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8 Best Moral Stories In Hindi for kids | नैतिक कहानियाँ

8 Best Moral Stories In Hindi for kids | नैतिक कहानियाँ
8 Best Moral Stories In Hindi for kids | नैतिक कहानियाँ

8 Best Moral Stories In Hindi for kids | नैतिक कहानियाँ

इस लेख में हम आपको 8 Best Moral Stories In Hindi for kids के बारे में बताने वाले है। इन कहानियों को आपने बचपन में अपने दादा-दादी से सुना होगा। यह कहानियाँ बहुत ही ज्ञानवर्धक और शिक्षावर्धक है। इन नैतिक हिंदी कहानियाँ से आप बहुत सारी अच्छी बात सीखेंगे। जिनको आप अपनी जीवन में प्रयोग करके सफलता पा सकते है।

1. कबूतर का बलिदान

एक निर्दयी शिकारी था। एक दिन उसके जाल में एक कबूतरी फंस गई। शाम को घर लौटते समय मूसलाधार वर्षा होने लगी। भीगकर, ठिठुरते हुए उसने एक पीपल के पेड़ के नीचे आश्रय लिया।

उसी पेड़ पर कबूतरों का जोड़ा रहता था। कबूतरी के वापस नहीं आने से कबूतर बहुत परेशान था। दु:खी होकर वह रोने लगा।

भाग्यवश कबूतरी वहीं पेड़ के नीचे शिकारी के पिंजरे में बंद थी। उसने विलाप करते हुए कबूतर को तसल्ली दी और बोली, प्रिये ! मैं यहीं पेड़ के नीचे हूँ। शिकारी ने मुझे बंदी बना लिया है। हम अपने पुराने कर्मो का फल भोगते हैं। तुम आतिथ्य सत्कार करो। अगर प्राण भी देना पड़े तो श्रेयस्कर है। ईश्वर भी उन्हीं की मदद करते हैं। “

कबूतर ने शिकारी से पूछा कि वह कैसे उसकी मदद कर सकता है? शिकारी ने उसे ठंड से मुक्ति दिलाने के लिए कहा।

कबूतर ने लकड़ियाँ इकट्ठी करके जला दीं। अब कबूतर को अतिथि सेवा के लिए भोजन की चिंता हुई। शिकारी को भूखा देख, कबूतर ने सोचा कि अब वह खाना कहां से लाए उसके पास कुछ था ही नहीं इसलिए स्वयं जलती आग में कूद पड़ा और शिकारी का भोजन बन गया।

कबूतर के इस अद्भुत बलिदान से शिकारी आश्चर्य में डूब गया। उसकी आत्मा उसे धिक्कारने लगी। उसी क्षण उसने पिंजरा खोलकर कबूतरी को उड़ा दिया और अपना जाल भी फेंक दिया।

कबूतरी अपने पति को आग में जलता देखकर विलाप करने लगी। और वह बोली, ‘प्रिये! तुम मुझे अकेला छोड़कर क्यों चले गए। मैं तुम्हारे बिना कैसे रह सकती हूँ? मैं भी आती हूँ… और कबूतरी आग में कूद पड़ी।

शिक्षा

एक नेक काम, एक दुष्ट आदमी का दिल बदल सकता है।

2. मित्रता

किसी शहर में एक पुराना टूटा-फूटा घर था। उस घर में ढेरों चूहे खुशी-खुशी अपने परिवा के साथ मिलजुल कर रहते थे। पास में ही एक तालाब था। एक दिन हाथियों का एक झुण्ड पानी की खोज में उधर से गुजरा। काफी चूहे हाथियों के पैरो तले कुचले गए। बचे हुए दुःखी चूहों ने विचारा, “यह तो हमारे साथ गलत हो रहा है। हाथियों द्वारा हम स कुचले जाएगे। हमें कुछ करना चाहिए जिससे दुबारा ऐसा न हो। हाथियों के लौटने से पहले ही हम सबको कुछ करना होगा।” सभी चूहों ने विचार कर हाथियों के राजा से मिलने का निश्चय किया।

