मुगलों के केन्द्रीय प्रशासन की मुख्य विशेषता लिखिए।
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मुगलों के केन्द्रीय प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ (Salient Features of the -Mughal Administration)
मुगलकालीन प्रशासन भारतीय और ईरानी प्रशासनिक व्यवस्था का सम्मिश्रण था। मुगल-प्रशासन बहुत कुछ सैनिक प्रशासन के समान था। यह अत्यधिक केंद्रीकृत भी था। शासन का स्वरूप धर्म-निरपेक्ष भी था। मुगलों ने इस्लामी राज्य की स्थापना का प्रयास कभी नहीं किया।
बादशाह या सम्राट की स्थिति – मुगल प्रशासन के शीर्ष पर स्वयं सम्राट् होता था। राज्य की समस्त प्रशासनिक शक्तियाँ उसी के हाथों में निहित थी। वह सैद्धांतिक और व्यावहारिक रूप से भी सार्वभौम था, उस पर किसी का नियंत्रण नहीं था। वह खलीफा की अधिसत्ता को स्वीकार नहीं करता था। मुगलों ने अपनी सत्ता को सुदृढ़ करने के लिए अनेक उपाय किए। उत्तराधिकार के मामले में वंशानुगत तत्त्व को ही स्थान दिया गया। इससे सम्राट् की स्थिती सुदृढ़ हुई। अकबर ने सम्राट् की स्थिति सुदृढ़ करने के लिए भारत में प्रचलित राजत्व के दैवी सिद्धांत को भी अपनाया। महजर की घोषणा से वह धार्मिक का प्रधान बन गया। उसने जर्मीबोस, सिजदा, चौकी, तस्लीम-ए-चौकी, झरोखा-दर्शन, तुलादान इत्यादि प्रथा अपनाकर सम्राट् के पद के प्रति जनता में भय एवं श्रद्धा की भावना जगाई।
केन्द्रीय विभाग एवं प्रमुख पदाधिकारी – मुगलों के समय में मंत्रिमंडलीय व्यवस्था का विकास नहीं हो सका। यद्यपि, सम्राट् को प्रशासन में सहायता देने के लिए अनेक पदाधिकारी थे, तथापि उनकी स्थिति मंत्रियों से भिन्न थी। वे सम्राट के सलाहकार नहीं बल्कि उसके अधीनस्थ पदाधिकारी थे। मुगल प्रशासन में सम्राट् के पश्चात् सर्वोच्च स्थिति वकील की थी। वह आवश्यकता पड़ने पर सम्राट् के प्रतिनिधि के रूप में शासन करता था। उनकी तुलना प्रधान मंत्री से की जा सकती है। वह सैनिक गतिविधियों में भी भाग लेता था। राज्य का राजस्व विभाग भी उसी के अधीन था। अतः उसे प्रमुख दीवान अथवा दीवान-ए-आला भी कहा जाता था। राजस्व विभाग के कार्यों की देखभाल वह अन्य दीवानों (दीवान-ए-खालसा, दीवान-ए-तन, मुस्तौफी, वाकिया-ए-नवीस, मुशरिफ) की सहायता से करता था । वजीर के पश्चात् खानसामा अथवा मीरसामाँ का स्थान था। वह सम्राट् एवं राजपरिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति करता, सरकारी कारखानों की व्यवस्था देखता तथा राजमहल एवं दरबार से संबंधित सभी अधिकारियों, कोषों एवं भंडारों, सम्राट् को मिले नजराानों तथा सम्राट् की सुरक्षा व्यवस्था देखता था । सैन्य विभाग का प्रधान मीर बख्शी होता था। वह राजकीय एवं मनसबदारों की सेना के वेतन, उनके अस्त्र- शस्त्र, युद्ध के अवसर पर सेना के संचालन, सम्राट् की सुरक्षा व्यवस्था की देख-भाल करता था । राज्य के धार्मिक मामलों का प्रधान सद्र उस सद्र होता था। राज्य द्वारा चलाए जानेवाले दान- पुण्य की व्यवस्था वही करता था। तोपखाना विभाग का प्रधान मीर-ए-आतिश तथा राज्य के सूचना एवं गुप्तचर विभाग का प्रधान दारोगा – ए – डाकचौकी कहलाता था। मीर मुंशी राजकीय आज्ञाओं एवं फरमानों को लिखता तथा उन्हें उचित स्थान पर अग्रसारित करता था ।
