शिक्षा मनोविज्ञान / EDUCATIONAL PSYCHOLOGY

मूलप्रवृत्तियों का अर्थ तथा परिभाषाएँ | मूलप्रवृत्तियों के तीन पहलू | सहज-क्रिया तथा मूलप्रवृत्यात्मक क्रिया | मूलप्रवृत्तियों की विशेषताएँ

मूलप्रवृत्तियों का अर्थ तथा परिभाषाएँ | मूलप्रवृत्तियों के तीन पहलू | सहज-क्रिया तथा मूलप्रवृत्यात्मक क्रिया | मूलप्रवृत्तियों की विशेषताएँ
मूलप्रवृत्तियों का अर्थ तथा परिभाषाएँ | मूलप्रवृत्तियों के तीन पहलू | सहज-क्रिया तथा मूलप्रवृत्यात्मक क्रिया | मूलप्रवृत्तियों की विशेषताएँ

मूलप्रवृत्तियों का अर्थ तथा परिभाषा देते हुए मूलप्रवृत्तियों की विशेषताएँ बताइए।

मूलप्रवृत्तियों का अर्थ तथा परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Instincts)

मनुष्य अपने अधिकांश कार्यों को समाज से प्रभावित होकर करता है, पर कुछ कार्य ऐसे भी हैं, जिनको वह अपनी जन्मजात या प्राकृतिक प्रेरणाओं के कारण भी करता है, जैसे-भय लगने पर भागना और भूख लगने पर भोजन की खोज करना। इन जन्मजात प्रवृत्तियों को, जो मनुष्य और पशु को कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं, मूलप्रवृत्तियाँ कहा जाता है।

मूलप्रवृत्तियों के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं 1. मरसेल-“मूलप्रवृत्ति, व्यवहार का एक सुनिश्चित और सुव्यवस्थित प्रतिमान है, जिसका आदि कारण जन्मजात होता है, और जिस पर सीखने का बहुत कम या बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ता है।”

“An instinct is a definite, organized pattern of behaviour, which is innate in its origin, and very little or not at all affected by learning.” -Mursell

2. मैक्डूगल- “मूलप्रवृत्ति, परम्परागत या जन्मजात मनोशारीरिक प्रवृत्ति हैं, जो प्राणी को किसी विशेष वस्तु को देखने, उसके प्रति ध्यान देने, उसे देखकर एक विशेष प्रकार की संवेगात्मक उत्तेजना का अनुभव करने और उससे सम्बन्धित एक विशेष ढंग से कार्य करने या ऐसा करने की प्रबल इच्छा का अनुभव करने के लिए बाध्य करती है।”

“An instinct is an inherited or innate psycho-physical disposition which determines its possessor to perceive, and to pay attention to objects of certain class, to experience an emotional excitement of a particular quality upon perceiving such an object, and to act in regard to it in a particular manner, or at least to experience an impulse to such action.” – McDougall

3. वुडवर्थ– “मूलप्रवृत्ति, कार्य करने का बिना सीखा हुआ स्वरूप है।”

“An instinct is an unlearned form of activity.” -Woodworth

4. जेम्स- “मूलप्रवृत्ति की परिभाषा साधारणतः इस प्रकार कार्य करने की शक्ति के रूप में की जाती है जिससे उद्देश्यों और कार्य करने की विधि को पहले से जाने बिना निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति होती है।”

“Instinct is usually defined as the faculty of acting in such a way as to produce certain ends, without foresight of the ends, and without previous education in the performance.” – James

मूलप्रवृत्तियों की परिभाषाओं का विश्लेषण करते हुए यह निष्कर्ष निकलता है-

1. मूलप्रवृत्तियाँ किसी न किसी रूप में संसार के सभी प्राणियों में पाई जाती है। इसलिए ये सार्वभौम विशेषता से युक्त हैं।

