केन्द्र राज्य संबंधों पर सरकारिया आयोग की मुख्य सिफारिशें का उल्लेख कीजिए।
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केन्द्र-राज्य सम्बन्धों पर सरकारिया आयोग प्रतिवेदन की मुख्य सिफारिशे
केन्द्र-राज्य सम्बन्धों के सम्पूर्ण ढांचे पर विचार करने के लिए केन्द्रीय सरकार ने मार्च 1983 में सरकारिया आयोग की नियुक्ति की सरकारिया आयोग की मुख्य-मुख्य सिफारिशं निम्नलिखित है-
सुदृढ़ केन्द्र- आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश की एकता व अखण्डता के लिए मजबूत केन्द्र अनिवार्य हैं आयोग ने स्पष्ट शब्दों में कहा है, “संविधान के मूल स्वरूप में कोई प्रबल परिवर्तन तो उचित है और नही आवश्यक।” आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव की चर्चा किए बिना आयोग ने कहा है कि केन्द्र के अधिकारों पर किसी भी प्रकार का अंकुश लगाना उचित नहीं है।
राज्यों में राष्ट्रपति शासन अन्तिम विकल्प के रूप में लागू हो- आयोग ने कहा है कि किसी राज्य में संविधान के अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत राष्ट्रपति शासन तभी लागू करना चाहिए जब कोई दूसरा रास्ता न रह गया हो।
वित्तीय व्यवस्था के सन्दर्भ में- सरकारिया आयोग ने सुझाव दिया है कि योजना आयोग में प्रस्तावित वित्त आयोग प्रकोष्ठ को राज्यों की वित्तीय व्यवस्था को भी नियन्त्रित करना चाहिए। अपने सुझाव में आयोग ने कहा कि प्रकोष्ठ को वित्त आयोग के मानदण्डों में परिवर्तन का वार्षिक अनुमान भी लगाना चाहिए। इसके बाद योजना आयोग वित्त आयोग के पूर्वानुमानों में परिवर्तन व उसके कारण तथा अन्य की वार्षिक समीक्षा को राष्ट्रीय आर्थिक व विकास परिषद के समक्ष पेश करने में समर्थ होगा।
संघ राज्यों में करों का बंटवारा- आयोग ने सिफारिश की है कि निगम कर के उचित बंटवारे के लिए संविधान में संशोधन किया जाए। आयोग ने राज्यों की इस मांग को अस्वीकार कर दिया कि उन्हें उत्पादक के एवज में बिक्री कर में अधिक हिस्सा दिया जाए। संघ सरकार को आयकर पर अधिभार नहीं लगाया चाहिए सिवाय किसी विशेष प्रयोजन से तथा सीमित अवधि के लिए।
समवर्ती सूची के सन्दर्भ में- आयोग ने सलाह दी है कि समवर्ती सूची के मामलों पर केन्द्र सरकार व राज्यों में विचार-विमर्श होना चाहिए, जो कि इस समय नहीं हो रहा है। संघ सूची में उल्लिखित विषय संख्या 97 (Entry 97) जिसमें कि अवशिष्ट विषयों का उल्लेख है, कर लगानेक सम्बन्धी मामलों को छोड़कर उसे समवर्ती सूची में रखा जाना चाहिए।
राज्यों को ऋण व अनुदान – आयोग का मत है कि राज्यों को ऋण देने की पद्धति पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए तथा केन्द्र द्वारा प्रायोजित परियोजनाओं की संख्या कम-से-कम रखी जानी चाहिए, खासकर योजना अवधि के बीच मे कोई नई परियोजना शुरू नहीं की जानी चाहिए।
राज्यों में केन्द्रीय सुरक्षा बल – आयोग ने कहा है कि राज्यों में केन्द्रीय रक्षा बलों को तैनात करने के मामले में केन्द्र को निर्णय लेने का पूरा अधिकार होना चाहिए। यदि आवश्यक हो और केन्द्र सरकार चाहे तो राज्य सरकारों की इच्छा के विपरीत भी राज्यों में केन्द्रीय रक्षा बल तैनात कर सकती है।
