वंशानुक्रम और वातावरण का सम्बन्ध बताते हुए उनके सापेक्षिक महत्व पर प्रकाश डालिए।
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वंशानुक्रम तथा वातावरण का सम्बन्ध (Relation of Heredity and Environment)
विकास की किसी अवस्था में बालक या व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक विशेषताओं की व्याख्या करने के लिए साधारणतः वंशानुक्रम और वातावरण शब्दों का प्रयोग किया जाता है। बालक के निर्माण में वंशानुक्रम और वातावरण का किस सीमा तक प्रभाव पड़ता है यह विषय सदैव विवादास्पद था और अब भी है। प्राचीन समय में यह विश्वास किया जाता था कि वंशानुक्रम तथा वातावरण एक-दूसरे से पृथक थे और बालक या व्यक्ति के व्यक्तित्व और कार्यक्षमता को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करते थे। आधुनिक समय में इस धारणा में पर्याप्त परिवर्तन हो गया है। अब हमारे इस विश्वास में निरन्तर वृद्धि होती चली जा रही है कि व्यक्ति बालक, किशोर अथवा प्रौढ़ के रूप में जो कुछ सोचता, करता या अनुभव करता है, वह वंशानुक्रम के कारकों और वातावरण के प्रभावों के पारस्परिक सम्बन्धों का परिणाम होता है।
हमारे विश्वास में निरन्तर वृद्धि के कारण हैं- वंशानुक्रम और वातावरण सम्बन्धी परीक्षण। इन परीक्षणों ने सिद्ध कर दिया है कि समान वंशानुक्रम और समान वातावरण होने पर भी बच्चों में विभिन्नता होती है। अतः बालक के विकास पर न केवल वंशानुक्रम का वरन् वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। इसकी पुष्टि करते हुए को व क्रो (Crow and Crow) ने लिखा है— “व्यक्ति का निर्माण न केवल वंशानुक्रम और न केवल वातावरण से होता है। वास्तव में, वह जैविक दाय और सामाजिक विरासत के एकीकरण की उपज है।”
“A person is neither ‘born’ to be, nor ‘made’ what he is. Rather he is the product of the integration of biological inheritance and social heritage.” – Crow and Crow
वंशानुक्रम व वातावरण का सापेक्षिक महत्व (Comparative Importance of Heredity and Environment)
बालक की शिक्षा और विकास में वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्षिक महत्व को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-
1. वंशानुक्रम व वातावरण का समान महत्व (Equal Importance of Heredity and Environment) – हमें साधारणतया यह प्रश्न सुनने को मिलता है- “बालक की शिक्षा और विकास में वंशानुक्रम अधिक महत्वपूर्ण है या वातावरण ?” यह प्रश्न बेतुका है और इसका कोई उत्तर नहीं दिया जा सकता है। यह प्रश्न पूछना यह पूछने के समान है कि मोटरकार के लिए इंजन अधिक महत्वपूर्ण है या पैट्रोल। जिस प्रकार मोटरकार के लिए इंजन और पैट्रोल का समान महत्व है, उसी प्रकार बालक के विकास के लिए वंशानुक्रम तथा वातावरण का समान महत्व है। वुडवर्थ (Woodworth) ने ठीक लिखा है- “यह पूछने का कोई मतलब नहीं निकलता है कि व्यक्ति के विकास के लिए वंशानुक्रम और वातावरण में से कौन अधिक महत्वपूर्ण है। दोनों में से प्रत्येक पूर्ण रूप से अनिवार्य है।”
2. वंशानुक्रम व वातावरण की पारस्परिक निर्भरता (Interdependence of Heredity and Environment) – वंशानुक्रम और वातावरण में पारस्परिक निर्भरता है। ये एक-दूसरे के पूरक सहायक और सहयोगी हैं। बालक को जो मूलप्रवृत्तियाँ वंशानुक्रम से प्राप्त होती हैं, उनका विकास वातावरण में होता है; उदाहरण के लिए, यदि बालक में बौद्धिक शक्ति नहीं है, तो उत्तम से उत्तम वातावरण भी उसका मानसिक विकास नहीं कर सकता है। इसी प्रकार बौद्धिक शक्ति वाला बालक प्रतिकूल वातावरण में अपना मानसिक विकास नहीं कर सकता है। वस्तुतः बालक के सम्पूर्ण व्यवहार की सृष्टि-वंशानुक्रम और वातावरण की अन्तक्रिया द्वारा होती है। मोर्स एवं विंगो (Morse and Wingo) के अनुसार- “मानव-व्यवहार की प्रत्येक विशेषता वंशानुक्रम और वातावरण की अन्तःक्रिया का फल है।”
3. वंशानुक्रम व वातावरण की अपृथकता (Non-separation of Heredity and Environment) – शिक्षा की किसी भी योजना में वंशानुक्रम और वातावरण को एक-दूसरे से पृथक् नहीं किया जा सकता है। जिस प्रकार आत्मा और शरीर का सम्बन्ध है, उसी प्रकार वंशानुक्रम और वातावरण का भी सम्बन्ध है। अतः बालक के सम्यक् विकास के लिए वंशानुक्रम और वातावरण का संयोग अनिवार्य है। मैकाइवर एवं पेज (Maclver and Page) के अनुसार- “जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है। इनमें से एक, परिणाम के लिए उतना ही आवश्यक है, जितना कि दूसरा कोई से न तो कभी हटाया जा सकता है और न कभी पृथक् किया जा सकता है।”
4. वंशानुक्रम व वातावरण के प्रभावों में अन्तर करना असम्भव (Differentiation is difficult between the Both)– यह बताना असम्भव है कि बालक की शिक्षा और विकास में वंशानुक्रम और वातावरण का कितना प्रभाव पड़ता है। वंशानुक्रम में वे सभी बातें आ जाती हैं, जो व्यक्ति के जन्म के समय नहीं, वरन् गर्भाधान के समय उपस्थित थीं। इसी प्रकार वातावरण में वे सब बाह्य तत्त्व आ जाते हैं, जो व्यक्ति को जन्म के समय से प्रभावित करते हैं। अतः जैसा कि वुडवर्थ (Woodworth) ने लिखा है- “व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है। पर ये बातें इतनी पेचीदा ढंग से संयुक्त रहती हैं कि बहुधा वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभावों में अन्तर असम्भव हो जाता है।”
5. बालक, वंशानुक्रम व वातावरण की उपज (Child is the Creation of Heredity and Environment) – बालक का विकास इसलिए नहीं होता है कि उसे कुछ बातें वंशानुक्रम से और कुछ वातावरण से प्राप्त होती हैं। इसी प्रकार, यह भी नहीं कहा जा सकता है कि वह अपने वंशानुक्रम और वातावरण में से किसकी अधिक उपज है। सत्य यह है कि वह वंशानुक्रम और वातावरण का योगफल न होकर गुणनफल है। वुडवर्थ (Woodworth) के अनुसार- “वंशानुक्रम और के वातावरण का सम्बन्ध जोड़ के समान न होकर गुणा के समान अधिक है। अतः व्यक्ति इन दोनों तत्वों का गुणनफल है, योगफल नहीं।”
सारांश में, हम कह सकते हैं कि बालक के विकास के लिए वंशानुक्रम और वातावरण का समान महत्व है। उसके निर्माण में दोनों का समान योग है। इनमें से एक की भी अनुपस्थिति में उसका सम्यक् विकास असम्भव है। गैरेट के अनुसार- “इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि वंशानुक्रम और वातावरण एक-दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं और दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य हैं।”
“Nothing is more certain than that heredity and environment are co-acting influences and that both are essential to achievement.” -Garrett
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