चूहों के एक दल ने हाथीराज के पास पहुँचकर नम्रतापूर्वक निवेदन किया, “महाराज! हम लोग इस शहर में प्रसन्नतापूर्वक रहते आए हैं। तालाब की ओर जाते हुए हाथियों के द्वारा हजारों चूहे कुचले गए। जब हाथी इसी रास्ते वापस जंगल जाएँगे तो हममें से एक भी न बचेगा। आप हम पर दया कीजिए। कभी न कभी हम आपके काम अवश्य आएँगे।” हाथीराज ने चूहों के अनुरोध को मान लिया और उन्हें आश्वस्त किया कि ऐसा फिर नहीं होगा।

एक दिन शिकारियों ने हाथियों को पकड़ने के लिए एक बड़ा गड्ढा बनाया। उसे झाड़ियों और पत्तों से ढँक दिया। उधर से गुजरते हुए हाथीराज और साथी उसमें गिरकर फँस गए। शिकारी आया और उसने हाथियों को रस्सी से बाँध दिया।

दु:खी हाथीराज को अचानक चूहों की याद आई। हाथीराज का संदेश चूहो को भेजा गया। चूहे सूचना पाते ही दौड़े चले आए। चूहों ने हाथियों को हिम्मत दी, “दोस्तों, चिंता मत करो।” सबने मिलकर रस्सियाँ काटनी शुरू करीं और पलक झपकते हाथियों को आजाद कर दिया।

हाथी और चूहे मिलकर खुशी-खुशी रहने लगे।

शिक्षा

मित्र ही समय पड़ने पर काम आते हैं।

3. ढोल की पोल

गोमायु नाम का गीदड़ एक बार भूखा-प्यासा जंगल में घूम रहा था। भूख से बेहाल वह इधर-उधर घूम रहा था पर उसे खाने के लिए कुछ भी नही मिला। घूमते-घूमते वह एक युद्धभूमि में पहुँचा। युद्ध समाप्त हो चुका था पर एक ढोल वहीं पड़ा था।

ढोल पर हवा से हिलकर बेलों की शाखाएं एक अजीब आवाज कर रही थीं। उस आवाज को भयानक जानवर समझ गोमायु डर कर भागने लगा। थोड़ी दूर जाकर गोमायु रुक गया। उसने अपने अन्दर हिम्मत भरी और फिर वापस लौटकर आया।

गोमायु आवाज़ के पास पहुँचा और उसने देखा एक ढोल पर बेलों की शाखाएं चोट कर रही थीं। और उसी से आवाज आ रही थी। गोमायु ने पंजा मारा तो और जोर से ढोल बज उठा।

गोमायु ने फि हिम्मत जुटाई और ऊपर के चमड़े में दांत गड़ा-गड़ा कर उसे फाड़ डाला। वह भूखा था और उसे लगा शायद ढोल में कुछ खाने को मिल जाए। पर यह क्या? भीतर तो कुछ भी नहीं था। गोमायु बहुत दुःखी हुआ ।

निराश मन से खाली ढोल को वहीं छोड़कर गोमायु भोजन की खोज में आगे चला गया।

शिक्षा

भय से बड़ा कोई भ्रम नहीं ।

4. खोया विश्वास नहीं लौटता

एक गांव में हरिदत्त नाम का किसान रहता था। उसकी खेती से पर्याप्त उपज नहीं होती थी। एक दिन वह अपने खेत में एक वृक्ष की छाया में लेटा आराम कर रहा था। तभी पास की एक बांबी पर नाग को फन फैलाए बैठे देखा। पहले वह बहुत डर गया फिर उसने सोचा, ‘अवश्य ही यह क्षेत्र देवता है। मैंने कभी इसकी पूजा नहीं की। तभी मेरी खेती फलती नहीं है। मैं पूजा अवश्य करूँगा।”

