बुद्धि के स्वरूप के सम्बन्ध में प्रतिपादित किये जाने वाले मुख्य सिद्धान्तों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
बुद्धि के सिद्धान्त (Theories of Intelligence)
1. एक कारक सिद्धान्त (Uni-factor Theory)- एक कारक सिद्धान्त का प्रतिपादन बिने (Binet) ने किया और इस सिद्धान्त का समर्थन तथा इसको आगे बढ़ाने का श्रेय टरमन और स्टर्न जैसे मनोवैज्ञानिकों को है। इन मनोवैज्ञानिकों का मत है बुद्धि एक अविभाज्य इकाई है। स्पष्ट है कि इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि को एक शक्ति या कारक के रूप में माना गया है। इन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बुद्धि, वह मानसिक शक्ति है, जो व्यक्ति के समस्त मानसिक कार्यों का संचालन करती है तथा व्यक्ति के समस्त व्यवहारों को प्रभावित करती है। इन मनोवैज्ञानिकों का यह भी मत है कि किसी कार्य विशेष को सम्पन्न करते समय सम्पूर्ण बुद्धि एक समय में सम्पूर्ण होती जाती है। आज इस सिद्धान्त को कोई नहीं मानता है।
2. द्वि-कारक सिद्धान्त (Two-factor Theory) – इस सिद्धान्त के प्रतिपादक स्पीयरमैन हैं। स्पीयरमैन के अनुसार बुद्धि में दो कारक हैं अथवा सभी प्रकार के मानसिक कार्यों में दो प्रकार की मानसिक योग्यताओं की आवश्यकता होती है—प्रथम सामान्य मानसिक योग्यता (General Ability-G), द्वितीय विशिष्ट मानसिक योग्यता (Specific Ability-S)। सामान्य योग्यता सभी प्रकार के मानसिक कार्यों में पायी जाती है, जबकि विशिष्ट मानसिक योग्यता केवल विशिष्ट कार्यों से ही सम्बन्धित होती है। प्रत्येक व्यक्ति में सामान्य योग्यता के अतिरिक्त कुछ-न-कुछ विशिष्ट योग्यताएँ भी पायी जाती हैं। एक व्यक्ति में एक विशिष्ट योग्यता भी हो सकती है और एक से अधिक विशिष्ट योग्यताएँ भी हो सकती हैं। एक व्यक्ति जितने ही क्षेत्रों अथवा विषयों में कुशल होता है, उसमें उतनी ही विशिष्ट योग्यताएँ पायी जाती हैं। यदि एक व्यक्ति में एक से अधिक विशिष्ट योग्यताएँ हैं तो इन विशिष्ट योग्यताओं में कोई विशेष सम्बन्ध नहीं पाया जाता है। स्पीयरमैन का यह विचार है कि एक व्यक्ति में सामान्य योग्यता की मात्रा जितनी ही अधिक पायी जाती है, वह उतना ही अधिक बुद्धिमान होता है। स्पीयरमैन के सिद्धान्त को निम्नांकित चित्र के द्वारा समझा जा सकता हैं।
उपर्युक्त चित्र में इलिप्स A और V क्रमश: शाब्दिक (Vocabulary) तथा गणितीय परीक्षणों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, क्योंकि परीक्षण एक-दूसरे से सह-सम्बन्धित हैं, अत: इलिप्स एक-दूसरे से ओवरलैप कर रहे हैं। ओवरलैप करने वाला सम्पूर्ण क्षेत्र G-कारक का प्रतिनिधित्व कर रहा है। शेष दोनों परीक्षणों का स्वतन्त्र क्षेत्र S1 और S2 द्वारा प्रदर्शित किया गया है। उपर्युक्त चित्र से स्पष्ट है कि विशिष्ट योग्यताएँ एक-दूसरे से स्वतन्त्र होती हैं और सामान्य योग्यता की आवश्यकता भी इन विशिष्ट योग्यताओं में पड़ती है। स्पीयरमैन के अनुसार, बुद्धि में सामान्य कारक (G-कारक) के अतिरिक्त कुछ और कारक भी होते हैं; जैसे-C-कारक जिसका अर्थ विचार प्रक्रिया में गति और निष्क्रियता में मुक्ति है। इसी प्रकार से W-कारक का अर्थ इच्छाशक्ति, आत्मनियन्त्रण तथा संलग्नता से है। कुछ अध्ययनों में देखा गया है कि कुछ कार्य निष्पादन इस प्रकार के होते हैं जो G-कारक पर आधारित नहीं होते हैं जबकि स्पीयरमैन के अनुसार G-कारक सभी कार्यों में सामान्य होता है। स्पीयरमैन के कुछ समर्थक मनोवैज्ञानिकों ने इस सिद्धान्त के अध्ययनों के आधार पर एक नया सिद्धान्त Hierarchical Theory का प्रतिपादन किया है।
