शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए। आप किस उद्देश्य को सबसे अधिक महत्वपूर्ण समझते हैं?
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शिक्षा के उद्देश्य की आवश्यकता
किसी भी कार्य को करने से पहले उसके उद्देश्य की जानकारी अवश्य होनी चाहिए। इसी प्रकार शिक्षा प्राप्ति पूर्व उसके उद्देश्य का ज्ञान अवश्य होना चाहिए। अतः शिक्षा के उद्देश्य की अत्यन्त आवश्यकता होती अथवा है। यदि शिक्षा के उद्देश्य का सही ज्ञान शिक्षक और शिक्षार्थी को नहीं हुआ तो स्थिति अत्यन्त भयावह हो सकती है। डॉ. बी.डी. भाटिया के शब्दों में “उद्देश्य के ज्ञान के अभाव में शिक्षक उस नाविक के समान है, जिसे अपने लक्ष्य या मंजिल का ज्ञान नहीं और विद्यार्थी उस पतवारहीन नौका के सदृश है, जो समुद्र की लहरों के थपेड़े खाती हुई तट की ओर बहती रहती है। “इस प्रकार उद्देश्य रहित शिक्षा निरर्थक है। प्रत्येक काल में शिक्षा के उद्देश्य उस देश के जीवन के आदर्शों पर आधारित रहे हैं। अरस्तू ने ठीक ही लिखा है “इस विषय में मतैक्यता नहीं है कि बालक को क्या सीखना चाहिए। प्रो. हार्नी के अनुसार “शिक्षा का कोई अन्तिम उद्देश्य नहीं है जो छोटे-छोटे उद्देश्य को शासिल करें। अन्त में जान डी०वी० का कथन ज्यादा सही प्रतीत होता है कि शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं हैं वरन जीवन यापन की प्रक्रिया है।
शिक्षा के सामान्य उद्देश्य
1. जीविकोपार्जन का उद्देश्य – हर युग में मानव के लिए जीविकोपार्जन एक प्रमुख समस्या रही है। शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य जीविकोपार्जन भी रहा है। इसके अनुसार बालक को किसी व्यवसाय की शिक्षा दी जानी चाहिए, जिससे वह भविष्य में अपनी जीविका कमा सके।
महात्मा गांधी के अनुसार “सच्ची शिक्षा से बालकों को बेरोजगारी से एक प्रकार की सुरक्षा होनी चाहिए।
2. ज्ञानार्जन का उद्देश्य – प्राचीन काल से ही शिक्षा का यह उद्देश्य प्रमुख रहा है। अनेक शिक्षाविदों ने इसे शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य माना है। सुकरात, प्लेटो, अरस्तू आदि विद्वानों ने शिक्षा के इसी उद्देश्य को महत्व दिया है। बेकन और कामेनियस ने ज्ञान को मानव समाज के कल्याण के लिए आवश्यक माना है। साधारण लोगों ने शिक्षा इसी उद्देश्य से प्राप्त की। इस उद्देश्य के अन्तर्गत केवल दो कार्य है- ज्ञान प्राप्त करना और प्राप्त किये हुए ज्ञान को दूसरे तक पहुँचाना ।
3. चरित्र विकास का उद्देश्य – अनेक शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य चरित्र का निर्माण स्वीकार किया है। प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनुसार “भारत सहित सारे विश्व के कष्टों का कारण यह है कि शिक्षा केवल मस्तिष्क के विकास तक परिमित रह गयी है। उसमें धार्मिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों का समावेश नहीं है।
4. मानसिक विकास का उद्देश्य – मानसिक विकास का अर्थ विचार शक्ति, कल्पना शक्ति, स्मरण शक्ति आदि का विकास है। शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य की विचार-शक्ति को पुष्ट बनाना है, उसकी बुद्धि को तीव्रता तथा क्रियात्मकता प्रदान करना है। इस प्रकार मनुष्य अपनी शिक्षा तथा ज्ञान का समुचित उपयोग कर सकेगा। फिर उसका ज्ञान सैद्धान्तिक न रहकर व्यावहारिक हो जायेगा और आवश्यकता पड़ने पर मनुष्य के काम आ जायेगा। इस प्रकार मानसिक विकास होने पर मनुष्य किसी भी कार्य को बिना सोचे-समझे नहीं करता और इससे उसे व समाज को किसी प्रकार की हानि होने की सम्भावनाएं नही रहती।
