना। 10. हीन व्यवहार। 11. भावात्मक प्रतिक्रिया। 12. भावनात्मक अपरिपक्वता। 13 दिखाने का व्यवहार। 14. समाज विरोधी व्यवहार। 15. मनोदैहिक बाधाएँ।
शैक्षिक साधनों की भूमिका
शैक्षिक साधनों की भूमिका मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होती है। यह भूमिका इस प्रकार है-
1. समाज-समाज को चाहिए कि सार्वजनिक मनोरंजन की व्यवस्था करे।
2. परिवार- पारिवारिक सम्बन्ध उत्तम हों।
3. विद्यालय- प्रेमपूर्ण व्यवहार, ज्ञानतंत्रीय अनुशासन, संतुलित पाठ्यक्रम, संतुलित गृह कार्य, अनेक सहगामी क्रियाओं की व्यवस्था, शैक्षिक निर्देशन, यौन शिक्षा तथा अच्छी आदतों का निर्माण, विद्यालय कर सकता है।
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