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शिक्षा के अभिकरण की परिभाषा एवं आवश्यकता
शिक्षा के अभिकरण की परिभाषा – शिक्षा के साधनों के अर्थ को स्पष्ट करते हुये डॉ. बी. डी. भाटिया ने लिखा है, “समाज ने शिक्षा के कार्यों को करने के लिए अनेक विशिष्ट संस्थाओं का विकास किया है। इन्हीं संस्थाओं को शिक्षा का साधन कहा जाता है। “
शिक्षा के अभिकरण की आवश्यकता
शिक्षा एक सामाजिक विज्ञान एवं एक सामाजिक प्रक्रिया है। ऐसी परिस्थितियों में यह एक आवश्यक दृष्टि से विभिन्न व्यक्तियों के बीच में अनुभव और ज्ञान की प्राप्ति का माध्यम की पूर्ति के निर्मित साधनों की आवश्यकता अनिवार्यतः दिखाई देती है।
दूसरी ओर शिक्षा विकास का दूसरा नाम है। प्राचीन काल से ही विकास के लिये बहुत से लोग, बहुत सी संस्थाएँ और बहुत सी सामग्रियों और वस्तुओं को कौम में लाते थे और प्रयत्नपूर्वक साधनों की प्राप्ति की जाती थी। समाज के सदस्यों के नव निर्माण एवं अपसरण के विचार से समाज में पाये जाने वाले सम्बलों की सहायता ली जाती थी और ये सम्बल शिक्षा के साधन ही थे। अस्तु समाज की निधि को प्राप्त करने, सम्हालने और सुरक्षित रखने तथा उसे नये सदस्यों को प्रदान करने की दृष्टि से शिक्षा के साधनों की आवश्यकता पड़ती थी और आज भी पड़ती है। समाज ही सुदृढ़ता और उसके पुनर्जीवन के विचार से शिक्षा के साधन आवश्यक बताये जाते हैं। इन साधनों के कारण समाज की संरचना मजबूत होती है और सदस्य परस्पर एक-दूसरे के साथ हिल-मिल कर सिखाने सीखने के लिये जीवन यापन करते रहे हैं और आगे भी वैसा करते रहेंगे, अन्यथा समाज आगे बढ़ने में असमर्थ होगा। इसे ध्यान में रखकर समाज के वयोवृद्ध और अनुभवी लोगों ने इन साधनों को जान-बूझ कर रखा और इनका ज्ञान शिक्षा देने एवं शिक्षा लेने वालों के लिये आवश्यक बताया, तभी तो इन्हें शिक्षा शास्त्र के विद्यार्थियों के लिये अनिवार्यतः अध्ययन कराया जाता है। शिक्षा के कार्यों पर ध्यान देने से विदित होता है कि यह आत्मसुधार और सामाजिक सुधार की एक महती प्रक्रिया है। जीवन के विभिन्न अंग हैं जैसे पारिवारिक, नैतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक, साहित्यिक, कलात्मक और सौन्दर्य सम्बन्धी तथा आर्थिक और राजनीतिक। इस विचार से शिक्षा के विभिन्न साधन भी बताये गये हैं जिससे उस विशेष साधन को प्रयोग करने की आवश्यकता पड़ती है तथा इन विशिष्ट क्षेत्रों में सुधार सम्भव होता है।
उदाहरण के लिये पारिवारिक क्षेत्र से सम्बन्धित सुधार के लिये गृह शिक्षा का एक साधन है। समाज में नैतिक जीवन को सुधारने के विचार से समुदाय, जाति, वर्ग और इससे जुड़े हुये विभिन्न परिषदें हैं। इसी प्रकार धार्मिक एवं आध्यात्मिक सुधार के लिये चर्च, मन्दिर, मस्जिद, मठ आदि शिक्षा के साधन हैं साहित्यिक, कलात्मक एवं सौन्दर्य सम्बन्धी सुधार के लिये विद्यालय, पुस्तकालय, कलावीथिका, प्रदर्शनी, नाट्य मण्डली, सिनेमा, रेडियो आदि साधनों की आवश्यकता होती है, तभी तो मानव समूह के लिये अनिवार्य हो गई है।
आर्थिक सुधार की दृष्टि से व्यवसाय विद्यालय, व्यापार मण्डल, सेवायोजन केन्द्र एवं रोजगार दफ्तर बने हैं, ये भी शिक्षा के साधन है। राज्य नागरिकता और शासन में लिये बना है और इससे भी शिक्षा के कार्यों की पूर्ति होती है। अतएव स्पष्ट है कि जीवन के विभिन्न कार्यों को पूर्णतया सम्पन्न करने के लिये शिक्षा के विभिन्न साधनों की सुधार के आवश्यकता पड़ती है। दूसरे शब्दों में इन साधनों की आवश्यकता जीवन के कार्य-कलाप की पूर्ति के लिये होती है।
शिक्षा के साधनों का वर्णीकरण (Classification of Agencies Education)– सामान्यतः शिक्षा के साधनों को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है। ये वर्ग निम्नलिखित है—
- औपचारिक साधन (Formal Agencies)
- अनौपचारिक साधन (Informal Agencies)
शिक्षा के साधनों को एक दूसरे ढंग से भी वर्गीकृत किया जाता है। इसके अनुसार शिक्षा के समस्त साधनों को निम्नलिखित दो वर्गों में विभक्त किया जाता है-
- सक्रिय साधन (Active Agencies)
