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सांख्यिकी के महत्त्व | Importance of statistics in Hindi

सांख्यिकी के महत्त्व | Importance of statistics in Hindi
सांख्यिकी के महत्त्व | Importance of statistics in Hindi

सांख्यिकी के महत्त्व

सांख्यिकी के महत्त्व को निम्नतः स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) तथ्यों को संख्यात्मक रूप में प्रस्तुत करना- सांख्यिकी में सामाजिक तथ्यों को संख्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता है जिससे समस्या के बारे में जानकारी करना सरल हो जाता है। उदाहरण के लिए, बाल-विवाह, विधवा पुनर्विवाह, आदि के पक्ष-विपक्ष की राय को संख्या में प्रस्तुत करने से जनमत की इन समस्याओं के बारे में रुचि और मत का आसानी से पता लगाया जा सकता है।

(2) जटिल तथ्यों को सरल बनाना – आंकड़े जटिल और बिखरे हुए होते हैं जो सामान्य व्यक्ति की समझ से बाहर होते हैं तथा वह उनसे कोई निष्कर्ष भी नहीं निकाल सकता किन्तु सांख्यिकी की विभिन्न रीतियों, जैसे वर्गीकरण, सारणीयन, चित्रमय एवं बिन्दुरेखीय प्रदर्शन और केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप, आदि के द्वारा जटिल सांख्यिकी सामग्री को सरल बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में भारत की राष्ट्रीय और प्रति व्यक्ति आय की संख्याओं को हम चित्रों, ग्राफ और वक्रों द्वारा सरलता से प्रकट कर सकते हैं।

(3) तथ्यों की तुलना एवं उनमें सम्बन्ध स्थापित करना- सांख्यिकी का एक महत्त्वपूर्ण कार्य तुलनात्मक अध्ययन की सुविधा प्रदान करना है। विभिन्न तथ्यों की तुलना करने के लिए माध्य, सूचकांक और गुणांक, आदि का प्रयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ, सांख्यिकी और गुणांकों की सहायता से दो देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना की जा सकती है, साथ ही आय के वितरण में व्याप्त असमानताओं का पता लगाया जा सकता है। सह-सम्बन्ध तथा गुण- साहचर्य की रीतियों द्वारा विभिन्न घटनाओं; जैसे गरीबी और अपराध, नगरीकरण की दर और अपराध, आदि में पाये जाने वाले सम्बन्धों को स्पष्ट किया जा सकता है।

(4) नीति निर्धारण में सहायक – सांख्यिकी हमारा सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक और अन्य क्षेत्रों में नीति निर्धारण में मार्ग प्रशस्त कर सकती है। देश की आयात-निर्यात नीति, मूल्य नीति-मद्य-निषेध नीति और जनसंख्या नीति के निर्धारण में संकलित आंकड़ों का विश्लेषण आवश्यक है। सरकार की वर्तमान नीतियों का सांख्यिकीय मूल्यांकन करके भी सांख्यिकी अपना योगदान दे सकती है, जैसे संख्यात्मक विश्लेषण से ही इस बात का पता चल सकता है कि परिवार नियोजन सम्बन्धी सरकार की नीति कहां तक सफल हुई है? इस प्रकार नीति-निर्धारण और नीति के प्रभावों का मूल्यांकन सांख्यिकी के मुख्य उपयोग हैं।

(5) व्यक्तिगत ज्ञान एवं अनुभव में वृद्धि – डॉ. बाउले का मत है कि “सांख्यिकी का उचित कार्य, वास्तव में, व्यक्तिगत अनुभव में वृद्धि करना है।” सांख्यिकी के अध्ययन से व्यक्ति के विचारों में स्पष्टता और निश्चितता आती हैं। आंकड़ों के विश्लेषण और निर्वचन करने से व्यक्ति में तर्कशक्ति का विकास होता है, वह समस्या को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखने व समझने में सक्षम होता हैं। सांख्यिकी के क्षेत्र में शोध करने के लिए व्यक्ति को समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, व्यावसायिक प्रशासन आदि की भी समुचित जानकारी आवश्यक है क्योंकि इन विज्ञानों द्वारा किये जाने वाले सर्वेक्षणों से सांख्यिकी को कई प्रकार के अनुभव प्राप्त होते हैं, उसकी ज्ञानपरिधि का विकास होता है। सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग मानव ज्ञान को पूर्ण और परिपक्व बनाता है।