3. प्रतिदर्श सिद्धान्त (Sampling Theory) – इस सिद्धान्त का प्रतिपादन थामसन ने किया। थामसन ने अपने प्रतिदर्श सिद्धान्त का प्रतिपादन स्पीयरमैन के द्वि-कारक सिद्धान्त के विरोध में किया। थामसन ने इस बात का तर्क दिया है कि व्यक्ति का बौद्धिक व्यवहार अनेक स्वतन्त्र योग्यताओं पर निर्भर करता है, किन्तु इन स्वतन्त्र योग्यताओं का क्षेत्र सीमित होता है। यदि कोई एक बुद्धि-परीक्षण भरवाया जाये तो बौद्धिक तत्वों का एक विशिष्ट प्रतिदर्श ही सामने आता है। इसी प्रकार से यदि दूसरा परीक्षण भरवाया जाये तो बौद्धिक तत्तवों का एक भिन्न प्रतिदर्श उस परीक्षण के सामने आयेगा। विभिन्न संज्ञानात्मक अथवा बौद्धिक परीक्षणों में जो धनात्मक सह-सम्बन्ध पाये जाते हैं, वह विभिन्न प्रतिदर्शों के या योग्यताओं के नमूनों (Samples or Patterns of Abilites) की ओवरलैपिंग से स्पष्ट होते हैं। थामसन के सिद्धान्त को निम्न चित्र द्वारा समझाया गया है।
इस चित्र में छोटे वृत्त विशिष्ट कारकों अथवा मानसिक योग्यताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि बड़े दोनों वृत्त दो परीक्षणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। परीक्षण A से आठ विशिष्ट कारकों के प्रतिदर्श प्रदर्शन किये गये हैं, जबकि परीक्षण B से ग्यारह विशिष्ट कारकों के प्रतिदर्शों का प्रदर्शन किया गया है, क्योंकि दोनों परीक्षणों में छ. विशिष्ट कारक सामान्य हैं, अतः इनमें धनात्मक सह-सम्बन्ध है। थामसन का विचार है कि सभी बौद्धिक परीक्षणों में G-कारक नहीं पाया जाता है। थामसन ने इतना अवश्य माना है कि कुछ परीक्षणों में G-कारक अवश्य पाया जाता है, परन्तु यह G कारक स्पीयरमैन के G-कारक के समान न तो विस्तृत होता है और न ही इतना संकीर्ण जितना कि स्पीयरमैन का विशिष्ट कारक है।
4. समूह कारक सिद्धान्त (Group Factor Theory) – इस सिद्धान्त के प्रतिपादक थर्सटन हैं। थर्सटन का यह सिद्धान्त बुद्धि का एक महत्वपूर्ण और मात्रात्मक सिद्धान्त है। थर्सटन का नाम इस सिद्धान्त के अतिरिक्त इसलिए भी प्रसिद्ध है कि उन्होंने कारक विश्लेषण विधि को विकसित किया थर्सटन ने इसी विधि की सहायता से बुद्धि के कुछ समूह कारकों का पृथक्करण किया। थर्सटन का यह सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति का है।
थर्सटन ने G और S-कारकों की उपस्थिति को स्वीकार नहीं किया है। उसने इन कारकों के स्थान पर मानसिक संगठन के समूह कारकों को स्वीकार किया है। चैपलिन और क्राइक के अनुसार Thurston’s group factors are not believed to be the result of the overlapping of highly specific abilities of narrow range. Rather, such factors are revealed by correlation clusters which occur among similiar tests which in turn, are drawing upon certain primary mental abilities. यदि एक बड़े समूह को अधिक मात्रा में परीक्षण दिये जायें और मान लीजिए परीक्षण वाचिक योग्यता और प्रत्यक्षपरक योग्यताओं से सम्बन्धित हैं। उपर्युक्त चित्र में इन विभिन्न परीक्षणों को छोटे इलिप्स द्वारा प्रदर्शित किया गया है। शाब्दिक योग्यता (Verbal Abilites) के परीक्षणों Vi V2 V3 V4 इलिप्स के द्वारा प्रदर्शित किया गया है। इसी प्रकार प्रत्यक्षपरक योग्यता (Perceptual Ability) से सम्बन्धित परीक्षणों को P1, P2, P3, P4 इलिप्स के द्वारा प्रदर्शित किया गया है। यदि एक प्रकार की योग्यता से सम्बन्धित परीक्षणों में सह-सम्बन्ध ज्ञात किया जाये, फलस्वरूप परीक्षणों के क्लस्टर्स प्राप्त होंगे। चित्र में यह क्लस्टर v और P अक्षरों द्वारा प्रदर्शित किये गये हैं। ऊपर के चित्रों में इलिप्स का उभयनिष्ठ क्षेत्र V और S ही प्राथमिक मानसिक योग्यताएँ हैं।
थर्सटन ने अपने कारक विश्लेषण (Factor Analysis) के आधार पर निम्न सात मौलिक मानसिक योग्यताओं को पता लगाया है—
(i) संख्यात्मक योग्यता (Number Ability or Ability to Think about Mathematical Relationships) – यह वह योग्यता है, जिसके द्वारा व्यक्ति साधारण गणितीय प्रकार्यों; जैसे—जोड़ना, घटाना, गुणा, भाग, आदि को करता है।
