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लोकसभा के संगठन पर लेख लिखिए।
लोकसभा का संगठन- भारत के मूल संविधान में लोकसभा की सदस्य संख्या 500 निश्चित की गयी थी, लेकिन समय-समय पर इसमें वृद्धि की गयी। अब ‘गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1988 द्वारा निश्चित किया गया है कि लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 552 हो सकती है। इनमें से अधिकतम 530 सदस्य राज्यों के निर्वाचन क्षेत्रों से व अधिकतम 20 सदस्य संघीय क्षेत्रों से निर्वाचित किये जा सकेंगे एवं राष्ट्रपति आंग्ल भारतीय वर्ग के 2 सदस्यों का मनोनयन कर सकेंगे। वर्तमान में लोकसभा की सदस्य संख्या 545 है।
लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से और वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है। भारत में 61वें संवैधानिक संशोधन के अनुसार अब 18 वर्ष की आयु प्राप्त व्यक्ति को वयस्क माना गया है। अब लोकसभा के सभी निर्वाचन क्षेत्र ‘एकल-सदस्यीय’ रखे गये हैं। प्रतिनिधित्व का अनुपात कुछ अपवादों को छोड़कर यथासम्भव समस्त देश में समान रखने का प्रयत्न किया जायेगा। मूल संविधान में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों हेतु 10 वर्ष की अवधि के लिए स्थान सुरक्षित रखे गये थे किन्तु बाद में यह अवधि बढ़ा दी गयी। संविधान के 79वें संवैधानिक संशोधन (1999) के अनुसार यह अवधि 25 जनवरी, 2010 ई. तक बढ़ा दी गयी। अब अगस्त 2009 में 95 वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 334 को संशोधित कर आरक्षण की अवधि अगले 10 वर्ष अर्थात् 25 जनवरी, 2020 तक बढ़ा दी गयी है।
सदस्यों के लिए योग्यताएं-
लोकसभा की सदस्यता के लिए संविधान के अनुसार निम्नलिखित योग्यताएं होना आवश्यक हैं-
- वह व्यक्ति भारत का नागरिक हो।
- उसकी आयु 25 वर्ष या इससे अधिक हो।
- भारत सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अन्तर्गत वह कोई लाभ का पद धारण न किये हो ।
- वह किसी न्यायालय द्वारा पागल न ठहराया गया हो तथा दिवालिया न हो।
इन योग्यताओं के अतिरिक्त अन्य योग्यताएं निर्धारित करने का अधिकार संविधान के द्वारा संसद को दिया गया है। इस अधिकार के अन्तर्गत संसद ने 1951 में ‘जनप्रतिनिधित्व अधिनियम’ (People’s Representation) पास कर संसद सदस्यों के लिए योग्यताएं निर्धारित की थी।
दिसम्बर 1988 में ‘जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन कर आतंकवादी गतिविधि, तस्करी, जमाखोरी, मुनाफाखोरी, खाद्य पदार्थों एवं दवाओं में मिलावट करने वाले, विदेशी मुद्रा नियमन अधिनियम (फेरा) का उल्लंघन करने वाले तथा महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वाले व्यक्तियों को संसद या राज्य के विधानमण्डल का चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया गया है।
जन प्रतिनिधि संस्थाओं में अपराधियों के प्रवेश पर रोक हेतु व्यवस्था- आपराधिक रिकार्ड सहित पृष्ठभूमि की जानकारी नामांकन पत्र के साथ ही प्रस्तुत करना अनिवार्य – गत लगभग तीन दशक से भारतीय राजनीति की एक विकृति निरन्तर बढ़ती जा रही है। और वह है : जन प्रतिनिधि संस्थाओं में अपराधियों का प्रवेश। प्रबुद्ध वर्ग ने जब इस बात की ओर सर्वोच्च न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया, तब सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि “संविधान का अनुच्छेद 19-एक, जनता को उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि, सम्पत्ति, दायित्व और शैक्षणिक योग्यता से सम्बन्धित जानकारियां हासिल करने का अधिकार देता है।”
अब चुनाव आयोग ने 31 मार्च, 2003 को निर्देश जारी किए कि राज्यसभा, लोकसभा, विधानसभा और विधानपरिषद का नामांकन पत्र भरते समय उम्मीदवारों को शपथ-पत्र पर व्यक्तित्व संबंधी जानकारी बिन्दुवार देनी होगी।
चुनाव आयोग के सूत्र बताते हैं कि यदि कोई प्रत्याशी प्रासंगिक जानकारी देने में असफल रहा हो तो इसका आशय होगा कि उसने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना की है, अतः निर्वाचन अधिकारी जांच के समय ऐसे नामांकन पत्र को रद्द कर देगा। निर्वाचन अधिकारी उम्मीदवार द्वारा शपथ पत्र पर प्रदत्त जानकारी अपने कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित करेगा। चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि उम्मीदवार अपनी लेनदारियों और देनदारियों के सम्बन्ध में सही जानकारी देने में असफल रहते हैं, तब इस आधार पर उनके नामांकन पत्र रद्द नहीं किए जा सकेंगे।
सर्वोच्च न्यायालय और चुनाव आयोग निरन्तर इस बात के लिए प्रयत्नशील हैं कि आपराधिक तत्व संसद / विधानमण्डलों में प्रवेश न प्राप्त कर सकें इस दिशा में दो प्रयत्न 2005 ई. में किए गए। प्रथम, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 12 जनवरी, 2005 ई. के निर्णय में घोषित किया है कि दोषी पाए गए और दो वर्ष से अधिक की सजा पाए सांसदों/विधायकों को चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होगा। द्वितीय, 2005 ई. में ही चुनाव आयोग ने ऐसे सभी लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाने का निर्णय लिया, जिनके विरुद्ध 6 माह से अधिक समय से गैर जमानती वारण्ट लम्बित हैं। मतदाता सूची में नामन होने पर चुनाव लड़ने का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। इस सम्बन्ध में जुलाई, 2013 में दिया गया सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय महत्वपूर्ण है जिसके द्वारा कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति को किसी न्यायालय द्वारा 2 वर्ष से अधिक की सजा सुनाई गयी है तो वह व्यक्ति न तो संसद का चुनाव लड़ सकता है और न ही संसद सदस्य बना रह सकता है। भले ही उस व्यक्ति के ऊपर के न्यायलय में अपनी सजा के विरुद्ध अपील दायर की हो।
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