शिक्षा के संकुचित एवं व्यापक अर्थ से आप क्या समझते हैं? वर्तमान भारतीय सन्दर्भ में शिक्षा के क्या प्रमुख उद्देश्य होने चाहिए।
शिक्षा का संकुचित अर्थ- शिक्षा के संकीर्ण अर्थ के अनुसार शिक्षा का तात्पर्य बालक को पाठशाला में दी जाने वाली शिक्षा से लिया जाता है। इस अर्थ के अनुसार शिक्षा कुछ विशेष प्रभावों तथा विषयों के अध्ययन तक ही सीमित रहती है। इस तरह की शिक्षा को बालक एक पूर्व निर्धारित योजना द्वारा प्राप्त करता है। इस प्रकार की शिक्षा जीवन के कुछ ही वर्षों तक प्राप्त की जाती है। प्रायः पाठशालाओं में अध्यापकगण छात्रों को वही ज्ञान प्रदान करते हैं जिसे समाज के प्रौढ़ नागरिक उनके जीवन के लिए उपयोगी मानते हैं। इस प्रकार के उपयोगी ज्ञान का संकलन पाठ्यक्रम अथवा विषयों के रूप में अध्यापकों द्वारा बालकों को पढ़ाया जाता है।
“शिक्षा के संकीर्ण अर्थ को स्पष्ट करते हुए एक पुस्तक में मिल महोदय ने लिखा है कि, “व्यक्तिगत परिश्रम द्वारा प्राप्त उन्नति को स्थिर रखने के लिए भरसक उसकी अभिवृद्धि के लिए वर्तमान समाज जो संस्कृति नवीन समाज को प्रदान करता है वह शिक्षा कहलाती है।”
इसी तरह शिक्षा के संकुचित अर्थ को स्पष्ट करते हुए टी० रेमाण्ट ने लिख है कि, “संकुचित तथा अधिक निश्चित अर्थ में शिक्षा में वैयक्तिक संस्कार तथा आस-पड़ोस के सामान्य प्रभाव निहित नहीं है। वरन् उसके केवल वे विशिष्ट प्रभाव निहित है जो समुदाय के वयस्क नागरिकों द्वारा बालकों पर निश्चित एवं जागरूक होकर डाले जाते हैं। व्यस्क नागरिक इन प्रभावों को पूर्व निश्चित योजना के अनुसार बालकों के संवर्द्धन के लिए डालते हैं।”
यहाँ पर शिक्षा के जिस अर्थ को स्पष्ट किया गया है वह किताबी ज्ञान पर अधिक बल देती है। इससे बालक विभिन्न विषयों का अध्ययन करके अनुभवी तथा ज्ञानी हो जाते हैं। परन्तु उन्हें व्यवहारिक ज्ञान नहीं प्राप्त हो पाता है। इस तरह शिक्षा का संकुचित अर्थ सैद्धान्तिक ज्ञान पर अधिक बल देता है। इस तरह की शिक्षा बालक का सर्वांगीण विकास करने में पूर्ण समर्थ नहीं होती है। शिक्षा के संकुचित अर्थ को स्पष्ट करने के लिए सामान्यतः निर्देश शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। निर्देश एक प्रकार का सैद्धान्तिक पक्ष है। अन्ततः शिक्षा के संकुचित अथवा संकीर्ण अर्थ को स्पष्ट करने के लिए जे०एस० पैकेन्जी ने कहा है कि- “संकुचित अर्थ में शिक्षा का तात्पर्य हमारी शक्तियों के समुचित विकास एवं उन्हें उन्न बनाने के लिए जागरूक होकर किये गये प्रयासों से हैं।”
अतः स्पष्ट है कि जो शिक्षा पुस्तकों के द्वारा विद्यालयों के माध्यम से ग्रहण की जाती है वह संकीर्ण है। शिक्षा का संकीर्ण स्वरूप अथवा संकीर्ण अर्थों में ली जाने वाली शिक्षा मात्र औपचारिक तथा सैद्धान्तिक ही हो सकती विकास असम्भव माना जाता है। यही कारण है कि इस प्रकार की शिक्षा से बालक का पूर्ण कि इस प्रकार की शिक्षा को विद्वानों ने केवल निर्देश मात्र माना है।
शिक्षा का व्यापक अर्थ
व्यापक अर्थों के अन्तर्गत शिक्षा का सम्बन्ध संसार की सम्पूर्ण धातुओं से जुड़ा हुआ है। अतः आप कह सकते हैं कि शिक्षा के व्यापक अर्थ के अन्तर्गत मानव जीवन का प्रत्येक पहलू आ जाता है। इस अर्थ के अनुसार सम्पूर्ण विश्व शिक्षा का एक विशाल मैदान है। इस विशाल विश्व में प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का कुछ न कुछ, किसी न किसी रूप में कुछ सिखाता है। सामान्यतः जिस परिस्थिति अथवा वातावरण में व्यक्ति अपना जीवन व्यतीत करता है उसमें वह किसी न किसी रूप में कुछ न कुछ शिक्षा अवश्य प्राप्त करता रहता है। यहाँ तक कि वह अपने आस-पास के अन्य प्राणियों, जीवों तथा पतंगों तक से शिक्षा ग्रहण करता है। इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने के लिए कोई विशिष्ट स्थान तथा समय निर्धारित नहीं रहता है।
