शिक्षण तथा परिपक्वता का पारस्परिक सम्बन्ध बताइये।
सामान्यतः परिपक्वता की यह धारणा है कि शरीर की क्षमता जिस व्यवहार को करने के योग्य होती है, वही परिपक्वता (Maturation) होती है। इसमें अनुभव को स्थान नहीं होता। कुतिया के पिल्लों की आँखें जन्म के समय नहीं खुलतीं, शरीर के परिपक्व होने के साथ-साथ उनकी आँखें खुलती चली जाती हैं। जब पिल्ले की आँखें परिपक्व हो जाती हैं, उसके व्यवहार में असाधारण परिवर्तन होता है। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि व्यवहार में यह परिवर्तन किसी अनुभव या सीखने का परिणाम है। कभी-कभी परिपक्वता उद्दीपन (Stimulation) का काम भी करती है। राइजन (Risen) ने 1950 में चिम्पांजी के नवजात शिशु को अन्धकार में पाला। परिणामस्वरूप उसकी दृष्टि खराब हो गई।
कई बार ऐसी स्थितियाँ आ जाती हैं, जिनमें हम यह निश्चय नहीं कर पाते कि नया व्यवहार सीखने या अनुभव प्राप्त करने का परिणाम है या शारीरिक परिपक्वता का।
परिपक्वता के विषय में कुछ प्रमुख बिन्दु इस प्रकार चिन्तनीय हैं-
1. परिपक्वता पूर्ण व्यवहार है- परिपक्वता एक ऐसी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति स्वयं कोई निर्दिष्ट व्यवहार करने में सक्षम पाता है। वह व्यवहार शारीरिक तथा मानसिक क्षमता से अनुदेशित (Directed) होता है। बालक में बटन लगाने, चीजें पकड़ने, कुर्सी पकड़ कर खड़े होने आदि की सभी क्रियायें उसकी परिपक्वता की प्रतीक हैं। परिपक्वता के रूप में मनुष्य का सम्पूर्ण व्यवहार प्रकट होता है।
2. अधिगम या सीखने का आवश्यक तत्व- परिपक्वता अधिगम की अनिवार्य शर्त है। अधिगम की प्रक्रिया जीवन-पर्यन्त चलती रहती है। मानव विकास अधिगम द्वारा होता है। इसका आधार परिपक्वता (Maturation) होती है। बालक का व्यवहार इतना क्षणिक तथा अस्थाई होता है कि उसके व्यवहारों के आधार पर निश्चित परिणाम की घोषणा पर विश्वास नहीं किया जा सकता। एलैक्जेन्डर के अनुसार- “इस अधिगम का विश्लेषण इसके विभिन्न रूपों का विचार किये बिना करें तो हम सबसे पहले यह अन्वेषण करेंगे कि यह संशोधन की अनवरत् प्रक्रिया है। इससे प्राणी के व्यवहार प्रतिमानों एवं मानसिक विकास में परिवर्तन होते रहते हैं।”
3. परिपक्वता के प्रतिमान- अधिगम का आधार परिपक्वता है। इसे अधिगम की प्रक्रिया माना गया है। इसमें अनेक कारण उत्तरदायी हैं, जो इस प्रकार हैं-
(i) अधिग्रहण (Acquisition)- जो व्यवहार संशोधन में अत्यन्त सहायक होता है। अधिग्रहण के द्वारा ही अधिगम की परिभाषा, स्वरूप एवं प्रकृति को निर्धारित किया जाता है। अधिग्रहण द्वारा ही अधिगामक (Learner) मानसिक रूप से अधिगम के लिये तैयार होता है।
(ii) धारणा (Retention) – धारणा के अभाव में अधिगम किसी भी अर्जित गुण को अभिव्यक्त नहीं कर सकता। इसे तो स्पष्ट किया जा सकता है। जब किसी व्यवहार तथा प्रक्रिया को सीख लेने के पश्चात् भी धारणा (Retention) नहीं होती तो उस व्यवहार की अभिव्यक्ति का प्रश्न नहीं उठता।
(iii) सशक्त प्रत्यास्मरण (Potention recall)- सशक्त प्रत्यास्मरण के द्वारा परिपक्वता तथा अधिगम-व्यवहार का पता चलता है।
