Contents
भारार्पण के सिद्धान्त (Principles of Delegation)
भारार्पण के कुछ प्रमुख सिद्धान्त इस प्रकार है—
(1) प्रत्याशित परिणामों द्वारा कर्त्तव्यों को सौपने का सिद्धान्त- अधीनस्थों के अपने कर्तव्य उसी समय नष्ट हो जाते हैं बल्कि उन्हें इस बात का पता हो कि उन्हें क्या क्रियाएँ करनी हैं तथा क्या परिणाम दिखाना है। इसके लिए उन्हें एक अग्रिम सूचना दी जाती है, जिसमें इस बात का उल्लेख रहता है कि अमुक आधार पर उनके कार्य की प्रगति का मान किया जाएगा। परिणामस्वरू अधीनस्थ कर्मचारी उन लक्ष्यों की प्राप्ति अपने प्रयत्नों में जुट जाते हैं और उद्देश्यरहित क्रियाओं का त्याग कर देते हैं। इस प्रकार कर्तव्यों को सौंपते समय प्रत्याशित परिणामों अथवा लक्ष्यों को स्पष्ट किया जाना अति आवश्यक एवं लाभदायक है।
(2) अधिकार व दायित्वों में समानता होनी चाहिए— यदि एक अधीनस्थ कर्मचारी को कार्य करने का दायित्व सौंपा जाता है तो उसे कार्य करने के लिए अधिकार भी दिए जाने चाहिए तथा जब अधिकार सौंपे जात हैं, अधीनस्थ कर्मचारी कार्य को करने के लिए उत्तरदायी बन जाता है। चूँकि अधिकार और दायित्व दोनों एक ही कार्य से सम्बन्धित है, अतः यह उचित है कि दोनों एक साथ ही बढ़े अर्थात् दोनों में समानता हो। इसका आशय यह नहीं है कि गणित की भाँति उसके अधिकार व दायित्वों की संख्या बराबर हो, किन्तु दोनों में सन्तुलन होना नितान्त आवश्यक है। यदि किसी व्यक्ति को दायित्व की तुलना में अधिकार प्रदान कर दिये जाएँ, तो उनके दुरुप्रयोग को सदैव आशंका बनी रहेगी। इसी प्रकार, यदि दायित्व की तुलना में कम अधिकार प्रदान किए जाए, तो कार्य के कुशलतापूर्वक सम्पन्न होने में सन्देह बना रहेगा।
(3) भारार्पण की स्पष्टता का सिद्धान्त- भारार्पण, प्रकृति के आधार पर सामान्य अथवा विशिष्ट, लिखित अथवा मौखिक हो सकता है। भारार्पण की प्रकृति चाहे कुछ भी क्यों न हो, उसका स्पष्ट होना अत्यन्त आवश्यक है। स्पष्टता की दृष्टि से विशिष्ट एवं लिखित भारार्पण श्रेयस्कर माना जाता है। इससे यह लाभ होगा कि कर्मचारी अपने अधिकारों का सदुपयोग करके सौंपे गए कार्य को अच्छी तरह कर सकेगा तथा अपने दायित्व को पूरी तरह निभाने का प्रयत्न करेगा।
(4) अपवाद का सिद्धान्त – इस सिद्धान्त के अनुसार प्रबन्ध को दैनिक प्रकृति के कार्यों को अपने अधीनस्थों को सौंप देना चाहिए और स्वयं अपना ध्यान उच्च श्रेणी की समस्याओं पर केन्द्रित करना चाहिए। ऐसी समस्याएँ जो कभी-कभी आती हैं, नए प्रकार की हैं, अधीनस्था को नहीं सौंपी जानी चाहिए।
(5) निष्पादन के प्रमापों का सिद्धान्त- अधीनस्थों की उत्तरदेयता का उचित निर्धारण करने के लिए यह परम आवश्यक है कि उनके कार्य के प्रमापित स्तर निर्धारित किए जाए, यह पुरानी कहावत है कि नियन्त्रणहीन भारार्पण बिना लगाम के घोड़े के समान होता है। प्रभावी नियन्त्रण की दृष्टि से निष्पादन के स्तर सुनिश्चित होने चाहिए। ऐसा करने से अधीनस्थ एवं अधिकारी दोनों को ही सहायता मिलती है।
(6) आदेश की एकता का सिद्धान्त- एक अच्छे संगठन में आदेश की एकता का होना आवश्यक माना जाता है। इससे अभिप्राय है कि कर्मचारी को आदेश तथा संकेत केवल एक ही उच्च अधिकारी से मिलने चाहिए। यदि एक कर्मचारी एक से अधिक अधिकारियों से आदेश प्राप्त करता है तो उसे किसी भी कार्य के लिए उत्तरदायी ठहराना सम्भव नहीं होगा। इस सिद्धान्त का पालन न करने की अवस्था में कर्मचारियों को कार्य से जी चुराने, अधिकारों का गलत उपयोग करने तथा दायित्व से बचने का अवसर मिलता है।
Important Link
- अधिकार से आप क्या समझते हैं? अधिकार के सिद्धान्त (स्रोत)
- अधिकार की सीमाएँ | Limitations of Authority in Hindi
- भारार्पण के तत्व अथवा प्रक्रिया | Elements or Process of Delegation in Hindi
- संगठन संरचना से आप क्या समझते है ? संगठन संरचना के तत्व एंव इसके सिद्धान्त
- संगठन प्रक्रिया के आवश्यक कदम | Essential steps of an organization process in Hindi
- रेखा और कर्मचारी तथा क्रियात्मक संगठन में अन्तर | Difference between Line & Staff and Working Organization in Hindi
- संगठन संरचना को प्रभावित करने वाले संयोगिक घटक | contingency factors affecting organization structure in Hindi
- रेखा व कर्मचारी संगठन से आपका क्या आशय है ? इसके गुण-दोष
- क्रियात्मक संगठन से आप क्या समझते हैं ? What do you mean by Functional Organization?
Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com