5. शारीरिक विकास का उद्देश्य – यह भी शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है। इस उद्देश्य के अनुसार शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे बालक का शरीर स्वस्थ तथा बलवान हो। प्राचीन काल में शारीरिक विकास पर बहुत बल दिया जाता था। रूसो ने भी शिक्षा के इस उद्देश्य पर बल दिया है। उसके अनुसार बालक को आरम्भ में खेल-कूद तथा व्यायाम करना चाहिए, जिससे वह पूर्णरूप से स्वस्थ हो जाये। इस उद्देश्य के अनुयायियों का विचार है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।
6. सांस्कृतिक विकास का उद्देश्य- सदरलैण्ड और वुडवर्थ के अनुसार “संस्कृति में वह प्रत्येक वस्तु सम्मिलित है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संक्रमित हो सकती है। किसी जन समुदाय की संस्कृति, उसका ज्ञान, विश्वास, कला, नैतिकता, कानून तथा विचार की पद्धति है। “
ओटावे के अनुसार “शिक्षा का एक प्रमुख कार्य सांस्कृतिक मूल्यों एवं समाज के व्यवहार के प्रतिमानों को अपने तरूण तथा शक्तियुक्त सदस्यों को प्रदान करना है।”
वर्तमान भारत के लिए शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य
वर्तमान समय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में तीव्र गति से परिवर्तन हो रहा है। वर्तमान परिस्थितियों में भारतीय परिवेश में शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य होने चाहिए।
1. ज्ञान प्राप्ति का उद्देश्य प्राचीन काल से ही यह शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य रहा है। साधारणजनों ने शिक्षा को सदा इसी रूप में ग्रहण किया है। अनेक शिक्षाशास्त्रियों ने भी इसे एक उद्देश्य माना है। व्यापक रूप में हम यह कह सकते हैं कि किसी भी रूप में जो कुछ सीखा जाता है, वह ज्ञान ही है। यदि हम अपने जीवन की ओर देखें, तो ज्ञात होगा कि ज्ञान की आवश्यकता हमें पग-पग पर पड़ती है।
2. जीविकोपार्जन का उद्देश्य अनेक विद्वानों का मानना है कि जीविकोपार्जन शिक्षा को सर्वप्रमुख उद्देश्य होना चाहिए। कुछ विद्वानों को तो यहाँ तक मानना है कि जो शिक्षा हमारे आर्थिक जीवन के लिए उपयोगी नहीं है, वह व्यर्थ है। अन्न एवं वस्त्रहीन व्यक्ति को ऐसी शिक्षा देना जो उसकी सबसे बड़ी समस्या को सुलझाये बिना छोड़ दे एक प्रकार का मानसिक व्यभिचार है। थोथे आदर्शवाद से प्रेरित होकर हम भले ही आर्थिक दृष्टिकोण की उपेक्षा करने लगें, पर कोई भी पक्षपातरहित व्यक्ति इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि आर्थिक समस्या हमारी सबसे बड़ी समस्या है। शिक्षा का कोई भी सम्बन्ध यदि जीवन को अधिक सफल सुखमय बनाने से हैं, तो उसे जीविकोपार्जन के साधन सुलभ कराने ही होंगे।
3. अच्छी नागरिकता की शिक्षा का उद्देश्य वर्तमान भारत के लिए जरूरी है कि हम अच्छे नागरिक बनें। शिक्षा का कार्य है छात्रों में ऐसे गुणों को पैदा करना तथा उन्हें ऐसे अनुभव प्रदान करना, ताकि वे वास्तविक जीवन में समाज के उपयोगी सदस्य बनकर रह सकें। एक नागरिक के रूप में हमारे कुछ अधिकार और कर्तव्य है। शिक्षा हमें वह योग्यता प्रदान करती है, जिसके आधार पर हम इन कर्तव्यों और अधिकारों को पहचान सकें।
4. अवकाश सदुपयोग के लिए शिक्षा- शिक्षा के द्वारा हम केवल अधिक कुशलतापूर्वक जीविकोपार्जन ही नही करते, अपितु अपने खाली या अवकाश के समय का ठीक प्रयोग करना भी सीखते हैं। इस मत के समर्थकों का यहाँ तक कहना है कि शिक्षा की वास्तविक उपयोगिता जीविकोपार्जन में न होकर अवकाश में है। शिक्षा का उद्देश्य वह तरीका सिखाना है, जिससे कि हम अपने अवकाश के समय को भली भांति बिता सकै ।
5. शारीरिक स्वास्थ्य का विकास- स्वस्थ नागरिक ही देश की सुरक्षा एवं सेवा की आधारशिला होते हैं। भारतीयों का स्वास्थ्य गिरा हुआ है अतः विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा का निश्चित कार्यक्रम होना आवश्यक है।