4. शारीरिक सक्षमता (Physical fitness)- परिपक्व अधिगम व्यवहार की अभिवृद्धि शारीरिक सक्षमता पर भी निर्भर करती है। अधिग्रहण, धारणा तथा सशक्त प्रत्यास्मरण तभी अपना कार्य ठीक प्रकार से करते हैं, जबकि शरीर इस योग्य होता है कि इनका उचित विकास हो सके। शरीर के रोगी तथा अविकिसित होने से शारीरिक क्षमता के विकास में दोष उत्पन्न हो जाता है और बालकों के सीखने के व्यवहार में प्रगति नहीं होती। क्षमता के विकास का दूसरा नाम ही परिपक्वता है। जब तक शरीर व उसकी माँसपेशियाँ परिपक्व नहीं हो पातीं, व्यवहार का संशोधन नहीं हो सकता।
5. अधिगम कौशल के लिये आवश्यक (Necessary for learning skill)- परिपक्वता शारीरिक तथा मानसिक अधिगम की कुशलता के लिये आवश्यक है। किसी भी कार्य को सीखने के लिये शारीरिक तथा मानसिक परिपक्वता का प्राप्त करना अनिवार्य है। परिपक्वता मानव विकास की अनवरत् क्रिया है। इसके लिये बाह्य उतेजनाओं की आवश्यकता नहीं है। बोरिंग के अनुसार-परिपक्वता और व्यवहार के पूर्व बाह्य व्यवहार का होना आवश्यक है।
6. डेनिस (Dannis) द्वारा किये गये प्रयोग- परिपक्वता की जाँच के लिये डेनिस ने दो जुड़वाँ लड़कियों का एक परीक्षण किया। एक लड़की को 36 सप्ताह की आयु में सीढ़ियों पर चढ़ने का प्रशिक्षण दिया गया। दूसरी लड़की को किसी प्रकार का प्रशिक्षण नहीं दिया गया। 52 सप्ताह बाद दोनों लड़कियों की सीढ़ियों पर चढ़ने की क्षमता समान थी I
इस प्रयोग से यह स्पष्ट हो जाता है कि मानसिक परिपक्वता किसी भी कार्य को सीखने के लिये उतनी ही आवश्यक है जितनी शारीरिक परिपक्वता । इस प्रयोग से यह सिद्ध होता है कि अपरिपक्वावस्था में दिया गया प्रशिक्षण व्यर्थ होता है। अतः माता-पिता एवं शिक्षकों को चाहिये कि वे बालक को प्रशिक्षण देने से पूर्व उनकी शारीरिक तथा मानसिक परिपक्वता की जाँच कर लें। यदि बच्चों को परिपक्वता प्राप्त करने से पूर्व कोई क्रिया दिखाई जाती है तो वह निष्फल रहती है।
अधिगम तथा परिपक्वता के सम्बन्ध
1. परिपक्वता एक स्वाभाविक क्रिया है, जिसके लिये बाह्य उत्तेजनाओं की आवश्यकता नहीं पड़ती। अधिगम में बाह्य उत्तेजनाओं की आवश्यकता होती है और प्रयत्न भी करने पड़ते हैं।
2. प्रत्येक प्रजाति (Race) तथा जाति (Specie) में परिपक्वता का क्रम निश्चित होता है। प्रजाति तथा जाति के मूल विकास में समानता होती है, परन्तु अधिगम में विभिन्न क्रिया-प्रतिक्रियायें होती हैं।
इसका अर्थ यह हुआ कि- (1) अधिगम तथा परिपक्वता विकास के सभी स्तरों पर साथ-साथ चलते हैं। (2) अधिगम परिपक्वता का स्तर प्राप्त करने तक प्रभावहीन रहता है। “परिपक्वता आन्तरिक रूप से संशोधन की प्रक्रिया है आंतरिक परिपक्वता प्राणी का विकास है, संरचना एवं कार्यों में वृद्धि है, जो प्राणी में निहित शक्तियों के कारण होती है।”
यह कहा जा सकता है कि अधिगम एवं परिपक्वता एक ही प्रक्रिया, अर्थात् व्यवहार संशोधन के दो अलग-अलग पहलू हैं। एक के अभाव में दूसरा पहलू अर्थहीन है। वातावरण, समय, परिस्थितियाँ आदि सभी का परिपक्वता पर प्रभाव पड़ता है। परिपक्वता अधिगम सहायक होती है। यों कहें-अधिगम का आधार परिपक्वता है। परिपक्वता का अभाव अधिगम को अस्तित्वहीन कर देता है। अधिगम किसी भी प्रकार हो, कैसा भी हो, उसके साथ सीखने वाले को योग्यता तथा क्षमता में आपसी सम्बन्ध जुड़ा रहता है। अतः यह आवश्यक है कि अधिगम से पूर्व परिपक्वता प्राप्त कर ली जाये।
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