(6) अनुमान लगाने में सहायक – सांख्यिकी में केव ल उपलब्ध आंकड़ों का ही विश्लेषण नहीं किया जाता वरन् उसके आधार पर भावी स्थितियों का भी अनुमान लगाया जाता है। आन्तरगणन (Interpolation), बाह्यगणन और पूर्वानुमान द्वारा यह कार्य किया जाता है। आर्थिक और सामाजिक विकास की योजनाएं तो भावी अनुमानों के आधार पर ही निर्मित की जाती हैं। आकस्मिक अनुमानों के बजाय सांख्यिकी अनुमान अधिक यथार्थ होते हैं। इस सन्दर्भ में डॉ. बाउले ने उचित ही लिखा है, “एक सांख्यिकीय अनुमान अच्छा हो या बुरा, सही हो या गलत, किन्तु प्रायः प्रत्येक स्थिति में वह एक आकस्मिक प्रेक्षक के अनुमान से अधिक उचित होगा।”

(7) वैज्ञानिक नियमों की परख सम्भव – न केवल समाजशास्त्र में वरन् अन्य विज्ञानों में भी (deduction) विधि द्वारा प्राप्त पुराने नियमों के परीक्षण और नवीन सिद्धान्तों के निर्माण में सांख्यिकी रीतियां उपयोगी सिद्ध हुई । इस कार्य के लिए सभी विज्ञान सांख्यिकी के आभारी हैं। सांख्यिकी के आधार पर ही माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त और अर्थशास्त्र में द्रव्य के परिमाण सिद्धान्त में कई आवश्यक संशोधन हुए हैं। सांख्यिकीय विधियों के प्रयोग से सभी विज्ञानों का विकास हुआ है, यदि यह कहा जाय तो अनुपयुक्त नहीं होगा।

(8) समस्या की सही जानकारी प्रदान करना- सांख्यिकी की सहायता से हम किसी सामाजिक-आर्थिक समस्या के विस्तार एवं गहनता से भली-भांति परिचित हो जाते हैं क्योंकि उस समय से सम्बन्धित आंकड़ों से अनेक तथ्य ज्ञात होते हैं। उदाहरण के लिए, यह कहना कि 1971 की तुलना में 1981 की तुलना में 1981 में देश की जनसंख्या बढ़ी है तो इससे समस्या का पता नहीं चलेगा। इसके स्थान पर यदि कहा जाय कि 1971 में भारत की जनसंख्या 54 करोड़ थी जो बढ़कर 1981 में 68.5 करोड़ हो गई तो समस्या के आधार पर कुछ ज्ञान अवश्य होगा।

(9) आर्थिक क्षेत्रों में उपयोगी – आर्थिक क्षेत्रों में सांख्यिकी के महत्त्व को बताते हुए या-लुन चाउ (Ya-Lun Chou) लिखते हैं, “अर्थशास्त्री, आर्थिक समूहों, जैसे सकल राष्ट्रीय उत्पाद उपयोग, बचत, विनियोग-व्यय और मुद्रा के मुल्य होने वाले परिवर्तनों के मापन के लिए आंकड़ों पर निर्भर रहते हैं। वे आर्थिक सिद्धान्तों का सत्यापन करने तथा प्राक्कल्पनाओं की जांच के लिए भी सांख्यिकी विधि का ही प्रयोग करते हैं।” आर्थिक क्षेत्र की किसकी भी ऐसी समस्या की कल्पना ही नहीं की जा सकती जिसमें समंकों (data) का प्रयोग न किया जाता हो, उत्पादन को व्यवस्थित करने के लिए उपभोक्ताओं की रुचियों, मांग, जीवन-स्तर, क्रय-शक्ति, आदि के बारे में समंकों का संकलन किया जाता है। उत्पादन सम्बन्धी आंकड़े देश की सम्पत्ति की मात्रा, उसमें होने वाले परिवर्तन एवं उसके कारणों, आयात-निर्यात, भुगतान सन्तुलन, राष्ट्रीय लाभांश, आदि के बारे में समुचित जानकारी प्रदान करते हैं जो देश के भावी आर्थिक विकास की दृष्टि से आवश्यक है।

