सहानुभूति का अर्थ तथा परिभाषा देते हुए सहानुभूति के मुख्य प्रकारों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। सहानुभूति का शिक्षा में क्या महत्व है ?
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सहानुभूति का अर्थ तथा परिभाषा (Meaning and Definition of Sympathy)
“सहानुभूति” शब्द का प्रयोग साधारणतः उस समय किया जाता है, जब हमारे हृदय में दूसरे व्यक्ति के प्रति कोमल भावना का उदय होता है। कुछ मनोवैज्ञानिकों ने ‘सहानुभूति’ को एक विशेष प्रकार का संवेग (Emotion) माना है। इसका अभिप्राय यह है कि दूसरे व्यक्तियों में एक प्रकार का संवेग देखकर, हम भी उस संवेग का अनुभव करने लगते हैं, उदाहरणार्थ, दूसरे को दुःखी देखकर दुःखी और सुखी देखकर सुखी होना ।
सहानुभूति का अर्थ है दूसरों के अनुभवों की अनुभूति करना। किसी को प्रसन्न देखकर स्वयं प्रसन्न होना सहानुभूति का एक रूप है। जेम्स ने इसे एक प्रकार का संवेग कहा है। यह सीखी गई प्रतिक्रिया का परिणाम है। इसमें सामाजिकता, संस्कृति, संस्कार एवं परम्परा निहित है। इस सहज प्रवृत्ति से व्यक्ति के सामाजिक सम्बन्धों का विकास होता है।
‘सहानुभूति’ का अर्थ और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं-
1. अकोलकर-“सहानुभूति का अर्थ है उसी प्रकार के संवेग का अनुभव करना, जिसका अनुभव दूसरा व्यक्ति कर रहा है। “
“Sympathy means experiencing any emotion which is experienced by a fellow-being.” – Akolkar.
2. रेवर्न— “सहानुभूति का अर्थ है-दूसरों के द्वारा व्यक्त किए जाने वाले किसी संवेग की हममें उत्पत्ति।” “Sympathy means the production of any emotion in us by the exhibition of it by others.” – Reyburn
3. क्रो व क्रो– “सहानुभूति एक प्रकार का संवेगात्मक प्रदर्शन है, जिसके द्वारा एक व्यक्ति अपने को दूसरे व्यक्ति की स्थिति में रखने का और उसके सुख या दुःख की भावनाओं का अनुभव करने का प्रयास करता है।”
“Sympathy is an emotional expression by means of which an individual tries to put himself in another’s place and experience the latter’s feelings of joy or sorrow.” – Crow & Crow.
सहानुभूति के प्रकार (Types of Sympathy )
सहानुभूति का वर्गीकरण, परिस्थिति तथा व्यक्ति के आधार पर किया जाता है। सहानुभूति में क्रिया एवं अभिव्यक्ति निहित होती है। इस आधार पर सहानुभूति चार प्रकार की होती है-
1. निष्क्रिय सहानुभूति (Passive Sympathy) – इस सहानुभूति में क्रियाशीलता नहीं होती है; उदाहरणार्थ-हम दुःखी मनुष्य को देखते हैं, पर उसकी सहायता नहीं करते हैं। हम उससे केवल सहानुभूति के दो-चार शब्द कह देते हैं। इस प्रकार निष्क्रिय सहानुभूति मौखिक और कृत्रिम होती है।
2. सक्रिय सहानुभूति (Active Sympathy)- इस सहानुभूति में क्रियाशीलता होती है और हम दूसरे के लिए कुछ करने के लिए तैयार हो जाते हैं; उदाहरणार्थ-हम भूखे भिखारी को देखकर द्रवित हो जाते हैं और उसे भोजन देते हैं।
3. वैयक्तिक सहानुभूति (Personal Sympathy)- यह सहानुभूति एक व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति के प्रति दिखाई जाती है; उदाहरणार्थ-मुसीबत में फंसी किसी बेबस स्त्री को देखकर लगभग सभी लोग उसके प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हैं।
