जल के कितने प्रकार हैं ? शुद्ध तथा अशुद्ध जल में क्या अन्तर है ? जल की अशुद्धता के स्रोत कौन-कौन से हैं ? जल में कौन-कौन सी अशुद्धियाँ पायी जाती हैं ?
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जल के प्रकार (Types of Water)
जल के कई प्रकार होते हैं। इनमें- (i) शुद्ध जल, (ii) दूषित जल, (ii) संदूषित जल आदि प्रमुख हैं।
(i) शुद्ध जल (Pure Water) – शुद्ध जल उसे कहते हैं जो समस्त अशुद्धियों से मुक्त व मनुष्यों के उपयोग में बिना किसी बाधा के प्रयोग में लाया जा सके।
कुछेक विशेष रासायनिक व जीवाणु सम्बन्धी परीक्षणों की मदद से जल की शुद्धता मानक निर्धारित किये जाते हैं। रासायनिक दृष्टि से पूर्ण तथा शुद्ध जल कभी भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसका कारण होता है जल में विद्यमान ठोस तथा गैसीय पदार्थ घुले हुए या आलम्बित रूप में सदैव रहते हैं।
शुद्ध जल की विशेषतायें
शुद्ध जल की कई विशेषतायें होती हैं, वे इस प्रकार हैं-
- शुद्ध जल देखने में पारदर्शी व चमकदार होता है।
- शुद्ध जल में ऐसे खनिज लवणों की उपस्थिति अधिकता में नहीं होती जिनसे कठोरता उत्पन्न हो।
- इसमें धातुयुक्त पदार्थ अधिक नहीं होते हैं।
- इसमें कोई स्वाद, रंग व गन्ध नहीं होती है।
- इसमें रोगाणुयुक्त कीटाणु भी उपस्थित नहीं होते हैं।
- शुद्ध जल वायुयुक्त होता है।
- इसमें नाइट्रोजनयुक्त कार्बनिक तत्त्वों व अन्य ऐन्द्रिक पदार्थों की उपस्थिति नहीं होती।
(ii) दूषित जल (Polluted Water)- गुणों की दृष्टि में जो जल हीन होता है, उसे दूषित जल कहा जाता है। विभिन्न तत्त्वों की उपस्थिति के फलस्वरूप उसके रंग, स्वाद, गन्ध तथा अन्य भौतिक गुणों में परिवर्तन आ जाता है।
(iii) संदूषित जल (Contaminated Water) – संदूषित जल वह जल होता है, जिसमें मनुष्यों पशुओं का मल-मूत्र या अन्य निकृष्ट या विषैले तत्त्व मिश्रित होते हैं। यह जल मनुष्य के लिए हानिकारक व घातक होता है। इससे कई विषाणुयुक्त संक्रमण या छूत फैलती है।
जल का वर्गीकरण (शुद्धता की दृष्टि में)
विभिन्न प्रकार के साधनों से प्राप्त जल का शुद्धता की दृष्टि से निम्न वर्गीकरण किया जा सकता है-
जल का वर्ग | उद्गम उत्पत्ति | गुणधर्म |
(1) पीने योग्य जल | (i) गहरे कुएँ का जले | अत्यन्त |
(ii) स्रोत व झरने का जल | स्वादिष्ट | |
(2) संचय योग्य जल | (iii) वर्षा से प्राप्त एकत्रित जल | साधारण |
(iv) खेतों से बहकर आने वाला जल | स्वादिष्ट | |
(3) हानिकारक जल | (v) नदी का जल | कुछ स्वादिष्ट तथा |
(vi) उथले कुँओं का जल | पीने हेतु हानिकारक |
शुद्ध व अशुद्ध जल में अन्तर
अशुद्ध जल | शुद्ध जल |
1. यह स्वच्छ, पारदर्शी, चमकीला व रंगहीन होता है। | 2.यह अशुद्ध, रंगयुक्त व मटमैला होता है। |
2. इसे पिया जा सकता है | 2. यह पीने योग्य नहीं होता है। |
3. इसमें उपस्थित होते हैं। | 3. इसमें कीटाणु व जीवाणु अनुपस्थित होते हैं। |
4. शुद्ध जल मृदु होता है। | 4. अशुद्ध जल कठोर होता है। |
5. लवण न होने के कारण मीठा नहीं होता है। | 5. कैल्सियम, मैग्नीशियम आदि के कारण लवण मौजूद होने के कारण खारा होता है। |
6. यह कपड़े धोते समय साबुन के साथ झाग देता है। | 6. यह कठोरता के कारण साबुन के साथ झाग नहीं देता। |
7. इसमें अशुद्धियाँ रेत, मिट्टी के कण आदि नहीं पाये जाते हैं। | 7. इसमें अशुद्धियाँ विद्यमान रहती हैं। |
8. इसमें उपस्थित पदार्थ शरीर के लिए हानिकारक नहीं है। | 8. इसमें उपस्थित हर पदार्थ हानिकारक होता है। |
जल की अशुद्धता के स्रोत (Sources of Impurities of Water)
जल में होने वाली अशुद्धियों के स्रोत निम्नलिखित हैं-
1. स्वतः स्रोत से – जल की प्रकृति भूमि की बनावट पर निर्भर करती है। कोई भी अशुद्धि जल के मूल स्रोत से भी मिश्रित हो सकती है। जल जिस प्रकार की मिट्टी के सम्पर्क में आता है, उसके गुणधर्म व प्रकृति में परिवर्तन आ जाता है। इस तरह मिट्टी से कभी-कभी हानिप्रद पदार्थ भी जल में मिल जाते हैं। जैसे चूने या खड़िया मिट्टी की तह वाले कुओं में हमेशा खारा जल ही मिलेगा। इसका मुख्य कारण कैल्सियम की अधिकता होती है। इसी प्रकार कब्रिस्तान के निकटस्थ कुओं के जल में अकार्बनिक अशुद्धियाँ अधिक पाई जाती हैं। अतः स्पष्ट है कि अनेक अशुद्धियाँ जल में जल के स्रोत से ही मिल जाती हैं।