जीवन रूपी इस तरह की शिक्षा को किसी भी स्थान पर, किसी भी परिस्थिति में, किसी भी क्षण ग्रहण किया जा सकता है। अतः इस दृष्टि से शिक्षा ही जीवन है और जीवन शिक्षा है। इसी तथ्य के सम्बन्ध में शिक्षा के परम शिक्षावेत्ता टी. रेमाण्ट ने लिखा है कि “वस्तुतः जीवन ही मनुष्य को शिक्षित करता है। मनुष्य अपने व्यवसाय, पारिवारिक जीवन, मित्रता, शादी, पैतृकता, मनोरंजन, यात्रा आदि के द्वारा शिक्षित किया जाता है।”
वास्तव में शिक्षा को मानव विकास की प्रक्रिया माना गया है। विकास की तरह प्रक्रिया मनुष्य के भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक वातावरण में उद्घटित होती है। वातावरण के अनुसार ही व्यक्ति विकासोन्मुख होता जाता है। अतः शिक्षा के व्यापक अर्थ के अनुसार शिक्षा का तात्पर्य उस विकास से हैं जो व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक निर्बाध रूप से चलता रहता है। इसी विकास शक्ति के बल पर मनुष्य अनेक विपरीत परिस्थितियों एवं वातावरण पर विजय प्राप्त करता है। इसी तरह कर्तव्यपालन के क्षेत्र में दृढ़ रहते जीवन की अनेक समस्याओं से संघर्ष करता हुआ तथा उनको सुलझाता हुआ वह आगे निकल जाता है। मनुष्य के विकास की इस प्रक्रिया की अवधि में उसकी सम्पूर्ण मानसिक तथा शारीरिक शक्तियां पूर्ण विकास की ओर अग्रसर रहती है। मानव शरीर के विभिन्न विकास शिक्षा प्रक्रिया के द्वारा सर्वोत्कृष्ट शीर्ष तक पहुँचते हैं। अतः विस्तृत एवं व्यापक अर्थों में शिक्षा का अर्थ मनुष्य के बहुमुखी विकास से होता है। इसी विचार को स्पष्ट करते हुए टी. रेमाण्ट ने लिखा है कि, “शिक्षा विकास की वह प्रक्रिया है जिससे मानव स्वयं को विभिन्न अंगों से, विभिन्न ढंगों से तथा अनेक प्रसंगों से अपने आप को) समाज के अनुकूल बनाता है।” इसके अतिरिक्त रेमाण्ट ने आगे भी कहा है कि शिक्षा विकास की वह प्रक्रिया है जिससे मनुष्य अपने आप को विभिन्न तरीकों द्वारा भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूल बनाता है। अतः शिक्षा का व्यापक अर्थ अपने आप में व्यापक परिस्थितियों को समेटे हुए है। यही कारण है कि विस्तृत अर्थों में समाज की अनयोन्य परिस्थितियां शिक्षा के साथ मानव जीवन से जुड़ी हुई है।
वर्तमान भारतीय परिस्थितियों को देखते हुए शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य होने चाहिए-
- शारीरिक स्वास्थ्य का उद्देश्य,
- चारित्रिक विकास का उद्देश्य,
- मानसिक विकास का उद्देश्य,
- बौद्धिक विकास का उद्देश्य,
- सांस्कृतिक विकास का उद्देश्य,
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उद्देश्य,
- देश प्रेम का विकास,
- जातीय एवं साम्प्रदायिक एकता का विकास,
- पर्यावरण के प्रति जागरूकता,
- सांस्कृतिक भावना का विकास,
- सामाजिक कुरीतियों का समाधान,
- भ्रष्टाचार का उन्मूलन,
- गरीबी व बेकारी दूर करना,
- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास,
- लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा
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