शिक्षा मनोविज्ञान / EDUCATIONAL PSYCHOLOGY

तर्क से आप क्या समझते हैं ? तर्क के सोपान, प्रकार एंव प्रशिक्षण

तर्क से आप क्या समझते हैं ? तर्क के सोपान, प्रकार एंव प्रशिक्षण
तर्क से आप क्या समझते हैं ? तर्क के सोपान, प्रकार एंव प्रशिक्षण

तर्क से आप क्या समझते हैं ? बताइये कि शिक्षक के रूप में आप बालकों को तर्क का प्रशिक्षण किस प्रकार देते ?

तर्क का अर्थ तथा परिभाषा (Meaning & Definition of Reasoning)

‘तर्क’ या ‘तार्किक चिन्तन’ चिन्तन का उत्कृष्ट रूप और जटिल मानसिक क्रिया है। इसे साधारणतः औपचारिक नियमों से सम्बद्ध किया जाता है, पर पशु और मानव इस बात का अनुभव किये बिना तर्क का प्रयोग करते रहते हैं। कुत्ता अपने स्वामी को कार में बैठकर जाते हुए देखकर घर में वापस आ जाता है। बालक आइसक्रीम बेचने वाले की आवाज सुनकर घर से बाहर दौड़ा हुआ जाता है। हम अपने मित्र को उसकी कृपा के लिये धन्यवाद देते हैं। इन सब कार्यों का आधार ‘तर्क’ है।

एक और उदाहरण लीजिये । हम अपना पैन कहीं रखकर भूल जाते हैं। हम विचार करते हैं कि हमने उससे अन्तिम बार कहाँ लिखा था । वह स्थान बैठने का कमरा था। इस प्रकार तर्क करके हम इस निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं कि पैन बैठने के कमरे में होगा। हम वहाँ जाते हैं और वह हमें मिल जाता है। इस प्रकार हमारी समस्या का समाधान हो जाता है। अतः हम कह सकते हैं कि तर्क कार्य-कारण में सम्बन्ध स्थापित करके हमें किसी निष्कर्ष पर पहुँचने या किसी समस्या का समाधान करने में सहायता देता है।

‘तक’ के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं-

1. गेट्स व अन्य- “तर्क, फलदायक चिन्तन है, जिससे किसी समस्या का समाधान करने के लिये पूर्व-अनुभवों को नई विधियों से पुनर्संगठित या सम्मिलित किया जाता है।”

“Reasoning is productive thinking in which previous experiences are organized or combined in new ways, to solve a problem.” – Gates & Others

2. मन– “तर्क उस समस्या को हल करने के लिये अतीत के अनुभवों को सम्मिलित रूप प्रदान करता है जिसको केवल पिछले समाधानों का प्रयोग करके हल नहीं किया जा सकता है।”

“Reasoning is combining past experiences in order to solve a problem which cannot be solved by mere reproduction of earlier solutions.” -Munn

3. स्किनर- “तर्क, शब्द का प्रयोग कारण और प्रभाव के सम्बन्धों की मानसिक स्वीकृति को व्यक्त करने के लिये किया जाता हैं। यह किसी अवलोकित कारण से एक घटना की भविष्यवाणी या किसी अवलोकित घटना के किसी कारण का अनुमान हो सकती है।”

“Reasoning is the word used to describe be mental recognition of cause and effect relationship. It may be the production of an event from an observed cause, or the inference of a cause from an observed event.” – Skinner

इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि तर्क चिन्तन की प्रक्रिया है। तर्क द्वारा अर्जित प्रत्ययों का उपयोग समस्या के समाधान हेतु किया जाता है।

तर्क के सोपान ( Steps in Reasoning )

डीवी (Dewey) ने तर्क में निम्न 5 सोपानों की उपस्थिति बताई है-

1. समस्या की उपस्थिति (Presence of a Problem) – तर्क का आरम्भ किसी समस्या की उपस्थिति से होता है। समस्या की उपस्थिति, व्यक्ति को उसके बारे में विचार करने के लिये बाध्य करती है।

