स्कूल के प्रधानाध्यापक की सफलता के लिए उसमें कौन-कौन से गुणों का होना आवश्यक है ?
स्टाफ के साथ प्रधानाध्यापक के सम्बन्ध (Headmaster’s Relations with the Staff)
स्टाफ एक प्रकार का सजीव सामान होता है। कोई भी प्रधानाध्यापक स्टाफ के पूर्ण सहयोग के बिना विद्यालय को नहीं चला सकता। स्टाफ के सदस्य उसके हाथ, साधन तथा एजेण्ट होते हैं। यदि स्टाफ के सम्बन्ध प्रधानाध्यापक के साथ बिगड़ जाएँ तो सारे स्कूल में परेशानी उत्पन्न हो जाती है। उसको सभी अध्यापकों के साथ अच्छे सम्बन्ध स्थापित करने चाहिएँ और उनका पूर्ण सहयोग प्राप्त करना आवश्यक है।
परन्तु यह सम्बन्ध किस प्रकार स्थापित किया जाए ? बहुत-से प्रधानाध्यापक इस काम में असफल रहते हैं। उनको कुछ ऐसे सिद्धान्तों पर चलना चाहिए, जो सहयोग तथा प्रसन्नता प्रदान कर सकें।
1. डिक्टेटरशिप हटाना (Abolishing of Dictatorship)- समय के बदलने के साथ ही प्रधानाध्यापक के सम्बन्ध में भी दृष्टिकोण बदल चुका है। उसको तानाशाह तथा शक्तिशाली बनने की आज्ञा नहीं देनी चाहिए। अध्यापकों को डाँट कर या धमकी देकर अथवा उनके स्वाभिमान को चोट पहुँचा कर काम लेने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। वह वर्तमान समय में एक पुलिस इन्स्पैक्टर या फौजी जनरल की भाँति काम नहीं कर सकता। उसको एक मित्र तथा मार्ग-दर्शक की भाँति अन्य सदस्यों के साथ काम करना चाहिए।
2. स्टाफ का सम्मान करना (Respect for the Staff)- प्रधानाध्यापक को स्टाफ के सदस्यों के व्यक्तित्व का सम्मान करना चाहिए। उनके साथ प्यार से बोलना, उन पर विश्वास करना और उचित बर्ताव करना, उनके अन्दर उत्साह पैदा करना चाहिए। उसके ऐसे बर्ताव तथा विश्वास से प्रेरित होकर वे भी ऐसे ही गुण अपनायेंगे।
3. समानता (Equality) – प्रजातन्त्रीय युग में समानता तथा भ्रातृभाव की माँग हो रही है। इसके लिए प्रधानाध्यापक को सभी अध्यापकों के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए। उनके समक्ष समानता के आधार पर बातचीत करनी चाहिए। उसे किसी भी अध्यापक के प्रति गलत फहमी नहीं होनी चाहिए, न ही उसके आज्ञाकारी तथा प्रिय होने चाहिए। उसको उनका मालिक बनकर नहीं, अपितु मित्र तथा काम करने वाले साथियों की भाँति बात करनी चाहिए।
4. योग्यताओं का आदर (Recognition of the Abilities) – प्रधानाध्यापक को प्रत्येक अध्यापक की कुदरती योग्यताओं और शक्तियों को समझना चाहिए। कोई भी अध्यापक अयोग्य नहीं होता। प्रत्येक में कोई न कोई गुण होता है। उसको अध्यापकों में कार्य को योग्यता और अनुभव के आधार पर विभाजित करना चाहिए। उसको अध्यापकों की निजी व्यक्तिगत भिन्नताओं को स्वीकार करना चाहिए। किसी से ऐसे काम की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, जो उससे न हो सके जैसे एक अध्यापक प्रदर्शनी, कवि गोष्ठी आदि का संगठन तो भली प्रकार कर सकता हो, परन्तु खेलों के आयोजन के बारे में कुछ न जानता हो।
5. छात्रों के माता-पिता से सम्बन्ध (Relations with the Parents) – प्रधानाध्यापक को छात्रों के माता-पिता तथा स्कूल के मध्य कड़ी का काम करना चाहिए। छात्रों के माता-पिता की सहायता के साथ ही वह स्कूल सम्बन्धी कठिनाइयों को हल कर सकता है। इस काम के लिए उसको छात्रों के माता-पिता तथा अध्यापकों की मीटिंग बुलानी चाहिए।
माता-पिता को उनके बालकों के विकास की रिपोर्ट भेजनी चाहिए। जब भी वे स्कूल में आएँ, उनको मिलना चाहिए। जब छात्रों के माता-पिता उसके पास शिकायतें लेकर आएँ तो उनकी बात ध्यानपूर्वक सुननी चाहिए। उनका विरोध दूर करना चाहिए।
माता-पिता का पूरा सत्कार होना चाहिए। उनको स्कूल के उत्सवों के लिए बुलाना चाहिए। कई बार महान् माता-पिता स्कूल के उत्सवों की अध्यक्षता करें या भाषण दें। इस प्रकार वे प्रसन्न होंगे और स्कूल की सेवा करने के लिए तैयार रहेंगे। प्रधानाध्यापक ही, छात्रों के माता-पिता के साथ प्यार के सम्बन्ध स्थापित कर सकता है।
“शिक्षा का गुणात्मक स्तर और राष्ट्रीय विकास में योगदान करने वाले विभिन्न तत्वों में अध्यापकों के गुण, योग्यता और चरित्र का निस्सन्देह अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है।”
6. कार्यों का विभाजन (Sharing Responsibility) – मूर्ख प्रधानाध्यापक अपने सभी कर्मचारियों पर विश्वास नहीं करता। वह स्टाफ के सदस्यों की आलोचना का कारण बनता है। उसको आप पढ़ाना, खेल के मैदान में जाना, सहगामी क्रियाओं की ओर ध्यान देना चाहिए। उसको चाहिए कि छात्रों की अभ्यास-पुस्तिकाओं को चैक करे और अध्यापकों के सामने आदर्श पेश करे।
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