4. सामूहिक सहानुभूति (Collective Sympathy) – यह सहानुभूति एक समूह के सब व्यक्तियों द्वारा कम या अधिक मात्रा में किसी घटना या परिस्थिति के प्रति व्यक्त की जाती है; उदाहरणार्थ-बाढ़ पीड़ितों की सहायता करते समय सामूहिक सहानुभूति अपने स्पष्ट रूप में दिखाई देती है।
सहानुभूति का शिक्षा में महत्व (Importance Sympathy in Education)
शिक्षक में सहानुभूति के महत्व को प्रदर्शित करते हुए बी० एन० झा का मत है—”वे सब शिक्षक, जो कक्षा में बालकों को प्रेरणा देना चाहते हैं, अपनी सफलता के लिए मौलिक निष्क्रिय सहानुभूति की प्रवृत्ति पर निर्भर रहते हैं।”
“The teachers who wish to inspire children in the classroom, all depend on the tendency of primitive passive sympathy.” – B. N. Jha
झा के इन शब्दों से विदित हो जाता है कि शिक्षक और बालक दोनों के लिए सहानुभूति का असीम महत्व है। इस महत्व का बहुमुखी स्वरूप है, यथा-
1. मैक्डूगल (McDougall) के अनुसार शिक्षक की सहानुभूति, बालकों के कार्य को शान्तिमय बनाती है।
2. झा (Jha) के अनुसार शिक्षक, सहानुभूति के द्वारा बालकों का संवेगात्मक विकास कर सकता है।
3. थाउल्स (Thouless) के अनुसार शिक्षके, बालकों में सहानुभूति का गुण उत्पन्न करके, उनको सामाजिक जीवन में में सफलता प्राप्त करने में सहायता दे सकता है।
4. डम्विल (Dumville) के अनुसार शिक्षक, बालकों की सहानुभूति जाग्रत करके उनका सहयोग प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार, वह अपने शिक्षण को सफल बना सकता है।
5. रॉस (Ross) के अनुसार शिक्षक के लिए सहानुभूति वह साधन है, जिससे वह बालकों को एक-दूसरे के निकट सम्पर्क में लाकर, उनमें सामाजिक गुणों का विकास कर सकता है।
6. शिक्षक की सहानुभूति, बालकों को शीघ्र और तन्मय होकर कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
7. झा (Jha) के अनुसार शिक्षक, सहानुभूति के द्वारा बालकों को एक-दूसरे से अपना सम्बन्ध समझने और फलस्वरूप सामाजिक समूह का सदस्य बनने में सहायता देता है।
8. शिक्षक, सहानुभूति के द्वारा बालकों को सरलता से नियन्त्रण में रखने के कारण अनुशासन की समस्या का समाधान कर सकता है।
9. ड्रमंड एवं मैलोन्स (Drummond and Mellons) के अनुसार शिक्षक, बालकों में सहानुभूति का विकास करके, उनको नैतिक कार्यों की ओर प्रवृत्त कर सकता है।
10. शिक्षक, बालकों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करके उनके विचारों और भावनाओं को जान सकता है। अतः वह उनकी समस्याओं का समाधान कर सकता है। उपर्युक्त विवेचन से सिद्ध हो जाता है कि शिक्षक में सहानुभूति का गुण होना अनिवार्य है। इस गुण के अभाव में वह योग्यतम व्यक्ति होने पर भी अपने कार्य में असफल रहेगा। इसलिए, रॉस के अनुसार-“जो व्यक्ति सहानुभूति के गुण से वंचित है, उसे शिक्षक नहीं बनना चाहिए।”
“The person from whom a gift of sympathy is withheld should not become a teacher.” – Ross
इन सभी कथनों पर विचार करके यह कहा जा सकता है कि सहानुभूति का शिक्षा में महत्व निम्न प्रकार है-
- इसके द्वारा नैतिकता तथा सौंदर्यात्मकता का विकास होता है।
- सहानुभूति, अनुशासन बनाने में सहयोग देती है।
- शिक्षण कार्य में सफलता मिलती है।
- बालक का संवेगात्मक विकास करने में सहानुभूति का विशेष महत्व है।
- बालक के सामाजिक विकास में इसका विशेष योगदान है।
- सीखने के प्रति रुचि जाग्रत होती है।
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