2. प्रत्येक मूलप्रवृत्ति किसी लक्ष्य की ओर प्रेरित होती है।

3. मूलप्रवृत्तियाँ जन्मजात तथा आन्तरिक होती हैं।

4. मूलप्रवृत्त्यात्मक व्यवहार का ज्ञान पहले से नहीं होता है।

5. मूलप्रवृत्तियों की अभिव्यक्ति के लिए किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ती। मूलप्रवृत्तियों को मानव व्यवहार से पृथक् नहीं किया जा सकता। ये मानव व्यवहार का धर्म पालन करती हैं। विलियम मैक्डूगल के अनुसार- “मूलप्रवृत्तियाँ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मानव की क्रियाओं की प्रमुख चालक हैं। यदि मूलप्रवृत्तियों तथा उनसे सम्बन्धित शक्तिशाली संवेगों को हटा दिया जाए तो प्राणी किसी भी कार्य को नहीं कर सकता। वह उसी प्रकार गतिहीन तथा निश्चल हो जाएगा जिस प्रकार एक अच्छी घड़ी जिसकी मुख्य कमानी हटा दी गई हो या स्टीम इंजन जिसकी “आग बुझा दी गई हो।”

मूलप्रवृत्तियों के तीन पहलू (Three Aspects of Instincts)

मैक्डूगल की उक्त परिभाषा से स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्येक मूलप्रवृत्ति में तीन मानसिक प्रक्रियाएँ या तीन पहलू होते हैं-

  1. ज्ञानात्मक (Cognitive)- किसी वस्तु या स्थिति का ज्ञान होना ।
  2. संवेगात्मक (Affective)- ज्ञान के कारण किसी संवेग का उत्पन्न होना।
  3. क्रियात्मक (Conative) – संवेग के कारण कोई क्रिया करना ।

उदाहरण के लिए, एक छोटा बालक बहुत बड़ा, काला, झबरा कुत्ता देखता है। कुत्ते को देखकर उसमें भय का संवेग उत्पन्न होता है। भय के इस संवेग के कारण वह भाग जाता है या छिप जाता है।

सहज-क्रिया तथा मूलप्रवृत्यात्मक क्रिया (Reflex Act and Instinctive Act)

कुछ छात्रों को सहज-क्रिया और मूलप्रवृत्यात्मक क्रियाओं के सम्बन्ध में साधारणतः भ्रम रहता है। अतः दोनों के अन्तर को नीचे दिया जा रहा है—

1. सहज-क्रिया (Reflex Act) – सहज क्रियाओं का अर्थ बताते हुए बी० एन० झा (B. N. Jha) ने लिखा है—”वे सब क्रियाएँ, जिनको हम यंत्रवत् और बिना विचारे हुए करते हैं, सहज-क्रियाएँ कहलाती हैं “

सहज-क्रियाओं के अर्थ को कुछ उदाहरण देकर स्पष्ट किया जा सकता है। किसी बहुत गरम वस्तु से हाथ लग जाने से हाथ को एकदम हटा लेना, आँख में कुछ गिर जाने से उसमें से पानी निकलना, पैर के तलुवे को गुदगुदाने पर पैर को – सिकोड़ लेना, स्वादिष्ट भोजन देखकर मुँह में पानी आ जाना—ये सब सहज-क्रियाएँ हैं। इनको हम यंत्रवत् और बिना विचारे हुए करते हैं।

उपर्युक्त उदाहरणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि सहज-क्रिया एक साधारण, स्वाभाविक और स्वतः होने वाली प्रतिक्रिया है। इसका शरीर के किसी अंग से सम्बन्ध होता है। इसमें बुद्धि का कोई स्थान नहीं होता है। इसमें केवल ‘क्रियात्मक प्रक्रिया’ होती है। इसका संवेग से कोई सम्बन्ध नहीं होता है।

2. मूलप्रवृत्यात्मक क्रिया (Instinctive Act) – मूलप्रवृत्यात्मक क्रिया या व्यवहार के अर्थ पर प्रकाश डालते हुए मॉर्गन (Morgan) ने बताया है- “मूलप्रवृत्यात्मक व्यवहार, मूलप्रवृत्ति और बुद्धि-दोनों की सम्मिलित उपज है।”

हम मूलप्रवृत्यात्मक क्रियाओं के अर्थ को कुछ उदाहरण देकर स्पष्ट कर सकते हैं। छोटा बालक-काले, झबरे कुत्ते को देखकर भाग जाता है या छिप जाता है। यदि उसके खेल में बाधा डाली जाती है, तो वह अपनी वस्तुओं को इधर-उधर फेंक देता है। अपने बच्चे को किसी प्रकार के संकट में देखकर माँ उसकी रक्षा के लिए प्रयत्न करती है।