2. समस्या की जानकारी (Comprehension of a Problem) – व्यक्ति समस्या का अध्ययन करके उसकी पूरी जानकारी प्राप्त करता है और उससे सम्बन्धित तथ्यों को एकत्र करता है।

3. समस्या समाधान के उपाय (Methods of Solving the Problem) – व्यक्ति एकत्र किए हुए तथ्यों की सहायता से समस्या का समाधान करने के लिये विभिन्न उपायों पर विचार करता है।

4. एक उपाय का चुनाव ( Selection of One Method)- व्यक्ति, समस्या का समाधान करने के लिये सब उपायों के औचित्य और अनौचित्य पर पूर्ण रूप से विचार करने के बाद उनमें से एक का चयन कर लेता है।

5. उपाय का प्रयोग (Application of the Method)- व्यक्ति अपने निर्णय के अनुसार समस्या का समाधान करने के लिये उपाय का प्रयोग करता है। हम उपर्युक्त सोपानों को एक उदाहरण देकर स्पष्ट कर सकते हैं। माँ घर लौटने पर अपने बच्चे को रोता हुआ पाती है। उसका रोना माँ के लिये एक समस्या उपस्थित कर देता है। वह उसके रोने के कारणों की खोज करके समस्या का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करती है। उसके विचार से बच्चे के रोने के तीन कारण हो सकते हैं—अकेला रहना, चोट या भूख। वह बच्चे का आलिंगन करके उसे चुप करने का प्रयास करती है, पर बच्चा चुप नहीं होता है। वह उसके सम्पूर्ण शरीर को ध्यान से देखती है, पर उसे चोट का कोई चिन्ह नहीं मिलता है। अतः वह इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि बच्चा भूखा है। अपने इस निष्कर्ष के अनुसार वह बच्चे को दूध पिलाती है। दूध पीकर बच्चा चुप हो जाता है। इस प्रकार, माँ की समस्या का समाधान हो जाता है।

तर्क के प्रकार (Kinds of Reasoning)

तर्क निम्न दो प्रकार का होता है-

1. आगमन तर्क (Inductive Reasoning) – इस तर्क में व्यक्ति अपने अनुभवों या अपने द्वारा संकलित तथ्यों के आधार पर किसी सामान्य नियम या सिद्धान्त का निरूपण करता है। इसमें वह तीन स्तरों से होकर गुजरता है— निरीक्षण परीक्षण और सामान्यीकरण (Observation, Experiment & Generalization)। उदाहरण के लिये जब माँ घर लौटने पर बच्चे को रोता हुआ पाती है, तब वह उसके रोने के कारणों की खोज करके इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि वह भूख के कारण रो रहा है। इस प्रकार, इस विधि में हम विशिष्ट सत्य से सामान्य सत्य की ओर अग्रसर होते हैं। अतः भाटिया के अनुसार, “आगमन-विधि खोज और अनुसंधान की विधि है।”

“Induction is a method of discovery and research.” – Bhatia

2. निगमन तर्क (Deductive Reasoning)- इस तर्क में व्यक्ति दूसरों के अनुभवों, विश्वासों या सिद्धान्तों का प्रयोग करके सत्य का परीक्षण करता है। उदाहरणार्थ, यदि माँ को इस सिद्धान्त में विश्वास है, तो वह बच्चे को रोता देखकर तुरन्त इस निष्कर्ष पर पहुँच जाती है कि उसे भूख लगी है और इसलिये उसे दूध पिला देती है। इस प्रकार, इस विधि में हम एक सामान्य सिद्धान्त को स्वीकार करते हैं और उसे नवीन परिस्थितियों में प्रयोग करके सिद्ध करते हैं। अतः भाटिया के अनुसार- “निगमन-विधि प्रयोग और प्रमाण की विधि है।”

