व्यक्ति के विकास की मुख्य अवस्थायें क्या हैं ? शिक्षक एवं माता-पिता को इनका ज्ञान क्यों आवश्यक है ?
व्यक्ति का विकास किन-किन चरणों (Steps) में पूरा होता है, इस सम्बन्ध में विद्वानों में अनेक मतभेद रहे हैं। सैले ने विकास प्रक्रिया का वर्गीकरण इस प्रकार किया है – (i) शैशव (Infancy) काल-1 से 5 वर्ष तक, (ii) बाल्यकाल (Childhood) – 5 से 12 वर्ष तक, (iii) किशोरावस्था (Adolescence) -12 से 18 वर्ष तक
रॉस (Ross) ने विकास की अवस्थाओं का वर्गीकरण इस प्रकार किया है- (i) शैशव-1 से 3 वर्ष तक, (ii) आरम्भिक बाल्यकाल- 3 से 6 वर्ष तक, (iii) उत्तर बाल्यकाल 6 से 12 वर्ष तक, (iv) किशोरावस्था-12 से 18 वर्ष तक ।
कोलेसनिक (Kolesnik) ने विकास प्रक्रिया का वर्गीकरण इस प्रकार किया है- (i) गर्भाधान से जन्म तक जन्मपूर्व (Prenatal Period) काल (ii) शैशव (Neonatal) – जन्म से 3 या 4 सप्ताह तक, (iii) आरम्भिक शैशव (Early Infancy) – 1 या 2 मास से 15 मास तक, (iv) उत्तर शैशव (Late Infancy) – 15 मास से 30 मास तक, (v) बाल्यकाल (Early Childhood)-2.5 से 5 वर्ष तक, (vi) मध्य बाल्यकाल (Middle Childhood) –5 से 9 वर्ष तक, (vii) उत्तर बाल्यकाल (Late Childhood) – 9 से 12 वर्ष तक, (viii) किशोरावस्था (Adolescence) – 12 से 21 वर्ष तक ।
इन सभी वर्गीकरणों का विश्लेषण करके यह वर्गीकरण विद्वानों द्वारा अपनाया जाता है—
1. गर्भाधान (Prenatal) काल- गर्भाधान से 250 से 300 दिन तक
- भ्रूणिक (Germinal) – 0 से 2 सप्ताह तक
- भ्रूणीय (Embroynic) – 2 से 10 सप्ताह तक
- भ्रूण (Foetal) – 10 सप्ताह से जन्म तक
2. बाल्यकाल (Childhood) – जन्म से 12 वर्ष तक
- शैशव (Infancy) – जन्म से 3 वर्ष तक
- पूर्व बाल्यकाल – 3 से 6 वर्ष तक
- उत्तर बाल्यकाल – 6 से 12 वर्ष तक
3. किशोरावस्था- 13 से 19 वर्ष तक ।
बालक के विकास की विभिन्न अवस्थायें हैं। इन विभिन्न अवस्थाओं में बालक का व्यक्तित्व (Person) अनेक प्रकार से विकसित होता है। विकास की प्रक्रिया का स्वरूप अपने में शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक तत्वों को संजोये है। विकास के स्वरूप इस प्रकार हैं-
- शारीरिक (Physical) विकास,
- मानसिक (Mental) विकास,
- संवेगात्मक (Emotional) विकास,
- सामाजिक (Social) विकास,
- गति (Motor) विकास,
- भाषा (Language) विकास,
विकास की प्रक्रिया के इन विभिन्न स्वरूपों का उद्विकास शैशव से लेकर किशोरावस्था के समापन तक किस प्रकार होता है।
यह अध्ययन का विषय है। विकास का अध्ययन करके आज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में इसका लाभ उठाया जा रहा है। बालकों के सर्वांगीण विकास में विकास का अध्ययन विशेष उपयोगी रहा है।
अभिभावकों तथा शिक्षक के लिये लाभकारी
अभिभावकों तथा शिक्षकों के लिये विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन निम्नलिखित कारणों से उपयोगी है-
1. बालक के सर्वांगीण विकास में विकास का अध्ययन लाभकारी है।
2. विकास की अवस्थाओं के अनुरूप पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है।
3. विकास की प्रत्येक अवस्था में कुछ परिवर्तन होते हैं। उन परिवर्तनों के अनुरूप शिक्षण प्रणालियाँ अपनाई जाती हैं।
4. बालकों तथा अभिभावक, बालक के विकास की अवस्था के अनुरूप ही अपने व्यवहार का निर्धारण कर सकते हैं।
5. बालकों का विकास, भविष्य में विकास प्रक्रिया के दौरान होने वाले परिवर्तनों के अनुरूप होता है।
6. अनेक शिक्षण प्रणालियों का लाभ विकास की अवस्थाओं के अनुसार उठाया जा सकता है।
7. अभिक्रमित अनुदेशन, शिक्षण व्यवहार तथा अधिगम परिस्थितियों का उपयोग विकास की अवस्थाओं के अनुरूप किया जा सकता है।
स्पष्ट है, बालक की विकास की विभिन्न अवस्थाओं के अध्ययन के द्वारा ही उसका सर्वांगीण विकास करने में शिक्षकों तथा अभिभावकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। बीसवीं सदी में इनका विकास जिस तेजी से हुआ है, को एवं क्रो के शब्दों में बीसवीं सदी को बालक की शताब्दी कहा जाता है सही है।
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