दूध से भरा पात्र लेकर वह नाग की बांबी पर जाकर बोला, ” क्षेत्रपाल ! अज्ञानतावश मुझसे पूजा न करने का अपराध हुआ। मुझे क्षमा करें और भेंट स्वीकार करें।”

बांबी के पास दूध का पात्र रखकर हरिदत्त वापस लौट गया। अगले दिन सुबह जब वह बिल के पास गया तो दूध की जगह सोने की एक मुहर देखकर उसके आश्चर्य की सीमा न रही। अब प्रतिदिन उसे दूध के बदले मुहर मिलने लगी। एक दिन हरिदत्त को गांव से बाहर जाना था। उसने पुत्र को पूजा का दूध रख आने के लिए कहा। पुत्र ने वैसा ही किया पर अगले दिन पात्र में मुहर देखकर उसे अचम्भा हुआ। उसने सोचा कि हो न हो बांबी में खजाना छुपा है। इस नाग को मारकर क्यों न पूरा खजाना हड़प लिया जाए।

ऐसा विचार कर अगले दिन उसने दूध का पात्र बांबी के पास रखा और एक पेड़ के पीछे लाठी लेकर छुप गया। नाग जब दूध पीने आया तो उसने लाठी से प्रहार किया। निशाना चूक गया और नाग बच गया पर क्रोधित नाग ने हरिदत्त के पुत्र को काट लिया और वह तुरंत मर गया।

दूसरे दिन वापस आने पर हरिदत्त ने स्वजनों से पुत्र – मृत्यु का वृतान्त सुना। दुःख में डूबा हुआ, दूध का पात्र लेकर हरिदत्त नाग के पास गया। बांबी के भीतर से ही नाग ने कहा, “हरिदत्त तुम लोभी हो गए हो। पुत्र को खोकर भी तुम मुहर के लोभ में आए हो। लोभ के कारण ही तुम्हारा पुत्र मारा गया। यह हीरा अंतिम उपहार स्वरूप ले लो और अब दोबारा यहां मत आना।”

दु:खी किसान नाग का पुनः विश्वास न पा सका और घर वापस आ गया।

शिक्षा

एक बार खोया विश्वास दोबारा नहीं मिलता।

5. राजनीतिज्ञ गीदड़

एक जंगल में महाचतुर नाम का गीदड़ रहता था। एक दिन जंगल में जाते हुए उसे एक मृत हाथी पड़ा मिला। गीदड़ ने मांस खाने के लिए उसकी मोटी खाल में दांत गड़ाने की बहुत चेष्टा की पर वह सफल नहीं हुआ। उसी समय वहाँ एक शेर आ पहुँचा। शेर को गीदड़ ने प्रणाम किया और बोला, “आपका स्वागत है स्वामी! मैं आपका दास हूँ। आपके लिए मृत हाथी की रखवाली कर रहा हूँ। आप यथेष्ट भोजन कीजिए। “

शेर ने कहा, “गीदड़! तुम जानते हो कि दूसरे के द्वारा मारा गया जीव मैं नहीं खाता हूँ। तुम इसे मेरी भेंट समझो। “

शेर के जाने के बाद वहाँ एक बाघ आया। गीदड़ ने भेद-नीति से उसे भगाने का सोचा। बाघ का अभिवादन करके बोला, “मामा! इस हाथी पर दांत न गड़ाना। इसे शेर ने मारा है। मुझे रखवाली के लिए छोड़कर नहाने गया है। आप अपनी जान जोखिम में मत डालिए, भाग जाइए।”

बाघ डर गया, गीदड़ से बोला, “दया करो, रक्षा करो, शेर को मत बताना…” और वह , भाग गया।

बाघ के जाने के बाद वहाँ चीता आया। गीदड़ ने सोचा कि इसके तो दांत तीखे होते हैं, इससे हाथी की खाल उधड़वा लेता हूँ। गीदड़ चीते के पास जाकर बोला, “मित्र, बहुत भूखे दिख रहे हो। वहा देखो शेर ने हाथी मारा है। शेर मुझे यहाँ रखवाली के लिए रखकर नहाने गया है। उसके आने से पहले तुम भी थोड़ा खा लो। मैं उसके आने की खबर दूर से ही दे दूँगा।”