(ii) प्रत्यक्षपरक योग्यता (Perceptual Ability)- इस योग्यता के द्वारा व्यक्ति वस्तुओं को शीघ्र पहचानता है तथा उनका शुद्ध प्रत्यक्षीकरण करता है, जैसे-पढ़ने आदि के शब्दों को पहचानना।
(iii) तार्किक योग्यता (Reasoning Ability or Ability to Fine Rules, Principles, or Concepts for Understanding or Solving Problems) – इस योग्यता के द्वारा व्यक्ति अमूर्त सम्बन्धों का प्रत्यक्षीकरण करता है तथा उपयोग करता है। इस योग्यता के द्वारा व्यक्ति नयी समस्याओं के समाधान हेतु पुराने अनुभवों को भी रखता या उपयोग करता है।
(iv) वाचिक योग्यता (Verbal Ability or Ability to Define and Understand Words) – यह वह योग्यता है, जिसकी सहायता से व्यक्ति शाब्दिक विचारों को समझता और उनका प्रयोग करता है।
(v) शाब्दिक योग्यता (Word Ability or Ability to Think of Words Rapidly) – इस योग्यता के द्वारा शब्दों के सम्बन्ध में व्यक्ति तीव्रता से चिन्तन करता है। यह योग्यता व्यक्ति के व्यक्तित्व कारकों से सम्बन्धित हो सकती है।
(vi) स्थान या क्षेत्र प्रेक्षण योग्यता (Spatial Ability or Ability to Visualize Space Relationships) – इस योग्यता के द्वारा व्यक्ति स्थान या क्षेत्र प्रेक्षण करता है तथा स्थान या क्षेत्र प्रेक्षण सम्बन्धों को समझता है, जैसे-ज्यामिति समस्याओं में।
(vii) स्मृति योग्यता (Memory Ability or Ability to Memorize and Recall)- इस योग्यता के द्वारा व्यक्ति अधिगम करता है तथा प्राप्त सूचना का धारण करता है।
थर्सटन ने बाद के अध्ययनों के आधार पर तर्क शक्ति में दो योग्यतायें मानी हैं—(1) आगमन योग्यता (Inductive Ability), (2) निगमन योग्यता (Deductive Ability) उसने एक और अन्य कारक का भी पता लगाया है, जो समस्या हल करने की योग्यता से सम्बन्धित है। इस प्रकार से छठे कारक में दो कारक हैं, अतः कुल कारकों की संख्या 9 हो जाती है।
5. पदानुक्रमिक सिद्धान्त ( Hierarchical Theory)- इस सिद्धान्त के प्रतिपादक स्पीयरमैन के विचारों के समर्थक रहे हैं। इनमें वरनन का नाम मुख्य है। इस सिद्धान्त में क्रमबद्धता के आधार पर सामान्य मानसिक योग्यता के मुख्य दो वर्ग (Major Groups) बताये गये हैं प्रथम वर्ग में बुद्धि के Practical, Mechanical, Spatial तथा Physical – कारक हैं तथा द्वितीय वर्ग में Verbal, Number, Educational आदि कारक हैं। इन कारकों के आगे क्रम में विशिष्ट मानसिक योग्यताओं से सम्बन्धित कारण हैं। इन कारकों का सम्बन्ध विभिन्न ज्ञानात्मक क्रियाओं से है। यह सिद्धान्त भी कारक विश्लेषण (Factor Anaysis) विधि पर आधारित है।
6. गिलफोर्ड का सिद्धान्त (Guilford’s Theory) – इस सिद्धान्त के प्रतिपादक गिलफोर्ड हैं। गिलफोर्ड ने तीन मौलिक मानसिक योग्यताओं के आधार पर बुद्धि की संरचना (Structure of Intelligence) का वर्णन किया है – (i) Operations अर्थात् चिन्तन का कार्य, (ii) Contents अर्थात् वे पद जिनके सम्बन्ध में चिन्तन किया जाता है। जैसे- शब्द
या संकेत, (iii) Product Units अर्थात् वे विचार जो चिन्तन के बाद उत्पादन के रूप में आते हैं। इन तीन मौलिक मानसिक योग्यताओं के कारण ही गिलफोर्ड का सिद्धान्त Three Dimensional Model of Intelligence कहलाता है। इस सिद्धान्त का मॉडल उपर्युक्त चित्र के अनुसार है। गिलफोर्ड के मॉडल में 120 छोटे क्यूब्स (Cubes) हैं, जो ऊपर दिये हुए चित्र से स्पष्ट है। प्रत्येक क्यूब एक कारक (Factor) का प्रतिनिधित्व करता है। प्रत्येक कारक का वर्गीकरण Operation, Content तथा Product के रूप में किया जा सकता है। उदाहरणार्थ—–यदि कोई व्यक्ति अखबार पढ़ता है तो अखबार पढ़ने में तीन Operations काम में आते हैं—संज्ञान, स्मृति और मूल्यांकन । Content में अखबार के शब्द और Products में अखबार में पढ़े जा रहे समाचारों के सम्बन्ध में अनुमान लगाना है।
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