 उपर्युक्त उदाहरणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि मूलप्रवृत्यात्मक क्रिया या व्यवहार का कारण कोई मूलप्रवृत्ति होती है। इसमें बुद्धि का प्रयोग होता है। इसमें ज्ञानात्मक, संवेगात्मक और क्रियात्मक तीनों प्रक्रियाएँ होती हैं। इसके साथ कोई संवेग जुड़ा रहता है।

मूलप्रवृत्तियों की विशेषताएँ (Characteristics of Instincts)

1. भाटिया (Bhatia) के अनुसार- मूलप्रवृत्तियाँ एक जाति के प्राणियों में एक-सी होती हैं, जैसे-मुर्गी द्वारा भूमि का कुरेदा जाना और बालकों की अपेक्षा बालिकाओं का शान्त होना।

2. वैलेनटीन (Valentine) के अनुसार- मूलप्रवृत्तियाँ जिन कार्यों को करने की प्रेरणा देती हैं, उनमें शीघ्र ही कुशलता आ जाती है। यदि बत्तख को पानी में डाल दिया जाए, तो वह दो-तीन डुबकी खाने के बाद अच्छी तरह तैरने लगती है।

3. झा (Jha) के अनुसार- सब मूलप्रवृत्तियाँ, जन्म से जागरूक न होकर व्यक्ति की आयु के साथ-साथ विकसित होती हैं, जैसे-संचय और सामुदायिकता की प्रवृत्तियाँ ।

4. भाटिया (Bhatia) के अनुसार- मूलप्रवृत्तियों का कोई-न-कोई प्रयोजन अवश्य होता है, पर उस प्रयोजन का ज्ञान होना आवश्यक नहीं है। बालक में आत्म-प्रदर्शन की प्रवृत्ति होती है, पर वह उसके प्रयोजन से अनभिज्ञ होता है।

5. वैलेनटीन (Valentine) के अनुसार- मूलप्रवृत्तियों के कारण किए जाने वाले कार्यों में जटिलता और विभिन्न अवसरों पर विभिन्नता होती है। यह आवश्यक नहीं है कि क्रोध आने पर व्यक्ति सदैव एक ही प्रकार का व्यवहार करे।

6. मैक्डूगल (McDougall) के अनुसार मूलप्रवृत्तियाँ जन्मजात होती हैं। अतः सीखकर या अनुकरण करके उनकी संख्या में वृद्धि नहीं की जा सकती है।

7. जेम्स (James) के अनुसार- अनेक मूलप्रवृत्तियाँ एक विशेष अवस्था में प्रकट होती हैं और फिर धीरे-धीरे अदृश्य हो जाती हैं, जैसे-जिज्ञासा और काम प्रवृत्ति ।

8. झा (Jha) के अनुसार- सब मूलप्रवृत्तियाँ, सब व्यक्तियों में समान मात्रा में नहीं मिलती हैं। शिशु-रक्षा सम्बन्धी मूलप्रवृत्ति पुरुष के बजाय स्त्री में अधिक होती हैं।

9. भाटिया (Bhatia) के अनुसार- मूलप्रवृत्तियों का प्राणी के हित से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। अनेक पक्षी अपने को आँधी-पानी से सुरक्षित रखने के लिए घोंसले बनाते हैं

10. भाटिया (Bhatia) के अनुसार- मूलप्रवृत्तियों को बुद्धि, अनुभव और वातावरण द्वारा परिवर्तित और विकसित किया जा सकता है। जिज्ञासा की प्रवृत्ति को अध्ययन करने के अच्छे कार्य, या पड़ोसियों के दोष खोजने के बुरे कार्य के रूप में विकसित किया जा सकता है।

इन सभी विशेषताओं को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-

  1. मूलप्रवृत्तियों का प्रयोजन होता है।
  2. मूलप्रवृत्तियों के साथ संवेग जुड़े रहते हैं।
  3. मूलप्रवृत्तियों के अनुभव से प्राणी लाभ उठाता है।
  4. मूलप्रवृत्तियों के तीन पक्ष-ज्ञानात्मक, संवेगात्मक एवं क्रियात्मक होते हैं।
  5. मूलप्रवृत्तियाँ जन्मजात होती हैं।
  6. मूलप्रवृत्तियाँ सभी प्राणियों में पाई जाती हैं।
  7. मूलप्रवृत्तियों तथा आदतों में भिन्नता पाई जाती है।
  8. मूलप्रवृत्तियाँ नष्ट नहीं होतीं, इनमें संशोधन होता है।

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Anjali Yadav

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