मुगलों की न्याय-व्यवस्था – मुगल काल में न सिद्धांततः, सम्राट् ही सर्वोच्च न्यायाधीश हुआ करता था। उसे मुकदमे सुनने और फैसला करने का अधिकार था। प्रत्येक बुधवार को सम्राट् स्वयं दरबार में बैठकर मुकद्दमा सुनते थे। बादशाह का न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय था जहाँ प्रमुख न्यायाधीश के फैसले से विरुद्ध भी अपील की जा सकती थी। न्याय-व्यवस्था की देखरेख के लिए राज्य की ओर से काजी-उल-कजात को नियुक्त किया गया था। राज्य के सभी काजी और मुफ्ती निर्देश पर कार्य करते थे। काजी नागरिक एवं सैनिक मुकद्दमों का निपटारा करते थे। मुफ्ती का मुख्य कार्य इस्लामी कानून की व्याख्या करना था। इन अधिकारियों के अतिरिक्त सूबेदार, फौजदार, कोतवाल एवं अन्य स्थानीय अधिकारी भी न्याय की व्यवस्था करते थे। गाँवों में पंचायतें भी मुकद्दमों का फैसला करती थीं।
मुगलों की मनसबदारी व्यवस्था- मुगलों की सैन्य व्यवस्था का मुख्य आधार मनसबदारी प्रथा थी। यह व्यवस्था अकबर के समय में आरंभ हुई। उसके प्रत्येक सरदार और सैनिक पदाधिकारी का पद (मनसब ) निश्चित कर उन्हें विभिन्न श्रेणियों में विभक्त कर दिया। अकबर के समय में सबसे छोटा मनबस 10 का और अधिकतम 7000 का था। इन्हें निश्चित संख्या के सवार रखना कहा गया। जाति के आधार पर प्रत्येक मनसबदार का पद और वेतन निश्चित किया गया। वेतन के रूप में नकद धनराशि अथवा जागीर दी जाती थी। आवश्यकतानुसार मनसबदार अपनी सेना से सम्राट् की सहायता करते थे।
मनसबदारों की सेना के अतिरिक्त मुगलों की सेना में अहदी और दाखिली सेना की टुकड़ियाँ भी थी। अहदी सम्राट् की व्यक्तिगत सेना की टुकड़ी थी। इसकी नियुक्ति सम्राट स्वयं करता था।
पुलिस की व्यवस्था- मुगलों ने नगरों में शांति-व्यवस्था बनाने के उद्देश्य से पुलिस की भी व्यवस्था की। कोतवाल नगरों में अपराधों को रोकने तथा रात्रि में नागरिकों की सुरक्षा के लिए गश्त का प्रबंध करता था। वह माप-तौल के साधनों तथा मूल्यों पर भी नियंत्रण रखता था। कोतवाल नागरिकों एवं उनके घरों की सूची रखता। वह नगर में आनेवाले अजनबियों पर चौकसी रखता, आस-पास के इलाकों की सूचना रखता एवं गुप्तचरों को नियुक्त करता था।
राजस्व-यवस्था – मुगलों की आमदनी के मुख्य स्रोत थे लगान, व्यापारिक कर, सीमा शुल्क, युद्ध में लूट से होनेवाली आमदना, लावारिस संपत्ति, राजकीय उद्योगों से होनेवाली आय, नजराने और उपहार में मिलनेवाली संपत्ति इत्यादि । लगान ही राजकीय आय का सबसे बड़ा स्रोत था, समय-समय पर मुगलों ने भूमि-व्यवस्था एवं लगान व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण सुधार किए। इस दिशा में पहला प्रयास अकबर ने किया। शेरशाह के भूमि सुधारों से प्रेरणा लेकर अकबर ने राज्य की समस्त भूमि की नाप करवाई एवं ऊपज के आधार पर लगान की राशि निश्चित की। लगान के लिए दहसाला प्रबंध किया ।
मुद्रा एवं टकसाल- भारत में साम्राज्य की स्थापना के साथ ही मुगलों ने मुद्राव्यवस्था पर भी ध्यान दिया। सिक्का ढालने पर राज्य की एकाधिकार स्थापित हुआ। पूरे साम्राज्य में महत्त्वपूर्ण जगहों पर राजकीय टकसाल स्थापित किए गए। इन टकसालों में विभिन्न आकार- प्रकार एवं मान से सोने, चांदी एवं ताँबे के सिक्के जारी किए गए। मुगलकालीन सिक्कों पर बादशाह का नाम एवं उसकी उपाधि, टकसाल का नाम, जारी करने का वर्ष एवं कुरान की आयतें खुदवाई गई। जहाँगीर के कुछ सिक्कों पर उसकी आकृति एवं नूरजहाँ का नाम भी खुदवाया गया। औरंगजेब ने सिक्कों पर कलमा खुदवाना बंद करवा दिया। मुगलकाल में दिल्ली, लाहौर, जौनपुर, पटना, सूरत आदि नगरों में टकसाल स्थापित किए गए। मुगलों ने जलाली, दाम, जितल, मोहर जैसे सिक्के ढलवाए।
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