- निष्क्रिय साधन (Passive Agencies)
शिक्षा के साधनों को एक अन्य ढंग से भी वर्गीकृत किया जाता हैं इसके अनुसार स शिक्षा के समस्त साधनों को निम्नलिखित दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-
व्यावसायिक साधन (Commercial Agencies) तथा अव्यावसायिक साधन (Non- Commercial Agencies)
(1) औपचारिक साधन (Formal Agencies)- शिक्षा के औपचारिक साधन वे है जहाँ पर बालकों को जान-बूझकर नियमित रूप से निश्चित स्थान पर निश्चित व्यक्तियों द्वारा शिक्षा प्रदान की जाती है। इसके अन्तर्गत विद्यालय, पुस्तकालय, पुस्तकें, आदि आते हैं। संकीर्ण रूप से केवल विद्यालय ही इस श्रेणी में आते हैं। औपचारिक साधनों के अभाव में समाज अथवा राज्य अपने उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं कर सकते हैं। साथ ही इनके अभाव में जटिल समाज के समस्त अर्जित गुणों, साधनों तथा उपलब्धियों को भावी पीढ़ी को हस्तान्तरित करना सम्भव नहीं है। इसके द्वारा बालकों को व्यवस्थित रूप से ज्ञान प्रदान किया जाता है।
(2) अनौपचारिक साधन (Informal Agencies)– शिक्षा के अनौपचारिक साधन वे हैं जिनमें किसी नियम के बिना शिक्षा प्रदान की जाती है। इनमें विधिपूर्वक प्रवेश करना आवश्यक नहीं होता न ही इनका कोई निश्चित पाठ्यक्रम होता है। ऐसे साधन निजी क्रियाओं द्वारा स्वाभाविक रूप से शिक्षा प्रदान करने का काम करते है। इनमें बालक जब व्यक्तियों के कार्यों को देखता है, उनका अनुसरण करता है और उनमें भाग लेता है तब वह अनौपचारिक रूप से शिक्षा प्राप्त करता है। इनके अन्तर्गत घर या परिवार, समुदाय, धार्मिक संस्थाएँ, संगी-साथी राज्य, रेडियों, समाचार पत्र, नाटक, सिनेमा साधन आदि आते हैं। व्यक्ति की अधिकांश शिक्षा इन्हीं साधनों द्वारा होती है। इनका सभ्यता एवं संस्कृति के संरक्षण और विकास में बड़ा महत्व होता है। ये अनुभव को विस्तृत बनाते हैं और कल्पना को प्रेरणा प्रदान करते हैं। ये कथन और विचार में शुद्धता एवं सजीवता लाते हैं।
(3) सक्रिय साधन (Active Agencies)- शिक्षा के सक्रिय साधन वे है जिनमें शिक्षा देने वाले तथा शिक्षा ग्रहण करने वाले में प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया होती है। अतः दोनों एक दूसरे पर क्रिया एवं प्रतिक्रिया करते हैं। इस प्रकार दोनों के आचरण में रूपान्तर होता है। इसके अन्तर्गत परिवार, समुदाय, राज्य, विद्यालय, सामुदायिक केन्द्र, चर्च आदि आते है।
(4) निष्क्रिय साधन (Passive Agencies) – शिक्षा के निष्क्रिय साधन वे हैं जिनका प्रभाव एक तरफा होता है। इनमें शिक्षा देने वाला पक्ष निष्क्रिय होता है। इनके द्वारा दूसरों को शिक्षा प्राप्त करने वालों को प्रभावित किया जाता है, पर स्वयं शिक्षा प्रदान करने वाले प्रभावित नहीं होते हैं। परन्तु वास्तव में जनमत, तथा सरकारी नियंत्रण द्वारा इनको (शिक्षा देने वालो को) भी प्रभावित किया जाता है। इनके अन्तर्गत प्रेस या समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ टेलीविजन, सिनेमा आदि आते हैं।
(5) व्यावसायिक साधन (Commercial Agencies) ब्राउन महोदय ने इस श्रेणी के अन्तर्गत उन साधनों को रखा है जिनका निर्माण व्यावसायिक दृष्टि से किया जाता है। उदाहरणार्थ— रेडियो, टेलीविजन, नाट्यशाला, नृत्यशाला, सिनेमा, प्रेस (समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएं) आदि। ये साधन प्रत्यक्षतः एवं परोक्ष दोनों रूपों से बालक के ज्ञान में वृद्धि करते हैं।
(6) अव्यावसायिक साधन (Non-Commercial Agencies) शिक्षा के अव्यावसायिक साधन वे है जिनका निर्माण समाज की सेवा के लिये किया जाता है। इनका निर्माण एवं प्रयोग व्यावसायिक दृष्टिकोण से नहीं किया जाता है। इनके अन्तर्गत खेल-कूद संघ, समाज कल्याण केन्द्र, स्काउटिंग, युवक कल्याण संगठन, प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र, सामुदायिक केन्द्र आते हैं इनके द्वारा बालक के समाजीकरण में बहुत योगदान किया जाता हैं।
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