राष्ट्रपति के विचारार्थ द्वारा विधेयकों का अभिरक्षण – राष्ट्रपति के विचार के लिए जाने के लिए रखे गए किसी विधेयक का निपटारा राष्ट्रपति द्वारा उस तारीख से 4 माह की अवधि के भीतर किया जाना चाहिए जिस तारीख को यह संघ सरकार को प्राप्त होता है। तथापि, यदि राज्य सरकार सेस्पष्टीकरण मांगना अथवा अनुच्छेद 201 के परन्तुक के अधीन, राज्य विधानमण्डल के पुनः विचार के लिए विधेयक को वापस करना आवश्यक समझा जाए तो यह कार्यवाही उस तारीख से 2 माह के भीतर की जाए जिस तारीख को संघ सरकार को हुआ था।
मूल प्राप्त सरकार से अनुच्छेद-201 के परन्तुक के अधीन स्पष्टीकरण प्राप्त होनो अथवा पुनर्विचारित विधेयक प्राप्त होने के बाद, उस मामले का निपटारा राष्ट्रपति द्वारा उस तारीख से 4 माह की अवधि के भीतर किया जाए जिस तारीख का राज्य सरकार से स्पष्टीकरण अथवा पुनर्विचारित विधेयक प्राप्त हुआ हों ।
अखिल भारतीय सेवा- सरकारिया आयोग ने इन्जीनियरी, चिकित्सा और शिक्षा के लिए अखिल भारतीय सेवा गठित करने का सुझाव दिया है। आयोग ने कृषि, सहकारिता और उद्योग के लिए भी अखिल भारतीय सेवा का गठन करने की सिफारिश की हैं इन सेवाओं के गठन के प्रथम चरण के रूप में केन्द्र और विभिन्न राज्यों के अफसरों का पूल बनाकर निश्चिंत अवधि के लिए आकर्षक वेतन पर उनकी नियुक्ति अन्य राज्यों में की जाए।
योजना आयोग- सरकारियों आयोग इस बात के पक्ष में नहीं है कि योजना आयोग को स्वायत्त संगठन बना दिया जाए। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ऐसे स्वायत्त संगठन का कामकाज कानूनी पचड़ों, अड़ियल रुख और पेचीदारियों से ग्रस्त होगा। आयोग का यह भी मानना है कि योजना आयोग को केन्द्रीय सरकार के नियंत्रण से बाहर नहीं होना चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि योजना आयोग को स्वायत्तता देने का विकल्प यह है कि इस संस्था और उसके कामकाज में सुधार लाया जाए। योजना प्रक्रिया के सभी चरणों में योजना आयोग राज्यों से पूर्ण और प्रभावी विचार-विमर्श करे ताकि राज्य यह महसूस कर सकें कि उनकी भूमिका पूरक नहीं, बल्कि बराबरी के भागीदारी की है।
‘राष्ट्रीय विकास परिषद के संदर्भ में- सरकारिया आयोग का सुझाव है कि राष्ट्रीय परिषद को और अधिक प्रभावी बनाया जाना चाहिए ताकि वह केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच राजनीतिक स्तर की सर्वोच्च संस्था हो सके। आयोग के अनुसार इसका पुनर्गठन करके नाम बदलकर ‘राष्ट्रीय आर्थिक एवं विकास परिषद’ कर दिया जाए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि केन्द्र सरकार राष्ट्रीय आर्थिक एवं विकास परिषद से विचार-विमर्श कर सभी राज्यों की नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव नियमित कर इनमें एकरूपता विकसित करें। आयोग का सुझाव है कि इसके लिए संविधान में संशोधन किया जाए।
सरकारिया राज्यपाल- आयोग का सुझाव है कि केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी के अलावा किसी दूसरी पार्टी द्वारा शासित राज्य में केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी के किसी व्यक्ति को राज्यपाल नियुक्त नहीं करना चाहिए।
सरकारिया आयोग के प्रतिवेदन की आलोचना करते हुए कहा गया है कि इसमें केन्द्र तथा राज्यों के सम्बन्धों पर संघात्मक एकता की दृष्टि से विचार ही नहीं किया गया है। ऐसा लगता है कि सरकारिया कमीशन मजबूत केन्द्र की सार्वभौमिकता को मान्य करके चला है, इसलिए केन्द्र की शक्ति, अधिकार और सत्ता में कहीं कमी नहीं आए, यही उसकी धारणा रही है।
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