2. जल के स्रोत से संग्रहण केन्द्र तक लाने में – अनेक अशुद्धियाँ जल को स्रोत से संग्रह केन्द्र (Reservoir) तक लाने में मिल जाती है। स्रोत से संग्रहण केन्द्र के मध्य शहर का कूड़ा व कारखानों का अशुद्ध जल मिल जाय तो संग्रहण केन्द्र में अशुद्ध जल ही प्राप्त होगा।
3. संग्रहण केन्द्र में – जल को दीर्घ अवधि तक संग्रहण करने से उसके स्वाद में परिवर्तन आ जाता है। हमारे देश में जल को मिट्टी के बर्तन, धातु के बर्तनों व पक्की टंकी या हौदियों में रखा जाता है। इन सभी की निश्चित समय पर उचित रूप से सफाई न की जाये तो जल दूषित हो जाता है।
4. वितरण के दौरान (During Distribution) – जल के वितरण के दौरान प्रयोग में आये नलों, पाइपों व स्टॉपर आदि के कारण भी जल में अशुद्धियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। जल में विलेय-गैस, लवण तथा अम्ल आदि की प्रतिक्रिया के कारण सौसा तथा अन्य धातु जिनमें पाइप बने होते हैं, जल में घुल सकती हैं।
जल की अशुद्धियाँ (Impurities of Water)
मुख्यतया जल में दो प्रकार की अशुद्धियाँ पाई जाती हैं-
- घुलित अशुद्धियाँ (Dissolved Impurities),
- तैरने वाली अशुद्धियाँ (Suspended Impurities)
1. घुलित अशुद्धियाँ (Dissolved Impurities) – इन अशुद्धियों में कई रासायनिक पदार्थ होते हैं, जो जल की घुलनशील शक्ति के कारण जल में घुल जाते हैं। ये पदार्थ जल में भूमि पर बहते हुए, वायु या धरातल से जल में प्रवेश करते हैं। अगर जल में इन पदार्थों की मात्रा ज्यादा हो तो जल पीने योग्य नहीं रहता है।
घुलित अशुद्धियाँ निम्नवत् हो सकती हैं-
(i) गैसें – कई गैसें, जैसे-कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड मिलने से जल दूषित हो जाता है।
(ii) लवण आदि से – बाइकार्बोनेट, सल्फेट आदि लवणों के जल में मिल जाने के कारण जल कठोर व दूषित हो जाता है।
(iii) जैवीय पदार्थों के सड़ने-गलने (क्षय) से – कुछ जैवीय पदार्थों के क्षय से अमोनिया, नाइट्राइट, नाइट्रेट आदि जल में उत्पन्न हो जाते हैं। इनसे जल दूषित हो जाता है।
(iv) विलम्बित गन्दगी से – विलम्बित गन्दगी कई प्रकार की होती है, जैसे-गैसें, चिकनी मिट्टी, गाद, कीचड़, रेत आदि। इनसे भी जल दूषित होता है।
(2) तैरने वाली अशुद्धियाँ (Suspended Impurities) – तैरने वाली अशुद्धियों के अन्तर्गत कार्बनिक एवं अकार्बनिक वस्तुएँ पाई जाती हैं। कार्बनिक पदार्थों में मल, औद्योगिक उत्सर्जित पदार्थ, वानस्पतिक पदार्थ, जीवाणु कृमि कीट, उनके अण्डे व लारवा आते हैं, जबकि अकार्बनिक अशुद्धियों में धातु पदार्थ व कीचड़ गाद आते हैं।
इनका अन्य विवरण निम्नलिखित है-
(i) निर्जीव पदार्थ- मिट्टी के कण, कूड़ा-करकट, पंत्तियाँ जैसे कई निर्जीव पदार्थ भी जल को दूषित करते हैं। मनुष्यों व जानवरों के त्याज्य मल-मूत्र आदि भी जल को अशुद्ध कर दूषित करते हैं। इस प्रकार के दूषित जल के सेवन से मनुष्य को अतिसार, पेचिस आदि रोग हो सकते हैं जो जानलेवा/प्राणघातक भी हो सकते हैं।
(ii) जीवाणु व अन्य एन्द्रिक अशुद्धियाँ – जल में टॉयफाइड, हैजा आदि संक्रमण के जीवाणु मिले रहते हैं। ये जीवाणु इतने छोटे होते हैं कि हम आँखों से सीधे नहीं देख सकते हैं। जल के अन्दर परजीवी कृमि जैसे गोलंकृमि (Round worms) के अण्डे भी रहते हैं तथा मनुष्यों के जल पीने से उनके पेट में प्रवेश करते हैं और स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डालते हैं। ऐसे जल को सदैव उबालकर, छानकर पीना चाहिए। उबालने से हानिकारक जीवाणु व कृमि तथा जल की कठोरता दोनों का समूल विनाश हो जाता है।
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