“Deduction is a method of application and proof.” – Bhatia

आगमन और निगमन तर्क एक-दूसरे के विरोधी जान पड़ते हैं, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। ये ‘तर्क’ कही जाने वाली एक ही क्रिया के अन्तर्गत दो प्रक्रियायें हैं, या एक ही क्रिया के दो पहलू हैं।

तर्क का प्रशिक्षण (Training of Reasoning)

जीवन के सभी क्षेत्रों में तर्क अथवा तार्किक चिन्तन की आवश्यकता और उपयोगिता को स्वीकार किया जाता है। सेनापति सैकड़ों मील दूर बैठा हुआ अपनी तर्क-शक्ति का प्रयोग करके युद्ध-स्थल में सैन्य-संचालन के आदेश देता है। प्रशासक इसी शक्ति के कारण अपनी नीतियों का निर्माण और उनमें परिवर्तन करता है। अतः शिक्षक पर बालकों की तर्क-शक्ति का विकास करने का गम्भीर उत्तरदायित्व है। वह ऐसा निम्नलिखित विधियों का प्रयोग करके कर सकता है-

1. वाद-विवाद, विचार-विमर्श, भाषण प्रतियोगिता आदि तार्किक चिन्तन को प्रोत्साहित करते हैं, अतः शिक्षक को इनका समुचित आयोजन करना चाहिये ।

2. एकाग्रता, संलग्नता और आत्म-निर्भरता के गुणों के अभाव में तार्किक चिन्तन की कल्पना नहीं की जा सकती है। अतः शिक्षक को बालकों में इन गुणों का विकास करना चाहिये ।

3. पूर्व-द्वेष, पूर्व-निर्णय और पूर्व-धारणा, तार्किक चिन्तन में बाधा उपस्थित करते हैं। अतः शिक्षक को बालकों को इनके दुष्परिणामों से भली-भाँति अवगत करा देना चाहिये ।

4. शिक्षक को बालकों को तर्क करने की वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करके किसी समस्या का अध्ययन करके स्वयं ही किसी नियम, निष्कर्ष या सिद्धान्त पर पहुँचने का प्रशिक्षण देना चाहिये ।

5. वेलेनटीन (Valentine) के अनुसार शिक्षक को बालकों के समक्ष केवल उन्हीं विचारों को प्रस्तुत करना चाहिये, जिनके सत्य का वह स्वयं निरीक्षण कर चुका है। साथ ही, उसे बालकों को उसके विचारों से प्रभावित न होकर स्वयं अपने विचारों का निर्माण करने का प्रशिक्षण देना चाहिये ।

6. आगमन-विधि, तार्किक चिन्तन के विकास में योग देती है। अतः अध्यापक को अपने शिक्षण में इस विधि का प्रयोग करना चाहिये ।

7. खोज, प्रयोग और अनुसंधान का तार्किक चिन्तन में महत्वपूर्ण स्थान है। अतः शिक्षक को बालकों को इस प्रकार के कार्य करने के अवसर देने चाहियें।

8. निरीक्षण-परीक्षण और स्वयं-क्रिया में तार्किक चिन्तन के प्रयोग का उत्तम अवसर मिलता है। अतः शिक्षक को बालकों के लिये इनसे सम्बन्धित क्रियाओं की व्यवस्था करनी चाहिये ।

9. किसी समस्या का समाधान करने की विभिन्न विधियों पर विचार करने से तार्किक चिन्तन को बल मिलता है। अतः शिक्षक को बालकों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान खोजने के लिये प्रेरित करना चाहिये ।

10. गेट्स एवं अन्य (Gates & Others) के अनुसार-तार्किक चिन्तन की योग्यता सहसा प्रकट न होकर आयु और अनुभव के साथ विकसित होती है। अतः अध्यापक को शिक्षा के सब स्तरों पर बालकों को अपने तार्किक चिन्तन के प्रयोग का अवसर देना चाहिये ।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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