जैसे ही चीते ने खाल उधेड़ी गीदड़ चिल्ला पड़ा, “शेर आ रहा है, भागो…।” चीता सिर पर पैर रखकर जंगल में भाग गया।

गीदड़ अपनी चाल में सफल हो गया था। इसके बाद बहुत दिनों तक आराम से वह हाथी का मांस खाता रहा।

शिक्षा

सदा बुद्धि से काम लेना चाहिए।

6. पढ़े लिखे मूर्ख

एक शहर में चार मित्र रहते थे। उनमें से तीनों को काफी किताबी ज्ञान था। सुबुद्धि नाम का चौथा ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था पर बुद्धिमान् था। वे चारों धन कमाने के लिए विदेश यात्रा पर चल पड़े।

एक मित्र ने सुबुद्धि से कहा, “मित्र ! हम विद्वानों के बीच में तुम्हारा क्या काम। तुम रहने दो, मत चलो।” पर दूसरे मित्र ने कहा, “नहीं, नहीं, यह बचपन से हमारा मित्र है। इसे भी हमारे साथ चलने दो।”

सुबुद्धि भी उनके साथ हो लिया। जंगल से जाते समय उन्हें एक शेर का अस्थिपंजर मिला। एक मित्र ने कहा कि हमें अपनी विद्या आजमानी चाहिए। क्यों न हम इसे जीवन दान दें।

उन्होंने विचार विमर्श किया। एक ने कहा, “मैं हड्डियों को सही प्रकार से जोडूंगा।’ दूसरे ने कहा, “मैं रक्त और मज्जा दूँगा।” तीसरे ने कहा, “फिर मैं शरीर में जान डाल दूँगा।” यह सुनकर सुबुद्धि ने कहा, “नहीं मित्रों, ऐसा मत करना। यदि शेर को जीवित करोगे तो वह हम सबको मार डालेगा।”

तीनों विद्वानों ने उसकी बात को अनसुना कर दिया तब सुबुद्धि ने उनसे कहा, “ठीक है, जो इच्छा है वह करो। पर जरा रुको, मुझे पेड़ पर चढ़ जाने दो।” वह पास के वृक्ष पर चढ़ गया और दोस्तों के कारनामे देखता रहा।

तीनों विद्वानों ने शेर को जीवित कर दिया। जीवित होते ही शेर ने तीनों पर हमला कर दिया और उन्हें मार डाला। सुबुद्धि जो वृक्ष पर चढ़कर सब देख रहा था उसके मुँह से यही निकला, “ईश्वर का धन्यवाद है कि मैं इन जैसा विद्वान् नहीं हूँ।”

शिक्षा

किताबी ज्ञान की अपेक्षा बुद्धि (समझ) का स्थान ऊपर है।

7. मूर्ख गधा और चतुर गीदड़

एक गाँव में गर्वी नाम का गधा रहता था। दिन में धोबी का भार ढोता और रात में स्वेच्छापूर्वक खेतों में घूमा करता था। खेत के रखवालों के भय से पौ फटते ही धोबी के पास आ जाता था।

एक रात खेतों में घूमते-घूमते उसकी मित्रता एक गीदड़ से हो गई।

दोनों रात में साथ साथ खेतों में जाते और जी भरकर फल और सब्जियाँ खाते।

एक रात फलों के बगीचे में घुसकर खूब प्रेम से दोनों ने मीठे फल खाए। पेट भरने पर गधा उमंग में आ गया। चाँदनी रात थी।

गधे ने कहा, “मित्र! कितनी सुहानी रात है। जी चाहता है झूम कर गीत गाऊँ। मुझे सब राग-रागिनियाँ आती हैं। तुम्हीं बताओ, क्या गाऊँ?