(10) सामाजिक अनुसन्धानों में उपयोग — सांख्यिकीय सामाजिक क्षेत्र में अनुसन्धानों की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। डब्ल्यू.आई.किंग (W.I. King) का मत है कि सांख्यिकी विज्ञान की वह विधि है जिसके द्वारा सामूहिक, प्राकृतिक या सामाजिक घटना का निर्णय विश्लेषण, गणना या अनुमानों के संकलन के परिणामों के आधार पर किया जाता है। समाज में अपराध, बेकारी, गरीबी, वेश्यावृत्ति, पारिवारिक एवं सामाजिक विघटन, बाल-विवाह, निरक्षरता, भिक्षावृत्ति, अस्पृश्यता, साम्प्रदायिकता आदि अनेक समस्याएं व्याप्त हैं, जिनके वैज्ञानिक अध्ययन एवं सर्वेक्षण हेतु इसे समुचित तथ्य संकलित करने पड़ते हैं, उनका वर्गीकरण सारणीयन, विश्लेषण एवं निर्वचन करना होता है। इन सब के लिए सांख्यिकी का ज्ञान अति आवश्यक है। बहुत बड़े क्षेत्र में सामाजिक सर्वेक्षण करने के लिए निदर्शन (sampling) विधि का प्रयोग करना पड़ता है। निदर्शन प्राप्त करने में भी सांख्यिकी विधियों का सहारा लेना होता है। समाजशास्त्र के क्षेत्र में सांख्यिकी का उपयोग जनांकिकी तथ्यों, जैसे जन्म-दर, विवाह, जनसंख्या वृद्धि, आदि के अध्ययन के लिए आवश्यक है। नवीन समंकों (data) की सहायता से समाजशास्त्री सामाजिक नियमों या उपकल्पनाओं की जांच करके उनमें आवश्यक संशोधन करते रहते हैं। सामाजिक अनुसन्धानों के लिए सांख्यिकी विधियां उपयोगी यन्त्रों का कार्य करती हैं। इस सन्दर्भ में क्राक्सटन एवं काउडेन ने उचित ही लिखा है, “सांख्यिकी की पर्याप्त जानकारी के बिना समाज विज्ञानों का अनुसन्धानकर्ता अक्सर एक ऐसे अन्धे व्यक्ति के समान है जो एक अंधेरे कमरे में उस काली बिल्ली को ढूंढ़ने का प्रयत्न कर रहा है वहां है ही नहीं।”

मानसिक योग्यता एवं अन्य मनोवैज्ञानिक तथ्यों की माप के लिए तथा माप की प्रामाणिकता एवं विश्वसनीयता की जांच करने हेतु, बुद्धि-लब्धि (1.Q.) या बौद्धिक परीक्षण में विश्लेषण हेतु सांख्यिकी का उपयोग किया जाता है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में विशाल सांख्यिकीय तथ्यों एवं सिद्धान्तों के प्रयोग के लिए ‘साइकोमिट्री’ (Psychometry) नामक विज्ञान की एक नवीन शाखा का जन्म हुआ।

उपर्युक्त सम्पूर्ण विवरण से स्पष्ट है कि सांख्यिकी का उपयोग समाज के विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है जो कि समाजशास्त्र के अध्ययन के दारे में आते हैं। एडवर्ड जे. केने (Edward J. Kane) ने लिखा है, “आजकल सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग ज्ञान एवं अनुसन्धान की लगभग प्रत्येक शाखा आरेखीय कलाओं से लेकर नक्षत्र-भौतिकी तक और लगभग प्रत्येक प्रकार के व्यावहारिक उपयोग संगीत रचना से लेकर प्रक्षेपास्त्र निर्देशन तक में किया जाता है।”

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Anjali Yadav

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