6. चारित्रिक निर्माण एवं विकास- वर्तमान भारत में विभिन्न कारणों से नागरिकों का चारित्रिक पतन होता जाता है अतः शिक्षा अन्तर्गत चरित्र निर्माण को सम्मिलित करना आवश्यक है। नागरिकों में राष्ट्रीय चरित्र का विकास न होने से देश को अनेक समस्याओं एवं कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
7. नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना- वर्तमान भारतीय समाज में नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों तथा अनुशासन की भावना भी नष्ट हुई है। सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना, नैतिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक मूल्यों की शिक्षा देने के लिए कारगर उपाय किये जाने चाहिए। अतः नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों की शिक्षा अति आवश्यक है।
8. बौद्धिक विकास- बुद्धि व्यक्ति को कुशलतापूर्वक कार्य करने में सहयोगी है। बुद्धिमान व्यक्ति ही उचित रूप से कार्य कर सकता है। अतः बालकों की बुद्धि का समुचित विकास करना भी भारतीय शिक्षा का एक आवश्यक उद्देश्य है।
9. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास – आधुनिक भारत में आज भी अनेक लोग अन्धविश्वासों और गलत परम्पराओं को पाले हुए है। अतः समय की मांग है कि अन्धविश्वासों और पुरातनपंथी विचार का त्याग कर वैज्ञानिक विचार व आधुनिक दृष्टिकोण अपनाया जाये।
10. अन्तर्राष्ट्रीय भ्रातृत्व का विकास – वैश्वीकरण के कारण संसार के देश एक होते जा रहे हैं। आज सभी देश एक-दूसरे पर निर्भर कर रहे हैं। विज्ञान ने देशों की दूरियां समाप्त कर दी है। अतः शिक्षा को ऐसा बनाना आवश्यक हो गया है कि व्यक्ति स्वयं को विश्व-नागरिक समझे। ईर्ष्या, बैर-भाव को त्यागकर अन्तर्राष्ट्रीय को अपनायें अर्थात शिक्षा में वसुधैव कुटुम्बकम् का उद्देश्य सम्मिलित किया जाये।
11. लोकतान्त्रिक मूल्यों का विकास – भारत में लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था की सफलता तभी सम्भव है, जबकि इसको लोकतान्त्रिक मूल्यों पर आधारित किया जाये। शिक्षा का उद्देश्य प्रत्येक क्षेत्र में समानता, सहयोग, निष्पक्षता और स्वतन्त्रता के मूल्यों का विकास करना होना चाहिए।
12. सामाजिक कुरीतियों की समाप्ति का उद्देश्य – वर्तमान भारतीय समाज जाति प्रथा, बाल-विवाह, दहेज, परदा प्रथा आदि अनेक कुरीतियों / दुष्प्रथाओं से ग्रसित है। अतः हमारी शिक्षा का उद्देश्य इन विभिन्न कुरीतियों को दूर करने के लिए जनमत को तैयार करना होना चाहिए। शिक्षित लोग इन कुप्रथाओं का विरोध और उनका निराकरण करने में पूर्णतः सक्षम होंगे।
13. धार्मिक समस्याओं का समाधान – भारत में धार्मिक बहुलता पायी जाती है। धर्म के प्रश्न पर देश में खूनी संघर्ष होते हैं। देश का विभाजन धर्म को लेकर हुआ है। आजादी के बाद भी देश में धर्म को लेकर बड़ी असहिष्णुता पायी जाती है। भारतीय दूसरे धर्मों को आदर की दृष्टि से नही देखते। छोटी-छोटी बातों पर धार्मिक दंगे-फसाद होने से विभिन्न धर्मावलम्बियों में गहरी खाई बन गयी है। अतः शिक्षा का उद्देश्य धार्मिक सहिष्णुता एवं सद्भाव का विकास होना चाहिए। यह कार्य लौकिक-शिक्षा देकर किया जा सकता है।
14. नेतृत्व का विकास – भारतीय प्रजातन्त्र की सफलतार्थ यह आवश्यक है कि छात्रों को नेतृत्व करने की समुचित शिक्षा दी जाये। नेतृत्व क्षमता प्रत्येक व्यक्ति में नहीं होती इसलिए शिक्षा के माध्यम से योग्य व्यक्तियों में नेतृत्व के गुणों का विकास करने वाली शिक्षा देने की व्यवस्था की जाये।
इस प्रकार उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि शिक्षा जीवन की तैयारी मात्र नहीं बल्कि जीवन यापन की प्रक्रिया है।
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