गीदड़ ने कहा, “प्रिय मित्र ! परेशानी को क्यों न्योता देना चाहते हो?

हम लोग चोरी से खेत में आए हैं, चोरों और प्रेमियों को अपना काम चुपचाप करना चाहिए।”

लाख मना करने पर भी गधा नहीं माना और उसने अपना राग जोर-जोर से अलापना शुरू कर दिया।

सोया हुआ रखवाला इस आकस्मिक अलाप से जग गया और लाठी लेकर गधे की ओर दौड़ा आया। गधे को मार-मार कर गिरा दिया।

चतुर गीदड़ दूर छिपा तमाशा देख रहा था। मौका पाते ही वह जंगल की ओर सिर पर पैर रखकर भाग गया।

शिक्षा

झूठा घमंड और मूर्खता विनाश का द्वार है।

8. मित्रभेद

एक नगर में एक वणिक अपनी बैलगाड़ी से मथुरा जा रहा था। एक नदी के किनारे, विश्राम करने के लिए रुका और बैलों को पानी पीने के लिए खोल दिया। संजीवक नाम के बैल का पैर दलदल में फंसकर टूट गया।

वर्धमान वहीं रुककर संजीवक के स्वस्थ होने की प्रतीक्षा करता रहा पर संजीवक ठीक न हुआ। उसे कुछ सेवकों के सहारे छोड़कर वर्धमान चला गया। सेवक भी कुछ दिन बाद संजीवक को भाग्य भरोसे छोड़कर चले गए और उसकी मृत्यु की सूचना मालिक को दे दी। धीरे-धीरे संजीवक ठीक हो गया और यमुना नदी के किनारे पहुँचकर रहने लगा।

एक दिन पिंगलक नामक शेर नदी पर पानी पीने आया। उसने दूर से ही संजीवक की गम्भीर हुंकार सुनी और सोचा कि अवश्य ही कोई बलशाली जानवर है। शेर के दो सहायक दमनक और करकट भी साथ थे। उन्होंने भयभीत शेर से कहा, “महाराज! आप चिंतित न हों। हम देखते है।”

दमनक ने जब संजीवक को देखा। तो बोला, “मित्र! राजा की आज्ञा के बिना कोई भी इस वन में नहीं रह सकता।” संजीवक पिंगलक से मिलने पहुँचा । दमनक ने शेर से कहा, ‘महाराज ! ईश्वर ने इसे राज्य की रक्षा के लिए भेजा है। पिंगलक ने संजीवक का स्वागत किया और दोनों में मित्रता हो गई।

अपने मित्र के साथ व्यस्त रहने के कारण पिंगलक ने शिकार करना भी बंद कर दिया। करकट और दमनक का भोजन भी बंद हो गया। संजीवक से मुक्ति पाने की युक्ति सोचकर दमनक शेर से बोला, “महाराज! संजीवक आपको मारकर राजा बनना चाहता है।

दमनक ने अब संजीवक से बोला, “पिंगलक तुम्हें मारना चाहता है वह तुम्हें मारे उससे पहले उसे मार दो।”

संजीवक ने सोचा, “शेर ने मुझे छला है। वह मांसाहारी राजा है। वह मुझे मार सकता है।” क्रोधित संजीवक ने गुफा की ओर जाकर भयंकर हुंकार भरी। जिसे सुनकर पिंगलक ने क्रुद्ध होकर भयंकर युद्ध किया। विजय शेर की हुई, बैल मारा गया।

करकट ने पिंगलक से कहा, “महाराज, यह आपने क्या किया? बैल आपका हितैषी तथा मित्र था। आपने धूर्त दमनक की बातों में आकर उसे मार डाला । “

शेर को अपने किए पर पश्चात्ताप था पर अब बहुत देर हो चुकी थी।

शिक्षा

राजा को आंख मूंदकर दूसरों की बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

1 Comment

  • सुपर अद्भुत नैतिक कहानियाँ। बहुत रुचिकर कहानियाँ। इसे जारी रखो

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