शिक्षकों के मानसिक स्वास्थ्य का वर्णन कीजिए।
शिक्षकों का मानसिक स्वास्थ्य
अध्यापक राष्ट्र का निर्माता कहा जाता है। यदि अध्यापक का मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं होगा तो वह अपने छात्रों के साथ न्याय नहीं कर सकता। उसके मानसिक स्वास्थ्य का प्रभाव भावी पीढ़ी पर पड़ता ही है। डी० जी० रैनास के अनुसार-“अच्छे अध्यापक वे हैं, जो बुद्धिमान कौशल से परिपूर्ण, कर्त्तव्यनिष्ठ, समझदार हों, अच्छे रचनात्मक समाज के निर्माण के लिए उनकी आवश्यकता है।” सफल अध्यापक में निम्न विशेषताओं का होना अनिवार्य है। ये विशेषताएँ भारत सरकार द्वारा प्रकाशित ‘हू सक्सीड्स एज ए टीचर’ (Who succeeds as a Teacher) नामक पुस्तिका से ली गई हैं।
1. राष्ट्रीय सेवा भावना का विकास (Inculcate spirit of national service) – अध्यापक राष्ट्र निर्माता कहा जाता है। अध्यापक को चाहिए कि वह राष्ट्रीय सेवा तथा भावना का अपने से विकास करे। संकीर्ण भावना से बचे। राष्ट्रीय भावना के प्रसार का लक्ष्य होने से अध्यापक में आत्मविश्वास विकसित होता है और राष्ट्रहित व्यापक होता है।
2. सुरती से दूर रहों (Be free from idleness) – अध्यापक को चाहिए कि वह अपने काम में सुस्ती न बरते। ऐसा करने से वह, जहाँ एक ओर अपने विषय को पढ़ाने में सफलता प्राप्त करेगा, वहाँ दूसरी ओर वह छात्रों व अपने साथियों के बीच लोकप्रिय भी होगा।
3. कर्तव्यपरायणता में अहम् को दूर रखो (Free from ego) – यदि अध्यापक कर्तव्यपरायण है तो उसे अपनी कर्त्तव्यनिष्ठा के प्रति अहं नहीं होना चाहिए। यदि उसमें अहं पैदा हो जाता है तो जहाँ तक वह कर्तव्यनिष्ठ है, वहाँ उसी के साथी उसे उसके कर्तव्य से च्युत करने में पीछे न रहेंगे। इससे कटुता उत्पन्न होती है।
4. कर्तव्य ही पुरस्कार है (Duty is reward) – अध्यापक को चाहिए कि वह अपने कर्तव्य की ओर ध्यान दे। वास्तविकता यह है कि अध्यापक समाज के निर्माण की आधारशिला है। यदि अध्यापक ही कर्तव्यनिष्ठ नहीं होगा तो उसका काम न तो छात्रों के हित में होगा और न राष्ट्र के।
5. अपने को विद्यार्थी समझो और छात्रों से प्रेम रखो (Be a student and love your pupils) – छात्रों को उसी अध्यापक के प्रति सहानुभूति होती है, जो उन्हें प्यार करते हैं। अतः आवश्यक है कि अध्यापक छात्रों से प्रेम करें।
6. वातावरण के अनुसार बदलो (Change according to environment) – एक अध्यापक तभी सुखी रह सकता है, जबकि वह समय तथा वातावरण के साथ बदलता रहे। यदि उसकी मान्यताओं में कोई परिवर्तन नहीं होता तो वह सफल अध्यापक नहीं हो सकता। इसका कारण शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन का होना है, जिनसे परिचित होना हर अध्यापक का कर्तव्य है। समायोजनशीलता उसमें होनी चाहिए।
7. सिद्धान्त और क्रिया में समानता (Consistency in theory and practice) – शिक्षा के सिद्धान्त तथा व्यवहार में कोई अन्तर न होकर समानता होनी चाहिए। ऐसा न होने से शिक्षा जीवन की परिस्थितियों के साथ मेल नहीं खाती और समाज का विघटन आरम्भ हो जाता है।
8. अपने व्यवसाय को प्यार करो (Love your profession) – सफल अध्यापक हमेशा अपने व्यवसाय के प्रति निष्ठावान होता है। वह केवल खाना-पूरी के लिए विद्यालय में नहीं जाता, अपितु वह अध्यापन की सामग्री के साथ-साथ अध्यापन की नई-नई विधियों के विषय में भी सतर्क रहता है और उनका परीक्षण करता रहता है।”
9. प्राचीन गुरुओं के आदर्शों को मानो (Follow your ancient Gurus) – प्राचीन गुरुओं के आदर्शों पर चलने ‘से ‘सादा जीवन उच्च विचार की पावन भावना का विकास होता है। इस भावना के वशीभूत होकर जीवन में कुंठाओं व भावना ग्रन्थियों की उत्पत्ति की सम्भावना कम रहती है। जीवन में सरलता आती है और मान्यतायें निर्धारित होती हैं।
10. सहयोगियों के साथ समान व्यवहार करो (Treat your colleagues as equals) – अध्यापक को चाहिए कि वह अपने साथियों के साथ समान व्यवहार करे। ऐसा करने से वह साथियों में लोकप्रिय होगा। यही लोकप्रियता उसे.. प्रसिद्धि के शीर्ष तक ले जाती है।
11. सत्यं शिवम् सुन्दरम् में विश्वास रखो (Believe in Truth, Good and Beauty) – अध्यापक को चाहिए कि वह सदैव ‘सत्यं शिवम् सुन्दरम्’ में विश्वास रखे। ऐसा करने से जीवन की शाश्वत मान्यताओं के प्रति उसकी आस्था बढ़ेगी और वह फिर जो भी अपने विद्यार्थियों को देगा, उसमें उसका अपना योग होगा।
12. प्रजातन्त्र में विश्वास रखो (Believe in democracy) – शिक्षा का उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है। यह तभी होगा जब अध्यापक प्रजातन्त्र में विश्वास रखेगा और समाज व्यवस्था के हर पहलू पर प्रजातान्त्रिक रूप से विचार करेगा।
13. विद्यालय और समाज में सम्बन्ध स्थापित करो (Establish relation between school and society) – अध्यापक को चाहिए कि वह शिक्षा के मध्य ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करे, जिससे विद्यालय तथा समाज में सह-सम्बन्ध हो सके। विद्यालय समाज का लघु रूप है, इसलिए उसमें समाज की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए।”
14. चिन्ताओं को भूल जाओ (Forget worries)- अध्यापक तभी अपने काम में सफलता प्राप्त कर सकता है, जबकि वह समस्त चिन्ताओं से मुक्त हो । अतः अध्यापक को कक्ष में जाने से पूर्व अपनी समस्त चिन्ताओं को दूर कर देना चाहिए।
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