पर्यवेक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिएँ ?
शैक्षिक पर्यवेक्षण को अधिक प्रभावशाली किस प्रकार बनाएँ ? (How to make the Educational Supervision More Effective)
विद्यालयों में पर्यवेक्षण का कार्य साधारण न होकर अत्यन्त कठिन होता है। स्वतन्त्रता से पूर्व तो पर्यवेक्षक तानाशाह के रूप में होता था। उसके आदेशों का पालन करना अति आवश्यक था, किन्तु आज स्वतन्त्र भारत की परिस्थितियों में पर्यवेक्षक की स्थिति में अन्तर आ गया है। पर्यवेक्षक को आज सहयोगी, मित्र तथा परामर्शदाता के रूप में अधिक समझा जाता है। शैक्षिक पर्यवेक्षण को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए कुछ आवश्यक बातों की ओर ध्यान देना पड़ता है। कुछ बातें निम्नलिखित हैं-
1. निष्पक्षता का निर्वाह- पर्यवेक्षण में सर्वत्र निष्पक्षता का निर्वाह होना चाहिए। विद्यालय के जिस विभाग में कुछ कमी है उसे प्रकाश में लाना चाहिए। उसमें सुधार के लिए भी उदार दृष्टि से सुझाव देने चाहिएँ। अकर्मण्य तथा अयोग्य व्यक्तियों के कार्यों को न देखना तथा कर्मशील व्यक्तियों के प्रति और अधिक कठोर दृष्टि रखना उचित नहीं कहा जा सकता। इस संकीर्ण तथा पक्षपात दृष्टिकोण से विद्यालय के पर्यवेक्षकीय कार्य में बाधा उत्पन्न होती है।
2. स्थानीय आवश्यकताओं पर ध्यान- विद्यालय जिस क्षेत्र में विद्यमान है, उस क्षेत्र की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही पर्यवेक्षण किया जाना चाहिए। विद्यालय की क्षमता का अनुमान करते हुए उसमें उन कार्यों को आरम्भ किया जाना चाहिए जो क्षेत्रीय तथा स्थानीय लाभों को प्राप्त करने के लिए हो।
3. धैर्य एवं नियोजन का पालन- पर्यवेक्षण के कार्य में शीघ्रता तथा हड़बड़ाहट की आवश्यकता नहीं है। पर्यवेक्षक को विद्यालय के प्रत्येक विभाग को धैर्य के साथ देखना चाहिए, उसके सम्बन्ध में अपना मत बनाना चाहिए और विकास हेतु अपने सुझावों को इस प्रकार देना चाहिए, जिससे सभी कर्मचारी सन्तोष प्राप्त कर सकें।
4. सम्पूर्णता का पालन- पर्यवेक्षण करने से पूर्व यह ध्यान रखना चाहिए कि विद्यालय की समस्त क्रियाओं का पर्यवेक्षण किया जाए। एकांगी पर्यवेक्षण से विद्यालयों की सर्वांगीण उन्नति नहीं हो सकती।
5. सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार- पर्यवेक्षण के समय सभी के प्रति उदार तथा सहानुभूति का व्यवहार होना चाहिए। इससे पर्यवेक्षण कार्य के प्रति शिक्षकों तथा अन्य कर्मचारियों की आस्था में वृद्धि होती है।
6. उचित मार्गदर्शन– पर्यवेक्षण का मुख्य उद्देश्य शिक्षकों का मार्गदर्शन करना है। पर्यवेक्षक को मार्गदर्शन के कार्य में स्वयं दक्ष होना चाहिए। अध्यापकों के शिक्षण कार्य को देखने के अतिरिक्त यदि कोई पर्यवेक्षक स्वयं भी उत्तम शिक्षण का आदर्श उपस्थित करता है तो उसका प्रभाव गहरा होता है। दूसरों की आलोचना करने की अपेक्षा स्वयं उदाहरण प्रस्तुत करना अधिक श्रेयस्कर होता है। पर्यवेक्षक को कुशल मार्गदर्शक होना चाहिए ।
7. शिक्षकों तथा छात्रों के विकास का ध्यान- पर्यवेक्षण का उद्देश्य शिक्षकों तथा छात्रों के ज्ञान तथा कौशल में वृद्धि करना है। इस सम्बन्ध में एडम्स तथा डिकी का कथन है- “पर्यवेक्षण का सम्बन्ध केवल इस बात से होना चाहिए कि वह शिक्षकों तथा छात्रों के भावी विकास में सहायक हो। “
8. मनोवैज्ञानिकता का पालन- शैक्षिक पर्यवेक्षण में प्रशंसा, पुरस्कार, प्रेरणा, पुनर्बलन’ आदि का महत्वपूर्ण स्थान होता है। शिक्षकों की निन्दा, आलोचना तथा दोष निकालना आदि कार्य तो शिक्षकों में निराशा उत्पन्न करते हैं। पर्यवेक्षक का . मुख्य कार्य शिक्षकों को प्रोत्साहन देना तथा उन्हें शिक्षण कौशल के लिए तैयार करना है। इस कार्य में मनोवैज्ञानिक विधियों को अपनाना लाभप्रद होता है।
9. मूल्यांकन प्रक्रिया का पालन- शैक्षिक पर्यवेक्षण कितना सुधारात्मक, लाभप्रद तथा सहयोगात्मक है, इसके लिए मूल्यांकन की कुछ विधियों का पालन किया जाना चाहिए। कुछ निश्चित मापदण्ड ही शैक्षिक पर्यवेक्षण और उसके कार्य की उत्तमता का निश्चय कर सकते हैं। यदि पर्यवेक्षण कार्य का विद्यालयों में कोई शुभ परिणाम नहीं निकलता तो इसमें परिवर्तन किया जाना चाहिए। उदाहरणार्थ, विद्यालयों में, टोली निरीक्षण (Panel Inspection), कक्षा भवनों में शिक्षण विधि, छात्र अनुशासन, शिक्षकों के मानवीय सम्बन्ध, परीक्षा प्रणाली आदि कार्य कितने सुधारात्मक अथवा खानापूरी करने वाले हैं, इसका उचित मूल्यांकन किया जाना चाहिए और उसमें आवश्यक परिवर्तन करके शैक्षिक पर्यवेक्षण के कार्य को उपयोगी बनाना चाहिए।
10. वैज्ञानिकता तथा रचनात्मकता पर ध्यान- शैक्षिक पर्यवेक्षण के कार्य को वैज्ञानिक ढंग से किया जाना चाहिए। शैक्षिक पर्यवेक्षण के कार्य को पहले ध्यानपूर्वक देखना, निरीक्षण करना, प्रयोग करना, किसी तथ्य पर पहुँचना एवं सभी को लाभान्वित करने के लिए अमूल्य सुझाव देना ही वैज्ञानिकता के नियम का पालन करना है। पर्यवेक्षण से विद्यालय के कार्यों में रचनात्मकता आनी चाहिए। छात्रों को कुशल नागरिक बनाने में, प्रयोगशाला में निपुणतापूर्वक कार्य करने में, अच्छा खिलाड़ी बनने में पर्यवेक्षण सहायक होना चाहिए। कार्यशालाओं में यदि छात्र अपने उपयोग की वस्तुओं को कुशलतापूर्वक बनाते हैं तो इस कार्य में पर्यवेक्षण का महत्व अवश्य होता है।
उपर्युक्त विशेषताओं के अतिरिक्त भी कुछ ऐसे नियम, गुण तथा कार्य हैं, जिनसे “शैक्षिक पर्यवेक्षण” को प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
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